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बिन छत का मकबरा हैं दिल्ली के सुल्तान इलतुमिश का

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 दिल्ली के सुल्तान इल्तुमिश का मकबरा आज भी बिना छत के


आम तौर पर सुल्तानों के मकबरे बहुत खास होते हैं, लेकिन दिल्ली में एक सुल्तान का मकबरा ऐसा है जिसमें कोई छत नहीं है। गुलाम वंश के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुमिश का मकबरा बिना छत का है।


दिल्ली के एक सुल्तान का मकबरा बिना छत का है। ऐसा नहीं है कि छत बनाई नहीं गई थी। छत बनाई गई थी, लेकिन यह टिक नहीं पाई। कुछ सालों बाद फिर से इस मकबरे की छत बनाई गई, लेकिन वह भी गिर गई। ऐसे सुल्तान, जिन्होंने दिल्ली को अपनी राजधानी के लिए चुना, कुतुबमीनार का काम पूरा करवाया और अपनी बेटी को दिल्ली का शासक घोषित किया, उनका मकबरा आज भी बिना छत का है। इस सुल्तान का नाम था-शम्सुद्दीन इल्तुतमिश।


कुतुबुद्दीन ऐबक का उत्तराधिकारी था इल्तुमिश


गुलाम वंश की नींव रखने वाले कुतबुद्दीन ऐबक के उत्तराधिकारी और दामाद इल्तुतमिश, दिल्ली को खूबसूरत बनाने के लिए भी जाने जाते हैं। इल्तुतमिश का मकबरा, कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्स में है। यह कॉम्प्लेक्स के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में है। सन् 1235 में इल्तुतमिश ने इसे खुद बनवाया था। यह मकबरा एक गुंबद से ढका था। ऐसा माना जाता है कि यह गुंबद गिर गया। इसके बाद फिरोजशाह तुगलक (1351-88) ने दूसरा गुंबद बनवाया था। मगर, सुल्तान की किस्मत देखिए कि यह गुंबद भी नहीं टिक पाया।


मकबरे के गेट पर शानदारा नक्काशी की गई


आज भी इस मकबरे की छत नहीं है। दिल्ली पर राज करने वाले इस सुल्तान का मकबरा बिना छत का है। बाहर से तो यह मकबरा बिल्कुल सादा है, लेकिन अंदर और गेट पर शानदार तरीके से नक्काशी की गई है। इन नक्काशियों में चक्र, घंटी, जंजीर, कमल और हीरा शामिल हैं। इन्हें देखकर फर्ग्युसन ने कहा था कि यह इस्लामी उद्देश्यों के लिए हिंदू कला के इस्तेमाल किए जाने का शानदार उदाहरण है।


इल्तुमिश ने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को बनाई अपनी राजधानी

12वीं सदी के आखिरी वर्षों में कुतबुद्दीन ऐबक ने कुतुबमीनार की आधारशिला रखी थी। इसका काम को उनके दामाद इल्तुतमिश (1211-36) ने पूरा करवाया था। 1231 में इल्तुतमिश ने एक मकबरा अपने सबसे बड़े बेटे शहजादा नासिरूद्दीन के लिए बनवाया था, जो सुल्तान गारी के मकबरे के नाम से जाना जाता है। इसे सबसे पुराना या पहला मुस्लिम मकबरा माना जाता है। इल्तुतमिश ने लाहौर की जगह दिल्ली को अपनी राजधानी के लिए चुना। इसके साथ ही दिल्ली में कई कवियों, कलाकारों और सूफी संतों को बुलाकर सांस्कृतिक परंपरा की शुरुआत की। उन्होंने दिल्ली की खूबसूरती पर भी काफी ध्यान दिया था। उन्होंने कई तालाब खुदवाए, जिनमें गंधक की बावली और हौज-ए-शम्सी शामिल हैं।


बेटी रजिया को बनाया था अपना उत्तराधिकारी


सन् 1235 में सुल्तान एक युद्ध के दौरान बुरी तरह बीमार पड़ गए। उन्हें दिल्ली वापस दिल्ली लाया गया। एक साल तक वह बीमारी से जूझते रहे, लेकिन उनकी बीमारी ठीक नहीं हुई। अपने अंतिम समय में उन्होंने अपनी बेटी रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। सन् 1236 में इल्तुतमिश की मौत हो गई। उन्होंने 25 साल तक राज किया। उनका मकबरा कुतुबमीनार के पास ही है। काफी विरोध के बाद रजिया दिल्ली की पहली महिला सुल्तान बनी थीं।


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