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मार्क टली और सतीश जैकब बता रहे है

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प्रधानमंत्री: किन हालात में और क्यों हुआ ऑपरेशन ब्लू स्टार?



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<p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b>पंजाब में तनाव की शुरुआत ऑपरेशन ब्लू स्टार से करीब छह साल पहले हुई थी, हालांकि उसकी बुनियाद 11 साल पहले ही पड़ गई थी.</b> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> अमृतसर में 13 अप्रैल 1978 को अकालियों और निरंकारियों की भिडंत होती है जिसमें 13 अकाली मारे गए. यहीं से तनाव की शुरुआत होती है.  इस घटना के साथ ही जरनैल सिंह भिंडरांवाले का उदय होता है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> हालांकि, इसकी बुनियाद 1973 में तब रखी गई जब अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया था. इसके तहत पार्टी ने मांग की थी कि केंद्र सरकार रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर नियंत्रण रखकर अन्य विषयों पर पंजाब को स्वायत्ता दे. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b>चिंगारी जो बनी आग </b> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> 9 सिंतबर 1981 को पटियाला से जालंधर जा रही एक कार पर  जांलधर के पास हाईवे पर कुछ सिख बंदूक धारी हमला करते हैं. यह हमला दिनदहाड़े होता है. हिंद समाचार-पंजाब केसरी समूह के संपादक और मालिक लाला जगत नारायण की हत्या की जाती है. संत जरनैल सिंह भिंडरावाले पर हत्या का शक जताया जाता है. हैरानी की बात है कि भिंडरावाले पर संसद के अंदर देश के गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह का बयान आता है कि संत जरनैल सिंह भिंडरावाले को जमानत पर रिहा कर दिया गया है. भिंडरावाले के खिलाफ हत्या का कोई सबूत नहीं मिला है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> http://www.youtube.com/watch?v=gJW1VfQtkaI </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b></b> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b>आखिर कौन थे संत जरनैल सिंह भिंडरावाले</b> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> आखिर कौन थे संत जरनैल सिंह भिंडरावाले....क्या इतने बड़े संत थे कि देश के गृह मंत्री को संसद में उनकी रिहाई की घोषणा करनी पड़ी....जो काम अदालत का होता है वो काम गृह मंत्री ने किया. वो भी उस भिंडरावाले के लिए जो पंजाब में आतंकवाद के लिए सीधे सीधे जिम्मेदार था और जिसके कारण हमारी सेना को स्वर्ण मंदिर में घुसना पड़ा. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ और हुई इंदिरा गांधी की हत्या..1977 में इमरजेंसी हटी और आम चुनाव हुए. इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी की जबर्दस्त हार हुई. पंजाब विधानसभा के चुनावों में भी कांग्रेस को सत्ता से हटना पड़ा. वहां अकाली दल की सरकार बनी. ज्ञानी जैल सिंह उस समय पंजाब के एक बड़े नेता हुआ करते थे. उन्होंने इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को विश्वास में लिया. पंजाब में अकाली दल को राजनीतिक रुप से घेरने की योजना बनाई गई. पंजाब के गांव गांव में सिख धर्म का प्रचार करने वाले 37 साल के एक अनजान से संत जरनैल सिंह भिंडरावाले को चुना गया. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> बीबीसी से जुड़े रहे पत्रकार सतीश जैकब ने मार्क टुली के साथ मिलकर अमृतसर मिसेज गांधी लास्ट बैटल नाम की किताब लिखी है. इसमें कहा गया है कि संजय गांधी और ज्ञानी जैल सिंह को अब एक नई पार्टी चाहिए थी ताकि भिंडरावाले का प्रचार प्रसार किया जा सके. 13 अप्रैल 1978 को दल खालसा नाम से नई पार्टी बनी.  अमृतसर के जिस होटल में पार्टी की पहली बैठक हुई थी उसपर 600 रुपये का खर्च आया था और ज्ञानी जैल सिंह ने ये खर्च उठाया था. चंडीगढ़ के उस समय के पत्रकार याद करते हैं कि कैसे जैल सिंह फोन करके दल खालसा पार्टी की विज्ञप्तियां छापने का आग्रह करते थे. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> भिंडरावाले कांग्रेस के लिए काम करने लगे. 