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इंटरनेट से कमाई

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अगर ऐसे में नौकरी के साथ-साथ बचे हुए समय में इंटरनेट का इस्तेमाल करके आप भी पैसे कमा सकते हैं। जानिए इंटरनेट के इस्तेमाल से पैसे कमाने के कुछ तरीके…money

1. सेल्फ पब्लिश बुक- अगर आपको लेखन से प्यार है, तो कई साइट पैसे देकर ऑनलाइन बुक लिखवाने से लेकर उसकी रॉयल्टी से कमाई करने का मौका देती हैं। इन्हीं साइटों में से एक है अमेजन। अमेजन किंडल डायरेक्ट पब्लिशिंग के नाम से यह फीचर चलाती है। इसमें कोई भी ऑनलाइन बुक लिखकर उसे किंडल बुकस्टोर पर डाल सकता है। इसकी बिक्री पर लेखक को 70 फीसदी तक रॉयल्टी मिलती है। साइट और सेल्फ पब्लिश बुक की अधिक जानकारी के लिए https://kdp.amazon.com/ पर क्लिक करें। इस पर आप अपना अकाउंट भी बनाकर रेगुलर मेम्बर बन सकते हैं।2. फोटो बेचकर करें कमाई- फोटो स्टॉक रखने वाली वेबसाइट भी आपके ऑनलाइन कमाई का जरिया बन सकती है। दुनिया भर में www.shutterstock.com, www.shutterpoint.com और www. istockphoto.com जैसी कई वेबसाइट फोटो खरीदकर उसका भुगतान करती हैं। इसमें साइट के मेंबर को अपनी फोटो को साइट पर सब्मिट करना होता है। फिर उसके बाद साइट की पॉलिसी के अनुसार आप 15 से 85 फीसदी तक रॉयल्टी पा सकते हैं।3. ऑनलाइन वर्क- www.odesk.com और www.elance.com. जैसी साइट ऑनलाइन कमाई के मामले में दुनिया भर में फेमस साइटों में शामिल हैं। इन दोनों साइटों में सबसे पहले आपको टेस्ट देकर खुद को साइट के लिए यूजफुल साबित करना होता है। एक बार रजिस्टर होने के बाद आप साइट अलग-अलग काम के लिए मेंबर्स को कॉन्ट्रेक्ट और फ्रीलांसर के रूप में हायर करती हैं। काम पूरा होने पर प्रति घंटा या अन्य तरीकों से पैसा देती हैं। दुनिया भर में कई वेबसाइट ऐसा करती हैं।
4. गूगल एडसेंस- गूगल एड सेंस के जरिए आप ब्लॉग पर विज्ञापन भी लगा सकते हैं, जिससे कुछ कमाई का जरिया बन सकता है। गूगल की सेवा adsense के द्वारा दिए जा रहे विज्ञापन को अपने ब्लॉग पर लगायें। यह आपको हर उस क्लिक के लिए भुगतान करेगा जो आपके ब्लॉग पर दिखाए गए विज्ञापन पर होगा। Google adsense आपको कई तरह के विज्ञापन देता है जैसे वीडियो, चित्र, टेक्स्ट, बैनर इत्यादि। आप इनमे से अपने लिए बेहतर विज्ञापन चुने और अपने ब्लॉग पर लगायें।
5. ई-ट्यूटर- ई-ट्यूटर भी ऑनलाइन कमाई के चर्चित तरीकों में से एक है। कई वेबसाइट अलग-अलग विषयों को लेकर लोगों से पेड ई-टच्यूटर की सुविधा लेती हैं। इनमें www.tutorvista.com और www.2tion.net जैसी साइटें प्रमुख हैं। यूजर ऐसी ही साइटों पर खुद को रजिस्टर कर चंद घंटे पढ़ाकर मोटी कमाई कर सकता है।

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खबरिया चैनल के पत्रकारों के गुण

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ये गुण भोकाल मीडिया के पत्रकारों में होने चाहिए

