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निदा फ़ाज़ली | |
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Image may be NSFW. Clik here to view. ![]() निदा फ़ाज़ली (चंडीगढ़, 28-Jan-2014) | |
जन्म | मुक़्तदा हसन निदा फ़ाज़ली अक्टूबर 12, 1938 ग्वालियर |
मृत्यु | ०८ फ़रवरी २०१६ मुम्बई |
भाषा | हिंदी, उर्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
अनुक्रम
जीवनी
दिल्लीमें पिता मुर्तुज़ा हसन और माँ जमील फ़ातिमा के घर तीसरी संतान नें जन्म लिया जिसका नाम बड़े भाई के नाम के क़ाफ़िये से मिला कर मुक़्तदा हसनरखा गया। दिल्ली कॉर्पोरेशन के रिकॉर्ड में इनके जन्म की तारीख १२ अक्टूबर १९३८ लिखवा दी गई। पिता स्वयं भी शायर थे। इन्होने अपना बाल्यकाल ग्वालियरमें गुजारा जहाँ पर उनकी शिक्षा हुई। उन्होंने १९५८ में ग्वालियर कॉलेज (विक्टोरिया कॉलेज या लक्ष्मीबाई कॉलेज) से स्नातकोत्तर पढ़ाई पूरी करी।वो छोटी उम्र से ही लिखने लगे थे। निदा फ़ाज़ली इनका लेखन का नाम है। निदा का अर्थ है स्वर/ आवाज़/ Voice। फ़ाज़िला क़श्मीर के एक इलाके का नाम है जहाँ से निदा के पुरखे आकर दिल्ली में बस गए थे, इसलिए उन्होंने अपने उपनाम में फ़ाज़ली जोड़ा।
जब वह पढ़ते थे तो उनके सामने की पंक्ति में एक लड़की बैठा करती थी जिससे वो एक अनजाना, अनबोला सा रिश्ता अनुभव करने लगे थे। लेकिन एक दिन कॉलेज के बोर्ड पर एक नोटिस दिखा "Miss Tondon met with an accident and has expired" (कुमारी टंडन का एक्सीडेण्ट हुआ और उनका देहान्त हो गया है)। निदा बहुत दु:खी हुए और उन्होंने पाया कि उनका अभी तक का लिखा कुछ भी उनके इस दुख को व्यक्त नहीं कर पा रहा है, ना ही उनको लिखने का जो तरीका आता था उसमें वो कुछ ऐसा लिख पा रहे थे जिससे उनके अंदर का दुख की गिरहें खुलें। एक दिन सुबह वह एक मंदिर के पास से गुजरे जहाँ पर उन्होंने किसी को सूरदासका भजन मधुबन तुम क्यौं रहत हरे? बिरह बियोग स्याम सुंदर के ठाढ़े क्यौं न जरे?गाते सुना, जिसमें कृष्ण के मथुरा से द्वारका चले जाने पर उनके वियोग में डूबी राधा और गोपियाँ फुलवारी से पूछ रही होती हैं ऐ फुलवारी, तुम हरी क्यों बनी हुई हो? कृष्ण के वियोग में तुम खड़े-खड़े क्यों नहीं जल गईं?वह सुन कर निदा को लगा कि उनके अंदर दबे हुए दुख की गिरहें खुल रही है। फिर उन्होंने कबीरदास, तुलसीदास, बाबा फ़रीदइत्यादि कई अन्य कवियों को भी पढ़ा और उन्होंने पाया कि इन कवियों की सीधी-सादी, बिना लाग लपेट की, दो-टूक भाषा में लिखी रचनाएँ अधिक प्रभावकारी है जैसे सूरदासकी ही उधो, मन न भए दस बीस। एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अराधै ते ईस॥, न कि मिर्ज़ा ग़ालिबकी एब्सट्रैक्ट भाषा में "दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है?"। तब से वैसी ही सरल भाषा सदैव के लिए उनकी अपनी शैली बन गई।
हिन्दू-मुस्लिम क़ौमी दंगों से तंग आ कर उनके माता-पिता पाकिस्तान जा के बस गए, लेकिन निदा यहीं भारत में रहे। कमाई की तलाश में कई शहरों में भटके। उस समय बम्बई (मुंबई) हिन्दी/ उर्दू साहित्य का केन्द्र था और वहाँ से धर्मयुग/ सारिका जैसी लोकप्रिय और सम्मानित पत्रिकाएँ छपती थीं तो १९६४ में निदा काम की तलाश में वहाँ चले गए और धर्मयुग, ब्लिट्ज़ (Blitz) जैसी पत्रिकाओं, समाचार पत्रों के लिए लिखने लगे। उनकी सरल और प्रभावकारी लेखनशैली ने शीघ्र ही उन्हें सम्मान और लोकप्रियता दिलाई। उर्दू कविता का उनका पहला संग्रह १९६९ में छपा।
करियर
चंडीगढ़ में जश्न-ए-हरियाणा में अपना कलाम पेश करते हुए निदा फाजली, 28 जनवरी 2014