1980 के चुनावों में भिंडरावाले ने पंजाब की तीन लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों के समर्थन में चुनाव प्रचार भी किया. इनमें अमृतसर सीट भी शामिल थी. बीबीसी के पैनोरमा कार्यक्रम में इंदिरा गांधी से भिंडरावाले से रिश्तों पर सवाल पूछा गया तो उनका कहना था ...मैं किसी भिंडरावाले को नहीं जानती. लेकिन वो चुनावों के दौरान हमारे एक उम्मीदवार से मिले थे. मुझे उसे उम्मीदवार का नाम याद नहीं आ रहा है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> 1980 में चार राजनीतिक घटनाएं हुई. इंदिरा गांधी की चुनावों में जबरदस्त वापसी हुई. लोकसभा की 529 सीटों में से कांग्रेस को 351 सीटें मिली. ज्ञानी जैल सिंह को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश का गृह मंत्री बनाया. पंजाब विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने अकाली दल को पछाड़ा. जैल सिंह के धुर राजनीतिक विरोधी दरबारा सिंह को को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया गया. कहते हैं कि संजय गांधी ने जानबूझकर ऐसा किया ताकि दोनों विरोधी गुटों के बीच संतुलन बनाया जा सके. इसी साल 23 जून को संजय गांधी की एक हवाई दुर्घटना में अचानक मौत हो गयी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> जवान बेटे की मौत ने इंदिरा गांधी को अंदर से तोड़ के रख दिया. इसका फायदा सत्ता से बाहर हुए अकाली दल ने उठाया. अकाली दल ने 1973 में पारित आनंदपुर साहिब  प्रस्ताव को लागू करने के लिए केन्द्र पर दबाव बनाना शुरू किया. चंडीगढ  को पंजाब की अलग से राजधानी बनाने के साथ साथ रावी और ब्यास नदी के पानी का बड़ा हिस्सा पंजाब को देने की मांग की. पंजाबी भाषा के मामले को भी उठाया जो एक बड़ा मुद्दा बन रहा था. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> 1981 की जनगणना के समय हिन्दू और पंजाबियों के बीच खाई पैदा हो गई. पंजाब केसरी अखबार के संपादक लाला जगत नारायण ने लगातार संपादकीय लिखे. इसमें कहा गया कि पंजाब में इन दिनों 1981 की जनगणना चल रही है. इसमें लोगों से उनकी मातृ भाषा पूछी जा रही है. हिन्दू अपनी मातृ भाषा हिन्दी बताएं न कि पंजाबी. इससे भिंडरावाले नाराज हो गया उसने पंजाबियों की अस्मिता का मामला उठाया और हवा दी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> अमृसतर के गुरु नानक देव विश्वविधालय में भिंडरावाले ने भाषण दिया. यह हिन्दू हमारे साथ धोखा कर रहे हैं. पंजाब में रहते हैं और अपनी मातृ भाषा हिन्दी बताते हैं. पंजाबी नहीं. ऐसा लगता है मानो हमारे सिरों से हमारी पगड़ियां उतार कर फाड़ी जा रही हो. छात्रों ने पूछा कि आप हुक्म दीजिए. इस पर भिंडरावाले ने कहा कि ......हुक्म ....आप लोगों को हुक्म चाहिए ....किस तरह का हुक्म ....क्या आप लोगों को दिखाई नहीं दे रहा ....क्या आप  को दिखाई नहीं देता... </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> 9 सिंतबर 1981 को जगत नारायण पटियाला से जालंधर जा रहे थे.  जालंधर के पास हाइ-वे पर कार पर कुछ सिख बंदूकधारी हमला करते हैं. ये हमला दिनदहाड़े होता है. पंजाब केसरी अखबार के मालिक और संपादक लाला जगत नारायण की हत्या कर देते है. पंजाब केसरी पंजाब का सबसे ज्यादा सर्कुलेशन वाला सबसे लोकप्रिय अखबार है. संत जरनैल सिंह भिंडरावाले को हत्या के आरोप में 15 सिंतबर को गिरफ्तार कर लिया जाता है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> आखिर लाला जगत नारायण की हत्या क्यों की गई. भिंडरावाले को एक अखबार के मालिक संपादक से आखिर क्या दुश्मनी थी. दरअसल भिंडरावाले ने जब सिख अलगाववाद की शुरुआत की तो सबसे पहले हिन्दुओं के धोखे का मुद्दा ही उठाया और उनके निशाने पर लाला जगत नारायण.  सारे फसाद की जड़ में थी 1981 की जनगणना. इसमें लोगों से उनकी मातृ भाषा पूछी जा रही थी. लाला जगत नारायण ने अपने अखबार के जरिए अभियान चलाया था कि हिन्दू अपनी मातृ भाषा हिन्दी कहें न कि पंजाबी. यही बात भिंडरावाले को चुभ गयी थी. </p> <hr class="system-pagebreak" title="भिंडरावाले की गिरफ्तारी और रिहाई" /> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <br /> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b>भिंडरावाले की गिरफ्तारी और रिहाई<br /></b><br />13 सिंतबर 1981 यानि हत्या के चार दिन बाद पंजाब सरकार ने भिंडरावाले के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जिसकी रेडियो और टीवी पर जानकारी भी दी गयी.  