Quantcast
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

हिंदी बोलने में शर्म कैसी ? / मार्क टली


Dec 06, 11:14 pm
Image may be NSFW.
Clik here to view.
दिल्ली के हरे-भरे दरख्तों से घिरे हुए पॉश इलाके निजामुद्दीन ईस्ट में आशियाना है जाने-माने पत्रकार मार्क टली का। उनके बगल में ही प्रसिद्घ चित्रकार अंजलि इला मेनन का घर है। मार्क टली के घर में प्रवेश करते ही एक बड़ी बैठक में किताबों से भरी हुई अलमारी उनकी पढ़ने-लिखने की रुचि को दर्शाती है। बीबीसी के प्रख्यात पत्रकार रहे मार्क टली के व्यवहार में कहीं कोई बनावटीपन नहीं नजर आता। 'इंडिया अनएंडिंग जर्नी' के लेखक मार्क टली इस समय पिछले बीस सालों में भारत में आए बदलावों के बारे में एक किताब लिखने में व्यस्त हैं। प्रस्तुत है उनकी जीवनयात्रा, उन्हीं के शब्दों में-
[मेरा पारिवारिक परिवेश]
मेरा जन्म 1935 में कोलकाता में हुआ था। पिता व्यापारी थे और माँ घरेलू महिला थीं। हम छह भाई-बहन थे। मैं नौ साल तक कोलकाता में ही रहा और उसके बाद इंग्लैंड चला गया। घर में हिंदी में बात करने की सख्त मनाही थी क्योंकि मेरे अभिभावक कहते थे कि आप लोग अंग्रेज बच्चे हैं, इसलिए सिर्फ अंग्रेजी में ही बातें करेंगे। हम लोगों ने बचपन में न बंगाली भाषा सीखी और न ही हिंदी। जब मैं वापस भारत आया, उस समय मैं तीस साल का था। यहां वापस आने के बाद ही मैंने हिंदी भाषा सीखी।
[पहली कोशिश थी फादर बनने की]
अब बात स्टूडेंट लाइफ और इसके सपनों की। जब मैं कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ता था, तब सोचता था कि मैं चर्च में फादर बनूंगा। कैम्ब्रिज से पढ़ाई करने के बाद मैं चर्च में गया और वहां फादर बनने के लिए ट्रेनिंग लेने लगा। मुझे कुछ समय बाद महसूस होने लगा कि मैं इस काम के लिए फिट नहीं हूं। विशप ने भी कहा कि आपको कोई दूसरा काम करना चाहिए, तब मैंने बीच में ही ट्रेनिंग को छोड़ दिया। उसके बाद मैंने एक एनजीओ ज्वाइन किया। वहां मैंने चार साल तक काम किया।
[बाबू से बना पत्रकार]
चार साल के बाद मैं फिर से बेरोजगार था। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एक संगठन था, जो कैम्ब्रिज के ग्रेजुएट को नौकरी उपलब्ध करवाता था। उसी ने मुझे सुझाव दिया कि आप बीबीसी में जाइए। मुझे बीबीसी में पर्सनल ऑफिस में काम मिला था, जो मुझे कतई पसंद नहीं था। वह काम बहुत ही बोरिंग था, क्योंकि वह बाबू लोगों का काम था। वहाँ रहते हुए मैंने सोचा कि मेरे लिए सबसे अच्छा काम पत्रकार का है, तब मैंने इसके लिए कोशिश की और मुझे सफलता भी मिली। मेरा विश्वास है कि जिंदगी में जो भी कुछ घटता है, वह अच्छे के लिए ही होता है। जब तक मैंने बीबीसी ज्वाइन नहीं किया था, तब तक मेरे मन में गलती से भी पत्रकार बनने का ख्याल तक नहीं आया था। अगर मुझे बीबीसी के पर्सनल ऑफिस में काम करने का अवसर नहीं मिलता, तो मैं कभी भी पत्रकार नहीं बनता।
