क्या है न्यू मीडिया विंग का सरकारी मकसद
आखिर सरकार द्वारा सोशल मीडिया में हस्तक्षेप करते हुए सरकारी दखल या यूँ कहें कि सरकारी निगरानी के लिए �न्यू मीडिया विंग� को मंजूरी दे दी गई । वैसे ये कोई नई बात नहीं है कि सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर नियंत्रण के लिए कोशिश की जा रही हो। सोशल मीडिया तो जनाभिव्यक्ति का सर्वाधिक सशक्त माध्यम बनने के बाद से ही सरकार के लिए सिरदर्द रही है और सरकार द्वारा इसपर नियंत्रण के लिए तमाम तरह के प्रयास किए जाते रहे हैं । जिनमे गूगल इंडिया सहित फेसबुक आदि सोशल साइट्स से उनके कंटेंट के विषय में जवाब तलब करने से लेकर सोशल साइट्स पर लिखने वाले कई लोगों की गिरफ्तारी तक शामिल हैं ।
यहाँ उल्लेखनीय होगा कि सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा पहले से ही मौजूद शोध, संदर्भ और प्रशिक्षण संभाग (आरआरटीडी) का पुनर्गठन करके उसे सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए न्यू मीडिया विंग में तब्दील कर दिया गया है। सरकार के इस नए तंत्र में सूचना प्रसारण मंत्रालय के युवा और सोशल मीडिया के जानकार अधिकारियों की टीम होगी। जिसके पास निगरानी सम्बन्धी सभी तरह के आधुनिक-अत्याधुनिक उपकरण मौजूद होंगे। इसमे कुल शुरूआती खर्च लगभग २३ करोड़ होने का अनुमान है जोकि सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा ही वहन किया जाएगा।
यहाँ मूल बात यह समझनी होगी कि आगामी वर्ष में लोकसभा चुनाव हैं, जिसके मद्देनजर सरकार कभी नही चाहेगी कि सोशल मीडिया के माध्यम से हो रही उसकी किरकिरी के कारण उसे चुनाव में कोई हानि उठानी पड़े। इसलिए उसके द्वारा �न्यू मीडिया विंग� को आनन-फानन में सक्रिय किया जाना काफी हद तक समझ में आता है।
अतः कहना गलत नही होगा कि सोशल मीडिया पर अपने खिलाफ हो रही जनाभिव्यक्ति को रोकने के लिए अब सरकार की तरफ से यह पहल की गयी है। सोशल मीडिया पर निगरानी के संदर्भ में सरकार की तरफ से यह तर्क दिया जाता रहा है कि सोशल मीडिया द्वारा गलत सूचनाओं के आदान-प्रदान से अफवाहों के फैलने का खतरा रहता है। सरकार के इस तर्क को बेशक पूरी तरह से नकारा नही जा सकता लेकिन सरकार द्वारा दी गयी इस विंग की मंजूरी को केवल इतने तक सीमित कर समझना हमारी भारी भूल होगी। न्यू मीडिया विंग की मंजूरी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पूरी तरह सोची-समझी योजना के तहत दी गयी है।
अगर आपको याद हो तो जयपुर में एक सम्मेलन में बोलते हुए राहुल गाँधी ने अपने कार्यकर्ताओं से सोशल मीडिया पर सक्रिय होने एवं सरकार की उपलब्धियों को प्रचारित करने की बात कही थी। अत इस पूरी योजना के पीछे राहुल गाँधी का दिमाग होगा, इसको लेकर बहुत संदेह नहीं जताया जा सकता है। क्योंकि हम हमेशा से देखते रहे हैं कि सोशल मीडिया से सरकार को कितनी परेशानी रही है, अतः �न्यू मीडिया विंग� नामक इकाई के द्वारा सरकार उद्देश्य होगा कि सोशल मीडिया पर आधिकारिक रूप से अपनी निगरानी व्यवस्था स्थापित की जाए।
