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हिंदी को मार्केट की भाषा बनाना होगा: हरिवंश

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हरिवंश, ग्रुप एडिटर, प्रभात खबर 
दरअसल देखा जाए तो यह बात तो बिल्कुल सही है कि हिंदी कवियों और विचारकों की भाषा बन गई है। ये बात पूरी तरह से सही दिखाई दे रही है। दुनिया बदली है। आज का जमाना बहुत ज्यादा एडवांस है। आज का जमाना टेक्नोलॉजी का जमाना है। लेकिन हिंदी को इस लायक विकसित नहीं किया गया कि वो आज के जमाने की भाषा बन सके। हिंदी को कारोबार की भाषा बनाना होगा। लेकिन हिंदी भाषा को लेकर ऐसे कोई भी प्रयास नहीं किए गए हैं। देखिए 1598 में जब भारत में गुजरात के नजदीक डच व्यापार करने आए तो उन्होंने डच और हिंदी की डिक्शनरी निकाली। उस वक्त ये कारोबार की भाषा थी। ये आजादी के समय में सामाजिक परिवर्तन की भाषा थी इसलिए यह उस समय मजबूत थी, लेकिन अभी यह कारोबार या सामाजिक परिवर्तन की भाषा नहीं रही है। आजादी के बाद इसे दोनों भूमिकाओं से अलग कर दिया गया है। अगर गैर हिंदी क्षेत्रों को देखा जाए तो ये राज्य कितने आगे निकल गए हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि उनकी अपनी क्षेत्रिय भाषा कमजोर पड़ गई हो। उनकी अपनी क्षेत्रिय भाषा भी उतनी ही मजबूत होती जा रही है, बंगाल को देखो बांग्ला भाषा कितनी मजबूत हो गई है और वो कितनी आगे निकल गई है। तमिल को देखें तो विश्व स्तर पर तमिल भाषा में उनके अधिवेशन होते हैं। और उन अधिवेशनों में दुनिया भर के लोग आते हैं। ऐसा वहां पर क्यों है? क्योंकि उन्होंने अपनी भाषा को मजबूत किया है। लेकिन हिंदी में उसका उल्टा है हिंदी के कवि चाहतें है कि उन्हें पुरस्कार मिले, हिंदी के विचारक सोंचते हैं कि उन्हें भी कोई इनाम मिलें लेकिन बाकी भाषाओं के लोग ऐसा नहीं सोचते।  
हकीकत मे देखा जाए तो हिंदी को कारोबार की भाषा बनाने की कोशिश ही नहीं की गई। जैसा आपने कहा कि कई हिंदी अखबार हिंग्लीश का प्रयोग कर रहे हैं तो वे अखबार आम बोलचाल की भाषा के शब्द इस्तेमाल कर रहे हैं तो ठीक है लेकिन जबरदस्ती से किसी अंग्रेजी के शब्दों को हिंदी में घुसा देना हिंदी की छवि के उल्टा होगा। आज के समय मे अंग्रेजी संस्कृति में रहने वाले, अंग्रेजी का प्रचार करने वाले हिंदी दिवस मना रहे हैं। ये हिंदी दिवस इसलिए नहीं मना रहे कि वो हिंदी से प्यार करते हैं या हिंदी का प्रचार करना चाहते हैं बल्कि वो हिंदी से पैसा कमाना चाहते हैं। ऐसा करने से हिंदी के अस्तित्व पर असर तो पड़ेगा लेकिन हिंदी को ज्यादा बड़ा खतरा नहीं है, हिंदी आने वाले दिनों में मजबूत होगी। क्योंकि उदारीकरण की भी एक सीमा है। दुनिया के तीन चौथाई लोग अंग्रेजी के बाहर रहते हैं उनकी भाषा अंग्रेजी नहीं हो सकती। इसलिए आशा है कि आने वाले सालों में हिंदी और भी ज्यादा मजबूत होगी।
प्रस्तुति--उपेन्द्रकश्यप, किशोर प्रियदर्शी 

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