प्रस्तुति—जमील, इम्तियाज रजा, आलोक झा
वर्धा
Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() बीबीसी की हिंदी क्यों विशेष है, यह जानने के लिए उसकी परंपरा को जाननाज़रूरी है. बीबीसी के हिंदी विभाग की जब नींव पड़ी थी, तब हिंदी और उर्दूके बीच दीवारें नहीं बनीं थीं. आज़ादी से पहले का ज़माना था, आम आदमी केबोल चाल की भाषा में हिंदी-उर्दू की मिली जुली रसधारा बहती थी जिसे भारत कीगंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है. इस संस्कृति को बीबीसी के मंच से मज़बूत करने वाले कई प्रसारक औरपत्रकार रहे, जैसे बलराज साहनी, आले हसन, पुरूषोत्तम लाल पाहवा, गौरीशंकरजोशी, ओंकारनाथ श्रीवास्तव..... सूची लंबी है, पर बात एक ही है—समय के साथबीबीसी की हिंदी कठिन और किताबी होने से बची रही. हमारी नज़र में बीबीसी की हिंदी की सबसे बड़ी ख़ूबी यह है कि- •वह ऐसी भाषा है जो आम लोगों की समझ में आती है, यानी आसान है. संस्कृतनिष्ठ या किताबी नहीं है. •दूसरी बात, वह अपने कथ्य के साथ पूरा न्याय करती है. मतलब आप जो कहना चाहें, उसी बात को शब्द व्यक्त करते हैं •वाक्य छोटे होते हैं, सरल होते हैं •और सबसे बड़ी विशेषता यह है कि बीबीसी की हिंदी भारत की गंगाजमुनीसंस्कृति का प्रतीक है. आज भी हमारी हिंदी में हिंदी-उर्दू के शब्द गले मेंबाहें डाले साथ-साथ चलते हैं और ज़रुरत पड़ने पर अँगरेज़ी के शब्दों से भीहाथ मिला लेते हैं. | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() |
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Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() इसफ़िल्म में बीबीसी के वरिष्ठ संवाददाता एलन लिटिल बता रहे हैं कि रेडियोके लिए स्पष्ट और प्रभावी भाषा में किस तरह लिखा जाना चाहिए. एलन लिटिल कामानना है कि रेडियो की अच्छी स्क्रिप्ट के लिए दो बातें ज़रूरी हैं--आपकेपास कहने के लिए कुछ होना चाहिए, दूसरे उसे बिल्कुल आसान भाषा में कहा जाए. इस वीडियो में एलन लिटिल ने कई उदाहरणों के साथ बताया है कि रेडियो केलिए किस तरह लिखा जाना चाहिए. नीचे एलन लिटिल के दो वीडियो हैं जिन परक्लिक करके अच्छी रेडियो स्क्रिप्ट के कुछ गुरूमंत्र हासिल किए जा सकतेहैं. Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() |
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Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() प्रकाशन और प्रसारण की भाषा में अंतर है. भारी भरकम लंबे शब्दों से हमबचते हैं, (जैसे, प्रकाशनार्थ, द्वंद्वात्मक, गवेषणात्मक, आनुषांगिक, अन्योन्याश्रित, प्रत्युत्पन्नमति, जाज्वल्यमान आदि.ऐसे शब्दों से भीबचने की कोशिश करते हैं जो सिर्फ़ हिंदी की पुरानी किताबों में ही मिलतेहैं – जैसे अध्यवसायी, यथोचित, कतिपय, पुरातन, अधुनातन, पाणिग्रहण आदि. एक बात और. बहुत से शब्दों या संस्थाओं के नामों के लघु रूप प्रचलित होजाते हैं जैसे यू. एन., डब्लयू. एच. ओ. वग़ैरह.