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कमल शर्मा की नजर में iimc पहले बैच के दोस्त

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आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..पहली पोस्‍ट*


आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह यादगार बनाने की कोशिश रही। बीते दिनों जब दिल्‍ली प्रेस कल्‍ब में मिलना हुआ और कुछ मित्रों ने जयपुर में यह कार्यक्रम आयोजित करने की बात कही। कच्‍ची सी रुपरेखा थी लेकिन इरादे पक्‍के थे।


भाई अशोक का यह विचार बहुत अच्‍छा था। दिल्‍ली प्रेस कल्‍ब में आए सभी साथियों ने इस पर मुहर लगाई। हालांकि, सुनीता स्‍वास्‍थ्‍य कारणों से इसमें शामिल नहीं हो पाई। अंत तक उम्‍मीद यही थी कि वह शामिल होगी, लेकिन अब हम सभी को उम्‍मीद है कि अगले कार्यक्रम में वह शामिल होगी पूरी तरह स्‍वस्‍थ होकर।...यद्यपि एक समय यह लगने लगा था कि संभवत: कार्यक्रम रद्द हो या स्‍थगित। फिर रुपपेखा को बदलकर काम पर लगे तो कार्यक्रम सफलता की ओर बढ़ा एवं अंत‍त: 28 सितंबर से साथियों का आना जयपुर शुरु हुआ। 


इस कार्यक्रम में ताराराम की दृढता ने हमारे हौसले को सबसे ज्‍यादा बुलंद किया। मुजफ्फर भाई के पास उनका घर का पता था, जहां स्‍पीड पोस्‍ट भेजी गई। उनके बेटे के पास सूचना पहुंची की कोई स्‍पीड पोस्‍ट से लैटर आया है। उन्‍होंने अपने पापा को फोन पर बताया कि रामपुर से मुजफ्फर जी का पत्र आया है। ताराराम के बेटे गुलशन ने बताया कि पापा जानकार बेहद भावुक हो गए और आंसू उनकी आंखों से टपकने लगे। उन्‍होंने मुजफ्फर भाई को भी फोन किया तत्‍काल और हालचाल लिया, दोनों दोस्‍त अश्रूधारा में नहा लिए। इसके बाद मुझे ताराराम का फोन आया, बस मेरा भी वहीं हाल था जो मुजफ्फर भाई का था। 


ताराराम से व्‍यक्ति को दृढता की प्रेरणा लेनी चाहिए। 28 को उनकी ट्रेन कैंसिल होने के बावजूद अलग अलग ट्रेन पकड़ते हुए 29 की रात 11 बजे जयपुर अपने बेटे के साथ आ पहुंचें। ताराराम से साक्षात मिलकर सभी मित्र गदगद हो उठे। सभी होटल की लॉबी में उनके आने का इंतजार कर रहे थे। सबसे बेहद सुखद क्षण यह मिलन था।

जयपुर कार्यक्रम पर चर्चा जारी रहेगी। 


आज सबसे पहले जयपुर से विदा होने वालों मे जगदीश जिसे मैने स्‍कूटर पर जयपुर रेलवे स्‍टेशन छोड़ा। सवा दो बजे उनकी ट्रेन थी साबरमती एक्‍सप्रेस। जगदीश से जल्‍दी से कहा मिलते हैं और आगे बढ़ गया। रुक नहीं सकता था, अन्‍यथा मुझे पता था मैं तो अभी रो ही पडूंगा कि क्‍या कुछ देर में सभी दोस्‍त अपने अपने शहरों की ओर लौटेंगे। भाई अशोक को होटल के बाहर बातचीत करते हुए हाथ हिलाया। जयपुर से बाहर जाने का मेरा भी शाम का कार्यक्रम था और सभी दोस्‍तों से यह कैसे कह पाऊं कि अच्‍छा भाई जल्‍दी मिलेंगे। सब अपने अपने नीड की ओर चले और मैं स्‍टेशन पर अकेला रह जाता, वह सह नहीं सकता था। अत: मुझे क्षमा करें, वह क्षण रोमांचित भी होता जब हम कहते हैं ट्रेन अभी तक नहीं आई, एक नंबर प्‍लेटफार्म पर आ रही है..अब आ गई। लेकिन ज्‍योंकि गाडी चल देती, अपने को रोक नहीं सकता था। 


गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है

चलना ही ज़िंदगी है, चलती ही जा रही है

गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है

देखो वो रेल, बच्चों का खेल, सीखो सबक जवानों

सर पे है बोझ, सीने में आग, लब पर धुआँ है जानो

फिर भी ये गा रही है, नगमें सुना रही है

गाड़ी बुला सीटी बजा रही हैं


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आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..दूसरी पोस्‍ट* 


आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह को जयपुर में आयोजित करने की जब तारीख तय हुई तब हमारी सहपाठी रमा ने तत्‍काल अपनी सहयोग राशि ट्रांसफर की। लेकिन, फिर बीच में लगा कि यह प्रोग्राम शायद ही हो या स्‍थगित हो। रमा ने मुझे फोन कर कहा मैं कमल हर हाल में जयपुर आ रही हूं, कोई आए या नहीं। कोई भी नहीं आया तो तुम और मैं ही बैठकर गपशप करेंगे तो भी यह आयोजन ही माना जाएगा। और यदि चार-पांच साथी आए तो भी यह आयोजन ही होगा। लेकिन, ऐसी दृढता से कार्यक्रम सफल हुआ। सख्‍त और दृढ निर्णय रमा का।


हालांकि, रमा के कॉलेज की 30 तारीख की एक अति जरुरी मीटिंग तय हो गई, ऐसे में वह 28 को सुबह आई अपनी कार से। साथ में भाई अशोक भी आए। रमा ने 29 की दोपहर सभी साथियों के सिटी पैलेस सहित जयपुर भ्रमण पर निकलने पर विदा लेते हुए दिल्‍ली रवाना हुई और घर पहुंचकर सूचना भी दी। 


रमा ने कार्यक्रम बना तब भी और जब आई तब भी एक ही बात कही, घूमना फिरना तो होता रहेगा। मैं तो मेरे सहपाठियों से बातचीत करने, गपशप करने आई हूं। 35 साल पुराने अपने दोस्‍तों से मिलने आई हूं। कुछ साथी बीच बीच में कभी कभार मिलते रहे, लेकिन एक साथ इतने साथियों से मिलने का मोह मुझे जयपुर आने से रोक नहीं सकता था।


रमा से 29 की दोपहर बाद आए साथी मिल नहीं सके, रमा का कहना था कि 30 को. काश मीटिंग न होती तो बाकी सभी दोस्‍तों से मिल पाती। खैर, हम सब दिल्‍ली में मिलेंगे क्‍योंकि दिल्‍ली दूर नहीं।

[01/10, 6:43 pm] Iimc Kamal Sharma: *आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..तीसरी पोस्‍ट* 


आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह जयपुर में आने की इच्‍छा होने के बावजूद यूनिवर्सिटी का एक जरुरी कार्यक्रम होने से फैसला लेने में दुविधा हो रही थी। हरीश ने मुझे कहा कि मैं बात करता हूं और पूरी कोशिश होगी जयपुर आने की। मैंने भाई हरीश को कहा यदि पूरी कोशिश की बात कह दी तो समझो आप जयपुर में होंगे। 


एक सप्‍ताह के इंतजार के बाद हरीश ने ओके किया और यूनिवर्सिटी में आयोजित होने वाले कार्यक्रम की जिम्‍मेदारी दूसरों को सौंप जयपुर पहुंचे। हरीश के आते ही तो बस मजा आ गया। आईआईएमसी की बातें, होस्‍टल की बातें, जीवन की बातें, करियर की बातें..सारे दोस्‍त पांडेय जी रुम में जमे और नाशता-चाय के दौर के साथ खूब बातें। 35 साल पुराने इतिहास में जाने से लेकर वर्तमान तक। 


