गुरुवार, 10 जनवरी, 2013 को 18:09 IST तक के समाचार

शांति गांधी ने चुनावों में इस बात का पता नहीं लगने दिया कि वो महात्मा गांधी के परपौते हैं
महात्मा गांधी के परपोते शांति गांधी ने अमरीका के कैनसस राज्य की प्रतिनिधि सभा के चुनाव में एक रुढ़िवादी इलाके में शानदार जीत दर्ज की है.
उनकी कामयाबी से स्थानीय भारतीय मूल के लोगों में खुशी है और अब बहुत से लोग उनसे उम्मीदें लगाए बैठे हैं.अब तक तो टोपीका शहर में डॉ. शांति गांधी की पहचान एक कुशल हार्ट सर्जन के तौर पर रही है लेकिन अब वो राजनेता के रूप में भी पहचान बना रहे हैं.
मगर अमरीका के बीचोबीच स्थित कैनसस प्रांत में कम ही लोग उन्हें महात्मा गांधी के परपोते के रूप में जानते हैं.
यहां तक कि उनके साथ राज्य असेंबली में चुने गए कई नेता भी उनके इस पहलू से अनभिज्ञ थे.
( ये खबर ग्लोबल इंडिया कार्यक्रम का हिस्सा है जो शुक्रवार को प्रसारित होता है)
अपने दम पर जीत
कैरोलिन ब्रिजेस विचिटा शहर से डेमोक्रेटिक पार्टी की नवनिर्वाचित असेंबली सदस्य हैं. उन्हे भी नहीं मालूम था. वह कहती हैं, "अच्छा! वह महात्मा गांधी के परपोते हैं! यह मुझे नहीं मालूम था. यह तो अद्भुत बात है. मैं अब उनसे मिलना चाहूंगी."शांति गांधी महात्मा गांधी के सबसे बड़े बेटे हरी लाल गांधी के पुत्र कांति लाल गांधी के बेटे हैं.
लेकिन शांति गांधी ने अपनी ख़ानदानी पहचान का ज़िक्र चुनाव के दौरान बिल्कुल नहीं किया. उनकी नज़र में ऐसा करना ठीक नहीं था.
शांति गांधी कहते हैं, "मैं महात्मा गांधी से अपने रिश्ते को इस चुनाव का मुद्दा नहीं बनाना चाहता था. मैंने सोचा कि हो सकता है उससे चुनाव में मुझे कोई फ़ायदा मिल जाता लेकिन ये इंसाफ़ की बात नहीं होती. मैं अपने बलबूते और अपनी काबलियत के बल पर चुनाव जीतना चाहता था न कि अपने परदादा के नाम पर."
अमरीका के कई राज्यों की तरह कैनसस में भी नस्ली भेदभाव का पुराना इतिहास रहा है लेकिन अब हालात बहुत बेहतर हो गए हैं. और शांति गांधी का एक श्वेत बहुल इलाके से चुनाव जीतना इसका बड़ा सबूत है.
"मैं अपने बलबूते और अपनी काबलियत के बल पर चुनाव जीतना चाहता था न कि अपने परदादा के नाम पर."
शांति गांधी, महात्मा गांधी के परपोते
अमरीकियों में लोकप्रिय
भारतीय मूल के कई डॉक्टर शहर के विभिन्न अस्पतालों में कई दशकों से कार्यरत हैं और कुछ कंपनियों में भारतीय मूल के सॉफ़्टवेयर इंजीनियर भी अब सैकड़ों की संख्या में काम करते हैं.लेकिन इनमें से भी बहुत सारे लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं है. ऐसे में डॉक्टर गांधी की जीत से ज़ाहिर होता है कि वे आम अमरीकियों में काफ़ी लोकप्रिय हैं.
शांति गांधी ने डेमोक्रेटिक पार्टी के एक दिग्गज नेता टेड एंसली को 9 प्रतिशत वोटों के बड़े अंतर से पराजित किया.
"अच्छा! वह महात्मा गांधी के परपोते हैं! यह मुझे नहीं मालूम था. यह तो अद्भुत बात है. मैं अब उनसे मिलना चाहूंगी."
कैरोलिन ब्रिजेस, राज्य असेंबली की सदस्य
डॉ. शेखर चल्ला शांति गांधी के पड़ोसी हैं और उन्होंने भी जमकर चुनाव प्रचार किया था.
डॉ चल्ला कहते हैं, "हम लोग इसलिए भी ज़्यादा खुश हैं क्योंकि डॉ. गांधी को अधिकतर श्वेत लोगों ने एक श्वेत के खिलाफ़ वोट देकर जिताया, जबकि इस इलाके में भारतीय मूल के लोगों की आबादी बहुत ही कम है. और इनमें से शांति गांधी को वोट देने वाले तो सिर्फ़ 25 लोग ही थे."
टोपीका शहर में स्थित स्टोर्मोंट वेल अस्पताल में डॉ. शांति गांधी ने 38 वर्ष पहले हार्ट सर्जरी की सुविधा की शुरुआत की थी. उन्होंने इस अस्तपाल में तीन दशक से भी ज्यादा समय तक काम किया.
इस अस्पताल में काम करने वाली एक अमरीकी महिला टेरी विलियम्स उनकी जीत से खुश हैं. वह कहती हैं, "हम तो बहुत उत्साहित हैं कि डॉ. शांति गांधी राज्य असेंबली में हमारा प्रतिनिधित्व करेंगे."
रिपब्लिकन पार्टी क्यों
2010 में रिटायर होने के बाद जब शांति गांधी ने चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया, तो वह रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार बने जबकि ज्यादातर भारतीय मूल के लोग परंपरागत रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन करते हैं. कुछ भारतीय लोगों को उनका रिपब्लिकन होना नहीं भाया.भारतीय मूल के अमरीकी वोटर गोपाल सेलवराज डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य हैं. वह कहते हैं, "डॉ. गांधी तो रिपब्लिकन पार्टी के हैं और मैं तो रजिस्टर्ड डेमोक्रेट हूं तो यह एक सवाल था मेरे लिए जिस पर मुझे थोड़ा बहुत सोच विचार करना पड़ा. लेकिन बाद में उन्हीं को वोट दिया."
वैसे तो शांति गांधी की बहुत सी नीतियां रूढ़िवादी हैं, लेकिन गोपाल सेलवराज कहते हैं कि उन्हें शिक्षा और अप्रवासन मामलों पर डॉ. गांधी की नीतियां बहुत पसंद हैं.

टोपीका शहर की आबादी डेढ़ लाख है
अंतरराष्ट्रीय मामलों में शांति गांधी मानते हैं कि अमरीका के लिए भारत का साथ बहुत ज़रूरी है. और उन्हें यह भी खुशी है कि रिपब्लिकन पार्टी भी अमरीका के भारत के साथ रिश्तों को बहुत महत्व देती है.
मुंबई में पढ़ाई करने के बाद 1967 में शांति गांधी भारत से अमरीका आकर बस गए. अब उनके परिवार में पत्नी और 4 बेटियां है.
अब भी वह भारत जाते रहते हैं और मुंबई के अलावा अहमदाबाद और केरल भी जाते हैं.
मुंबई को याद करके वह कहते हैं कि अब वह बात नहीं रही.
समाज कल्याण के कामों में गहरी दिलचस्पी रखने वाले डॉ. गांधी 14 जनवरी को दो साल के लिए कैनसस राज्य की असेंबली के सदस्य के तौर पर शपथ लेंगे.
( ये खबर ग्लोबल इंडिया कार्यक्रम का हिस्सा है जो शुक्रवार को प्रसारित होता है)