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सोनम वांगचुक, ग्यात्सो और हिमालय

 करोड़ो कमाकर भूल गये आमिर खान 3 इडियट के वांगचुक को 

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बीते दिनों सोनम वांगचुक  लद्दाख को बचाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठे । 

उन्होंने कहा -


 'विकास और शासन का मॉडल उस क्षेत्र के लिए काम नहीं कर सकता, जिसकी अपनी अनूठी स्थलाकृति, संस्कृति और जीवनशैली है।’ 


21 दिन की भूख हड़ताल खत्म करने के बाद सोनम वांगचुक ने कहा था- ये आंदोलन का अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है। कल से महिलाएं भूख हड़ताल करेंगी। अपनी मांगों को लेकर हमें जब तक आंदोलन करना पड़े, हम करेंगे।


वांगचुक के उठने के दूसरे दिन शुक्रवार को 70 महिलाएं लेह के उसी एनडीएस मेमोरियल पार्क में माइनस 8 डिग्री सेल्सियस की सर्दी में भूख हड़ताल पर बैठ गईं।


अनशन में शामिल एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी नोरजिन एंग्मो ने शुक्रवार को भास्कर से कहा था- मैं अपने बच्चों और पोते-पोतियों के भविष्य की सुरक्षा के लिए भूख हड़ताल पर बैठी हूं। हम विकास के नाम पर लद्दाख के नाजुक पर्यावरण को खराब होते नहीं देख सकते।

नोरजिन ने कहा- 20 साल पहले, नदियां इतनी साफ थीं कि हम सीधे पानी पीते थे, पर आज अत्यधिक प्रदूषित हैं। हमें उनकी रक्षा की जरूरत है।

संविधान के तहत लद्दाख में चल रहे संघर्ष के साथ एकजुटता दिखाते हुए पूरे हिमालय क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने मुद्दे को उठाया।


क्या आप जानते हैं कि इसी हिमालय को बचाने के लिए सिक्किम के जोंगू क्षेत्र में रहने वाली लेप्चा जनजाति ने भी लम्बा संघर्ष किया है। तीस्ता हाइड्रो प्रोजेक्ट के नाम पर बनते अनियंत्रित बांध और गतिविधियों ने क्षेत्र में भूस्खलन और भूकंप को बढ़ाया है। 


1958 में सिक्किम के राजा चोग्याल ने जोंगू को लेप्चा रिज़र्व घोषित किया था और यही स्टेटस भारत सरकार द्वारा भी कायम रखा गया था।


I believe in God, only I spell it Nature. 


—Frank Lloyd Wrigh


भले ही यह quote किसी लेप्चा के नाम से दर्ज नहीं है पर यह उनका जीवन मंत्र अवश्य है। लेप्चा का अर्थ बर्फ यानी कंचनजंघा की संतानें। यह प्रकृति को पूजने और उसके सामंजस्य में रहने वाली जनजाति है। कोई आश्चर्य नहीं कि जोंगू को देवताओं का निवास स्थल व स्वर्ग का प्रवेश द्वार माना जाता है।


स्वर्ग के इस हिस्से में 2000 के दशक की शुरुआत से तीस्ता हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट के कारण समस्याएँ पैदा होने लगी थीं। 

2002 में  जब सिक्किम पावर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने तीस्ता चरण IV और तीस्ता चरण VI बांधों के लिए अपनी योजनाएं और समझौते तैयार किए थे। यह तीस्ता स्टेज IV बांध था जिसने ज़ोंगु और उसके लोगों को सबसे अधिक प्रभावित किया था; परियोजना अंततः 2006 में राष्ट्रीय जलविद्युत ऊर्जा निगम (एनएचपीसी) को सौंप दी गई।

इस विद्युत परियोजना ने न केवल यहां के निवासियों को बल्कि जैव विविधता को भी बुरी तरह प्रभावित किया।