जब जयपुर पर्यटन पर निकले तो सबसे ज्‍यादा फिटनैस के साथ हरीश को देखकर यही लगा सभी को यह 1987 वाला हरीश ही है। हरीश की यूनिवर्सिटी में चलने वाली पत्रकारिता की पढ़ाई पर भी चर्चा हुई और जान पाए कि अब नया क्‍या है। 1987 और आज की पत्रकारिता एवं पत्रकारिता की पढ़ाने करने आने वाले छात्रों में क्‍या अंतर है। घूमने के साथ, साथ खाना खाने, गपशप करने और देर रात तक बातें करने में ऐसा आनंद आया कि बरबस मुंह से निकल जाता है


मेहफिल रंगीन जमे

दौर चले धूम मचे

मस्त मस्त नज़र देखे नए चमत्कार

जहां चार यार

जहां चार यार मिल जाए

वही रात हो गुलज़ार

जहां चार यार


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आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..चौथी पोस्‍ट* 


आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह जयपुर कार्यक्रम की सबसे बड़ी जिम्‍मेदारी उठाई भाई अनामी शरण बबल ने। सहयोग राशि जुटाने से लेकर फाइनल बैलेंसशीट तक। 1987 में जिस हंसमुख चेहरे के साथ बबल को देखा था, वही 35 साल बाद भी। बबल के मुस्‍कुराते रहने और चिंता मुक्‍त रहने का ही यह बेहतर असर है कि... कह उठेंगे मेरी त्‍वचा से मेरी आयु का पता नहीं चलता। सबसे बड़ा योग है बबल का यही हंस तु हरदम...।


इस आयोजन को बबल के भरपूर सहयोग, चाहे सभी साथियों को फोन करना हो, बार बार फोन करना हो पूरे धैर्य के साथ, अपनो की मनुहार करने में कि कार्यक्रम में जयपुर आओ..बबल से ज्‍यादा योग्‍य शायद ही कोई साथी हो। कई साथी ने उसे जयपुर पहुंचने में असमर्थता भी जताई, बावजूद उसके वह 22 तारीख तक प्रयास से पीछे नहीं हटा। अति मिलनसार स्‍वभाव की वजह से यह पता था कि बबल सफल होगा...और उसके प्रयासों की वजह से सफल रहा भी।


यहां 29 तारीख को बबल की किताब का विमोचन उसने अपने साथियों से कराया और कहा कि तुम सब से बेहतर कोई विमोचन करने वाला हो नहीं सकता। अलग अलग चुनी हुई बेहतर रिपोर्टस को अपनी किताबों में संवारा है बबल ने। अब पूरी किताब पढ़ी जाएगी और बबल से चर्चा भी होगी। इस बीच, बबल ने अगला कार्यक्रम गया/अयोध्‍या में करने की बात कही और आज गोवा में भी। यह होती है असली दोस्‍ती और दोस्‍तों से मिलने के लिए मचल उठने वाला प्‍यार। 


बबल ने समाचार पत्रों का ग्रुप बना रखा है और मैं देखता हूं कि वह हर रोज खूब समाचार पत्र वहां पोस्‍ट करता है ताकि जल्‍दी और बगैर खर्च के कोई भी आसानी से अग्रेजी-हिंदी के अखबार पढ सकता है। बीबीसी सहित अनेक बेहतर मीडिया हाउस की न्‍यूज के लिंक समय पर पोस्‍ट करना उसकी आदत में शुमार है। हंसते-मुस्‍कुराते हुए जीवन को आगे बढ़ाने का नाम है बबल। 


हँस तू हरदम 

खुशियां या ग़म 

किसी से डरना नहीं, 

डर डर के जीना नहीं 

हँस तू हरदम 

खुशियां या ग़म


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आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..पांचवीं पोस्‍ट* 


आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह जयपुर कार्यक्रम में जगदीश भी किसान रेल रोको आंदोलन की वजह से 29 को तब दोपहर में पहुंचा जब हम सिटी पैलेस लगभग पूरा देख चुके थे। मैंने होटल ऑनर का फोन आने पर कहा चाय नाशता, खाना जो भी कहें इनके रुम में पहुंचा देना और इसके बाद हवामहल पहुंचने का रास्‍ता समझा देना। मेट्रो 10 मिनट में आ जाएंगे। लेकिन जगदीश ने आराम करना ज्‍यादा सुखदायी समझा थकान की वजह से। 


