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डॉ. रामजीलाल जांगिड के दो लेख

 

   (10/12/2024)


*मोबाइल के पैर पसारने से खतरे बढ़े*


अमरीका की मोटोरोला कम्पनी के इंजीनियर Martin Cooper ने मोबाइल फोन बनाकर 3 अप्रैल 1973 को पहली बार उसके जरिए बात की। इसे बाजार में उतारने में 11 साल लग गए। 1984 में इस कम्पनी ने Motorola Dyna TAC 8000X बाजार में उतारा। भारत में महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL)ने Mobile Radio Phone Service दिल्ली में 1 जनवरी 1987 से शुरू की थी। वर्ष 1994 में 22 अगस्त से भारत में मोबाइल सेवा शुरू कर दी गई। उस समय मोबाईल हैंडसेट 45000 रु में मिल रहा था और प्रति मिनट सेवा 17 रु. में उपलब्ध थी। 

31 जुलाई 1995 को पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री ज्योति बसु ने मोबाइल हैंडसेट से तत्कालीन संचार मंत्री श्री सुखराम से पहली बार बात की। अगले वर्ष (1996) नोकिया कम्पनी ने Nokia 8110 बाज़ार में उतारा। केरल से सबसे पहले मोबाइल पर 17 सितम्बर 1996 को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले साहित्यकार थाकाजी शिव शंकर पिल्लई ने बात की थी।

इस समय भारत में मोबाइल हैंडसेट के 1 अरब 18 करोड़ खाते हैं। 60 करोड़ (600million) लोगों के पास स्मार्टफोन है। इंटरनेट का उपयोग 70 करोड़ (700million) उपभोक्ता कर रहे हैं। ज्यों ज्यों मोबाइल हैंडसेट लोगों के हाथों में आ रहे हैं, त्यों त्यों हिंसा, धोखाधड़ी, आतंकी घटनाएं और फिरौती की धमकियां बढ़ती जा रही हैं। इसे देखते हुए रिजर्व बैंक आफ इंडिया और कई मंत्रालयों ने नागरिकों को सावधान करने के लिए अभियान चलाए हैं। mobile के कुछ लाभ भी हुए हैं। प्रधानमंत्री जनधन आधार योजना में मोबाइल से ग्राहकों का बैंकों से जुड़ाव वर्ष 215 की तुलना में चार गुना बढ़ गया है। इनमें 55.6 प्रतिशत बैंक खाते महिलाओं के हैं। इससे लाभार्थियों के खातों में नकद राशि तुरंत जमा हो जाती है। मगर जो लोग मोबाइल चलाना नहीं जानते हैं, उनके बैंक खातों से जमा पूंजी तुरंत धोखाधड़ी से निकल भी जाती है। डिजिटल गिरफ्तारी डरा धमका कर पैसे ऐंठने का नया तरीका बन गया है। वर्ष 2021 की NielsenReport के अनुसार शहरों की तुलना में गांवों में ज्यादा बैंक खाते थे। पीड़ित उपभोक्ताओं को कानूनी सुरक्षा Information Technology Act 2000 और भारतीय न्याय संहिता 2024 में दी गई है। National Cyber Crime Reporting Portal भी बनाया गया है। मगर अभी भारत में Digital Safty Awarenes फैलाने की बहुत जरूरत है।


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   (11/12/2024)



*अंग्रेजी प्रकाशनों को पीछे छोड़ते हुए भारतीय भाषाओं के अखबार*


भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय भारतीय जन संचार संस्थान को अपने प्रशिशुओं को अलग अलग कामों के लिए प्रशिक्षण देने का दायित्व सौंपते रहे हैं।

पर्यटन मंत्रालय ने कुछ प्रशिक्षुओं को छह मास के लिए जापानी भाषा सिखाने के लिए संस्थान में भेजा, जिसमे वे जापान में होने वाले समारोह में भारत की छवि प्रभावी ढंग से रख सकें। इसका उद्‌घाटन भारत में जापानी राजदूत श्री अतुसुशी उयामा ने 22 फरवरी 1971 को किया था।

विदेश मंत्रालय ने 12 प्रशिक्षु 17 मई से 5 जून 1971 तक के लिए भेजे। जिससे वे मांट्रीयाल में भारत द्वारा लगाई जाने वाली प्रदर्शनी में कलाकार और गाइड के रूप में काम कर सकें।

कोलम्बो योजना के अंतर्गत विदेशी पत्रकारों को संस्थान में भेजा जाता है। विकासशील देशों के पत्रकारों को प्रशिक्षण देने वाले तीसरे स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम (1971-72 ) में दस देशों के 16 प्रशिक्षु और छह भारतीय प्रशिक्षु थे। चौथे पाठ्यक्रम (1972-73) में 11 देशों के 24 प्रशिक्षु और पाँच भारतीय प्रशिक्षु थे। हर पाठ्यक्रम में देशों की संख्या बढ़ रही थी।

वर्ष 1971 में भारत के समाचारपत्रों की प्रसार संख्या पर नज़र डालने से पता चलता है कि बंगला दैनिक "आनंद बाजार पत्रिका"की लोकप्रियता 3, 08,376 की प्रसार संख्या पाने से देश भर में सबसे ज्यादा थी। 1970 में ही इसकी प्रसार संख्या सबसे ज्यादा (2,48, 517) हो गई थी। पत्रिकाओं की प्रसार संख्या की दृष्टि से तमिल पत्रिका 'कुमुदम'देश भर के दैनिकों से आगे (3,74, 373) थी। वह 1970 में ही देशभर के दैनिकों से आगे (3,48,628) निकल गई थी। कई जगहों से छपने वाले दैनिकों में अंग्रेजी दैनिक 'इंडियन एक्सप्रेस'सबसे आगे (4,62,009) था। इससे स्पष्ट है कि आज़ादी से पहले आगे रहने वाले अंग्रेजी दैनिकों और पत्रिकाओं से भारतीय भाषाओं के दैनिक तथा पत्रिकाएं आजादी के बाद प्रसार संख्या की दृष्टि से तेजी से आगे निकल गए थे।

जनवरी 1974 में प्रेस परिषद ने एक महत्वपूर्ण फैसला किया। उसने समाचार पत्रों को विज्ञापन और समाचार इस तरह से छापने को कहा कि वे अलग अलग दिखाए दें। प्रेस परिषद् ने विदेशी दूतावासों द्वारा छपवाए गए विज्ञापनों के नीचे उनके द्वारा किए गए भुगतान की राशि छापने का भी आदेश दिया ओर कहा कि दूतावासों से उसी दर से भुगतान लिया जाए, जिससे और लोग भुगतान करते थे।




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