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जलवायु बचाने के नाम पर पूरा विश्व इकठ्ठा



दुनिया

जलवायु बचाने के लिए जमा हुए देश

दक्षिण अमेरिकी राष्ट्र पेरू में 190 देशों के प्रतिनिधि जलवायु परिवर्तन पर 12 दिवसीय वार्ता के लिए जमा हुए हैं. लक्ष्य है कि तापमान बढ़ाने वाली गैसों के वैश्विक उत्सर्जन पर लगाम लगाने वाले समझौते को मूर्त रूप दिया जा सके.
पेरू की राजधानी लीमा में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में जमा हुए वार्ताकार जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिए किसी सार्थक नतीजे पर पहुंचने की उम्मीद कर रहे हैं. दो दशक से अधिक समय से बाध्यकारी वैश्विक संधि की कोशिशें नाकाम रही हैं.
अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा
हाल में अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने की घोषणा की थी. दो सप्ताह तक चलने वाले सम्मेलन में दुनिया भर के प्रतिनिधि कोशिश है कि धरती का तापमान बढ़ाने वाली गैसों के वैश्विक उत्सर्जन को नियंत्रण में करने वाले समझौते पर सहमति बन सके. समझौते पर अगले साल पेरिस में हस्ताक्षर की उम्मीदें की जा रही हैं. हालांकि इसे 2020 से लागू किया जाएगा.
सम्मेलन शुरू होने के मौके पर पेरू के पर्यावरण मंत्री मानुएल पुल्गर विडाल ने कहा, "हम चाहते हैं कि आप हमारे देश की मेहमान नवाजी का आनंद उठाएं लेकिन साथ ही हम चाहेंगे कि हम एक दूसरे के बीच विश्वास पैदा कर सकें ताकि विश्व के प्रति हमारी जो जिम्मेदारियां हैं उन्हें बखूबी निभा सकें."
तेल के दाम का असर
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन विभाग की प्रमुख क्रिस्टियाना फिगेरेस ने इस बात से इनकार किया कि तेल के दामों में होने वाली कमी से अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल में कमी की उम्मीदों पर असर पड़ेगा. उन्होंने कहा, "तेल के दामों में अस्थिरता एक और बड़ा कारण है जिसकी वजह से हमें अक्षय ऊर्जा के स्रोतों की तरफ कदम बढ़ाने चाहिए, जिनकी कोई कीमत नहीं होती."उन्होंने जर्मन ऊर्जा कंपनी ईऑन के अक्षय ऊर्जा पर आधारित पावर प्लांट बनाने की पहल की सराहना की.
हालांकि जानकारों का मानना है कि रूस और सऊदी अरब जैसे तेल और प्राकृतिक गैस के निर्यातक देश अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा देने में हिचकिचाएंगे. इससे उन्हें तेल और गैस से होने वाली कमाई में नुकसान उठाना पड़ सकता है.
पर्यावरण संरक्षण संगठनों की मांगें
जहां 195 देश पर्यावरण संधि के मसौदे पर सौदेबाजी में लगे हैं तो यूरोपीय संघ की प्रतिनिधिमंडल की नेता एलिना बारड्राम ने चेतावनी दी है कि समझौते के लिए सिर्फ 12 महीने बचे हैं और घड़ी की सूई उल्टी चल रही है. अमेरिका और चीन के वादों से पैदा उम्मीदों के बीच हो रहे सम्मेलन से पहले विकास सहायता संगठन ऑक्सफैम ने औद्योगिक देशों से अगुआ भूमिका निभाने की अपील की है. ऑक्सफैम के यान कोवाल्त्सिग ने धनी देशों से 2010 तक विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर की मदद के वादे को पूरा करने की मांग की है.
प्रयावरण संगठन ग्रीन पीस ने 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इंका खंडहर माचू पीचू पर सौर ऊर्जा की अपनी मांग का बैनर लगाया है. संगठन के पर्यावरण नीति प्रमुख मार्टिन काइजर ने कहा, "हम सम्मेलन के भागीदारों से मांग करते हैं कि वे ऊर्जा के सबसे बड़े और स्वच्छ स्रोत सूरज का इस्तेमाल करें."
इधर जर्मन पर्यावरण संगठन जर्मनवॉच ने सम्मेलन के मौके पर जलवायु परिवर्तन के जोखिम पर इंडेक्स जारी किया है. संगठन का कहना है कि बाढ़, तूफान और सूखे का सबसे ज्यादा असर विकासशील देशों पर पड़ता है. 1994 से 2013 के बीच इससे सबसे अधिक प्रभावित बोंडुरास, म्यांमार और हैती जैसे देश रहे हैं. इस अवधि में विश्व भर में हुआ 15,000 से ज्यादा प्राकृतिक आपदाओं में सवा 5 लाख से ज्यादा लोग मारे गए हैं और 2,200 अरब डॉलर का माली नुकसान हुआ है.
संयुक्त राष्ट्र जलवायु विभाग के वैज्ञानिक चेतावनी देते आए हैं कि पृथ्वी के बढ़ते तापमान का भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. इससे मुंगा चट्टानों को भारी नुकसान हो रहा है. साथ ही ग्रीनलैंड की बर्फ पिघलने के कारण समुद्र स्तर भी तेजी से ऊपर उठ रहा है.
एसएफ/एमजे (रॉयटर्स, डीपीए)

DW.DE

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