सत्येन्द्र मट्टू


एक दौर था, जब बच्चे सबसे पहले रोजगार के रूप में सिविल सेवाओं को चुनते थे, फिर उनकी पसंद होती थी बैंक की नौकरी और उसके बाद अन्य सेवाएं। किंतु आज मीडिया के आकर्षण से कोई नहीं बचा है। मीडिया जहां एक ओर जनता की सशक्त आवाज बन कर उभरा है, वहीं वह युवाओं की पहली पसंद भी बनता जा रहा है। ऐसा नहीं कि मीडिया के प्रति यह आकर्षण केवल शहरी क्षेत्रों में ही है, दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों के युवा भी इसके प्रति आकर्षित होकर मीडिया में आते हैं। मीडिया केवल खबरों से ही नहीं जुड़ा है। मीडिया अपने आप में एक व्यापक शब्द है, जिसमें समाचार, मनोरंजन, ज्ञान, सब कुछ शामिल है। आज आप कोई भी समाचार पत्र ले लें तो इसमें आप अलग-अलग सप्लीमेंट पाएंगे और हर सप्लीमेंट में अलग-अलग विषयों पर सामग्री होती है। आज भी यही कहा जाता है कि यदि आगे बढ़ना है तो अखबार पढ़ो। अखबार मतलब खबरों का पिटारा। आज अखबार का कलेवर कुछ ऐसा है कि इसमें जीवन से जुड़े हर पहलू को समेट लिया जाता है।
अब दूसरी ओर है टेलीविजन और इंटरनेट। टेलीविजन पर समाचार पढ़े जाते हैं, उनका विश्लेषण किया जाता है, मंथन किया जाता है। एक्सपर्ट अपनी अपनी राय देते हैं और इसमें भी ज्ञान और मनोरंजन दिखाया जाता है। कमोबेश कम्प्यूटर पर भी इंटरनेट के माध्यम से आप ई-पेपर पढ़ सकते हैं, समाचार पढ़ सकते हैं, देख सकते हैं। यानी मीडिया में रोजगार की अपार संभावनाएं मौजूद हैं, बस आपको अपना विषय चुनना है, अपना क्षेत्र पसंद करना है।
प्रिंट मीडिया
पत्रकारिता एक शौक भी है और रोजगार भी। यदि आप में वह जुनून है कि आप इस चुनौतीपूर्ण व्यवसाय को अपना सकें तो ही इस क्षेत्र में आना चाहिए। यहां भी आपके पास अनेक प्रकार के अवसर मौजूद हैं। बहुत से विकल्प हैं। समाचार पत्र में संपादन के दो भाग महत्त्वपूर्ण हैं- एक है रिपोर्टिग और दूसरा है संपादन। रिपोर्टिग का जिम्मा रिपोर्टरों पर होता है और उन खबरों को सही और आकर्षित बना कर कम शब्दों में प्रस्तुत करना संपादक का काम होता है। आमतौर पर एक समाचार पत्र में प्रधान संपादक, संपादक, सहायक संपादक, समाचार संपादक, मुख्य उपसंपादक, वरिष्ठ उपसंपादक और उपसंपादक होते हैं। आप एक रिपोर्टर के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। किंतु यहां यह जरूरी है कि आप रिपोर्टर के लिए शैक्षणिक योग्यता तो पूरी करते ही हों, साथ ही साथ आप उस विषय पर पूरी कमांड भी रखते हों। रिपोर्टर के भिन्न-भिन्न विषय होते हैं या यूं कह सकते हैं कि वह अपने विषय का एक्सपर्ट होता है। वैसे तो समाचार पत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण और आवश्यक बीट राजनीति होती है, किंतु इसके अलावा भी आप अपनी रुचि के अनुसार फैशन, खेल, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, कानून से जुड़ी बीट भी ले सकते हैं। इसके अलावा यदि आप में समाचार को कार्टून के जरिए व्यक्त करने की कला है तो पत्रों में कार्टूनिस्ट के रूप में भी कार्य किया जा सकता है। मुख्यधारा से हट कर यदि हम बात करें तो भी कम्प्यूटर ऑपरेटर, डिजाइनर, प्रूफ रीडर, पेज सेटर के रूप में भी कार्य किया जा सकता है।
प्रेस विधि की जानकारी
एक पत्रकार के रूप में या फिर पत्रकारिता के पेशे से जुड़े किसी भी व्यक्ति के लिए यह जरूरी है कि वह प्रेस विधि की जानकारी रखे। चूंकि पत्रकारिता में भी आचार संहिता है और इसका प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, दोनों द्वारा पालन करना जरूरी है, अत: इसके लिए प्रेस विधि की जानकारी होनी चाहिए। इसमें विशेषत: कॉपीराइट एक्ट, ऑफिशियल सीक्रेसी एक्ट, इंडियन प्रेस काउंसिल आदि शामिल हैं। इसके लिए आज न सिर्फ बाजार में बहुत सी पुस्तकें हैं, बल्कि आप इंटरनेट का प्रयोग कर भी अपने ज्ञान का विस्तार कर सकते हैं। इससे आप किसी भी अनजानी समस्या का सामना करने से बच सकते हैं।
छ: ककारों का ज्ञान
चूंकि अधिकतर लोग मीडिया की मुख्य धारा में ही शामिल होना चाहते हैं और आज युवाओं की रुचि टेलीविजन पर आने की है, इसलिए छ: ककारों यानी क्या, कहां, कब, कौन, क्यों और कैसे का ज्ञान होना और उनका सही इस्तेमाल करना आना चाहिए, ताकि वह अपने लेखन यानी स्क्रिप्टिंग में, वाचन में, रिपोर्टिग में, पैकेज में इनका उपयोग कर समाचार अथवा अपनी रिपोर्ट को और अधिक विश्वसनीय और प्रामाणिक बना सके।
सत्यनिष्ठा और ईमानदारी
मीडिया जनता की आवाज होता है और मीडिया को हर भ्रष्टाचार से मुक्त रहना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि इसमें काम करने वाले लोग वेतन से अधिक नैतिक मूल्यों पर बल दें और ईमानदारी से कार्य करें। इसके अलावा निष्पक्षता भी बहुत जरूरी है। मीडिया से जुड़े हर व्यक्ति को पूर्ण रूप से निष्पक्ष रहना चाहिए।
टीवी होस्ट
जब-जब आप सच का सामना, आप की अदालत, बूगी वूगी, इंडियन आइडल जैसे रियलिटी शो देखते होंगे तो एक बार मन में यह बात आती होगी कि काश हम भी टीवी होस्ट होते तो हमें भी ऐसे ही कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मौका मिलता। कार्यक्रम के होस्ट को धन और यश, दोनों मिलता है और वह एकदम ही प्रसिद्घि पा लेता है। टीवी होस्ट के लिए एक आकर्षक व्यक्तित्व होना चाहिए और एंकरिंग करने वाले व्यक्ति की भाषा पर पकड़ बहुत अच्छी होनी चाहिए। उच्चारण और मॉडय़ूलेशन भी बेहतरीन होना चाहिए।
इस क्षेत्र में आने के लिए अपेक्षित गुण-
भाषा
टीवी होस्ट को जिस भी कार्यक्रम को प्रस्तुत करना है, उसे उससे संबंधित तकनीकी शब्दों का ज्ञान भी होना चाहिए। उसकी भाषा चैनल और कार्यक्रम का सुखद संयोजन करती प्रतीत होनी चाहिए। ऐसा न हो कि कार्यक्रम बच्चों का है और आप इतने भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग करें, जो बच्चों की समझ से बाहर हों। ऐसे में कार्यक्रम का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा। यहां होस्ट को अपना पांडित्य दिखाने की आवश्यकता नहीं होती। इसी प्रकार यदि वह कोई स्वास्थ्य से जुड़ा कार्यक्रम कर रहा है तो उसे चाहिए कि वह उस कार्यक्रम के तकनीकी पक्षों को समझे और उसी प्रकार के शब्दों का प्रयोग करे।