पत्रकारिता की पढ़ाई से एलएलबी और रेलवे की जॉब से अब सुप्रीम कोर्ट के वकील तक का काम। कभी फ्री नहीं बैठे देखा जगदीश को। रेलवे से वीआरएस लेकर पत्रकारिता में पढ़ाने का काम किया, कुछ न कुछ काम करते करते लॉ की पढ़ाई, हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट। यदि कोई आईकार्ड देख ले पुलिस या प्रशासन तो दमखम रहता है कि सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं। 35 साल पहले जहां दुबला था वहीं अब भारी भरकम शरीर...शायद सुप्रीम कोर्ट के अनुरुप साइज..सुप्रीम ही होना चाहिए।


जगदीश ने कभी किसी विषय पर चिंता नहीं जताई। हमेशा वह दोस्‍तों को फोन करता रहता है चाहे हालचाल लेने या बस वैसे ही। फकीर, मस्‍त मौला वाली जिंदगी जी है जगदीश ने। गपशप, चर्चा में बढ़चढकर हिस्‍सा लेना। 

जगदीश के लिए 


मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया

हर फ़िक्र को धुँएं में उड़ाता चला गया

बरबादियों का सोग़ मनाना फ़िज़ूल था 

बरबादियों का जश्न मनाता चला गया

मैं ज़िंदगी...

जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया 

जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया

मैं ज़िंदगी...

ग़म और खुशी में फ़र्क न महसूस हो जहाँ 

मैं दिल को उस मुक़ाम पे लाता चला गया

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया



आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..छठी पोस्‍ट* 


आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह जयपुर कार्यक्रम में आने की बात होने पर भाई मुकेश कौशिक ने कहा आना तो है ही जयपुर, य‍ह तो दिल्‍ली प्रेस कल्‍ब में मीटिग के दौरान ही तय हो गया था। विधानसभा चुनावों को लेकर मेरे आफिस की एक मीटिंग भोपाल में है। मीटिंग पूरी होते ही फाइनल बताता हूं कि आ पाऊंगा या नहीं। एक दिन बाद ही बताया आ रहा हूं जयपुर। 29 की सुबह शताब्‍दी से आगमन हुआ। आईआईएमसी में पढ़ाई के दिनों की बात से लेकर अब तक के जीवन पर बातचीत। 


हर पर्यटक स्‍थल की बेहतर जानकारी लेना और देना। एक वीडियो भी तब बना जब जयगढ़ किले में 250 टन की तोप और अब की सेनाओं के तोपखाने में आई परिवर्तन और हथियारों की जानकारी। आईआईएमसी के दिनों की तरह ही मजबूत याददाशत पूरे रिसर्च के साथ। भाई मुकेश का कहना रहा कि इस तरह के आयोजन होते रहना चाहिए और आज 35 साल कई साथियों से मुलाकात या लंबे समय बाद हुई मुलाकात रोमांचक रही। हम एक जगह जुटे, यह बात बताती है कि हम सभी के संबंध गहरे पानी पैठ जैसे हैं।


जोगी चलाए कोई जंतर

खिलेगा तेरा अंतर

तू आजा गुरु मंतर

ये ले ले रे

अपना पराया जो मिले झप्पी ले ले रे

मस्ती की टंकी में तनिक डुबकी ले ले रे

चल बेटा सेल्फ़ी ले ले रे


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आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..सातवीं पोस्‍ट*



आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह जयपुर कार्यक्रम की बात हुई दिल्‍ली प्रेस कल्‍ब में साथ बैठे बैठे और मुजफ्फर भाई ने कहा करो यह आयोजन। मैं पक्‍का आ रहा हूं और हमारे सभी साथी आएंगे। सभी से मैं भी बातचीत करूंगा। मुजफ्फर का मतलब होता है विजेता...बस यही तो हमारे मुजफ्फर भाई जिन्‍होंने सभी के दिलों को जीता है। 