लेकिन हम ये भी याद रखतेहैं कि हमारे प्रसारण को शायद कुछ लोग पहली बार सुन रहे हों और वे दुनियाकी राजनीति के बारे में ज़्यादा नहीं जानते हों. इसलिए, यह आवश्यक हो जाता है कि संक्षिप्त रूप के साथ उनके पूरे नाम काइस्तेमाल किया जाए. जहाँ संस्थाओं के नामों के हिंदी रूप प्रचलित हैं, वहाँ उन्हीं का प्रयोग करते हैं (संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन)लेकिन कुछ संगठनों के मूल अँग्रेज़ी रूप ही प्रचलित हैं जैसे एमनेस्टीइंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वाच. संगठनों-संस्थाओं के अलावा, नित्य नए समझौतों-संधियों के नाम भी आए दिनहमारी रिपोर्टों में शामिल होते रहते हैं. ऐसे नाम हैं- सीटीबीटी और आइएईएवग़ैरह. भले ही यह संक्षिप्त रूप प्रचलित हो चुके हैं मगर सुनने वाले कीसहूलियत के लिए हम सीटीबीटी कहने के साथ-साथ यह भी स्पष्ट करते चलते हैं किइसका संबंध परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध से है.या कहते हैं आइएईए यानीसंयुक्त राष्ट्र की परमाणु ऊर्जा एजेंसी. कई बार जल्दबाज़ी में या नए तरीक़े से न सोच पाने के कारण घिसे पिटेशब्दों, मुहावरों या वाक्यों का सहारा लेना आसान मालूम पड़ता है. लेकिनइससे रेडियो की भाषा बोझिल और बासी हो जाती है. ज्ञातव्य है, ध्यातव्य है, मद्देनज़र, उल्लेखनीय है या ग़ौरतलब है – ऐसे सभी प्रयोग बौद्धिक भाषालिखे जाने की ग़लतफ़हमी तो पैदा कर सकते हैं पर ये ग़ैरज़रूरी हैं. एक और शब्द है द्वारा. इसे रेडियो और अख़बार दोनों में धड़ल्ले सेप्रयोग किया जाता है लेकिन ये भी भाषाई आलस्य का नमूना है. क्या आम बातचीतमें कभी आप कहते हैं कि ये काम मेरे द्वारा किया गया है? या सरकार द्वारानई नौकरियाँ देने की घोषणा की गई है? अगर द्वारा शब्द हटा दिया जाए तो बातसीधे सीधे समझ में आती है और कहने में भी आसान हैः (ये काम मैंने किया. यासरकार ने नई नौकरियाँ देने की घोषणा की है.) रेडियो की भाषा मंज़िल नहीं, मंज़िल तक पहुँचने का रास्ता है. मंज़िलहै- अपनी बात दूसरों तक पहुँचाना. इसलिए, सही मायने में रेडियो की भाषा ऐसीहोनी चाहिए जो बातचीत की भाषा हो, आपसी संवाद की भाषा हो. उसमें गर्माहटहो जैसी दो दोस्तों के बीच होती है. यानी, रेडियो की भाषा को क्लासरुम कीभाषा बनने से बचाना बेहद ज़रुरी है. याद रखने की बात यह भी है कि रेडियो न अख़बार है न पत्रिका जिन्हें आपबार बार पढ़ सकें. और न ही दूसरी तरफ़ बैठा श्रोता आपका प्रसारण रिकॉर्डकरके सुनता है. आप जो भी कहेंगे, एक ही बार कहेंगे. इसलिए जो कहें वह साफ-साफ समझ मेंआना चाहिए. इसलिए रेडियो के लिए लिखते समय यह ध्यान में रखना ज़रूरी है किवाक्य छोटे-छोटे हों, सीधे हों. जटिल वाक्यों से बचें. साथ ही इस बात का ध्यान रखिए कि भाषा आसान ज़रूर हो लेकिन ग़लत न हो. | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() |
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शब्दों का प्रयोग
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तकनीकी शब्दावली
बीबीसी की हिंदी, अँग्रेज़ी के शब्दों से हाथ मिलाने में परहेज़ नहींकरती.पर सवाल यह उठता है कि किस हद तक. हिंदी में अँग्रेज़ी हो याअँग्रेज़ी में हिंदी.
यहाँ दो बातें समझने की हैं. पहली, इसमें कोई संदेह नहीं कि आधुनिकहिंदी में अँग्रेज़ी के बहुत से शब्द इस तरह घुल मिल गए हैं कि पराए नहींलगते. जैसे स्कूल, बस और बस स्टॉप, ट्रक, कार्ड, टिकट.इस तरह के शब्दोंको हिंदी से बाहर निकालने का तो कोई मतलब ही नहीं है. दूसरी ये कि बेवजहअँग्रेज़ी के शब्द ठूँसने का भी कोई अर्थ नहीं.