कैमरा फोबिया न होना
एक सफल प्रस्तोता के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह कैमरा फ्रैंडली रहे और कैमरे का उसे भय न हो। बहुत से लोग, जो इस काम को आसान समझते हैं, वे कैमरे के आगे बदहवास हो जाते हैं, आवाज लड़खड़ा जाती है और शरीर में कंपन पैदा हो जाता है। इसे कैमरा फोबिया कहते हैं। जाहिर सी बात है कि कैमरा ही हमारा दर्शक होता है। जब होस्ट कैमरे में आत्मविश्वास के साथ देखता है तो वह दर्शकों से आमने-सामने बात कर रहा होता है। टीवी होस्ट के लिए यह भी जरूरी है कि उसे यह ज्ञान होना चाहिए कि वह टीवी पर दिखाई कैसा देगा, उसकी भाव-भंगिमाएं कैसी दिखती होंगी। किंतु यह ध्यान देना चाहिए कि अति आत्मविश्वास भी घातक हो सकता है। टीवी होस्ट को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह दर्शकों पर हावी होने की कोशिश न करे, इसलिए इसके लिए यदि ऑन कैमरा ट्रेनिंग प्राप्त की जाए तो बेहतर होगा, ताकि आपको कैमरे के साथ बोलने की आदत हो जाए।
उच्चारण एवं मॉडय़ूलेशन
यहां यह भी देखने की बात है कि टीवी होस्ट का उच्चारण कैसा है। उसका शब्द ज्ञान कैसा है? और बोलने में मॉडय़ूलेशन और स्पष्टता कितनी है। कार्यक्रम की जीवंतता के लिए होस्ट को अपनी शैली लाइव रखनी पड़ती है और उसे थ्रो के साथ एक अच्छे स्तर पर बोलना होता है। हिन्दी के साथ-साथ होस्ट को अंग्रेजी और उर्दू भाषा का ज्ञान भी होना चाहिए, ताकि वह उन शब्दों का सही और स्पष्ट उच्चारण कर सके।
आपका चेहरा और व्यक्तित्व
बहुत से ऐसे लोग हैं, जो अपने व्यक्तित्व को लेकर आशंकित रहते हैं। यहां यह महत्त्वपूर्ण है कि एक अच्छे टीवी होस्ट के लिए एक फोटोजनिक फेस तो चाहिए, किंतु बहुत ज्यादा सुंदर चेहरे की आवश्यकता नहीं है। जरूरत होती है तो एक बुद्घिमान और फोटोजनिक चेहरे वाले व्यक्ति की, जो उस कार्यक्रम के विषय के अनुरूप हो।
भूगोल और संस्कृति की जानकारी
वैसे तो भूगोल और संस्कृति की जानकारी का होना हर जागरूक व्यक्ति के लिए जरूरी है, किंतु एक टीवी होस्ट के लिए इसकी जानकारी आवश्यक है। हालांकि यह जानकारी इंटरनेट पर मौजूद है, किंतु फिर भी यदि आप मीडिया के किसी भी क्षेत्र से जुड़े हैं तो आपको भारतीय परिवेश, भूगोल और संस्कृति, धरोहर और परंपरा का ज्ञान होना चाहिए। यह सब कहीं न कहीं काम अवश्य आता है, चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया।
समाचार बोध
एक अच्छे पत्रकार में मनोवैज्ञानिक, वकील, कुशल लेखक, वक्ता और गुप्तचर के गुणों का समावेश होना चाहिए। तभी वह एक घटना में समाचार का बोध कर उसे जनता के समक्ष ला पाता है। इसके अतिरिक्त उसे दूरदर्शी भी होना चाहिए, तभी वह यह समझ पाएगा कि किस खबर का लोगों, समाज और देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
कम्प्यूटर और सॉफ्टवेयर का ज्ञान
आज आप कम्प्यूटर के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। जीवन के हर स्तर पर कंप्यूटर का प्रयोग होता है और यही कारण है कि मीडिया भी इससे अछूता नहीं है। आप मीडिया में तभी सफल हो सकते हैं, यदि आप कम्प्यूटर जानते हैं। कम्प्यूटर के साथ-साथ यदि आप वहां प्रयोग होने वाले सॉफ्टवेयर में भी पारंगत हों तो और भी अच्छा होता है। आज बहुत-सी जगहों पर क्वार्क सॉक्टवेयर का प्रयोग किया जा रहा है, जो पेज मेकिंग के लिए प्रयोग में लाया जाता है। तो कम्पयूटर का कार्यसाधक ज्ञान जरूरी है। इसके अलावा इन्ट्रो, टाइटल, बैनर, क्रॉस लाइन, ड्रॉपलाइन, ब्लॉक, डिस्पले, लेट न्यूज, डमी, डबलैट, क्लासीफाइड, कॉलम जैसे तकनीकी शब्दों का ज्ञान भी होना चाहिए।
याददाश्त
कई बार होस्ट को बहुत से कार्यक्रमों में टैली प्रॉम्प्टर नहीं मिल पाता और उसको अपनी स्क्रिप्ट मुंह-जुबानी बोलनी पड़ती है। इसके लिए यदि आपकी तैयारी अच्छी नहीं होगी और आपकी याददाश्त कमजोर होगी तो कार्यक्रम तैयार करने में वक्त लगेगा और लाइव कार्यक्रम आप बिलकुल भी हैंडल नहीं कर पाएंगे। इसके अलावा झिझकने से, घबराने से, फंबल करने या कोई लाइन जंप करने या भूल जाने से बार-बार टेक करने की नौबत आएगी और कार्यक्रम के प्रोडयूसर पर आपका प्रभाव अच्छा नहीं पड़ेगा।
ज्ञान और वाकपटुता
चूंकि समाचार वाचक का कार्य खबरों से जुड़ा है और उसे न सिर्फ खबरें पढ़नी होती हैं, बल्कि वह खबरों का विश्लेषण भी करता है, खबरों का मंथन करता है। इसके लिए यह जरूरी है कि आपका ज्ञान और अनुभव अच्छा हो, ताकि आप किसी भी घटना से जुड़ी अन्य बातें भी दर्शकों के सामने ला सकें और समाचार या कार्यक्रम को और भी रोचक बना सकें।
प्रेजेंस ऑफ माइंड
यदि आपकी रुचि टीवी होस्ट बनने की है तो इसके लिए आपका कौशल, समसामयिक ज्ञान और प्रेजेंस ऑफ माइंड बहुत अच्छा होना चाहिए, ताकि आम तकनीकी खराबियों, विपरीत स्थितियों और अचानक हुए किसी घटनाक्रम से न घबरा कर उसे सहज ढंग से लें और शो खराब न हो।
टीवी न्यूज एंकर
टेलीविजन पत्रकारिता के दौर में आज टीवी न्यूज एंकर की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो गई है। जाहिर है कि इसमें धन और शोहरत बहुत है, पर है यह काम चुनौती भरा। आजकल बहुत से चैनल केवल टीवी न्यूज एंकर को प्राथमिकता नहीं देते। इसके लिए आपको बहु-प्रतिभाशाली और सर्वकार्यकुशल होना पड़ेगा, ताकि आप चैनल की आवश्यकता के अनुसार कार्य कर सकें। अब यह चैनल का काम है कि वह आपको समाचार के लिए रखे, रिपोर्टिग के लिए रखे, मौसम का हाल बताने के लिए रखे या किसी का इंटरव्यू करवाए। तो इस तरह आप केवल एक ही कार्य न कर यदि टेलीविजन पत्रकारिता की हर विधा में कुशल हों तो आपके रोजगार के अवसर बढ़ जाते हैं।
ये सभी गुण ऐसे हैं, जो प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े सभी लोगों में होने चाहिए।