अफेक्टेड सिटीजन ऑफ तीस्ता का गठन किया गया और इस परियोजना का सामूहिक विरोध किया गया।

2007 और 2009 के बीच विरोध चरम पर पहुंचा और इसी दौरान ज़ोंगु के लोगों ने 915 दिनों की शांतिपूर्ण भूख हड़ताल में भाग लिया। इस एकजुट विरोध के कारण राज्य में चार अन्य जलविद्युत परियोजनाओं को रद्द करना पड़ा। 

एसीटी के महासचिव ग्यात्सो लेप्चा के अनुसार 2012 - 2013 में सोशल मीडिया और सांस्कृतिक सहयोगियों संगीतकारों, कलाकारों के माध्यम से प्रकृति संरक्षण के मुद्दे को दूर तक पहुंचाया गया और #SaveTeesta, #SayNoToDams, #NoMoreDams और #RiversForLife जैसे हैशटैग 2015 के बाद से लोकप्रियता में बढ़ गए हैं।

2014 में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने ज़ोंगु में 520 मेगावाट के तीस्ता चरण IV बांध के लिए पर्यावरण मंजूरी (ईसी) प्रदान की। हालाँकि, वर्षों से बार-बार अनुवर्ती कार्रवाई के बावजूद, एनएचपीसी लंबित वन मंजूरी (एफसी) -II के कारण इसके निर्माण को आगे नहीं बढ़ा पाई है। पर्याप्त मुआवजे, पुनर्वास और बिजली के आश्वासन के बावजूद, कई ग्राम पंचायतों ने झुकने से इनकार कर दिया है ।

स्थानीय लोगों को डर है कि, क्षेत्र की भूकंपीय रूप से सक्रिय प्रकृति और गांवों और जंगलों के डूबने के खतरे के अलावा, जलवायु-संकट के कारण अचानक बाढ़, बारिश और प्राकृतिक आपदाओं ने इस क्षेत्र को पारिस्थितिक रूप से पहले से भी अधिक संवेदनशील और असुरक्षित बना दिया है। -ऐसी स्थिति में बांधों का निर्माण टिकाऊ और संभावित रूप से खतरनाक नहीं है। आशंकाएं निराधार नहीं हैं -


2016 में बड़ा भूस्खलन हुआ जिसके कारण नदी का प्रवाह रुक जाने से बड़ी झील बन गई। मुख्य मार्ग से जुड़ा पुल टूट गया और कई घर डूब गए।


Upper Dzongu के कई गांवों तक आपको  सस्पेंशन ब्रिज से होकर जाना होगा। इस पर कोई गाड़ी नहीं ले जाई जा सकती। आपका सामान कुली लेकर जाएगा। लैंड स्लाइड में सड़क और ब्रिज बह जाने के बाद  motorable bridge  प्रस्तावित होने के बाद भी नहीं बन पाया है। इस भू स्खलन के लिए लोगों का मानना है कि लगातार होती पहाड़ों की खुदाई ही कारण बनी।


 2020 में एक बड़े भूस्खलन ने पूर्वी सिक्किम में भूकंपीय क्षेत्र IV-वर्गीकृत क्षेत्र में स्थित तीस्ता स्टेज V बांध को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया। यही कारण है कि जलवायु परिवर्तन और प्रकृति में अनावश्यक मानवीय हस्तक्षेपों के प्रभावों से संबंधित मामलों पर स्थानीय लोगों के बीच बातचीत, जागरूकता और सक्रियता का निर्माण, वर्तमान में एसीटी के एजेंडे और गतिविधियों का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा है।


  2023 में सिक्किम में बादल फटने की वजह से तीस्ता नदी में अचानक आई बाढ़ से कई लोगों की मौत हो गई । इस बाढ़ ने तीस्ता नदी पर बने 1200 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाले चुंगथांग बांध को तोड़ दिया, जिसकी निवेश लागत क़रीब 25 हजार करोड़ रुपए है।

बांधों, नदियों और लोगों पर काम करते आ रहे दक्षिण एशिया नेटवर्क ने अपने एक लेख में बताया कि 4 अक्तूबर, 2023 के तड़के 12 बजकर 40 मिनट पर दक्षिण लोनाक ग्लेशियल झील से पैदा हुए एक ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ़्लड (जीएलओएफ़) ने यह तबाही मचाई है.


(ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड, या जीएलओएफ, ग्लेशियर के पिघलने से बनी झील से पानी का अचानक निकलना है।)


बीबीसी पर प्रकाशित एक लेख के अनुसार  बांध के ऊपर लंबे समय से काम करते आ रहे पर्यावरण कार्यकर्ता, बांध और जल विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर का यह मानना है कि इस बाढ़ में बारिश की कोई खास भूमिका नहीं है.

उन्होंने सिक्किम आपदा पर बीबीसी से बात करते हुए कहा, "जिस जगह यह हादसा हुआ है वो पाँच हज़ार मीटर से अधिक ऊँचाई पर स्थित है और वहाँ बादल फटने की संभावना बहुत कम होती है. केंद्र जल आयोग के कुछ शीर्ष अधिकारी ने भी बाद में बताया कि यह आपदा बादल फटने की वजह से नहीं आई है."

"यह बाढ़ दक्षिण लोनाक झील के टूटने से आई है. क्योंकि यह झील काफ़ी नाज़ुक और असुरक्षित थी. इसे सूचीबद्ध किया गया था और इसके बारे में पता था कि यहाँ से ऐसी बाढ़ आ सकती है. ये ग्लेशियल लेक क़रीब तीन दशक से बढ़ रहा था. "

"इसका क्षेत्र पहले केवल 17 हेक्टेयर था जो अब उससे बढ़कर क़रीब 168 हेक्टेयर हो चुका था. लिहाजा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग इसकी प्रमुख वजह है. अर्थात ग्लेशियर पिघल रहा था और झील का विस्तार हो रहा था."

जल विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर बताते है कि सिक्किम के सुदूर उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित दक्षिण लोनाक झील एक हिमनद-मोराइन-बांध झील है.

ये झील ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ) के लिए अतिसंवेदनशील 14 संभावित ख़तरनाक झीलों में से एक है जिसकी पहचान की गई थी.

डॉ. कुलकर्णी का कहना है कि हिमालय क्षेत्र के अंदर आने वाले राज्यों में बांध जैसी बड़ी परियोजना शुरू करने से पहले जलवायु आकलन रिपोर्ट को अनिवार्य करना चाहिए . क्योंकि बड़े नदी बांध 50 से सौ साल के लिए बनाए जाते है और इतने लंबे समय में जलवायु परिवर्तन की बातों पर गौर करना बेहद आवश्यक है. जबकि जोखिम वाले झीलों के नीचे बड़े नदी बांध का होना बहुत चिंता का विषय है. तीस्ता नदी बेसिन में 313 हिमनदी झीलें हैं, जिससे नीचे की ओर हमेशा ख़तरा बना रहता है.

विकास अगर विनाश का कारण बने तो ठहर कर चिंतन आवश्यक है। 


सिक्किम की मेरी दो यात्राओं के अनुभव पर एक यात्रा संस्मरण और कहानी लिखी थी।  जहां हवा को भी पढ़ना आता है'शीर्षक से कहानी पुरवाई पर उपलब्ध है।

इस कहानी में मैंने वही विषय उठाया था जिसके लिए आज लद्दाख में सोनम वांगचुक अनशन पर बैठे हैं। 

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( आलेख के लिए विभिन्न न्यूज एजेंसियों द्वारा पब्लिक को उपलब्ध कराए आंकड़ों के लिए आभारी हूं) 


#climatefast #chipkoaandolan 


#dzongu #savetheplanet #सेवलद्दाख

🙏🏽🌹





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