वो उस समय हरियाणा के चंडो कला में छुपा था. सतीश जैकब के अनुसार वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने तब खबर दी थी कि गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने खुद हरियाणा के मुख्यमंत्री भजनलाल को फोन करके भिंडरावाले को गिरफ्तार नहीं करने के आदेश दिए थे. यही नहीं, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने सतीश जैकब को बताया था कि भजनलाल ने सरकारी गाड़ी से भिंडरावाले को अमृतसर भिजवा दिया था. दो दिन बाद 15 सिंतबर को भिंडरावाले को उसके मुख्यालय मेहता चौक के एक गुरुदवारे से गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन एक महीने बाद 15 अक्टूबर को भिंडरावाले को रिहा कर दिया गया. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> इंदिरा गांधी के करीबी रही पुपुल जयकर के अनुसार सीधे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप के बाद भिंडरावाले को जमानत पर रिहा कर दिया गया. हैरानी की बात है कि गृह मंत्री जैल सिंह ने बाकायदा संसद में भिंडरावाले की रिहाई की घोषणा की.  कहा कि भिंडरावाले के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है. यानि ये अदालत का नहीं बल्कि सरकार का फैसला था. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> उस समय दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर कांग्रेस का कब्जा था. संतोख सिंह इसके अध्यक्ष थे. वो इंदिरा गांधी के भी करीबी थे और भिंडरावाले से भी उनके संबंध थे. संतोख सिंह ने ही भिंडरावाले को रिहा करने की सिफारिश इंदिरा गांधी से की थी. उनका कहना था कि भिंडरावाले के रिहाई से हिंसा में कमी आएगी. इन्ही संतोख सिंह की 21 दिसंबर 1981 को दिल्ली में हत्या कर दी गयी. उनके घर दुख व्यक्त करने राजीव गांधी और गृह मंत्री जैल सिंह भी पहुंचे. वहां भिंडरावाले भी मौजूद था. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> सवाल उठता है कि क्या जैल सिंह और राजीव गांधी को ठीक उसी समय शोक जताने संतोख सिंह के घर जाना जरूरी था जब भिंडरावाले वहां मौजूद था. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> भिंडरावाले जमानत पर रिहा होने के बाद अपने बंदूकधारी अंगरक्षकों के साथ दिल्ली से लेकर मुम्बई तक बेखौफ घूम रहा था. वो शान से कहता था कि इंदिरा सरकार ने मेरे लिए एक हफ्ते में जो किया उसे मैं सालों में भी हासिल नहीं कर सकता था. वो पंजाब के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह की तुलना जकरिया खान से करता था जो मुगल शासकों के दौर में लाहौर में सूबेदार था और सिखों पर जुल्म किया करता था. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> भिंडरावाले ने खालिस्तान की मांग उठानी शुरू कर दी थी, गुरुदवारों में वो खालिस्तान के पक्ष में भाषण दे रहा था और उसे कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों से भी समर्थन मिल रहा था. ऐसे समय में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी  और उनके बेटे कांग्रेस महासचिव राजीव गांधी एशियाड 82 को सफल बनाने में लगे थे. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> दिल्ली में राजीव गांधी की छत्रछाया में एशियाई खेल हो रहे थे. भिंडरावाले ने दिल्ली में इस दौरान गड़बड़ी फैलाने की चेतावनी दी थी. दिल्ली हरियाणा सीमा सील कर दी गयी. हरियाणा पुलिस के जवान बड़े ही बेरुखे और असभ्य ढंग से सिखों की पड़ताल कर रहे थे. इन सिखों में एयर मार्शल अर्जन सिंह भी शामिल थे जो 1971 की भारत पाकिस्तान लड़ाई के हीरो थे. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> हरियाणा पुलिस .....कहां जा रहे हैं .....डिग्गी खोलो .......पूरी तलाशी होगी. एयर मार्शल अर्जन सिंह ...... दिल्ली जा रहा हूं.<br />हरियाणा पुलिस .....एशियाड के दौरान होने वाले सिखों के प्रदर्शन में तो भाग लेने नहीं जा रहे. अर्जन सिंह ...देखिए मैं एयर मार्शल अर्जन सिंह हूं. एयर फोर्स से .....जरूरी काम से दिल्ली जा रहा हूं. प्रदर्शन से मेरा कोई लेना देना नहीं है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> यही बात लेफ्टिनेट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा से भी पूछी गयी जिन्होंने बांग्लादेश की लड़ाई में पाकिस्तान के 80 हजार सैनिकों को सरेंडर करवाया था. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> खुद कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं बख्शा गया. कांग्रेस की सांसद अमरजीत सिंह कौर तो संसद भवन के बाहर पत्रकारों के साथ अपनी आपबीती सुनाते हुए रो ही दी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> अमरजीत सिंह ने कहा था, "मैं अपने पति के साथ दिल्ली आ रही थी. हम दोनों को हरियाणा पुलिस ने बुरी तरह से प्रताड़ित किया. मैंने कहा कि सांसद हूं. अपना पहचान पत्र भी दिखाया लेकिन पुलिस ने तो पगड़ी तक उतारने को कहा."<br /><br />इतना ही नहीं, "पुलिस ने शक के आधार पर करीब डेढ़ हजार  लोगों को गिरफ्तार कर लिया. पूरे पंजाब में इसको लेकर सिखों में जबरदस्त गुस्सा था. इस गुस्से का फायदा भिंडरावाले ने उठाया."</p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> इसके बाद भिंडरावाले की अमृतसर में प्रेस कांफ्रेस होती है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> भिंडरावाले कहता है, "आप सब ने देखा कि किस तरह सिखों को हरियाणा बार्डर पर अपमानित किया गया है. इसमें सेना के वो रिटायर अफसर भी थे जिन्होंने देश के लिए जान लगा दी. अब तो सिखों को ये समझ लेना चाहिए कि सिखों को उस देश में नहीं रहना चाहिए जहां उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक मानकर गंदा सुलूक किया जाता है."</p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b>ज्ञानी जैल सिंह बने राष्ट्रपति</b> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> 1982 में ज्ञानी जैल सिंह देश के राष्ट्रपति बनाए गये. इंदिरा को लगा शायद सिख राष्ट्रपति का असर पंजाब के अलगाववादियों पर होगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दरअसल जैल सिंह हों या  अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल, हरचंद सिंह लोगोंवाल हों या पंजाब के मुख्यमंत्री दरबारा सिहं.... सभी की अपनी अपनी राजनीति थी. ये सभी अपने अपने सियासी नफा नुकसान के नजरिये से पंजाब समस्या को देख रहे थे. लेकिन एक महाराजा की बात इंदिरा गांधी मान लेती तो ऑपरेशन ब्लू स्टार की नौबत नहीं आती. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> इंदिरा गांधी ने अपने बेटे राजीव गांधी को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया था और राजीव गांधी अपने सलाहकारों के साथ पंजाब समस्या का हल तलाश रहे थे. वो कैप्टन अमरेन्दसिंह को लेकर आए. पटियाला के महाराजा कैप्टन अमरेन्द्र सिंह राजीव गांधी के स्कूल के दोस्त थे. वो बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री भी बने. 18 नवंबर 1982 को उनकी अकाली नेताओं से बात हुई और समझौते पर दोनों पक्ष सहमत हो गये. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> इसमें चंडीगढ़ पंजाब को दिया जाना था और नदियों के पानी के बंटवारे पर कमीशन बनाने की बात थी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> लेकिन ये बात हरियाणा के मुख्यमंत्री भजनलाल को लीक हो गयी. उन्होंने इंदिरा गांधी को समझाया कि हरियाणा से बातचीत किये बगैर चंडीगढ और नदियों के पानी पर समझौता करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं. राजस्थान के मुख्यमंत्री भी संयोगवश उस समय दिल्ली में थे. उन्होंने भी भजनलाल का साथ दिया. समझौता होते होते रह गया. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> ज्ञानी जैल सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि इंदिरा गांधी दरबारा सिंह पर ही पूरा भरोसा करती थी. यहां तक कि गृह मंत्री जैल सिंह से भी पंजाब समस्या पर सलाह लेने से हिचकती थी. जैल सिंह ने यहां तक दावा किया है कि वरिषठ कांग्रेस नेता सरदार स्वर्ण सिंह ने भी अकाली दल के साथ मिलकर समझौता करीब करीब करवा लिया था, लेकिन दरबारा सिंह ने ऐसा होने नहीं दिया. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b>हिंसा बढ़ती ही जा रही थी</b> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> पंजाब में हिंसा बढ़ती ही जा रही थी. 25 अप्रैल 1983 को डीआईजी ए एस अटवाल को तब गोली मार दी गयी जब वो स्वर्ण मंदिर में मत्था टेक कर लौट रहे थे. उनके हाथ में प्रसाद था और उनका शव स्वर्ण मंदिर के बाहर खुले में पड़ा हुआ था. पुलिस की हिम्मत ही नहीं थी कि वो अपने अधिकारी का शव अपने कब्जे में ले सके. आखिर मुख्यमंत्री को बीच में आना पड़ा. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> दरबारा सिंह भिंडरावाले को फोन करते हैं.. कहते हैं,  डीआईजी अवतारसिंह अटवाल को गोली मारी गयी है. उनका शव स्वर्ण मंदिर के बाहर पड़ा है. दो घंटे हो गये हैं शव को वहां पड़े. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> भिंडरावाले का जवाब, ...तो इसमें हम क्या कर सकते हैं ... </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> दरबारा सिंह .......आप अपने आदमियों से कहे कि पुलिस को शव ले जाने दिया जाए. कम से कम शव का सही रीतियों से अंतिम संस्कार हो सके. शव के साथ कैसी दुशमनी .... </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> भिंडरावाले ......कह दो अपनी पुलिस से .....लाश ले जाएं ... </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> वाकई में किसी मुख्यमंत्री के लिए ये एक शर्म की बात थी. दरबारा सिंह ने इंदिरा गांधी को स्वर्ण मंदिर में पुलिस भेजने की सलाह दी. इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति जैल सिंह से सलाह मांगी, जिन्होंने मना कर दिया.  दरबारा सिंह उन चुंनिदा नेताओं में थे जो भिंडरावाले के खिलाफ सख्त कदम उठाने की हिम्मत रखते थे लेकिन उनके हाथ बांध दिये गये. भिंडरावाले के हौंसले बुलंद हो गये. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b>हिंदुओं पर हमला</b> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> 5 अक्टूबर 1983 को कपूरथला से जालंधर जा रही बस को सिख बंदूकधारियों ने देर रात रोका. हिंदुओं को चुन चुन कर बाहर निकाला गया और एक लाइन में खड़े कर गोली मार दी. छह हिंदुओं को उनके  परिवार की महिलाओं और बच्चों के सामने गोली मारी गयी. इस हत्याकांड के बाद ही पत्रकार तवलीन सिंह भिंडरावाले से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में मिली थीं. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> तवलीन सिंह ....कहा जा रहा है कि मारने वाले सिख थे. <br /><br />भिंडरावाले ....तो ...इससे मेरा क्या लेना देना.<br /><br />तवलीन सिंह ....क्या आप हिंदुओं को बस से उतार कर मारने की घटना की निंदा करते हैं ....<br /><br />भिंडरावाले .....मैं क्यों इसकी निंदा करुं ...मैं निंदा करने वाला कौन होता हूं. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> यही तवलीन सिंह ने भिंडरावाले से ये भी पूछा था कि उन्हें कांग्रेस ने बहुत सारा पैसा दिया है ताकि आप अकालियों का खेल खराब कर सकें. भिंडरावाले बुरी तरह से बिफर गये थे. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> इस घटना के अगले ही दिन यानि 6 अक्टुबर के इंदिरा गांधी ने दरबारा सिहं सरकार को हटा दिया. पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. ये इंदिरा गांधी की भारी गलती थी. इससे भिंडरावाले के खिलाफ सख्त लाइन लेने वाले एक बड़े नेता से केन्द्र का सीधा नाता टूट गया. <br /><br />सतीश जैकब तब दरबारा सिंह से मिले थे. उन्होंने इशारों में कहा था कि राष्ट्रपति जैल सिंह के वफादारों ने ये सारा खेल रचा था. इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर के अनुसार दरबारा सिंह शिकायत करते रहते थे कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी ज्ञानी जैलसिंह पंजाब की राजनीति में हस्तक्षेप करते रहते थे.  </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> सवाल उठता है कि आखिर इंदिरा गांधी जैसी सख्त महिला भिंडरावाले के खिलाफ कोई सख्त काईवाई करने से हिचक क्यों रही था. कुछ का कहना था कि इंदिरा गांधी चाहती थी कि सिख और हिन्दू बंटे रहे ताकि हिन्दू वोटों का कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण हो जाए. दरबार किताब लिखने वाली और राजीव गांधी सोनिया गांधी की बेहद करीबी  पत्रकार तवलीन सिंह ने इसका जवाब दिया है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> तवलीन सिंह ....अभी पंजाब का दौरा करके आई हूं. वहां तो हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> राजीव गांधी ...हूं . हम भी बहुत चिंतित हैं. समझौते की भी काफी कोशिशें हुई हैं पर .... </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> तवलीन सिंह .........