सामान्य जन से दूरहोती पत्रकारिता

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अब कौन है आम आदमी का पत्रकार? कोई नहीं!

भूपेन सिंह

प्रणय रॉय, राजदीप सरदेसाई, बरखा दत्त, अरुण पुरी, रजत शर्मा, राघव बहल, चंदन मित्रा, एमजे अकबर, अवीक सरकार, एन राम, जहांगीर पोचा और राजीव शुक्ला का परिचय क्या है? ये पत्रकार हैं या व्यवसायी? बहुत सारे लोगों को ये सवाल बेमानी लग सकता है। लेकिन भारतीय मीडिया में नैतिकता का संकट जहां पहुंचा है, उसकी पड़ताल के लिए इन सवालों का जवाब तलाशना बहुत जरूरी हो गया है। इस लिहाज से पत्रकारीय मूल्यों और धंधे के बीच के अंतर्विरोधों का जिक्र करना भी जरूरी है।
जो लोग न्यूज मीडिया को वॉच डॉग, समाज का प्रहरी या लोकतंत्र का चौथा स्तंभ जैसा कुछ मानते हैं, वे अपेक्षा करते हैं कि मीडिया सामाजिक सरोकारों से जुड़ा काम करेगा। वे नहीं मानते कि खबर सिर्फ एक उत्पाद है, जिसका धंधा किया जाना है। टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप उन्नीस सौ नब्बे के दशक में समीर जैन के प्रभाव में आने के बाद से ही इस बात को सामाजिक स्वीकृति दिलाने के प्रोपेगैंडा में जुटा है कि खबरें बिक्री की वस्तु के अलावा और कुछ नही हैं। इसलिए इस अखबार में संपादक की बजाय ब्रैंड मैनेजर हावी होते जा रहे हैं, जो तय करते हैं कि अखबार में वहीं खबर छपेगी, जो उनकी नजर में बिकाऊ हो।
एक पत्रकार से हम लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्ष में खड़ा होने की अपेक्षा करते हैं। पत्रकार का धंधेबाज बन जाना इस पेशे की नैतिकता पर सवाल खड़ा करता है। व्यवसायी हमेशा पूंजी और मुनाफे की दौड़ में शामिल होता है। पत्रकार अगर व्यवसायी बनेगा तो निश्चित तौर पर व्यवसायी और पत्रकार के हित आपस में टकराएंगे। पत्रकारीय हितों को मुनाफे के हित बाधित करेंगे। यहां पर पत्रकारिता का इस्तेमाल मुनाफा कमाने के लिए होने लगेगा, इस बात में कोई शक नहीं।
पेड न्यूज और नीरा राडिया परिघटना के सामने आने के बाद ये बात साबित हो गयी है कि हमारे यहां पत्रकारिता, धंधेबाजी का पर्याय बनती जा रही है। इस संकट का मूल कारण जहां मीडिया का धंधेबाज बनना है, वहीं धंधेबाज मीडिया ने कई पत्रकारों को भी दलालों में बदल दिया है। ऐसी मीडिया कंपनियों में उच्च पदों पर काम करने वाले पत्रकारों को बड़ी-बड़ी अश्लील तनख्वाहों के साथ कंपनी के शेयर का एक हिस्सा भी दिया जाता है। जाहिर है कि ऐसा करके उसे कंपनी को मुनाफे में लाने के लिए पत्रकारिता करने का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दबाव बनाया जाता है। पत्रकारिता और धंधे के बीच की लाइन के धुंधला होने से वामपंथी रुझान के माने जाने वाले कई तीसमार खां पत्रकार भी इस खेल में शामिल होकर धन्य हो रहे हैं। अब ये सवाल उठाने का वक्त आ गया है कि कुछ साल पहले तक के सामान्य पत्रकार आखिर करोड़पति-अरबपति कैसे बने हैं। नेताओं से संपत्ति की घोषणा करने और उसके स्रोत बताने की मांग करने वालों को अब ऐसे लोगों से भी सवाल पूछना पड़ेगा कि वे अपनी संपत्ति का ब्‍योरा दें।
आज अगर मीडिया के पतन की गाथा को समझना है तो उसके लिए इसके ऑनरशिप पैटर्न यानी मालिकाने की असलियत को समझना जरूरी होगा। अब ये बात किसी से छिपी नहीं है कि किसी भी मीडिया हाउस से कैसी खबरें बाहर निकलेंगी, उसके लिए सबसे ज्यादा प्रभावी उसका मालिक ही होता है। वहां काम करने वाले पत्रकार अगर मालिक की मंशा के खिलाफ एक भी खबर सामने लाएंगे, तो अगले पल ही उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। आर्थिक उदारीकरण के दौर में शातिर लोग जानते हैं कि सीधे दलाली करने में कई मुश्किलें आ सकती हैं। इसलिए अगर कोई भी धंधा चमकाना है, तो मीडिया के मालिकाने में अपना हिस्सा रखना जरूरी है। अंबानी बंधुओं ने कई मीडिया घरानों में ऐसे ही अपना पैसा नहीं लगाया है!
अब असली बात पर अगर आएं, तो प्रणय रॉय अगर एनडीटीवी के मालिक हैं तो क्या एक पत्रकार के तौर पर उनके आर्थिक हित मालिक प्रणय रॉय से नहीं टकराते। यही बात सीएनएन-आईबीएन के मालिक राजदीप सरदेसाई, एनडीटीवी के मालिकाने में हिस्सेदार बरखा दत्त, टीवी 18 के मालिक राघव बहल, इंडिया टीवी के मालिक रजत शर्मा, पायनियर के मालिक चंदन मित्रा, न्यूज 24 के मालिक राजीव शुक्ला, द संडे गार्डियन के मालिक एमजे अकबर, आनंद बाजार पत्रिका, टेलीग्राफ और स्टार न्यूज के मालिक अवीक सरकार, द हिंदू के मालिक एन राम और इंडिया टुडे ग्रुप के मालिक अरुण पुरी के संदर्भ में भी पूछी जानी चाहिए। (इस मामले में अवीक सरकार और एन राम अपवाद हैं, आनंद बाजार पत्रिका समहू और द हिंदू समूह जिनको पारिवारिक विरासत में मिला, लेकिन सवाल यहां भी जस का तस है कि कोई एक ही व्यक्ति पत्रकार और मालिक क्यों रहे?)। इन लोगों ने पत्रकारिता से मालिक बनने का सफर क्यों और कैसे तय किया है, इस पूरे गोरखधंधे से अगर पर्दा हट जाए तो राडिया कांड से मिलता-जुलता एक और कांड सामने आ सकता है। मालिक-पत्रकारों की श्रेणी में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नाम है न्यूज एक्स के मालिक जहांगीर पोचा का। कभी लंदन में पोचा की गहरी मित्र रही नीरा राडिया ही उसके कर्मचारियों की तनख्वाह दिया करती थी। राडिया और पोचा के बीच बातचीत के टेप सामने आने के बाद ये बात जाहिर हो चुकी है। इस बात का भी पता चल चुका है कि बिजनेस वर्ल्ड का संपादक रहने के दौरान पोचा ने राडिया के क्लाइंट रतन टाटा की तारीफ में कई खबरें प्रकाशित की थीं।