[भारत में सफर की शुरुआत]
बीबीसी मुख्यालय में काम करने के एक साल बाद जब मैं पहली बार भारत आया, तब यहां मेरा काम एडमिनिस्ट्रेशन को देखना था। बीबीसी में बहुत पत्रकार काम करते थे। मैं उनकी मदद करता था। उनके लिए रिसर्च करता था। उन्हीं से मैंने पत्रकारिता के बारे में सीखा था। पत्रकारिता के रूप में मेरा सबसे पहला एसाइनमेंट बीबीसी रेडियो के लिए कार रैली कवरेज का था। उस समय दिल्ली में विंटेज कार रैली होती थी और मैं उस रैली को कवर करता था।
[स्व. इंदिरा गांधी से मुलाकात]
श्रीमती इंदिरा गांधी से मुझे लगभग पांच-छह बार मिलने का मौका मिला था, वह भी इंटरव्यू के दरम्यान। मुझसे उनकी कभी दोस्ती रहती थी, तो कभी नाराजगी। कभी-कभी वह बीबीसी से भी नाराज हो जाती थीं, तो कभी केवल मार्क टली से। मैं 1971 में पहली बार श्रीमती गांधी से मिला था। मैंने बांग्लादेश के युद्ध के बारे में उनका इंटरव्यू लिया था। बता दूं कि इंटरव्यू से पहले मैं थोड़ा नर्वस था, क्योंकि वे इतने बड़े देश की प्रधानमंत्री थीं। वाकई वह एक जबर्दस्त महिला थीं। यदि वह किसी से नाराज हैं, तो उनका चेहरा देखकर पता चल जाता था। उनका अंतिम इंटरव्यू मैंने 1983 में लंदन में कामॅनवेल्थ प्राइम मिनिस्टर्स कांफ्रेंस में लिया था। इसके बाद उन्होंने कहा था कि आप टेपरिकार्डर बंद कीजिए। आज हम लोग कुछ निजी बात करेंगे। उन्होंने मुझसे पूछा था कि आप हमारे देश के बारे में क्या सोचते हैं? ऐसा पहली बार हुआ था जब उनके साथ मेरी निजी बातचीत हुई थी। अभी भी जब उनके बारे में सोचता हूं, तो खुश होता हूं।
[रोज सीखना पड़ता है पत्रकारिता में]
मेरा मानना है कि कोई ऐसी ट्रेनिंग नहीं है, जो किसी को संपूर्ण पत्रकार बना सके। जब तक कोई पत्रकारिता करता है, तब तक उसको रोज सीखना पड़ता है। इस क्षेत्र में रोज नये-नये लोगों से मिलना पड़ता है। नई-नई घटनाओं के बारे में रिपोर्टिंग करनी पड़ती है। हमेशा नयी-नयी टेक्नोलॉजी आती रहती है। सीखने के लिए पूरी जिंदगी भी बहुत कम है, खासतौर से पत्रकारिता के बारे में। भारत में यह बहुत अच्छा है कि यहां पर प्रेस बिल्कुल स्वतंत्र है, लेकिन टेलीविजन के बारे में मेरा मानना है कि उसमें अनुशासन की बहुत कमी है। मैं आज भी इसकी बनिस्बत रेडियो और प्रिंट मीडिया को अधिक पसंद करता हूं।
[अंग्रेजी के लिए इतना मोह क्यों?]
