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1971 के बाद भारतीय मीडिया और पत्रकारिता में आए बदलाव / डॉ. रामजीलाल जांगिड

 

  



भारतीय पत्रकारिता 



वर्ष 1971 से 1978 तक भारत की जनसंचार की दुनिया में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। इस अवधि में पत्रकारिता व जन संचार की शिक्षा, आकाशवाणी, दूरदर्शन और संवाद समितियाँ को लेकर काफी निर्णय लिये गए। वर्ष 1971 में भारतीय पत्रकारिता शिक्षा संघ की स्थापना हुई।

1974 में आकाशवाणी ने वार्षिक पुरस्कार शुरू किया। 1975 में चारों संवाद समितियों को मिला दिया गया। 'समाचार'संवाद समिति बनी। 1976 में आकाशवाणी से दूरदर्शन हट गया। दो इकाइयां बन गईं। 1977 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने पहली बार पत्रकारिता और जनसंचार की शिक्षा को लेकर एक पैनल बनाया। 1977 में ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व की जन संचार प्रणाली पर विचार के लिए मैकब्राइड आयोग बनाया। इसी समय यह महसूस किया जाने लगा कि निर्गुट देशों को अपनी अलग संवाद समिति बनानी चाहिए क्योंकि पश्चिमी देशों की संवाद समितियां उनकी छवि सही पेश नहीं करती हैं।

2 जुलाई 1977 को पहली राष्ट्रीय जनसंचार शिक्षा संगोष्ठी हुई। 4 से 15 अक्टूबर 1977 तक विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता और जन संचार के शिक्षकों को और जागरूक बनाने के लिए कार्यशाला की गई। 23 नवम्बर 1977 को "प्रसारभारती"का गठन हुआ। 1978 में दूसरे प्रेस आयोग ने अपनी रपट दे दी।

इसी वर्ष हिन्दुस्तान टाइ‌म्स के सम्पादक श्री बी.जी. वर्गीस की अध्यक्षता में बनी समिति ने अपनी सिफारिशें दे दीं। 1978 में 'समाचार'संवाद समिति चार इकाइयों में फिर बंट गई।

       वर्ष 1972 का भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार श्री रामधारी सिंह 'दिनकर'की कृति 'उर्वशी'को दिया गया। यह पुरस्कार एक लाख रु. का था। 15 मई 1973 को संस्थान के प्रोफेसर सी. आर. एकम्बरम का स्कूटर दुर्घटना में देहांत हो गया। वह रेडियो, टी. वी. और मौखिक संचार पढ़ाते थे। भारतीय जनसंचार संस्थान और प्रेस इंस्टिट्‌यूट ऑफ इंडिया ने मिलकर"भारत में सिनेमा के 75 वर्ष"पर एक प्रदर्शनी नई दिल्ली के विज्ञान भवन में 18 से 22 दिसम्बर 1973 तक की।

          संस्थान के सलाहकार श्री राल्फ ओटो नफज़िगर का 25 सितम्बर 1973 को देहांत हो गया। वह विस्कोन्सिन विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष थे। वह अगस्त 1967 से अप्रैल 1968 तक संस्थान से जुड़े रहे। विकासशील देशों के लिए 1974-75 सत्र के स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्‌यक्रम में 12 देशों के 18  प्रशिक्षु और 15 भारतीय थे।



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