अब तक कई ऐसी बातें सामने आ भी चुकी हैं। जो पत्रकार से मीडिया मुगल बने ऐसे लोगों के भयानक अतीत की तरफ इशारा करने वाली है। द संडे गार्डियन में प्रणय रॉय के बारे में छपी खबरें इस बात का ज्वलंत प्रमाण हैं। पत्रकारिता की आड़ में कैसे-कैसे खेल हो रहे हैं, इसे समझने के लिए ये जानना भी दिलचस्प होगा कि पिछले एक-दो दशक में कई पत्रकार, मालिक बन चुके हैं और कई मालिक पत्रकार की खाल ओढ़े अवतरित हो रहे हैं। इस पूरे घालमेल का मकसद दोनों हाथों से मलाई बटोरने के अलावा और कुछ नहीं है। इस सिलसिले में नई दुनिया के मालिक अभय छजलानी का पत्रकारिता के हिस्से का पद्मश्री हड़प लेना एक मजेदार उदाहरण हो सकता है। पत्रकारों और मालिकों के एक-दूसरे के क्षेत्र में इतनी आसानी से छलांग लगाने की वजह से भारतीय पत्रकारिता बेईमानी और झूठ-फरेब का पर्याय बनती जा रही है। इस सब के बावजूद पत्रकारों का एक बड़ा हिस्सा है। जो श्रम बेचकर सम्मान अर्जित करने पर भरोसा करता है, सरोकारों की पत्रकारिता करता है। जिसे मीडिया के दलाली में बदलने का गुस्सा है। अच्छी बात है कि ऐसे लोगों का गुस्सा फूटकर अब सामने आने लगा है। भले ही मालिक बने पत्रकार अपनी कंपनियों में पत्रकारों को उनके अधिकार न दे रहे हों, पत्रकार संगठनों को पनपने न दे रहे हों, इस बात के खिलाफ आम पत्रकारों की एकता की सुगबुगाहट एक बार फिर शुरू हो चुकी हैं।
पिछले दिनों प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में राजदीप सरदेसाई बरखा के कामों को सही साबित करने की कोशिश कर रहे थे तो उनके खिलाफ आम पत्रकारों का गुस्सा फूट पड़ा। राजदीप का कहना था कि हो सकता है कुछ पत्रकार बरखा की प्रसिद्धि से जलने की वजह से भी उसके खिलाफ बोल रहे हों। उन्हें इस बात का करारा जवाब उसी मीटिंग में मौजूद पत्रकार पूर्णिमा जोशी ने बहुत अच्छी तरह दिया। बीच-बीच में राजदीप की हूटिंग सुनकर उनकी पत्नी और सीएनएन-आईबीएन की एंकर सागरिका घोष को भयानक कष्ट हो रहा था। आम पत्रकारों का गुस्सा उनके लिए अशिष्ट था। इन पंक्तियों के लेखक के पीछे बैठी वे बोलती रही कि बातचीत में कोई सोफिस्टिकेशन तो होना ही चाहिए। राजदीप और सागरिका को उस दिन पता चला कि स्टूडियो में कैमरे के सामने मनमाने प्रवचन देने और जनता के सामने बोलने में कितना फर्क होता है। बाद में दिन की घटना से परेशान सागरिका ने ट्वीटर पर लिखा कि आम आदमी पत्रकार और सेलेब्रिटी पत्रकारों के बीच एक वर्गयुद्ध छिड़ चुका है। जाहिर है कि इसमें आम आदमी पत्रकार का जिक्र हिकारत के तौर पर था। यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि राजदीप खुद नीरा राडिया से आपत्तिजनक बात करते हुए पकड़े गये हैं। लेकिन अब तक वे बड़ी शान से पत्रकारिता की आड़ में मालिकों की संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बने हुए हैं।
मीडिया की नैतिकता में आ रही गिरावट को अगर रोकना है तो एक छोटा सा कदम ये हो सकता है कि धंधेबाजों को धंधेबाजों के तौर पर ही पहचाना जाए। अखबारों और न्यूज चैनलों का धंधा करने वालों के लिए भी कड़े नियम बनाये जाएं ताकि वे पत्रकारिता का इस्तेमाल अपने दूसरे धंधों को चमकाने में न कर सकें। इस लिहाज से क्रॉस मीडिया होल्डिंग और क्रॉस बिजनेस होल्डिंग पर लगाम लगाना जरूरी है। यानी ऐसा न होने पाये कि एक व्यक्ति फिल्म बनाये और अपने समाचार माध्यम में उसका प्रचार भी करे या कोई धन्ना सेठ अपने दो नंबर के धंधों को चलाने और सत्ता की दलाली के लिए मीडिया का मालिक बनकर उसका मनमाना उपयोग करे। प्राइवेट ट्रीटीज (मीडिया कंपनी दूसरी व्यावसायिक कंपनी में हिस्सेदारी के बदले उसका मुफ्त में प्रचार करे) का मामला भी मीडिया की नैतिकता के खिलाफ है। इस मामले में मालिकों की मुनाफाखोरी के मुकाबले श्रमजीवी पत्रकारों की एकता इस गतिरोध को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। ईमानदार पत्रकारों की सामाजिक-आर्थिक न्याय के आंदोलनों में हिस्सेदारी ही हमारे सामने एक नए मीडिया परिदृश्य की रचना कर सकती है।
(समयांतर के जनवरी अंक में प्रकाशित)
(भूपेन सिंह। युव पत्रकार और प्राध्‍यापक। वाम आंदोलनों से जुड़ाव। सहारा समय, स्‍टार न्‍यूज और जी न्‍यूज में लंबे समय तक नौकरी करने के बाद इन दिनों पूर्णकालिक रूप से अध्‍यापन कार्य से जुड़े हैं।
कई अखबारों में नियमित रूप से लिखते हैं। सिनेमा में खासी दिलचस्‍पी है।
उनसे bhupens@gmail.comपर संपर्क किया जा सकता है।)

