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इंटरव्यू के दौरान बर्ताव

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प्रस्तुति-- नुपूर सिन्हा, सजीली सहाय


इंटरव्यू के उद्देश्य अलग हो सकते हैं और पत्रकारों को उसी हिसाब से बर्ताव करना होता है. कभी-कभी इसमें सख़्ती भी बरतनी होती है मगर ये भी ध्यान रखना होता है कि जिससे प्रश्न पूछा जा रहा है उसके साथ नाइंसाफ़ी ना हो. बीबीसी के अनुभवी प्रसारक सर रॉबिन की बरसों पहले बनाई गई एक आचारसंहिता आज भी पत्रकारों के लिए उपयोगी है.

सख़्त इंटरव्यू के मामलों में भी रवैया न्यायसंगत और तथ्यपरक कैसे रखें?
अलग-अलग इंटरव्यू के अलग-अलग उद्देश्य होते हैं इसलिए पत्रकारों को अपना रवैया बदलने के लिए तैयार रहना चाहिए. जिस इंटरव्यू का मक़सद किसी आरोप पर सफ़ाई माँगना होता है उसमें बार-बार सवाल को दोहराने और अपनी बात पर अड़े रहने की ज़रूरत पड़ सकती है, इंटरव्यू देने वाला व्यक्ति अगर टालमलोट कर रहा है तो उससे कड़ाई से निबटना चाहिए लेकिन साथ ही इंटरव्यू देने वाले व्यक्ति के प्रति भी अन्याय नहीं होना चाहिए.
जाने-माने प्रसारक सर रॉबिन डे इस पर बरसों पहले टीवी पत्रकारों की मदद के लिए एक आचार संहिता बनाई थी, वह आज भी बहुत उपयोगी है और उसकी उपयोगिता टीवी इंटरव्यू तक ही सीमित नहीं है.
सर रॉबिन ने लिखा, “यह एक पत्रकार की ड्यूटी और उसका अधिकार है, जनता की ओर से कड़े, परेशानी में डालने वाले सवाल पूछना लेकिन इंटरव्यू देने वाले के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए.”
रॉबिन कोड की मुख्य बातें
  • टीवी पत्रकार की ड्यूटी है कि वह तथ्यों और विचारों की तह तक जाने के लिए हरसंभव कोशिश करे.
  • व्यक्तिगत पूर्वाग्रह को किनारे रखकर ऐसे विविधतापूर्ण सवाल पूछे जाएँ जिनके उत्तर जानने की इच्छा एक व्यापक दर्शक वर्ग में हो.
  • अगर कोई बहुत प्रभावशाली या सत्तासीन सामने हो तो उसके रोब में न आएँ.
  • इंटरव्यू खुले दिमाग़ से सच जानने के लिए होना चाहिए, पहले से तय बात को साबित करने नहीं, सवाल के बारे में बहुत बारीक़ी से सोचना चाहिए क्योंकि वे आपके सवाल तो हैं लेकिन पूछे जनता की ओर से जा रहे हैं.
  • किसी को ख़ुश करने या किसी को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए, अगर इंटरव्यू करने वाले पत्रकार को लगे कि इंटरव्यू का मक़सद सच सामने लाने के बदले किसी का हित साधना है तो ऐसे इंटरव्यू करने से मना कर देना चाहिए.
  • इंटरव्यू देने वाले को यह ज़रूर बताया जाना चाहिए कि इंटरव्यू का विषय मोटे तौर पर क्या होगा लेकिन सवाल एडवांस में नहीं दिया जाना चाहिए, यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि इंटरव्यू लेने वाले को कितना समय मिलेगा उसी हिसाब से सवालों की प्राथमिकता तय होनी चाहिए.
  • सवाल पूछे जाने के बाद इंटरव्यू देने वाले को जवाब देने का मौक़ा दिया जाना चाहिए.
  • जो लोग इंटरव्यू देने के अभ्यस्त नहीं है उन्हें उलझाने या फँसाने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए, इंटरव्यू करने वाले पत्रकार को अपने अनुभव का इस्तेमाल किसी को शर्मिंदा करने के लिए नहीं करना चाहिए.
  • अगर किसी सवाल का जवाब निकलवाना ज़रूरी हो तो उसे कई बार अलग-अलग ढंग से पूछा जा सकता है, लेकिन आक्रामक होने या सिर्फ़ कड़क दिखने के लिए पैंतरेबाज़ी से बाज़ आना चाहिए.
  • याद रखिए कि इंटरव्यू करने वाला पत्रकार न तो प्रवक्ता है, न वकील, न जज, न मनोवैज्ञानिक और न ही किसी विधा का माहिर, वो सिर्फ़ जनता का नुमाइंदा है जो सच जानने समझने की कोशिश कर रहा है.
अच्छे इंटरव्यू की ख़ासियत यही है कि दर्शक उसे न्यायसंगत मानें, बीबीसी के सर्वे बताते हैं कि दर्शक को जब इंटरव्यू लेने वाले की नीयत पर शक हो जाता है तो फिर सारी मेहनत बेकार जाती है.
एक अच्छे ख़ासे इंटरव्यू के मूल उद्देश्य से दर्शकों का ध्यान हट सकता है अगर उन्हें लगने लगे कि इंटरव्यू देने वाले के साथ नाइंसाफ़ी हो रही है, इसी तरह दर्शक ऐसा इंटरव्यू क्यों देखेंगे जब उन्हें यही न लगे कि उनके मतलब के सवाल नहीं पूछे जा रहे?
इंटरव्यू करते समय इस संतुलन को कभी नहीं भूलना चाहिए.

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