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झारखंड की हिंदी पत्रकारिता

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प्रस्तुति - बिनोद राह विद्रोही


पत्रकार मित्रों को राष्ट्रीय प्रेस दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 


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वैसे झारखंड में पत्रकारिता की शुरुआत 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ ।सन् 1882 ई.में जर्मन मिशन प्रेस द्वारा 'घर बंधु 'नामक पाक्षिक पत्र का प्रकाशन रांची से शुरू हुआ।झारखंड का यह पहला पत्र था। लेकिन उससे पहले की बात अगर की जाए तो संवाद-प्रेषण के अपने-अपने अलग-अलग रूप थे'जबकि छोटानागपुर की जनजातियों में संवाद-प्रेषण का अपना ढंग था,अपनी परंपरा थी।सूचना भेजने के लिए वे "डहुरी" (पत्ती युक्त छोटी-सी टहनी) भेजते थे ।पड़हा-पंचायत में 'डहुरी'भेजी जाती थी।जितने गांवों की पड़हा  पंचायत होती डहुरी में उतनी ही पत्तियां लगी होती थी।एक गांव से दूसरे गांव में इसी डहुरी द्वारा संवाद भेजा जाता था।पत्तियां जहां सुख जाती वहां उतनी ही पत्तियों वाली दूसरी टहनी रख दी जाती। नगाड़ा पीटकर भी सूचना देने की प्रथा थी। आज भी यह परंपरा सुदूर गांवों में प्रचलित है।सदियों तक यहां अखबार या पत्रिका की आवश्यकता महसूस नहीं की गई। 

              "घर-बंधु"के प्रकाशन के बाद लगभग डेढ़ दशक तक रिक्तता रही।(कृष्णराज गुप्त, दैनिक देशप्राण,7अप्रैल1996)इसके प्रकाशन के 11 वर्षों के बाद रांची से ही श्रीमती भाग्यवती देवी के संपादकत्व में 'वनिता हितैषी'नामक पत्रिका का प्रकाशन 15 सितंबर 1892 से प्रारंभ हुआ।यह समाज सुधार एवं नारी केंद्रित पत्रिका थी। इसमें सामाजिक विचारधारा से युक्त लेख एवं कविताएं आदि प्रकाशित होती थी। बालकृष्ण सहाय, ठाकुर गदाधर सिंह आदि इसके नियमित लेखक थे।अलवर की महारानी के संरक्षण में यह पत्रिका निकला करती थी ।बालकृष्ण सहाय 1890 के पूर्व से ही पत्रकारिता करते आ रहे थे। समाज सुधार संबंधी लेखन में इनकी पहचान बन गई थी। ये वनिता हितैषी के विशेष सहयोगी भी थे।(सुधीर कुमार, रांची एक्सप्रेस,19नवम्बर2003) तत्पश्चात रांची से साप्ताहिक आर्यावर्त का प्रकाशन 1898 ई.से हुआ। इसका प्रकाशन कभी रुका नहीं,बल्कि 11 नवंबर 1905 ई. तक अनवरत जारी रहा। आर्यावर्त के बंद हो जाने के बाद (कृष्णराज गुप्त, देशप्राण,7अप्रैल1996)1922 में झरिया के खान मालिक खोजाराम द्वारा सप्ताहिक 'झरिया मेल'का प्रकाशन किया गया।खोजाराम के बंगले के इर्द-गिर्द भूमिगत आग का प्रकोप बढ़ गया था, किंतु उन्होंने वहां से हटना स्वीकार न किया।अंततः एक रात पूरा बंगला भूमिगत आग में समा गया। खोजाराम की जीवित अग्नि- समाधि हो गई।उक्त लोमहर्षक दुर्घटना के बाद झरिया मेल भी बंद हो गया।(अजय मिश्र, दैनिक जागरण,13फरवरी2003) ज्ञातव्य है कि इसके पूर्व 1912 के समय जब बिहार-बंगाल का बंटवारा हुआ तब छोटानागपुर संथाल परगना को बिहार से संबद्ध कर दिया गया।बंगाल में इसका विरोध शुरू हो गया।इसी की प्रतिक्रिया में रांची के युवकों ने 'बिहारी'नामक एक बुलेटिन निकालकर प्रशासन में बंगाली कर्मचारियों के वर्चस्व को लेकर टीका-टिप्पणी शुरू कर दी।इसमें अधिकांशत: बेरोजगार युवक थे।1918 में संतुलाल बुधिया और रामदेव मोदी ने मिलकर रांची से 'हिंद स्वाधीन पुस्तकालय'की स्थापना की। यहां से राष्ट्रीय,ओज,समाज सुधार आदि से संबंधित पुस्तकें तथा पर्चे आदि प्रकाशित किये जाते थे।इसी समय सुकुमार हलधर ने रांची से एक 'सोशल जर्नल'निकाला।राय साहब शरद चंद्र राय ने भी चर्च रोड, रांची से 'मैन इन इंडिया'नामक सोशल जर्नल निकाला। (सुधीर कुमार, रांची एक्सप्रेस,19नवम्बर2003)