मैडम प्राइम मिनिस्टर क्यों कुछ नहीं करती. .... </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> राजीव गांधी ......मैं मम्मी से कई बार कह चुका हूं हमें कुछ करना चाहिए लेकिन इंदिरा जी अपने वरिष्ठ सलाहकारों की ही सुनती हैं. वो सलाहकार इंदिरा जी को यही सलाह देते हैं कि उन्हें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे सिख नाराज हों. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> इंदिरा गांधी के लिए भिंडरावाले कहता था कि दिल्ली की गद्दी पर बैठी बामणी या पंडितजी की बेटी मद्रासी लोगों से घिरी हैं जो पंजाब की हकीकत नहीं समझते. खैर, भिंडरावाले की ताकत बढ़ती जा रही थी. खबरें आ रहीं थी कि दूध के बरतनों और अनाज की बोरियों के आड़ में हथियार स्वर्ण मंदिर में पहुंचाए जा रहे थे. पत्रकार सतीश जैकब बताते हैं कि कैसे उनके सामने स्वर्ण मंदिर में एक आदमी को तलवारों से काट डाला गया था जिसने भिंडरावाले से गद्दारी की थी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b>अकाल तख्त पर कब्ज़ा</b> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> भिंडरावाले ने अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया था. अकाल तख्त का मतलब एक ऐसा राजसिंहासन जो अनंतकाल के लिए बना हो. इसे सौलहवीं सदी में बनाया गया था. दिल्ली में मुगल दरबार की गद्दी से एक फुट ऊंचा अकाल तख्त बनाया गया था ताकि बताया जा सके कि ईश्वर की जगह बादशाहों से ऊपर होती है. छठे गुरु ने इसका निर्माण करवाया था लेकिन किसी ने अकाल तख्त को अपना निवास नहीं बनाया. जाहिर है कि भिंडरावाले ने अकाल तख्त को अपना आशियाना बनाया तो इसका जमकर विरोध भी हुआ. लेकिन भिंडरावाले ने किसी की परवाह नहीं की. वो वहां बैठता और फरमान जारी करता. प्रेस से भी वहीं मुलाकात करता. वहीं से उसने इंदिरा गांधी को चेतावनी दी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> शांति और हिंसा की जड़ एक ही हैं. हम तो माचिस की तीली की तरह हैं. ये लकड़ी की बनी है और ठंडी हैं. लेकिन आप उसे जलाएंगे तो लपटें निकलेंगी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> फरवरी 1984 में बातचीत का एक और दौर हुआ. दस महीने बाद ही देश में और पंजाब में चुनाव होने थे और इंदिरा गांधी के लिए समझौता करना एक राजनीतिक मजबूरी भी बनती जा रही थी. उधर अकाली भी समझ गये थे कि भिंडरावाले का कद बहुत बढ़ गया है और वो उनके वजूद को ही  कड़ी चुनौती दे सकता है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> विदेश मंत्री नरसिंह राव को कमान सौंपी गयी. उनके साथ थे  कैबिनेट सचिव कृष्णा स्वामी राव साहेब और  इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव पीसी अलेक्जेडर. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> सामने थे अकाली दल के अध्यक्ष प्रकाश सिंह बादल और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबधंक कमेटी के अध्यक्ष गुरुचरणसिंह तोहड़ा. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> नरसिंह राव .....एक कमीशन बनेगा जो आपकी सभी मांगों पर विचार करेगा. आनंदपुर साहब प्रस्ताव पर विचार करेगा. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> तोहड़ा ....हमें मिलेगा क्या ... </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> नरसिंह राव .....चंडीगढ़ पंजाब को दिया जाएगा. बदले में हरियाणा को अबोहर जिला दिया जाएगा, लेकिन ये सब सिफारिशें आयोग करेगा. <br />तोहड़ा और बादल ....मंजूर है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> नरसिंह राव ....इंद्रिरा गांधी जी ने कुछ सिख युवकों पर चल रहे देश द्रोह के मुकदमें भी वापस ले लिए हैं.  लेकिन उनकी एक ही शर्त है ..<br />तोहड़ा ...क्या .. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> नरसिंह राव .....भिंडरावाले को अगर समझौता मंजूर हुआ तभी इसे लागू किया जाएगा ....