आईआईएमसी में पढ़ने के दौरान जो सरल स्‍वभाव जो था, वह आज भी कायम है। आईआईएमसी में हम सभी ने देखा कि मुजफ्फर भाई हाथ से लिखकर मैगजीन तैयार करने, अखबार लिखना, हालचाल लेते रहना समय समय पर और जरुरत पड़ने पर हर संभव सहयोग करना इनसे सीखा जा सकता है। सभी के पते जुटाना शुरु से आदत रही जिसका नतीजा यह हुआ कि हम सभी को खोया हुआ ताराराम मिला। 


असीम को भी उनके घर भागलपुर पत्र लिखा, लेकिन बाद में वे दिल्‍ली में मिले। यदि पते न होते तो पत्र कैसे पहुंचते और हम अपने ही सहपाठियों का पता नहीं लगा पाते। जयपुर मे भी मुजफ्फर भाई एक लिखित प्रश्‍नावली लेकर प्रकट हुए जिसके जवाब उन्‍होंने हाथों हाथ भरकर देने को कहा ताकि वे डेटा अपडेट कर सके।


गंभीरता, संजीदगी, सरलता और सब के साथ दूध में मिश्री की तरह मिल जाना मुजफ्फर भाई से सीखना चाहिए। बस इन खासियत से ही तो ये विजेता बने हैं।


तेरे जैसा यार कहाँ

कहां ऐसा याराना


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*आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..आठवीं पोस्‍ट* 


आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह जयपुर कार्यक्रम आयोजन के समय भरत मीणा से चर्चा हुई। भरत ने तत्‍काल कहा मैं आ रहा हूं, बल्कि सभी साथी सवाई माधोपुर रणथंभौर आते हैं तो मेरे गांव जरुर ठहरे और दाल, बाटी, चूरमा यही खाया जाएगा और आराम भी। जयपुर से जब हम सवाईमाधोपुर जाते हैं तो बीच में भरत का गांव आता है। 


भरत सरकारी सेवा से रिटायर होकर मस्‍त आनंद जी रहे हैं और उस पीढ़ी के साथ भरपूर आनंद ले रहे हैं जहां कहा जाता है पोते-पोती का पहला दोस्‍त दादा होता है। आज भी भरत एकदम स्‍मार्ट और चुस्‍त दुरुस्‍त...। पारिवारिक कार्य होने से भरत हमारे साथ होटल में तो न रुके लेकिन पर्यटन और चर्चा के समय साथ रहे। 30 तारीख के मुख्‍य कार्यक्रम में वे अपने जीवन साथी के साथ पधारें। भाभीजी से मिलकर सभी को प्रसन्‍नता हुई। बेहद सरल और सादगी। साथ ही हमारे साथ दो भाभीजी (मिसेज पांडेय और मिसेज बबल) को भी बढिया कंपनी मिली। 


भरत ने सभी से फिर से राजस्‍थान के किसी दूसरे स्‍थान का कार्यक्रम बनाने का भी आग्रह किया और आगे भी इसी तरह हम साथ साथ हैं..की बात कही। 


हंस ले गा ले यह दिन ना मिलेंगे कल

थोड़ी खुशिया हैं थोड़े से यह पल

एक बार चली गयी जो यह बहारे

लौट के ना आयेंगी गुजरी बहारे

मेला बहारो का आता हैं

इक बार आके चला जाता हैं


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*आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..नौवीं पोस्‍ट* 


आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह जयपुर कार्यक्रम में हमारे सबसे वरिष्‍ठ साथी उपेन्‍द्र पांडेय जीवनसाथी के साथ पधारें। कार्यक्रम बनने के समय वे थोडी दुविधा में थे क्‍योकि हम सब के भतीजे भरत का एक्‍सीडेंट हुआ था और उसे मानसिक रुप से उस भयंकर दुर्घटना से आघात लगा, उपचार चल रहा था। अंतत: जब कुछ राहत दिखी तो पांडेय जी कहा हम आ रहे हैं, हालांकि, 10 अक्‍टूबर को भरत का एक एग्‍जाम होने से उसका आना नहीं हुआ।