            1924 ईस्वी में रांची से 'छोटानागपुर पत्रिका'नामक मासिक का प्रकाशन हुआ, इसके संपादक पं. मामराज शर्मा और मैनेजर शुक्र उरांव थे। तत्पश्चात् जगदीश कश्यप ने 1928 में अमला टोली, रांची से एक हस्तलिखित पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया। सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्व. राधाकृष्ण की पहली रचना इसी पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।जगदीश कश्यप बाद में बौद्ध सन्यासी हो गए और भिक्षु जगदीश कश्यप के नाम से प्रसिद्ध हुए।(वही)

             1929 में धनबाद से एच. मुखर्जी ने साप्ताहिक 'शांतिदूत'का प्रकाशन शुरू किया।

          1930 में धनबाद के  हीरेन्द्रनाथ चटर्जी ने 'प्रतिभा'नामक सप्ताहिक निकाला। यह अपने समय का प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्र था। तत्कालीन प्रतिष्ठित लेखक इस पत्र में लिखा करते थे, जिनमें नवेन्दु घोष, तारापद साहा तथा जी.एन. सरकार की आगे चलकर काफी ख्याति हुई, किंतु यह पत्र अल्पजीवी साबित हुआ हीरेंद्र नाथ चटर्जी पत्रकारिता के प्रति मोह के कारण इंडियन आयरन एंड स्टील की नौकरी से त्यागपत्र देकर प्रतिभा निकाल रहे थे।उसके बंद हो जाने के बाद उन्होंने दिसंबर 1931 में 'स्केच'नामक साप्ताहिक निकाला। छोटानागपुर में पुलिस और प्रशासन के खिलाफ अपने अधिकारों की रक्षा तथा पत्रकारिता की अस्मिता के लिए पहली खुली लड़ाई का श्रेय इसी पत्र को जाता है। स्केच में स्थानीय पुलिस के खिलाफ छपे एक समाचार के आधार पर प्रशासन ने अखबार पर मुकदमा दायर किया। श्रीमती तथा श्री चटर्जी को सलाह दी गई कि वे क्षमा मांग ले ताकि सजा न हो, किंतु दोनों ने पत्र की सम्मान-रक्षा हेतु मुकदमा लड़ना तय किया पुलिस प्रशासन तथा अंग्रेज सरकार के खिलाफ पत्र में छपे समाचार के आधार पर मुकदमेबाजी का छोटानागपुर में यह पहला उदाहरण है। अंततः सरकार ने सुलह की। उस मुकदमे के अनेक उज्जवल पक्ष है। वकीलों ने किसी तरह का पारिश्रमिक नहीं लिया, फिर भी पूरे मुकदमे के दौरान लगभग चार हजार खर्च हुए, जो उन दिनों  बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। स्केच को तब स्थानीय नागरिकों ने आर्थिक मदद से पुनर्जीवित किया। कुछ दिन बाद रानीगंज कोलफील्ड की लकड़का कोयला खान के बारे में छपे एक समाचार को आधार बना खान मालिक ने स्केच पर ₹50 की क्षतिपूर्ति का वाद अदालत में दाखिल किया। मुकदमेबाजी से बचने के लिए आर्थिक रूप से विपन्न स्केच बंद कर 'न्यू स्केच'नाम से प्रकाशित किया जाने लगा। इस पत्र को बाद में प्रमुख कोयला सप्ताहिक के रूप में ख्याति मिली तथा आठवें दशक तक इसका प्रकाशन भी हुआ। (अजय मिश्र, दैनिक जागरण,13फरवरी2003)