भोकाल मीडिया का मोदीकरण

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मीडिया का मोदी इफेक्ट vs  मोदी का मीडिया इफेक्ट


अनामी शरण बबल 

धरती ने ली अंगडाई और हजारों ने जान गंवाई यानी भूकंप का असर मंद पड चुका है, मगर इसी के साथ मोदी पुराण का एक औरअध्याय प्रस्तुतहै, जिसमें मोदी जी ने मीडिया का मनचाहा प्रयोग किया। गुजरात सुपुत्र दबंग नरेन्द्र दामोदर मोदी जब भारत के प्रधान सेवक (? )  बने तो देश की अंधिकांश भोकाली मीडिया के मालिकों संपादको नें मोदी पुराण राग अलापना चालू करके मोदी का सबसे बडा भोंपू ( hmv)  साबित करने दिखाने और बनने की होड में जुट गए। चूंकि मोदीकी इमेज जरा सख्त थी, इस कारण तमाम मीडिया भांपने के अंदाज में मोदी के पास मंडरा रही थी। मोदी पर मीडिया इफेक्ट का क्या असर हुआ यह अभी साफ नहीं हो पाया कि मोदी प्रेम में आकंठ तरबतर मीडिया अभी एक साल  के बाद भी मोदी प्रेम में ही है, पर मोदी के मैनेजरों ने मीडिया और खासकर भोकाली मीडिया पर इस तरह का शिकंजा कसा जिससे भोकाली मीडिया पर मोदीकरण इस तरह हुआ कि यह अपनी भाषा ही भूल गयी। कमलिया पुराण के अनुसार चाल चलन चरित्र चेहरा और चंचलता को बिसरा कर मोदी के लिए भोकाली मीडिया मोदी इमेज  डेवलपमेंट कंपेन में बिजी हो गए।
बराक भले ही अमरीका के मुखिया हो पर अपन मोदी जी भी एशिया के ( मान न मान मैं तेरा प्रधान) मुखिया मान कर ही काम कर रहे है। अभी नेपाल में ङरती ने क्या ली अंगडाई कि लाखों की जान पे बन आई है। इस विपदा पर कुछ भी कमेंट्स करना सवाल उठाना संदेह करना गोर पाप है. मैं खुद को पापी नहीं मानता कि संसद में जब धुर विरोधी भी जब तारीफ करते न थके हो, या देश की घर गृहस्थी देख रहे राजनाथ भी जब तारीफ करते हुए गंगा जल बहाने लगे हो तो मैं श्रीमान प्रधानसेवर पर कोई संदेह करूं। फिर जिस त्तत्परता और सजगता के साथ सेवक जी ने दामन थामा वह भी नौकरशाहों के लिए एक नसीहत ही है। नेपाल की पीडा से मेरा दिल भी किसी कमली नेता या विरोधी नेता से कम दुखी नहीं है, पर भूकंप के नाम पर की जा रही साईलेंट पोलटिक्स और खबरों को छिपाने दबाने की कुचेष्टा से प्रधानसेवक एंड कंपनी की नीयत पर एकबडा सवाल खडा हो जाता है।
भोकाली मीडिया की नजर में देश एक हंसता खेलता गाता पीता खुशहाल देश है। शक्तिमान  बनने के करीब है और इतना सक्षम है कि बस वो दूसरों को भी बहुत कुछ दे सकती है।
नेपाल के साथ भारत के खडा होने और अरबों की मदद करने पर भी कोई आपति नहीं है । दुनिया के ज्यादातर देश एक दूसरों से मिलजुल कर ही काम चलाते निकालते और एक दूसरों को बनाते है। पर मीडिया मेंकाम से ज्यादा प्रचार और ध्यान खींचने में माहिर सेवक एंड कंपनी की इस नीयत पर भी इस समय मेरा मन सवाल उठाने का नहीं है।य़ मैं इस समय भोकाली मीडिया के मोदी मीडिया या कमलिया मीडिया बन जाने या फिर एक दूसरे से बडा चंपू बनन ेकी प्रवृति पर चिंचिच हूं।  सरकारी रहमोकरम पर मीडिया के नेपाल टूर को देखकर मेरी परेशानी और बढ गयी है। नेपाव त्रासदी की ज्यादा से ज्यादा खबरों को देखकर नेपाल की पीडा से मन आहत है, मगर नेपाल के दुरस्थ में जाकर भी भओकाली रिपोर्टरों की खबरऔर चानलों पर बार बार पत्रकारों को दिखाकर अपनी इमेज चमकाया जा रहा है । मगर दिल्ली से लगे मेरठ हाथरस शामली मेवात झज्जर बागपत की तो बात भऊल जाइए दिल्ली में ही पूरी तरह दिल्ली की खबर कवर ना करने वाले भोकालियों के नेपाल प्रेम पर मन अभी तक संशंकित ही है।
