
Abhishek Srivastava :
कुछ लोग जीते-जी पीछा नहीं छोड़ते, लेकिन ऐसे लोग कम हैं जो जाने के बाद भी जबरन अपनी याद दिलाते रहते हैं। मुझे वाकई नहीं याद था कि चार साल पहले 20 मार्च को ही आलोकजी की मौत हुई थी। किसी ने दिन भर याद भी नहीं दिलाया, लेकिन रात ढलते-ढलते आलोकजी ने सोचा, ''सालों, इतनी जल्दी भूल गए... अभी बताता हूं।''
...और रात 12 बजे के बाद जब हम लोग तरन्नुम में गिरदा से लेकर विनोद मेहता तक पर बात कर रहे थे, तो बीच में अचानक आलोकजी का प्रसंग आ गया। पहले Rajesh Joshi ने उस स्कूटर को याद किया जो आलोकजी से उत्तराधिकार में उन्हें मिला था। फिर Shree Prakash जी ने बताया कि कैसे आइटीओ पर आलोकजी ने बहुत तेजी से स्कूटर मोड़ा था और वे पीछे बैठे हुए थे। बात बढ़ी तो मैं अपनी शादी का प्रसंग साझा करने लगा कि कैसे आलोकजी के चलते आज मैं और शीला साथ-साथ हैं जो उस वक्त तकरीबन नामुमकिन सा दिखता था।
और... अचानक राजेशजी को याद आया कि यार, आज तो आलोक की बरसी है। शिट्.... हम सब अचानक शांत हो गए। राजेशजी ने अपना मोबाइल देखा। सुप्रियाजी सो गई होंगी, काफी रात हो चुकी है। बात भी नहीं हो सकती... जीतूजी का ड्राइंग रूम सहसा एक गहन अफ़सोस और अवसाद से भर उठा। आलोकजी जो रहे हों, जैसे रहे हों, मेरे इकलौते गुरु थे। गुरु हमेशा चेले पर भारी होता है। मैं भूल गया तो क्या हुआ, उन्होंने रात बीतते-बीतते गरदन पकड ही ली थी। अब तक कुछ अटका-अटका सा लग रहा है। बतरा अस्पताल में कहे उनके आखिरी शब्द याद आ रहे हैं, ''सालों, तुम लोगों के कारण ही मेरी ये हालत हुई है।''काश, मैंने और Awatansh ने वह स्टोरी न की होती!
युवा पत्रकार और एक्टिविस्ट अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.