              1932 में रांची के राधाकृष्ण, सुबोध मिश्र, सत्यनारायण शर्मा आदि ने मिलकर 'वाटिका'नामक एक हस्तलिखित पत्रिका निकालना आरंभ किया। (सुधीर कुमार, रांची एक्सप्रेस,19नवम्बर2003) वर्ष 1935 में जमशेदपुर से 'सिटीजन'नामक साप्ताहिक का प्रकाशन किया गया जो संभवत 1957 तक चला। 

                    साप्ताहिक 'आदिवासी'का प्रकाशन रांची के बेनी माधव प्रेस से सन् 1937-38 से शुरू हुआ। उस समय इसके संपादक रायसाहब, बंदी राम उरांव, महेश दत्त और जुलियस तिग्गा थे। कुछ अंक निकलने के बाद यह बंद हो गया। बाद में जनसंपर्क विभाग, बिहार सरकार द्वारा रांची से 1946 ई. में साप्ताहिक आदिवासी का प्रकाशन शुरू हुआ।इसके संपादक थे प्रख्यात साहित्यकार राधाकृष्ण। प्रारंभ में 4-5 अंक नागपुरिया बोली में प्रकाशित हुआ। फिर यह पत्र हिंदी तथा जनजातीय बोलियों में प्रकाशित होने लगा। यह जनजातीय जीवन और साहित्य से जुड़ा हुआ था। इसका प्रकाशन संभवत 1988 तक बंद हो गया। एक लंबे अंतराल के बाद झारखंड सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने आदिवासी पत्रिका का पुन: प्रकाशन 15 नवंबर 2002 से कर दिया है।इसके संपादक हैं मुकुल अकड़ा तथा सहायक संपादक देवेंद्र नाथ भादुड़ी। झारखंड राज्य की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर भारत के उप प्रधानमंत्री ने इसका लोकार्पण किया था। 

          सन् 1938-39 के आस-पास ईश्वरी प्रसाद सिंह ने गुमला से 'झारखंड'नामक मासिक का प्रकाशन किया। सन् 1940 में 'अबुआ झारखंड'नामक हिंदी साप्ताहिक का प्रकाशन रांची से शुरू किया गया। इसके संपादक इग्नेश बेक थे। कुछ दिनों तक गोपाल दत्त मुंजाल ने भी इसका संपादन किया था। 1941 (संभवतः) में हजारीबाग से प्रफुल्लचंद्र ओझा 'मुक्त'के संपादन में 'बिजली'नामक साप्ताहिक का प्रकाशन हुआ।1942 में मजदूर नामक साप्ताहिक का प्रकाशन श्रमिक नेता अब्दुल बारी द्वारा संभवत: धनबाद या जमशेदपुर से किया गया था। 1944 में 'झारखंड न्यूज़'का प्रकाशन शुरू हुआ। यह पत्र द्विभाषी पत्र था, जो अंग्रेजी और हिंदी में छपता था। हजारीबाग से बिजली नामक साप्ताहिक के निकलने के बाद 'छोटानागपुर दर्पण'नामक साप्ताहिक निकला, जिस पर चतरा जिला के टंडवा प्रखंड निवासी कृष्ण बल्लभ सहाय (ये 2.10.1963 से 05.03. 1967 तक बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए थे, साथ ही ये एक जाने-माने कांग्रेसी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे) का स्वामित्व था। इसके बाद रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह ने अपना अखबार निकाला, जिसका नाम 'सूर्योदय'था। बाद में यहां एक 'छोटानागपुर एक्सप्रेस'नामक पत्र भी निकला, जो 1967 में किसी कारणवश बंद हो गया।

            सन् 1947 ई. में धनबाद से 'कोलफील्ड टाइम्स'तथा 'आवाज'नामक साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू हुआ।

      

              क्रमशः ................ 

तसवीर- गुगल से साभार


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