हिंदी एक समृद्ध भाषा है. अपनी विकास यात्रा में हिंदी ने अँग्रेज़ी हीनहीं, बहुत सी और भाषाओं के शब्दों को अपनाया है जैसे- उर्दू, अरबी, फारसी. यानी अभिव्यक्ति के लिए हिंदी भाषा में कई-कई विकल्प मौजूद हैं. फिरबिना ज़रूरत के अँग्रेज़ी की बैसाखी क्यों लें. (जैसे रंगों के लिए हिंदीमें अपने अनगिनत शब्द हैं फिर इस तरह के वाक्य क्यों लिखे जाएँ कि ‘कार काएक्सीडेंट पिंक बिल्डिंग के पास हुआ’.)
तकनीकी और नए शब्द
कुछ साल पहले तक हमने लैपटॉप, इंटरनेट, वेबसाइट, सर्चइंजन, मोबाइल फ़ोनया सेलफ़ोन का नाम भी नहीं सुना था. अब वे ज़िंदगी का हिस्सा हैं. और जोचीज़ हमारी ज़िंदगी में शामिल हो जाती है, वह भाषा का हिस्सा भी बन जातीहै. बहुत कोशिशें हुईं कि इनके हिंदी अनुवाद बनाए जाएँ लेकिन कोई ख़ाससफलता हाथ नहीं लगी, इसलिए ऐसे तमाम शब्द अब हिंदी का हिस्सा बन चुके हैं.
इसलिए हम सर्वमान्य और प्रचलित तकनीकी शब्दों का अनुवाद नहीं करते.हाँ, अगर हिंदी भाषा में ऐसे शब्दों के अनुवाद प्रचलित हो चुके हैं तो बिनाखटके उनका इस्तेमाल करते हैं- जैसे परमाणु, ऊर्जा, संसद, विधानसभा आदि.
मगर नए शब्दों की बात करते हुए हम उन शब्दों का ज़िक्र भी करना चाहेंगेजो अनुवाद के माध्यम से नहीं, बल्कि मीडिया की नई ज़रुरतों के दबाव मेंहिंदी भाषा से ही गढ़े गए हैं. इनमें सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाला शब्दहै- आरोपी.बीबीसी ने भाषा के नए प्रयोगों का सदा स्वागत किया है लेकिनयह समझ पाना मुश्किल है कि आरोपी शब्द कैसे बना.
हिंदी भाषा की प्रकृति और व्याकरण के हिसाब से आरोपी का अर्थ होनाचाहिए- आरोप लगाने वाला लेकिन आजकल ठीक उल्टा प्रयोग हो रहा है, जिस परआरोप लगता है उसे आरोपी कहा जाता है.कुछ उदाहरण देखिए.
दोषी- दोष करने वाला
अपराधी- अपराध करने वाला
क्रोधी- क्रोध करने वाला
भले ही अब मीडिया में बहुत से लोग इस शब्द का धड़ल्ले से इस्तेमाल करतेहैं मगर बीबीसी की हिंदी में अपनी जगह नहीं बना पाया. हम यह मानते हैं किभाषा को हर युग की ज़रुरतों के हिसाब से शब्द गढ़ने पड़ते हैं. फिर वही नएशब्द शब्दकोश में शामिल होते हैं. लेकिन नए शब्द बनाते समय मूलमंत्र बस यहीहै कि वे भाषा की प्रकृति के अनुकूल हों.
(बोलचाल की भाषा के नाम पर कुछ ऐसे भी प्रयोग प्रसारण में होने लगे हैंजो अशिक्षा नहीं तो भाषा के प्रति लापरवाही बरतने की निशानी ज़रूर हैं.‘सोनू निगम ने अपना करियर दिल्ली में
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बीबीसी की हिंदी, अँग्रेज़ी के शब्दों से हाथ मिलाने में परहेज़ नहींकरती.पर सवाल यह उठता है कि किस हद तक. हिंदी में अँग्रेज़ी हो याअँग्रेज़ी में हिंदी.
यहाँ दो बातें समझने की हैं. पहली, इसमें कोई संदेह नहीं कि आधुनिकहिंदी में अँग्रेज़ी के बहुत से शब्द इस तरह घुल मिल गए हैं कि पराए नहींलगते. जैसे स्कूल, बस और बस स्टॉप, ट्रक, कार्ड, टिकट.इस तरह के शब्दोंको हिंदी से बाहर निकालने का तो कोई मतलब ही नहीं है. दूसरी ये कि बेवजहअँग्रेज़ी के शब्द ठूँसने का भी कोई अर्थ नहीं.