अब उन्हें और लोगोंवाल  जी को मनाना आपका काम है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> बादल और तोहड़ा इस प्रस्ताव को लेकर स्वर्ण मंदिर गये. वहां उन्हें  हरचंद सिंह लोगोंवाल और भिंडरावाले से मिलना था. लोंगोवाल तुंरत सहमत हो गये . तीनों अब भिंडरावाले के पास गये, लेकिन भिंडरावाले अड़ गये और तनातनी बढ़ गयी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> अगले दिन तोहड़ा राज्यपाल से मिले. उनसे कहा कि भिंडरावाले किसी भी कीमत पर समझौते के लिए तैयार नहीं है. एक हफ्ते बाद ही लोगोंवाल ने घोषणा कर दी कि तीन जून के बाद से गेहूं पंजाब के बाहर ले जाने नहीं दिया जाएगा. ये सीधे सीधे दिल्ली सरकार को चुनौती थी. अब इंदिरा गांधी को किसी फैसले पर पहुंचना ही था. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> इस बीच इंदिरा गांधी को खुफिया एंजेसियों ने खबर दी कि कनाडा, लंदन और अमेरिका में बसे एन आर आई भिंडरावाले के साथ मिलकर षडयंत्र रच रहे हैं. षडयंत्र यही कि बड़े पैमाने पर हिंदुओं का नरसंहार करवाया जाए ताकि वो पंजाब छोडने के लिए मजबूर हो जाएं. उधर देश के अलग अलग भागों में बसे सिख पंजाब में शरण लेने चले आएं. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> इंदिरा गांधी को बताया गया कि भिंडरावाले ने हिंदुओं के नरसंहार की तारीख पांच जून की चुनी है .उन्हें ये भी बताया गया था कि दस जून को भिंडरावाले खालिस्तान राज्य की आजादी की घोषणा करने की फिराक में था. उधर लोगोंवाल का गेहूं बाहर नहीं भेजने का आंदोलन तीन जून से शुरू होना था. यानि इंदिरा गांधी को जो कुछ करना था वो तीन जून से पहले या उसके आस पास ही करना था. इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने का फैसला कर ही लिया. कोड वर्ड रखा गया ऑपरेशन ब्लू स्टार. </p> <hr class="system-pagebreak" title="ऑपरेशन की शुरुआत" /> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <br /> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b>ऑपरेशन की शुरुआत</b><br /><br />2 जून 1984, इंदिरा गांधी ने देश के नाम संदेश दिया. रात सवा नौ बजे. पंजाब में निर्दोष सिख और हिन्दू मारे जा रहे हैं, अराजकता फैली है, लूटपाट हो रही है. धार्मिक स्थल अपराधियों और हत्यारों के शरणगाह हो गये हैं.  सिखों और हिंदुओं के बीच नफरत फैलाने का एक सुनियोजित अभियान चल रहा है. देश की एकता और संपूर्णता को कुछ ऐसे लोग खुलेआम चुनौती दे रहे हैं जो छुपकर धार्मिक स्थल में शरण लिए हुए हैं ....बहुत खून बह चुका है. हमें हमारी भविष्य की ज़िम्मेदारी को पहचानना है. ऐसा भविष्य जिसपर  हम सब को गर्व हो सके. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> अपने भाषण के अंत में इंदिरा गांधी ने अकालियों से अपने आंदोलन को समाप्त करने और शांतिपूर्ण समझौते को स्वीकार कर लेने की अपील की. <br /><br />जब इंदिरा गांधी देश के नाम संदेश दे रही थी उसी दौरान जनरल कुलदीप सिंह बरार की अगुवाई में सेना की नवीं डिवीजन स्वर्ण मंदिर की तरफ बढ रही थीं. तीन जून को अमृतसर से पत्रकारों को बाहर कर दिया गया. फोन सेवा बंद कर दी गयी. पाकिस्तान से लगती सीमा को सील कर दिया गया. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> हालांकि, उस वक्त तक भिंडरावाले को यकीन नहीं था कि सेना स्वर्ण मंदिर में घुसेगी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> 5 जून 1984 शाम 4.30 बजे . </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> स्वर्ण मंदिर के बाहर से लाउडस्पीकर से घोषणा होती है. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> हम स्वर्ण मंदिर परिसर में छुपे हथियार बंद अतिवादियों और आम जनता से अपील करते हैं कि वो बाहर आ जाएं, सरेंडर करे दें. ऐसा नहीं किया तो हमें सेना को अंदर भेजने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> ये अपील बार बार की गयी. सात बजे तक सिर्फ 129 लोग ही बाहर आएं. उन्होंने बताया कि भिंडरावाले के लोग बाहर जाने से रोक रहे हैं. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> 5 जून शाम सात बजे... </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> सेना की कार्रवाई शुरू हुई. रात भर दोनों तरफ से गोलीबारी होती रही. 6  जून सुबह पांच बजकर बीस मिनट पर तय किया गया कि अकाल तख्त में छुपे आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए टैंक लगाने होंगे. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> जिस समय अमृतसर में अकाल तख्त से भिंडरावाले और उनके साथियों को निकालने की कार्रवाई हो रही थी उसी दिन दिल्ली में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच एक बेहद तल्ख बातचीत हुई थी. दरअसल ज्ञानी जैल सिंह को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरु होने के बाद ही इसकी जानकारी मिली थी और वो बेहद खफा थे. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> उधर स्वर्ण मंदिर मे 6 जून को सुबह से शाम तक लड़ाई चलती रही. आखिर देर रात भिंडरावाले की लाश सेना को मिली और सात जून की सुबह ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म हो गया. अगले तीन दिनों तक मोपिंग अप का काम चला. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> इसी दौरान 8 जून को राष्ट्रपति जैल सिंह ने यहां का दौरा किया. जब वो मंदिर की अंदर ही थे तभी उन्हें निशाना बना कर आतंकवादियों ने गोली भी चलाई थी जो उनकी सुरक्षा में लगे एक अधिकारी के कंधे पर लगी थी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <b>ऑपरेशन ब्लू स्टार में मौतें</b> </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> ले. जनरल बरार के अनुसार ब्लू स्टार में कुल 83 सैनिक मारे गये जिसमें चार अफसर शामिल हैं. इसके आलावा 248 घायल हुए. मरने वाले आतंकवादियों और अन्य की संख्या 492 रही. परिसर से भारी पैमाने पर हथियार बरामद हुए. इसमें एंटी टैंक राकेट लांचर भी थे. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> हैरानी की बात थी कि इतना बड़ा फैसला इंदिरा गांधी ने किया लेकिन देश के राष्ट्रपति और सेना का सुप्रीम कमांडर होने के बावजूद इंदिरा गांधी ने ज्ञानी जैल सिंह को ऑपरेशन ब्लू स्टार की भनक तक नहीं लगने दी. जैल सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने इंदिरा गांधी को हमेशा यही सलाह दी थी कि कोई भड़काऊ कदम नहीं उठाया जाना चाहिए. जैल सिंह कहते हैं कि साफ है कि इंदिरा गांधी उनपर भरोसा नहीं करती थी,  इंदिरा गांधी  की नजर में जैल सिंह की वफादारी संदिग्ध थी. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> ऑपरेशन ब्लू स्टार के खत्म होने के बाद एक बड़ा फैसला केन्द्र सरकार के अफसरों ने लिया. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सुऱक्षा में लगे तमाम सिख गार्ड हटाने का प्रस्ताव तैयार किया गया जिसे प्रधानमंत्री के पास भेजा गया. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> पुपुल जयकर के अनुसार इंदिरा गांधी ने सिख गार्ड हटाने से मना किया तो  बीच का रास्ता निकाला गया. उनकी सुरक्षा में तैनात हर सिख गार्ड के साथ एक गैर सिख गार्ड को लगाने का फैसला हुआ. लेकिन इस फैसले पर पता नहीं क्यों कभी अमल नहीं किया गया. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> ऑपरेशन ब्लू स्टार के लगभग एक महीने बाद श्रीनगर से दिल्ली जा रही इंडियन एयरलाइंस की एक फ्लाइट को चार सिखों ने अपहरण कर लिया. जहाज को जबरन लाहौर ले गये और पाकिस्तान की सरकार से शरण मांगी. उधर इंदिरा गांधी जम्मू कश्मीर की फारुख अब्दुल्ला सरकार को निपटाने में लगी थी वहीं भिंडरावाले के समर्थक खुद को री ग्रुप कर रहे थे. फिर से संगठित हो रहे थे. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> अगले ही दिन इंदिरा गांधी राहुल और प्रियंका को लेकर श्रीनगर चली गयीं. वहां से लौटी तो उडीशा के चुनावी दौरे पर उन्हें जाना पड़ा. वहीं तीस अक्टूबर को इंदिरा गांधी ने अपना ऐतिहासिक भाषण दिया. जब मैं मरूं तो मेरे खून की एक एक बूंद इस देश... </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> सवाल उठता है कि क्या इंदिरा जी को अपनी मौत का आभास हो गया था. वो हर बार अपनी मौत की बात क्यों करती थी...तीन महीने बाद ही देश में लोकसभा चुनाव होने थे और आयरन लेडी मौत की बातें कर रहीं थीं. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> 31 अक्टूबर 1984, दिल्ली. देश की बेहद लोकप्रिय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गयी. हत्या करने वाले उन्हीं के सुरक्षा गार्ड थे. दोनों सिख थे. सुबह इंदिरा गांधी की हत्या हुई और उसी दिन देर शाम उनके बेटे राजीव गांधी ने देश के नए प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ली. </p> <p xmlns="http://www.w3.org/1999/xhtml"> <br /> </p>

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