उनकी पुस्तक मुलाक़ातेंमें उन्होंने उस समय के कई स्थापित लेखकों के बारे मे लिखा और भारतीय लेखन के दरबारी-करणको उजागर किया जिसमें लोग धनवान और राजनीतिक अधिकारयुक्त लोगों से अपने संपर्कों के आधार पर पुरस्कार और सम्मान पाते हैं। इसका बहुत विरोध हुआ और ऐसे कई स्थापित लेखकों ने निदा का बहिष्कार कर दिया और ऐसे सम्मेलनों में सम्मिलित होने से मना कर दिया जिसमें निदा को बुलाया जा रहा हो।
जब वह पाकिस्तान गए तो एक मुशायरे के बाद कट्टरपंथी मुल्लाओं ने उनका घेराव कर लिया और उनके लिखे शेर -
घर से मस्जिद है बड़ी दूर, चलो ये कर लें।
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए॥
पर अपना विरोध प्रकट करते हुए उनसे पूछा कि क्या निदा किसी बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं? निदा ने उत्तर दिया कि मैं केवल इतना जानता हूँ कि मस्जिद इंसान के हाथ बनाते हैं जबकि बच्चे को अल्लाह अपने हाथों से बनाता है।उनकी एक ही बेटी है जिसका नाम तहरीरहै।
रचनाएँ
चंडीगढ़ में जश्न-ए-हरियाणा में अपना कलाम पेश करते हुए निदा फाजली, 28 जनवरी 2014
कुछ लोकप्रिय गीत
- तेरा हिज्र मेरा नसीब है, तेरा गम मेरी हयात है (फ़िल्म रज़िया सुल्ताना)। यह उनका लिखा पहला फ़िल्मी गाना था।
- आई ज़ंजीर की झन्कार, ख़ुदा ख़ैर कर (फ़िल्म रज़िया सुल्ताना)
- होश वालों को खबर क्या, बेखुदी क्या चीज है (फ़िल्म सरफ़रोश)
- कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता (फ़िल्म आहिस्ता-आहिस्ता) (पुस्तक मौसम आते जाते हैंसे)
- तू इस तरह से मेरी ज़िंदग़ी में शामिल है (फ़िल्म आहिस्ता-आहिस्ता)
- चुप तुम रहो, चुप हम रहें (फ़िल्म इस रात की सुबह नहीं)
- दुनिया जिसे कहते हैं, मिट्टी का खिलौना है (ग़ज़ल)
- हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी (ग़ज़ल)
- अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये (ग़ज़ल)
- टीवी सीरियल सैलाबका शीर्षक गीत
काव्य संग्रह
- लफ़्ज़ों के फूल (पहला प्रकाशित संकलन)
- मोर नाच
- आँख और ख़्वाब के दरमियाँ
- खोया हुआ सा कुछ (१९९६) (१९९८ में साहित्य अकादमी से पुरस्कृत)
- आँखों भर आकाश
- सफ़र में धूप तो होगी
आत्मकथा
- दीवारों के बीच
- दीवारों के बाहर
- निदा फ़ाज़ली (संपादक: कन्हैया लाल नंदन)
संस्मरण
- मुलाक़ातें
- सफ़र में धूप तो होगी
- तमाशा मेरे आगे
संपादित
- बशीर बद्र : नयी ग़ज़ल का एक नाम (संपादित)
- जाँनिसार अख़्तर : एक जवान मौत (संपादित)
- दाग़ देहलवी : ग़ज़ल का एक स्कूल (संपादित)
- मुहम्मद अलवी : शब्दों का चित्रकार (संपादित)
- जिगर मुरादाबादी : मुहब्बतों का शायर (संपादित)
पुरस्कार और सम्मान
- १९९८ साहित्य अकादमीपुरस्कार - काव्य संग्रह खोया हुआ सा कुछ (१९९६) पर - Writing on communal harmony
- National Harmony Award for writing on communal harmony
- २००३ स्टार स्क्रीन पुरस्कार - श्रेष्टतम गीतकार - फ़िल्म 'सुरके लिए
- २००३ बॉलीवुड मूवी पुरस्कार - श्रेष्टतम गीतकार - फ़िल्म सुर के गीतआ भी जा'के लिए
- मध्यप्रदेश सरकार का मीर तकी मीर पुरस्कार (आत्मकथा रुपी उपन्यास दीवारों के बीचके लिए)
- मध्यप्रदेश सरकार का खुसरो पुरस्कार - उर्दू और हिन्दी साहित्य के लिए
- महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का श्रेष्ठतम कविता पुरस्कार - उर्दू साहित्य के लिए
- बिहार उर्दू अकादमी पुरस्कार
- उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का पुरस्कार
- हिन्दी उर्दू संगम पुरस्कार (लखनऊ) - उर्दू और हिन्दी साहित्य के लिए
- मारवाड़ कला संगम (जोधपुर)
- पंजाब एसोशिएशन (मद्रास - चेन्नई)
- कला संगम (लुधियाना)
- पद्मश्री 2013
संबंधित कड़ियाँ
- निदा फ़ाज़ली (अंग्रेज़ी विकिपीडिया पर)
- निदा फ़ाज़ली (विकिस्रोत पर)