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मौलिक पत्रकारिता से जुड़े सवाल

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प्रस्तुति- किशोर प्रियदर्शी, नुपूर सिन्हा


पत्रकारिता का उद्देश्य ही लोगों को कुछ नया, कुछ दिलचस्प और उपयोगी बताना है जो वे नहीं जानते. ज़्यादातर पत्रकार, ख़ास तौर पर वे पत्रकार जिनकी हम सभी प्रशंसा करते हैं, अक्सर चिंतित रहते हैं कि उनकी रिपोर्ट मौलिक हो, उसमें कोई नई बात हो. मौलिक पत्रकारिता एक कौशल है जिसे आप सीख सकते हैं लेकिन वह दिन-ब-दिन मुश्किल होती जा रही है.

पत्रकारों को अब पहले के मुक़ाबले कहीं अधिक काम करना पड़ता है, अब एक ही रिपोर्टर को रेडियो, टीवी, वेबसाइट सबके लिए रिपोर्टिंग करनी पड़ती है. ऐसी स्थिति में अक्सर यही होता है कि पत्रकार ख़बरों को प्रोसेस करते रह जाते हैं, नया कुछ पैदा करने के लिए जिस तरह के रिसर्च की ज़रूरत होती है उसका समय ही उन्हें नहीं मिल पाता.
इसके अलावा इंटरनेट पर दुनिया पर बेहतरीन और बदतरीन जानकारियों का अंबार लगा है लेकिन उसे करीने से लोगों के सामने पेश करने का हुनर बहुत कम लोगों के पास है.
सोच और आदतें
मौलिकता की माँग है मेहनत, समय और समझदारी. आधे-अधूरे, अनमने तरीक़े से ऑरिजनल काम नहीं हो सकता, यह कुछ दिनों का काम नहीं है बल्कि लगातार उसमें जुटे रहना पड़ता है तब जाकर बात बनती है.
इसका मतलब कि पत्रकारों को अपनी सोच बदलनी पड़ती है और अपने काम करने का तरीक़ा तो अवश्य ही बदलना पड़ता है.
जिस ढर्रे पर आप चल रहे होते हैं उसे बदले बिना ऑरिजनल या मौलिक पत्रकारिता तो नहीं हो सकती.
जिज्ञासा
मैंने ऑरिजनल जर्नलिज़्म के बारे में लिखने से पहले कई संपादकों, रिपोर्टरों और अनुभवी प्रसारकों से बात की, सबका कहना था कि सबसे ज़रूरी चीज़ है जिज्ञासा, जहाँ से किसी ऑरिजनल रिपोर्ट की शुरूआत होती है, अगर आपमें गहराई से जानने समझने की ललक नहीं है तो आप समय बर्बाद कर रहे हैं, मौलिक पत्रकारिता आपके लिए नहीं है.
आपको अपनी ऑरिजनल रिपोर्ट ढूँढने का अभ्यास करना होता है, कई सीनियर एडिटर हमेशा अपने साथियों से कहते थे कि आधा किलोमीटर लंबी सड़क पर ग़ौर से देखने का अभ्यास करना चाहिए कि वहाँ कितनी चीज़ें हैं जिन्हें रिपोर्ट किया जा सकता है, “सड़क की हालत, पार्किंग की हालत, वहाँ भटकने वाले शराबी और भिखारी, सबके बारे में सोचना चाहिए. स्टोरी वहीं से आती है.”
कितनी बार आप एक नई बन रही इमारत की बगल से गुज़रे हैं और आपने सवाल किया है कि यहाँ क्या बन रहा है, क्यों बन रहा है, कौन बनवा रहा है, कब तक बन जाएगा वग़ैरह?
अगर आप ऑरिजनल जर्नलिज़्म करना चाहते हैं तो आपमें इतनी जिज्ञासा होनी चाहिए कि अगर आपको कोई ख़ाली दीवार दिखाई दे तो आप इसके बारे में सोचना शुरू कर दें यह दीवार क्यों है, क्या वहाँ पहले कुछ था?
क्यों और क्यों नहीं?
तो जिज्ञासा की कसरत कैसे की जाए?
प्रैक्टिस करें लेकिन चुपचाप, अगर आप खुलकर ऐसा करेंगे तो आप लोगों को ख़ासा परेशान करेंगे और वे आप से कतराने लगेंगे.
आपको ऐसी आदत बनानी है कि आपके लिए सवाल पूछे बिना टीवी देखना, अख़बार पढ़ना या सड़क पर चलना मुश्किल होने लगे, अपने आप पर दबाव बनाएँ कि आपको ऐसे सवाल ढूँढने हैं जिनके जवाब आपको पता नहीं हैं.
संक्षिप्त समाचार इस कसरत में मददगार हो सकते हैं जिनमें पूरी जानकारी नहीं होती, इन समाचारों को पढ़ने के बाद उन सवालों की एक फेहरिस्त बनाएँ जिनके जवाब आपको नहीं मिले.
अपनी प्रतिक्रिया को ग़ौर से सुनें
जब आपको कोई जानकारी मिलती है तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है?
कुछ देर के लिए निष्पक्षता, संतुलन को किनारे रखकर सोचना शुरू करिए. आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी, क्या दूसरों की भी वही प्रतिक्रिया होगी, क्या होता है जब आप उस प्रतिक्रिया को चुनौती देते हैं, क्या है जो किसी और की प्रतिक्रिया हो सकती है जो आपकी नहीं है?
अपने रोज़मर्रा के कामकाज के दौरान इसका अभ्यास करिए, आप पाएँगे कि आप ऐसी कई बातें सोच पा रहे हैं जो दूसरों से अलग है, आप ऐसे पहलू देख पा रहे हैं जो दूसरे नहीं देख रहे, यहीं से मौलिक पत्रकारिता की शुरूआत होती है.
बीबीसी न्यूज़नाइट कार्यक्रम के राजनैतिक मामलों के पूर्व संपादक माइकल क्रिक कहते हैं, “रोज़मर्रा की बिल्कुल आम रिपोर्ट जिसे बीसियों दूसरे लोग भी कर रहे हैं, उन्हें करते समय हमेशा ये सोचना चाहिए कि मै ऐसा नया क्या दे सकता हूँ?”
इसका मज़ा ये है कि आपको पहले से कुछ भी जानने की ज़रूरत नहीं है, आपको सिर्फ़ जिज्ञासु और उत्साही होना है लेकिन अनुशासित तरीक़े से.

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