हिंदी एक समृद्ध भाषा है. अपनी विकास यात्रा में हिंदी ने अँग्रेज़ी हीनहीं, बहुत सी और भाषाओं के शब्दों को अपनाया है जैसे- उर्दू, अरबी, फारसी. यानी अभिव्यक्ति के लिए हिंदी भाषा में कई-कई विकल्प मौजूद हैं. फिरबिना ज़रूरत के अँग्रेज़ी की बैसाखी क्यों लें. (जैसे रंगों के लिए हिंदीमें अपने अनगिनत शब्द हैं फिर इस तरह के वाक्य क्यों लिखे जाएँ कि ‘कार काएक्सीडेंट पिंक बिल्डिंग के पास हुआ’.)
तकनीकी और नए शब्द
कुछ साल पहले तक हमने लैपटॉप, इंटरनेट, वेबसाइट, सर्चइंजन, मोबाइल फ़ोनया सेलफ़ोन का नाम भी नहीं सुना था. अब वे ज़िंदगी का हिस्सा हैं. और जोचीज़ हमारी ज़िंदगी में शामिल हो जाती है, वह भाषा का हिस्सा भी बन जातीहै. बहुत कोशिशें हुईं कि इनके हिंदी अनुवाद बनाए जाएँ लेकिन कोई ख़ाससफलता हाथ नहीं लगी, इसलिए ऐसे तमाम शब्द अब हिंदी का हिस्सा बन चुके हैं.
इसलिए हम सर्वमान्य और प्रचलित तकनीकी शब्दों का अनुवाद नहीं करते.हाँ, अगर हिंदी भाषा में ऐसे शब्दों के अनुवाद प्रचलित हो चुके हैं तो बिनाखटके उनका इस्तेमाल करते हैं- जैसे परमाणु, ऊर्जा, संसद, विधानसभा आदि.
मगर नए शब्दों की बात करते हुए हम उन शब्दों का ज़िक्र भी करना चाहेंगेजो अनुवाद के माध्यम से नहीं, बल्कि मीडिया की नई ज़रुरतों के दबाव मेंहिंदी भाषा से ही गढ़े गए हैं. इनमें सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाला शब्दहै- आरोपी.बीबीसी ने भाषा के नए प्रयोगों का सदा स्वागत किया है लेकिनयह समझ पाना मुश्किल है कि आरोपी शब्द कैसे बना.
हिंदी भाषा की प्रकृति और व्याकरण के हिसाब से आरोपी का अर्थ होनाचाहिए- आरोप लगाने वाला लेकिन आजकल ठीक उल्टा प्रयोग हो रहा है, जिस परआरोप लगता है उसे आरोपी कहा जाता है.कुछ उदाहरण देखिए.
दोषी- दोष करने वाला
अपराधी- अपराध करने वाला
क्रोधी- क्रोध करने वाला
भले ही अब मीडिया में बहुत से लोग इस शब्द का धड़ल्ले से इस्तेमाल करतेहैं मगर बीबीसी की हिंदी में अपनी जगह नहीं बना पाया. हम यह मानते हैं किभाषा को हर युग की ज़रुरतों के हिसाब से शब्द गढ़ने पड़ते हैं. फिर वही नएशब्द शब्दकोश में शामिल होते हैं. लेकिन नए शब्द बनाते समय मूलमंत्र बस यहीहै कि वे भाषा की प्रकृति के अनुकूल हों.
(बोलचाल की भाषा के नाम पर कुछ ऐसे भी प्रयोग प्रसारण में होने लगे हैंजो अशिक्षा नहीं तो भाषा के प्रति लापरवाही बरतने की निशानी ज़रूर हैं.‘सोनू निगम ने अपना करियर दिल्ली में
शुरू करा’, ‘पुलिस से पंगा न लेने कीचेतावनी’ जैसे प्रयोग भाषा की धज्जियाँ तो उड़ाते ही हैं, इन्हें बरतनेवाले के बारे में भी कोई अच्छी राय नहीं बनाते.)