साथ ही ये भी कि सोशल मीडिया का उपयोग अपने चुनावी हितों के लिए किया जा सके। कारण कि बीजेपी के, खासकर मोदी के द्वारा चुनावी प्रचार के मद्देनजर जिस तरह सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जा रहा है, वो वर्तमान सत्ताधारी कांग्रेस के लिए चिंता का विषय बन चुका है। इस नाते भी न्यू मीडिया विंग के माध्यम से सरकार द्वारा सोशल मीडिया के जरिये अपनी बातों को आम जन तक पहुँचाकर बीजेपी को इस मामले में भी टक्कर देना प्रमुख उद्देश्य के रूप में स्पष्ट है। इसी संदर्भ में अगर हम मोटे तौर पर ये कहें तो शायद गलत नही होगा कि सरकार का उद्देश्य न्यू मीडिया विंग को मंजूरी देकर आधिकारिक रूप से कांग्रेस का प्रचार करना है।
स्पष्ट है कि अब कांग्रेस की नीतियां, उपलब्धियां, आदि सोशल मीडिया के माध्यम से जनता के सामने आधिकारिक रूप से रखी जाएंगी। पूरा प्रयास होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले सोशल मीडिया के द्वारा सरकार से जुड़ी अच्छी बातें जनता तक पहुंचाकर जनता के बीच सरकार की अविश्वसनीय छवि को कुछ ठीक किया जाए। कुल मिलाकर अंत ये देखना दिलचस्प होगा कि- �न्यू मीडिया विंग� के द्वारा सरकार जनता के बीच अपनी छवि सुधारने में कहाँ तक सफल होती है और साथ ही सोशल मीडिया पर लोकप्रियता के मामले में कांग्रेस से काफी आगे बीजेपी को कहाँ तक टक्कर दे पाती है।
बहरहाल, सब बातो के बाद आखिर वर्तमान सच्चाई यही है कि सोशल मीडिया की ताकत से भली-भांति अवगत हो चुकी सरकार आगामी लोकसभा चुनाव से पहले खुद को सक्रिय करना चाहती है। सरकार का मंसूबा यह है कि लोकसभा चुनाव तक सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार की छवि को बेहतर कर सरकार के खिलाफ चलने वाली मुहिमो पर निगरानी की जा सके।
अब इस सरकार को कौन समझाए कि वो अपने काम-काज में सुधार लाकर जनता के मन में अपने खिलाफ उबाल मार रहे गुस्से को कम करे, नकि जनाभिव्यक्ति के इस मंच पर ताक-झांक करके अपनी खराब हो चुकी छवि को और खराब करे। अगर सरकार समय से पहले अपनी ये गलतफहमी दूर नही करती है, तो न्यू मीडिया विंग से उसे आगामी लोकसभा चुनाव के प्रति बहुत अधिक आशावादी होने की जरूरत नही है। - श्रमिक समस्यायें
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- संगठन, ट्रेड यूनियन आन्दोलन
- सूचना का अधिकार ?
- हेल्थ स्मार्ट कार्ड जारी करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य
- शोहरत एवं सफलता वही जो जिन्दगी भर साथ रहे,
- सूचना के अधिकार से खूली देहरादून के उप श्रमायुक्त की पोल
- राष्ट्रीय स्वास्थय बीमा योजना में अब घरेलू श्रमिक
- लाल तप्पड औधोगिक क्षैत्र ऋषिकेश देहरादून मे कार्यरत श्रमिको को आज तक भी राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम 1948 की सुविधा नही
- बाल श्रमिको को शिक्षित करने में लाखों खर्च किए लेकिन......
- उत्तराखण्ड के निमार्ण कार्यों में कार्यरत श्रमिकों हेतु कल्याणकारी योजना। हम आपको बताते हैं कि सन्निमार्ण योजना क्या है
- अभिमान से दूर रहिए, स्वाभिमान को अपनाइये
- उत्तराखण्ड़ में उपनल योजना का गलत इस्तेमाल,
- मुआवजे के बदले अपमान क्यों? जबकि है अपमानकारी मुआवजे का स्थायी समाधान
- वर्तमान पत्रकारिता को बाजारवाद से बचाना होगा






