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रात के दस बज रहे हैं।कल और परसों लखनऊ मीटिंग है। नौचंदी एक्सप्रेस से AC 2 में रिजर्वेशन है। तत्काल में अधिक रुपए खर्च करके रिजर्वेशन कराया गया।
स्टेशन पहुंच कर देखा कि ट्रेन के हर डिब्बे पर किसान यूनियन का कब्जा पर सोचा कि मेरा तो एसी कोच है
पर अपने डिब्बे में पहुंचते ही देखा कि घुसते ही इंट्री रोक दी गई। मैंने कहा कि मेरा रिज़र्वेशन है तो एक व्यक्ति बोला कि मर्दों के बीच जनानी के करेगी।
मैंने कहा बैठेगी और क्या करेगी।
न न यहां न बैठ सको तुम।
तो मैं अपनी अटैची पर बैठ कर जाऊंगी।मेरा टिकट है,आपका है।
तभी एक बोला अड़ियल है मानेगी ना।
एक बोल पड़ा कि हम तुम लोगों के लिए खेत में मर रहे, किसानों की बात रखने के लिए धरना प्रदर्शन करने लखनऊ जा रहे।
तो हमारी सीट में आप जाओगे लेटकर और हम दो हजार का टिकट लेकर एक सीट में पांच लोग बैठ कर जाएं।
एक बार मन में आया कि यात्रा कैंसिल कर दूं फिर लगा कि घबराकर यात्रा न करना ठीक नहीं है। ड्राइवर और गार्ड को जबरन मैंने भेजा नहीं तो वो लड़ने के लिए तैयार थे।
लड़ाई से कोई फायदा नहीं क्योंकि ट्रेन में कोई अटेंडेंट ही नहीं है।न चादर है,न तकिया और कंबल की बात ही न करो।एसी काम ही नहीं कर रहा।
यद्यपि आज मेरा स्वास्थ्य खराब है ,हल्का बुखार भी है।
मजेदार बात यह है कि अभी तक न ही कोई टीटी टिकट चेक करने आया न ही जीआरपी वाले आए कि कम से कम महिलाओं को तो ठीक से बैठा दें।
यहां अरमानी की शर्ट वाला किसान भी है, धोती कुर्ता वाला भी किसान है,अधिकतर युवा किसान हैं। कुछ ताऊ भी हैं।
हरी टोपी और हरा गमछा सबके पास है।
किसी किसी ताऊ के पास हुक्का भी है।
सबके हाथ में एनराइड मोबाइल है पर इयर फोन किसी के पास नहीं है
सब धड़ल्ले से अपने अपने सीरियल, फिल्म,नाच गाना देख रहे हैं।
राजनीति की बातें हो रही हैं। नेता अधिकारी को गाली पड़ रही है।
मस्त मनोरंजन हो रहा है।
एक आर्मी का जवान अपने बच्चों के साथ लखनऊ जा रहा है।
उन्हीं के साथ मैं भी एडजस्ट हो गई।
मितरों आज रतजगा होगा।