बापू के साप्ताहिक ‘हरिजन’ का फैसिमाइल संस्करण होगा जारी | ||||||
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उस संस्करण में भारत तथा विश्व की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को उठाया जाएगा.
नवजीवन ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी विवेक देसाई ने बताया ‘‘बापू के दो मुख्य प्रकाशनों में से एक ‘हरिजन’ है. ‘यंग इंडिया’ का प्रकाशन पहले से ही हो रहा है लेकिन ‘हरिजन’ का प्रकाशन किया जाना है.’’
बापू से जुड़े साहित्य के प्रकाशन के अधिकार नवजीवन ट्रस्ट के पास हैं.
देसाई ने बताया कि ‘हरिजन’ के 19 खंडों को पहली बार फिर से प्रिंट किया जाएगा और इसका आधिकारिक उद्घाटन सोमवार को होगा.
उन्होंने बताया कि ‘हरिजन’ को पुन: प्रिंट कर पुन: प्रकाशित करने का उद्देश्य बापू तथा उस समय आजादी के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के लेखों और उनके संदेशों का लोगों के बीच प्रचार प्रसार करना है.
देसाई के अनुसार, एक अन्य साप्ताहिक ‘यंग इंडिया’ का पुन:प्रिंट वाला संस्करण करीब 20 साल पहले लाया गया था.
नवजीवन ट्रस्ट की स्थापना बापू ने मोहनलाल मगनलाल भट्ट के साथ की थी और इसकी ‘डीड ऑफ ट्रस्ट’ का पंजीकरण 26 नवंबर 1929 को हुआ था.
बापू ने साप्ताहिक अखबार ‘हरिजन’ का अंग्रेजी में प्रकाशन 1933 में शुरू किया था और यह प्रकाशन 1948 तक जारी रहा. इस दौर में बापू ने गुजराती में ‘हरिजन बंधु’ का और हिन्दी में ‘हरिजन सेवक’ का प्रकाशन किया. ये तीनों अखबार स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत तथा वि की सामाजिक आर्थिक समस्याओं पर केंद्रित थे.
हरिजन का मतलब ‘‘ईर का बच्चा’’ होता है और बापू इस शब्द का उपयोग दलित जाति के लोगों के लिए करते थे.
‘यंग इंडिया’ अंग्रेजी साप्ताहिक था जिसका प्रकाशन बापू ने 1919 से 1932 तक किया था. इस जर्नल में लिखे बापू के सूत्र वाक्यों ने कई लोगों को प्रेरणा दी.
अपने अपनी अनोखी विचारधारा तथा संगठित आंदोलनों में अहिंसा के उपयोग के बारे में अपने विचारों को बापू ‘यंग इंडिया’ के जरिये लोगों के सामने रखते थे तथा पाठकों से आग्रह करते थे कि वह भारत को ब्रिटेन से आजाद कराने के बारे में सोचें और योजना बनाए