. अपने अंशकालिक रिपोर्टरों को हर खबर पर 500 रुईया देने में 500 दिन लगाने वाले यही भोकाल मीडिया के लोग नेपाल से या भूकंप से इतने द्रवित क्यों हो गए कि फटाफट ( टीवी लैंग्वेज) अपने जिन रिपोर्टरों को बाहर नहीं भेजा सबको नेपाल भेज दिया। नेपाल गए तमाम धुरंधर मन लगाकर काम कर रहे है और एक से बढकर एक मार्मिक खबर भेज भी रहे है। इन खबरों को देखकर तो मन आहत है, पर मोदी जी ने अपनी ताकत नजाकत भाषाई शराफत से भारतमें इसी त्रासदी से प्रभावित इलाकों की खबर को ही भोकाली मीडिया के रूपहले पर्दे से लापता कर दिया। बिहार बंगाल यूपी सेवेन सिस्टर्स स्टेट समेत देश के कई हिस्सों में इसी विपदा से जूझ रहे हजारों लोगों को खबर बनने पर ही (अघोषित) पाबंदी लगा दी। देश के विभिन्न इलाकों में इस त्रासदी का क्या हाल है इसको जानने का मीडियाई अधिकार से भी ज्यादातर लोग वंचित है, क्योंकि नेपाल के ही इतने फूटेज और स्पेशल स्टोरी है कि इंडिया को कौन पूछे।
वेतन की कटौती या बिन बुलाए फोन पर ही दफ्तर न आने का फरमान सुनाकर नौकरी खत्म करने वाले भोकालियों के पास केवल एक ही रटा रटाया कुतर्क है कि एड नहीं है लाभ नहीं है भोकाल मास्टर घाटे में है लिहाजा बलि देनी पड रही है या मजबूरी है। दरिद्र राग के भोकाल गायकों के पास एकाएक करोडों रूपईया कहां से टपक पडा या टीआरपी रेटिंग में अईसा क्या उछाल मारा कति कुबेर अवतरित हुए और एक ही साथ आठ आठ रिपोर्टर यानी इतने ही कैमरामैन और हर टीम के साथ एक सहायक भी दें तो करीब 20-22 लोगों को नेपाल ता दौरा कराना और तमाम सुविधा प्रदान कराने का न्यूनतम खर्चा 25 -30 लाख तो आएगा ही (मन को दबाकर खर्चा लिख रहा हूं अन्यथा मार्केट की गरमी का अहसास मोदीजी जेटलीजी शाहजी आदि नेताओं से कम ज्ञान नहीं होने का दावा है) यह खर्च दोहरा होने से कतई कम नहीं होगा। खैर
पिछले साल मोदीजी अमरीका गए थे, मगर मोदी जी से एक सप्ताह पहले इंडियन भोकाली मीडिया के ज्यादातर स्मार्ट भोकालों को एक सप्ताह पहले ही भेज दिया गया था। इन भोकालों ने अमरीका में जाकर अईसा भोकाल मचाया कि बेचारका ओबामा भी दंग हैरान रह गए।य़ अमरीका में मोदी जी ने अईसा रोडशो किया कि अमरीकी भी मोदी मैजिक में खुद को भूला बैठे। भारतीय मूल के अमरीकी तो सही मायने में मोदी प्रेम में थोडा तोडा पगला से गए। मगर मोदी मैजिक और मोजी सेंस तो इस पर भारी है ही, मगर मीडिया को चाकर बनाकर अपने साथ घूम रहे प्रधानसेवक के काम और नाम का यह नजाकतभी कम नहीं रै। जापान भूटान पाकिस्तान भी गए मगर मीडिया को सरकारी मीडिया बनाकर ले गए , मगर अमरीका तो मोदी इमेज डेवलपर्स की तरह भोकालो ने भोकाल मचाया। मोदी द्वारा मीडिया के उपयोग पर समूचा विपक्ष हैरान पस्त त्रस्त है पर अपने लिए किसी को बताए बिना ही अपना बनाकर यूज कर लेना भी कोई सरल काम नहीं है कि धरना देने वाले सांसद एक बार में ही इस गूर को सीखले।
   
तो दोस्तों भारतीय त्रासदी को भारत से ही लापता रखने या कम दिखाने की यह मीडियाई चरित्र पर विचार होना जरूरी है।  यदि अपने काम काज पर नजप डाले तो ( यदि समय हो तो ) मोदीजी आप खुद अपने आप अपना मूल्यांकन करे काम काज की समीक्षा करे और 11 माह की उपलब्धियों पर गौर करे तथा खुद ही बताइए कि कि इंडिया में कौन सी क्रांति आ गयी। देश कौन सा खुशहाल हो गया। देश बातों  से आगे बढता तो 21वी सदी का सपना उछालने वाले दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तो यह जुमला तभी उछाल दिया था जब आपके भगवाकरण का सही मायने में राजनीतिकभविष्य ही तय नहीं हो पाया था।
बहरहाल विविधताओं से भरे इस भारत देश में मोदी समान बहुत लोग ऐए और बहुत लोग आएंगे मगर देश और मीडिया का कैरेक्टर समान होना डरूरी है। खासकर भोकाली मीडिया के भोकालों को यह सोचना होगा कि वे अपनी ब्राडिंग के चक्कर में अपनमी साख और विश्वसनीयता पर ज्यादा जोर देना होगा , तभी मीडिया के प्रति लोग यकीन करेंगे, जिसपर लोग सवाल उठा रहे है? भोकाली मीडिया के मालिकों से ज्यादा भोकाल पत्रकारों की मौजूदा पीढी है जो सत्ता सरकार स्वयंभू मालिक और दर्शकों को एक साथ नाथने के फिराक में खुद कोल्हू का बैल बना खट रहाहै ौर मीडिया की साख रसातल में चली गयी, इस पर विचार करने का मौका भी नहीं , क्योंकि हाजिरी बचाते 2 खुद परिदृश्य से लापता हो चुका है मीडिया को जनता की नजर सि गिराकर.