निष्पक्षता
बीबीसीकी निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए सही शब्दों का चुनाव बेहद ज़रुरी है.मिसाल के तौर पर, आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल हम वहीं करते हैं जहाँ वह किसीके कथन का हिस्सा हो. जैसे, अमराकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने कहा है कि वे अल क़ायदा के आतंकवाद का मुँहतोड़ जवाब देंगे. अथवा वहाँ आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल करने में कोई समस्या नहीं जहाँबिना किसी व्यक्ति या संगठन की ओर उँगली उठाए उसका प्रयोग हो. जैसे- भारतसरकार आतंकवाद से निपटने में विफल रही है. इसी तरह, जिहादी, शहीद, महान नेता, पूज्यनीय जैसे शब्दों का इस्तेमालभी बहुत सोचसमझ कर किया जाना चाहिए. (‘पाँच आतंकी ढेर, दो पुलिस वाले शहीद’ – इस तरह का शीर्षक पत्रकारिता के नियमों के ख़िलाफ़ है और पत्रकार कीनिष्पक्षता को ख़त्म करता है.) एक और बात का ध्यान हम रखते हैं. जब तक किसी का अपराध साबित नहीं होता, वह संदिग्ध भले हो, मगर दोषी नहीं होता. इसलिए किसी ऐसी घटना का ब्यौरादेते समय कथित (alleged) शब्द का बहुत महत्व है. नाम से पहले श्री या श्रीमति के प्रयोग से भी बचने की ज़रुरत है इसलिएकि अगर आप एक व्यक्ति के नाम के साथ श्री या श्रीमति लगाएँ और दूसरेव्यक्ति के नाम के साथ लगाना भूल जाएँ तो इसे पक्षपात समझा जा सकता है.बेहतर है कि हर व्यक्ति के पदनाम का इस्तेमाल करें. जैसे—भारत केप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह.. या उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती.....विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी... पत्रकार राष्ट्रीयता, सरहद, पक्ष-विपक्ष और विवादों से अलग हटकर जनताको सच बताने के कर्तव्य का पालन करता है. इसलिए, बीबीसी में हम इस बात काध्यान रखते हैं कि हम अपनी भारतीयता को पत्रकारिता के धर्म से अलग रखें.भारत के समाचार देते समय हम हमारा देश, हमारी सेना, हमारे नेता जैसे शब्दोंका इस्तेमाल नहीं करते हैं. कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि बीबीसी आतंकवादी की जगह चरमपंथी शब्द काप्रयोग क्यों करती है. या कश्मीर के मामले में भारत प्रशासित और पाकिस्तानप्रशासित क्यों कहती है. वजह यह है कि कश्मीर एक विवादास्पद क्षेत्र है और बीबीसी किसी भी विवादमें, किसी एक पक्ष के साथ खड़ी नज़र नहीं आना चाहती. फिर, जो एक की नज़रमें आतंकवादी है, वह दूसरे की नज़र में स्वतंत्रता सेनानी या देशभक्त भी होसकता है. जब दुनिया में किसी भी विषय पर एक राय नहीं है तब बीबीसी के लिए यह औरभी ज़रुरी हो जाता है कि वह किसी एक राय की हिमायत करती दिखाई न दे. | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() |
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इंटरनेट की भाषा