हिंदी बहुत अच्छी भाषा है और अधिसंख्य भारतीय हिंदी बोलते हैं। कुछ लोग यह सोचते हैं कि जो अंग्रेजी में बोलता है, वह बहुत बड़ा आदमी है। यह बिल्कुल गलत है। मैं इस तरह की सोच को पसंद नहीं करता। मैं जब भी किसी से हिंदी में सवाल पूछता हूं, तो लोग हमेशा अंग्रेजी में ही जवाब देते हैं। मैं उन लोगों से बार-बार कहता हूं कि जब मैं आपसे हिंदी में पूछता हूं, तो आप कृपा करके हिंदी में ही जवाब दीजिए। आखिर आपको हिंदी बोलने में शर्म क्यों आनी चाहिए? आज हिंदी अखबारो ने बहुत उन्नति की है। मैंने बहुत पहले एक स्टोरी के बारे में हिंदी के एक संपादक से शिकायत की थी कि यह स्टोरी गलत है, तो उन्होंने कहा था कि आप इतनी चिंता क्यों करते हैं, यह एक हिंदी का अखबार है। पर, क्या आज किसी हिंदी अखबार का संपादक ऐसा जवाब दे सकता है?
[आस्था है ईश्वर में]
मैं ईश्वर में बहुत विश्वास करता हूं। मैं ईसाई हूं और यह मानता हूं कि सब धर्म भगवान की तरफ ही जाने के रास्ते हैं। मैं अपनी सफलता का श्रेय ईश्वर को देता हूं। भारतीय संस्कृति में एक सिद्धांत है संतुलन का। भाग्य, परिश्रम और ईश्वर में संतुलन कायम करने से ही सफलता को प्राप्त किया जा सकता है!
[आर्थिक प्रगति के पथ पर भारत]
भारत का आर्थिक विकास 1991 तक बहुत धीमी गति से हुआ, लेकिन उसके बाद बहुत तेजी से हुआ है। यह एक अच्छी बात है। भारत की आर्थिक प्रगति को सिर्फ जीडीपी से नहीं नापना चाहिए। जीडीपी सिर्फ देश की दौलत को नापता है। वह यह नहीं देखता है कि देश में कितने लोग अमीर हैं और कितने लोग गरीब, कितने लोग शिक्षित हैं और कितने अशिक्षित। इसके अलावा कितने लोगों के पास स्वास्थ्य की सुविधाएं हैं और कितने लोगों के पास नहीं। यूनाइटेड नेशन के ह्यूंूमन डेवलॅपमेंट और ह्यूमन वेलफेयर में भारत का स्थान सबसे नीचे है। जब तक भारत के संस्थानों में कुछ सुधार नहीं होता है, तब तक भारत की बुनियादी कठिनाइयों में सुधार संभव नहीं है।
[भारत मेरा घर है]
भारत ही मेरा घर है, क्योंकि मैं यहां रहता हूं। यदि मैं उम्र के हिसाब से भी देखूं तो मेरा अधिकतर समय भारत में ही गुजरा है। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं यहां रहता हूं। मैं भारत को बहुत पसंद करता हूं। यहां बहुत आजादी है। आप जो बोलना चाहते हैं, वह बोल सकते हैं। इसके अलावा यहां मेरे बहुत सारे दोस्त हैं और मैं यहां की संस्कृति को बहुत पसंद करता हूं। भारत की संस्कृति से मैंने बहुत कुछ सीखा है। इतना ही नहीं, भारतीय संस्कृति का प्रभाव मेरे व्यक्तित्व पर भी पड़ा है। यह देश बहुत ही खूबसूरत है। यह एक ऐतिहासिक देश है। इसके जैसा देश दुनिया में कहीं नहीं है, लेकिन यहां कुछ ऐसी कमियां हैं, जिन्हे नकारा नहीं जा सकता है। इस देश में बहुत गरीबी है, जिसको हल करने के लिए भारत ने कोई कोशिश नहीं की। राजनीति प्रशासन-प्रणाली और अदालत में भी बहुत कमियां हैं। भारत में सरकार बहुत ही कमजोर है, क्योंकि जब कोई किसी धर्म और जाति के प्रति नफरत फैलाता है, तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। सरकार को सजा देनी चाहिए, लेकिन वह सजा नहीं देती है। यह बहुत ही गलत बात है।
[संध्या रानी]

Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>