Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

प्रेस की आजादी के सबसे बडे हिमायती थे गांधी जी

$
0
0


« 

 

 

प्रस्तुति-- ममता शरण स्वामीशरण




जो महत्व कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के लिए मार्क्स और एंगेल्स के ’कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ का है ,बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा लाहौर के जाति तोड़क सम्मेलन(जिसमें आयोजकों ने उन्हें बुलाने के बाद फिर निमन्त्रण वापस ले लिया था) के लिए लिखे गये ’भारत में जाति-प्रथा का उच्छेद’ नामक पुस्तिका का जो महत्व हर समतावादी कार्यकर्ता के लिए है, वैसा ही महत्व ’आधुनिक सभ्यता की सख़्त टीका’ करने वाली गांधीजी द्वारा लिखी गई पुस्तिका ’हिन्द स्वराज’ का है ।
’किलडोनन कैसल’ नामक जहाज पर १९०९ में इस किताब को गांधीजी ने ’पाठक’ और ’सम्पादक’ के बीच हुए सवाल-जवाब के रूप में लिखा । २००९ शताब्दी वर्ष है ।
गांधीजी की पत्रकारिता इसके पहले शुरु हो चुकी थी । दक्षिण अफ़्रीका के उनके सत्याग्रह के बहुभाषी मुखपत्र ’इंडियन ओपीनियन’ के बारे में उन्होंने अपनी मौलिक पुस्तक ’दक्षिण अफ़्रीका में सत्याग्रह का इतिहास’ में एक अध्याय लिखा है । ’सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा’में भी उन्होंने अपने अखबार ’नवजीवन’ तथा ’यंग इंडिया’ पर एक अध्याय लिखा है ।
’हिन्द स्वराज’में पाठक द्वारा पूछे गए पहले सवाल के जवाब में ही वे बतौर ’सम्पादक’अखबार का काम बताते हैं :
अखबारका एक काम तो है लोगों की भावनायें जानना और उन्हें जाहिर करना ; दूसरा काम है लोगोंमें अमुक जरूरी भावनायें पैदा करना ; और तीसरा काम है लोगोमें दोष हों तो चाहे जितनी मुसीबतें आने पर भी बेधड़क होकर उन्हें दिखाना ।’
जहां तक वाणी स्वातंत्र्य की बात है गांधी उसमें किसी तरह के हस्तक्षेप के खिलाफ़ थे । इस आज़ादी को वे अकाट्य मानते थे। अखबारों को गलत छापने के भी वे हक़ में थी । जब अखबारों के खिलाफ़ अंग्रेजों का दमन चल रहा था तब उन्होंने कहा कि -
’हमें प्रेस की मशीनों और सीसे के अक्षरों की स्थापित प्रतिमा को तोड़ना होगा । कलम हमारी फौन्ड्री होगी नकल बनाने वाले कातिबों के हाथ प्रिंटिंग मशीन! हिन्दू धर्म में मूर्ति-पूजा की इजाजत तब होती है जब वह किसी आदर्श हेतु सहायक हो । जब मूर्ति ही आदर्श बन जाती है तब वह पापपूर्ण वस्तु-रति का रूप धारण कर लेती है । अपने विचारों की बेरोक अभिव्यक्ति के लिए हम मशीन और टाइप का जब तक उपयोग कर सकते हों करें । बाप बनी सत्ता जब टाइप-अक्षरों के हर संयोजन तथा मशीन की हर हरकत पर निगरानी रखने लगे तब हमे असहाय नहीं हो जाना चाहिए ।…. यह मैं जरूर कबूलूंगा कि हाथ से निकाले गये अखबार वीरोचित समय में अपनाया गया वीरोचित उपाय है ।….इस अधिकार की बहाली के लिए हमे सिविल नाफ़रमानी भी अपनानी होगी क्योंकि संगठन और अभिव्यक्ति के अधिकार का मतलब – लगभग पूर्ण स्वराज के है।’
( यंग इंडिया , १२-१-’२२,पृष्ट २९ )

Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>