हिंदीवेबसाइट के पाठक आम हिंदी पाठकों से इस मायने में थोड़े अलग हैं कि वेहमेशा विशुद्ध साहित्यिक रुचि रखने वाले पाठक नहीं हैं. वे हिंदी वेबसाइटपर आते हैं तो उसके कई अलग-अलग कारण होते हैं. •वे विदेशों में बसे हैं और अपनी पहचान नहीं खोना चाहते इसलिए अपनी भाषा से जुड़े रहना चाहते हैं. •हिंदी पहली भाषा है और वे अंग्रेज़ी के मुक़ाबले हिंदी को सरल और सहज मानते हैं और समझते हैं. •वे अंग्रेज़ी की वेबसाइटें भी देखते हैं और अक्सर हिंदी से उसकी तुलना करते हैं. ये पाठक चाहे जो भी हों लेकिन एक बात तय है कि वे भारी-भरकम शब्दों केप्रयोग या मुश्किल भाषा से उकता जाते हैं और जल्दी ही साइट से बाहर निकलजाते हैं. उन्हें बाँधे रखने के लिए ज़रूरी है कि साइट का कलेवर आकर्षक हो, तस्वीरें हों, छोटे-छोटे वाक्य हों, छोटे पैराग्राफ़ हों और भाषा वह हो जोउनकी बोलचाल की भाषा से मेल खाती हो. इंटरनेट की भाषा साहित्यिक भाषा से इस मायने में अलग है कि उसको सहज औरसरल बनाने के लिए ज़रूरत पड़े तो अँग्रेज़ी के प्रचलित शब्दों का भीइस्तेमाल करना पड़ सकता है.जैसे कोर्ट, शॉर्टलिस्ट, अवॉर्ड, प्रोजेक्ट, सीबीआई, असेंबली आदि. कोशिश रहती है कि उसी रिपोर्ट में कहीं न कहीं इनके हिंदी पर्यायवाचीशब्द भी शामिल हों लेकिन लगातार न्यायालय, पुरस्कार, परियोजना, केंद्रीयजाँच ब्यूरो लिखना पाठक को क्लिष्टता का आभास दिला सकता है. इसी तरह उर्दू के शब्द भी जहाँ-तहाँ इस्तेमाल हो ही जाते हैं.इनाम, अदालत, मुलाक़ात, सबक़, सिफ़ारिश, मंज़ूरी, हमला आदि ऐसे ही कुछ शब्द हैं.इंटरनेट पर कैसी भाषा का इस्तेमाल हो इसके लिए बस यह ध्यान रखना ज़रूरी हैकि पढ़ने वाले को डिक्शनरी खोलने की ज़रूरत न पड़े और पढ़ते समय उसे ऐसामहसूस हो जैसे यह उसकी अपनी, रोज़मर्रा इस्तेमाल होने वाली भाषा है. इंटरनेट एक नया और इंटरएक्टिव माध्यम है. यानी दोतरफ़ा संवाद का माध्यमहै. बीबीसी हिंदी डॉटकॉम की भाषा-शैली की गाइड बनाते वक़्त हमने सबसे पहलेइस बात को ध्यान में रखा कि उसके पाठक दुनिया भर में फैले हैं. वे भले हीहिंदी पढ़ते और समझते हैं लेकिन नई टैक्नॉलॉजी के अनेक रास्ते उनके सामनेखुले हैं. उन्हें बाँधने के लिए ज़रूरी है कि बीबीसी हिंदी डॉटकॉम की भाषा ऐसी होजो उन्हें अपनी लगे.वाक्य छोटे और आसान हों. शीर्षक यानी हेडलाइंसआकर्षक हों. अँगरेज़ी के आम शब्दों की छौंक से अगर बात और सहज होती हो तोकोई हर्ज नहीं. | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() |
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Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() अनुवाद एक भाषा से दूसरी भाषा में अच्छा अनुवाद तभी संभव है जब मूल पाठ की आत्मा को समझा जाए. बीबीसी हिंदी में वैसे तो अब भारत, पाकिस्तान और अन्य दक्षिण एशियाईदेशों से ज़्यादातर हिंदी में ही रिपोर्टिंग होती है लेकिन फिर भी विश्व कीअन्य घटनाओं की रिपोर्टें अँग्रेज़ी में ही आती हैं क्योंकि हर देश मेंहिंदी जानने वाले संवाददाता नहीं हैं. ज़ाहिर है, वहाँ अनुवाद की ज़रूरत होती है. अच्छा और सरल अनुवाद तभी होसकता है जब आप अँग्रेज़ी पाठ को दो-तीन बार पढ़कर अच्छी तरह समझ लें. उसकेबाद उसे हिंदी में लिखें. (इंटरनेट के लिए लिखते समय शब्दशः अनुवाद का ख़तरा बना रहता है. ‘येपहली बार नहीं है कि...’, ‘सरकार ने ये क़दम ऐसे समय में उठाया है...’, ‘कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बंगलौर से आते हैं...’ ऐसे वाक्य सीधे सीधेअँग्रेज़ी का शब्दशः अनुवाद हैं.) कुछ अँगरेज़ी के शब्द जितने जटिल होते हैं, उनके हिंदी अनुवाद भी उतनेही जटिल होते हैं. जैसे- विसैन्यीकरण, निरस्त्रीकरण, वैश्वीकरण, सामान्यीकरण, युद्धक हैलीकॉप्टर, मरीन सैनिक. •अनुवाद को लेकर पहला सिद्धांत ये है कि अनुवाद, अनुवाद न लगे. •दूसरा, जो लिखा है, वह पहले लिखने वाले की समझ में आना चाहिए. •तीसरी महत्वपूर्ण बात यह कि मक्खी पर मक्खी न बैठाई जाए क्योंकि अँगरेज़ी और हिंदी की प्रकृति में फ़र्क है. •और चौथा सिद्धांत यह है कि डिक्शनरी से कोई भारी-भरकम शब्द खोजने के बजाय आम भाषा में बात समझाई जाए. | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() |