बरसों बाद भी पांडेय जी उस तरह दिल दिमाग से यंग..कारण हमेशा अपने को अलग अलग गतिविधियो में एक समय बिजी रखते हैं। 


मेरी मोहब्बत जवाँ रहेगी

सदा रही है, सदा रहेगी


इस कार्यक्रम का सबसे ज्‍यादा आनंद ही पांडेय जी ने उठाया, खूब फोटोग्राफी, खूब वीडियोग्राफी। भाभीजी से पहली बार मिलना हुआl, ग्रेट लेडी। फाइनेंस की दुनिया से जुडी हुई हैं, खासकर शेयर बाजार। स्‍वभाव खूब मिलनसार।


पांडेय जी ने सभी साथियों को उनके बेटे की शादी में आने का निमंत्रण दिया। शादी के समय से पहले वे आमंत्रण पत्रिका भी ग्रुप में भेजेंगे। उन्‍होंने और भाभीजी ने  अयोध्‍या भी आने का न्‍यौता दिया कि आप सभी जनवरी में आए जब रामलला नए मंदिर में विराजेंगे। 


पांडेय जी के बारे में बस इतना कहना होगा


हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गायेगा

दीवाना सैंकड़ों में पहचाना जायेगा




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आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..दसवीं पोस्‍ट* 


आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह जयपुर कार्यक्रम की नींव रखी गई दिल्‍ली प्रेस कल्‍ब में हुई मीटिंग के समय और मुख्‍य विचार दिया भाई अशोक ने। अशोक भाई ने पूरे आयोजन कार्यक्रम की रुपरेखा बहुत बारीकी से बनाने में अहम योगदान दिया। संभवत दिल्‍ली में वे इस आयोजन की चर्चा नहीं छेड़ते तो यह कार्यक्रम शायद ही हो पाता। जयपुर कार्यक्रम की चर्चा चलती रही और सभी साथी चर्चा को आगे बढ़ाते गए, जुडते गए और अंतत: परिवार का यह कार्यक्रम हुआ। 


अशोक भाई भारतीय कृषि अनुसंधान संस्‍थान की जिस पत्रिका को जन जन तक पहुंचाते हैं उसमें उनकी वह झलक दिखती है जो साथ पढ़ते समय थी। अनुशासनबद्ध और करीने से काम करना एवं नपी तुली बात रखना। आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच का व्‍हाटसएग्रुप बनाना और सभी को जोड़ना एवं ग्रुप पर एक दूजे को साथ रखने और सम्‍पर्क में बने रहने का मंच उपलब्‍ध करवाना अच्‍छा, सार्थक प्रयास है।


भाई अशोक से यह उम्‍मीद है कि वे आगे भी इसी तरह के आयोजनों की रुपरेखा रखें एवं तीन महीने में एक बार सार्वजनिक अवकाश के दिन जूम मीटिंग भी रखवाएं ताकि सभी ऑनलाइन चर्चा कर हाल चाल ले सकें। 


चले थे साथ मिल के चलेंगे साथ मिलकर

तुम्हें रुकना पड़ेगा मेरी आवाज़ सुनकर

चले थे साथ मिल के चलेंगे साथ मिलकर



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आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह..ग्‍यारहवीं पोस्‍ट* 


आईआईएमसी फर्स्‍ट बैच मिलन समारोह जयपुर कार्यक्रम की नींव रखते समय सुनीता में सबसे ज्‍यादा उत्‍साह था, लेकिन आंखों की सर्जरी होने से वह चाहकर नहीं आ सकी। सभी साथियों को उम्‍मीद थी कि वह संभवत: आ जाए यदि डॉक्‍टर ने अलाऊ किया तो। आईआईएमसी में पढ़ते समय सुनीता के सरल स्‍वभाव ने उसे सबसे मिलनसार बना दिया। उम्‍मीद है अगले कार्यक्रम में सुनीता हम सभी के साथ होंगी।


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