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मीडिया का काम भले ही भाषा सिखाने का नहीं, मगर मीडिया के लोग, करोड़ों लोगों के लिए रोल मॉडल होते हैं. साफ़ उच्चारण के लिए ज़ोर-ज़ोर से बोलकर अभ्यास करना बहुत काम आता है.तभी अक्षर और उनकी ध्वनि साफ़ सुनाई पड़ती है. यहाँ जल्दबाज़ी से काम बिगड़जाता है. बहुत सारे लोग युद्ध को युद, सुप्रभात को सूप्रभात, ख़ुफ़िया कोखूफिया, प्रतिक्रिया को पर्तिकिरया कहते हैं जो कानों को बहुत खटकता है. इसी तरह, शब्द हिंदी मूल का हो या उर्दू का, अगर आप बेवजह नुक़्तालगाएँगे तो अनर्थ हो जाएगा जैसे फाटक, बेगम, जारी, जबरन, जंग, जुर्रत, जिस्म, फिर, फल आदि में नुक़्ता नहीं लगता. मीडिया में रोज़मर्रा इस्तेमाल होने वाले कुछ शब्द ऐसे भी हैं जोनुक़्ते के बिना कानों को बहुत बुरे लगते हैं जैसे- ख़बर, सुर्ख़ी, ज़रुरत, ज़रा, अख़बार, ग़लत, ग़म, ज़बरदस्ती. अच्छे से अच्छा आलेख, ग़लत उच्चारण या ख़राब उच्चारण की वजह से बर्बादहो सकता है. और कभी कभी तो अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है. रेडियो न तोअख़बार है, न ही टेलीविज़न.रेडियो सिर्फ़ सुना जा सकता है, इसलिए, नसिर्फ़ यह ज़रूरी है कि रेडियो की भाषा स्पष्ट और सरल हो, बल्कि यह भीज़रूरी है कि हर शब्द सही तरह से बोला जाए. शब्द किसी भी भाषा का हो, अगरआपका उच्चारण सही नहीं होगा तो सुनने वाले को बिल्कुल मज़ा नहीं आएगा. अगर उर्दू के शब्दों का प्रयोग करें तो पहले यह जान लें कि उनमेंनुक़्ता लगता है या नहीं. कुछ अति उत्साही लोग शायद यह समझते हैं कि किसीभी शब्द में नुक़्ता लगा देने भर से, वह उर्दू का शब्द बन जाता है. ज़रासोचिए जलील शब्द को बोलते समय अगर ज के नीचे नुक़्ता लग गया तो वह बन जाएगाज़लील. अर्थ का अनर्थ हो जाएगा. हर व्यक्ति को अपनी भाषा अपनी क्षमता के अनुसार गढ़नी चाहिए. यानी अगरआप ख़बर शब्द साफ़ नहीं बोल सकते तो समाचार कहें, युद्ध शब्द का सहीउच्चारण करना मुश्किल लगता है तो लड़ाई कह सकते हैं. प्रक्षेपास्त्र कहनाकोई ज़रुरी नहीं. मिसाइल शब्द अब आम हो गया है.बात तो यह है कि हरव्यक्ति की भाषा का अपना अलग रंग होता है. और होना भी चाहिए. | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() |
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Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() अनुवाद एक भाषा से दूसरी भाषा में अच्छा अनुवाद तभी संभव है जब मूल पाठ की आत्मा को समझा जाए. बीबीसी हिंदी में वैसे तो अब भारत, पाकिस्तान और अन्य दक्षिण एशियाईदेशों से ज़्यादातर हिंदी में ही रिपोर्टिंग होती है लेकिन फिर भी विश्व कीअन्य घटनाओं की रिपोर्टें अँग्रेज़ी में ही आती हैं क्योंकि हर देश मेंहिंदी जानने वाले संवाददाता नहीं हैं. ज़ाहिर है, वहाँ अनुवाद की ज़रूरत होती है. अच्छा और सरल अनुवाद तभी होसकता है जब आप अँग्रेज़ी पाठ को दो-तीन बार पढ़कर अच्छी तरह समझ लें. उसकेबाद उसे हिंदी में लिखें. (इंटरनेट के लिए लिखते समय शब्दशः अनुवाद का ख़तरा बना रहता है. ‘येपहली बार नहीं है कि...’, ‘सरकार ने ये क़दम ऐसे समय में उठाया है...’, ‘कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बंगलौर से आते हैं...’ ऐसे वाक्य सीधे सीधेअँग्रेज़ी का शब्दशः अनुवाद हैं.) कुछ अँगरेज़ी के शब्द जितने जटिल होते हैं, उनके हिंदी अनुवाद भी उतनेही जटिल होते हैं. जैसे- विसैन्यीकरण, निरस्त्रीकरण, वैश्वीकरण, सामान्यीकरण, युद्धक हैलीकॉप्टर, मरीन सैनिक. •अनुवाद को लेकर पहला सिद्धांत ये है कि अनुवाद, अनुवाद न लगे. •दूसरा, जो लिखा है, वह पहले लिखने वाले की समझ में आना चाहिए. •तीसरी महत्वपूर्ण बात यह कि मक्खी पर मक्खी न बैठाई जाए क्योंकि अँगरेज़ी और हिंदी की प्रकृति में फ़र्क है. •और चौथा सिद्धांत यह है कि डिक्शनरी से कोई भारी-भरकम शब्द खोजने के बजाय आम भाषा में बात समझाई जाए. | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() |
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मीडिया का काम भले ही भाषा सिखाने का नहीं, मगर मीडिया के लोग, करोड़ों लोगों के लिए रोल मॉडल होते हैं. साफ़ उच्चारण के लिए ज़ोर-ज़ोर से बोलकर अभ्यास करना बहुत काम आता है.तभी अक्षर और उनकी ध्वनि साफ़ सुनाई पड़ती है. यहाँ जल्दबाज़ी से काम बिगड़जाता है. बहुत सारे लोग युद्ध को युद, सुप्रभात को सूप्रभात, ख़ुफ़िया कोखूफिया, प्रतिक्रिया को पर्तिकिरया कहते हैं जो कानों को बहुत खटकता है. इसी तरह, शब्द हिंदी मूल का हो या उर्दू का, अगर आप बेवजह नुक़्तालगाएँगे तो अनर्थ हो जाएगा जैसे फाटक, बेगम, जारी, जबरन, जंग, जुर्रत, जिस्म, फिर, फल आदि में नुक़्ता नहीं लगता. मीडिया में रोज़मर्रा इस्तेमाल होने वाले कुछ शब्द ऐसे भी हैं जोनुक़्ते के बिना कानों को बहुत बुरे लगते हैं जैसे- ख़बर, सुर्ख़ी, ज़रुरत, ज़रा, अख़बार, ग़लत, ग़म, ज़बरदस्ती. अच्छे से अच्छा आलेख, ग़लत उच्चारण या ख़राब उच्चारण की वजह से बर्बादहो सकता है. और कभी कभी तो अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है. रेडियो न तोअख़बार है, न ही टेलीविज़न.रेडियो सिर्फ़ सुना जा सकता है, इसलिए, नसिर्फ़ यह ज़रूरी है कि रेडियो की भाषा स्पष्ट और सरल हो, बल्कि यह भीज़रूरी है कि हर शब्द सही तरह से बोला जाए. शब्द किसी भी भाषा का हो, अगरआपका उच्चारण सही नहीं होगा तो सुनने वाले को बिल्कुल मज़ा नहीं आएगा. अगर उर्दू के शब्दों का प्रयोग करें तो पहले यह जान लें कि उनमेंनुक़्ता लगता है या नहीं. कुछ अति उत्साही लोग शायद यह समझते हैं कि किसीभी शब्द में नुक़्ता लगा देने भर से, वह उर्दू का शब्द बन जाता है. ज़रासोचिए जलील शब्द को बोलते समय अगर ज के नीचे नुक़्ता लग गया तो वह बन जाएगाज़लील. अर्थ का अनर्थ हो जाएगा. हर व्यक्ति को अपनी भाषा अपनी क्षमता के अनुसार गढ़नी चाहिए. यानी अगरआप ख़बर शब्द साफ़ नहीं बोल सकते तो समाचार कहें, युद्ध शब्द का सहीउच्चारण करना मुश्किल लगता है तो लड़ाई कह सकते हैं. प्रक्षेपास्त्र कहनाकोई ज़रुरी नहीं. मिसाइल शब्द अब आम हो गया है.बात तो यह है कि हरव्यक्ति की भाषा का अपना अलग रंग होता है. और होना भी चाहिए. | Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() |
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