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ब्रिटेन में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त कृष्णा मेनन ने बीबीसी हिंदी सेवा का उद्घाटन किया
पचहत्तर साल पहले खरखराते और भारी-भरकम रेडियो सेट पर आज ही के दिन बीबीसी हिंदुस्तानी का प्रसारण शुरू हुआ था.
आपमें से ज़्यादातर लोग इस लेख को मोबाइल पर पढ़ रहे होंगे. बहुत-सी दुनिया बदली इस बीच, बीबीसी और आप भी बदले.
लेकिन विश्वसनीयता वह बारीक़ और मज़बूत डोर है जिसने इस पूरे सफ़र में हमें और आपको जोड़े रखा.
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के साथ बीबीसी के रत्नाकर भारती
इस मुक़ाम पर बीबीसी हिंदी की तरफ़ से ये कहना ज़रूरी है-
हम चार या पाँच पीढ़ियों पहले आपके पास भारत और दुनिया भर की ख़बरें लेकर आते थे, आगे भी लाते रहेंगे. अधिक तत्परता, अधिक विश्वास, अधिक ज़िम्मेदारी के साथ. सलीक़े से सहेज कर. और दिलचस्प. और उपयोगी. आपको केंद्र में रखते हुए.
बीबीसी हिंदी शुरू में बहुत सालों तक सिर्फ़ शॉर्ट वेव रेडियो पर थी, अब भी है. पर अब वह टीवी पर भी है, वेबसाइट पर, मोबाइल फ़ोन, चैट एप्स, सोशल मीडिया और ऑडियो, वीडियो साइट्स पर भी. आप तक पहुँच आसान करने के लिए हमसे जो हो सकेगा, करते रहेंगे, ज़्यादातर डिजिटल तरीक़ों से.
दुनिया का सबसे बड़ा समाचार संगठन होने के नाते हमारी हमेशा कोशिश रहेगी कि इस बहुत तेज़ी से बदलती दुनिया की ख़बरें आप तक सबसे पहले पहुँचा सकें. आपकी व्यस्तता और सुविधा ध्यान में रखककर.
हिंदी के बहुत बड़े होते जाते मीडिया संसार में बीबीसी हिंदी की हमेशा कोशिश होगी कि हम सवालों को संतुलित और निष्पक्ष तरीक़े से उठाएँ, जिनकी बुनियाद हमेशा तथ्यों पर टिकी हो.
जैसा बीबीसी के डायरेक्टर न्यूज़ जेम्स हार्डिंग ने अपने दस्तावेज़ 'फ्यूचर ऑफ़ न्यूज़'में कहा है, बीबीसी का काम गुणवत्ता के साथ पत्रकारिता करना है, कवरेज में ये बताना है कि असल में चल क्या रहा है, असल में उसका महत्व क्यों है, असल में उसका मतलब क्या है ?
और ये भी कि उन ख़बरों और घटनाक्रमों की पेचीदगियों को जितना बन पड़े, आपके लिए आसान कर सकें. आपके लिए उस ख़बर का क्या मतलब है और क्यों ज़रूरी है आपके लिए उसे जानना, ये बता सकें.
हाल ही में अभिनेत्री नंदिता दास बीबीसी स्टूडियो आईं और इकबाल अहमद ने उनसे इंटरव्यू किया
हमारा मक़सद रोशनी फैलाना है न कि सनसनी. लोकप्रियता की होड़ और ध्यान खींचने के शोर में बीबीसी हिंदी ने पत्रकारिता के बुनियादी उसूलों के साथ समझौता न पहले किया था, न आगे ऐसा होगा.
हम ख़बरों, कार्यक्रमों और विश्लेषणों के ज़रिए प्रबुद्ध हिंदी मानस का ज़िम्मेदार और भरोसेमंद हिस्सा बने रहना चाहते हैं.
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जवाबदेही और पारदर्शिता हमारे न्यूज़रूम की संस्कृति का बड़ा हिस्सा है. आपके परामर्श, आपकी शिकायतें, आपके सवाल हमेशा मददगार रहे हैं, भरोसा है ये भागीदारी आगे भी देखने को मिलेगी.
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इस साल हम आपसे इस सफ़रनामे के महत्वपूर्ण हिस्से, अपना इतिहास, बीबीसी की हस्ताक्षर आवाज़ें साझा करते रहेंगे.
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Updated 08:51 PM Oct 08, 2015







चमत्कारिक महात्मा की रहस्यमय दास्तां -

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प्रस्तुति- दर्शनलाल

  


















प्राकृतिक व्यतिक्रम से ही रोग उत्पन्न होते हैं। तथा समानुपातन से उनका निदान भी हो जाता है। यह एक शाश्वत एवं स्वयं सिद्ध नियम है। यह केवल शास्त्र या पुराणों का ही कथन नहीं है। जब भी नैसर्गिक संचरण में भेद पैदा होगा, कोई न कोई अनपेक्षित या कृत्रिम घटना-दुर्घटना जन्म लेगी ही। इसी बात या तह को कोई बहुत पढ़कर समझता है। तथा कोई प्रकृति की गोद में बैठ निरंतर अनुभव के द्वारा संग्रहीत करता है।
ऊधमपुर (जम्मू) से लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक स्थान है जिसे शिवखेरी के नाम से जाना जाता है। यहां पर भगवान शिव का एक बहुत पुराना स्थान है। यह बहुत ही दुर्गम स्थान पर है। इसमें जाना सबके बस की बात नहीं है। फिर भी यहां पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जमा होती है। जम्मू से सीधे यहां के लिए बस सेवा है। चाहे जो भी हो, यह एक अति मनोरम स्थान है। 
शिवखेरी से लगभग सात किलोमीटर पहले मुख्य रास्ते से पश्चिमोत्तर दिशा में एक स्थान है देवजल। बिल्कुल संकरी चतुर्दिक सघन पहाड़ियों से घिरा चीड़ एवं देवदार के घने वृक्षों से ढका यह स्थान बड़ा ही डरावना दीख पड़ता है। वैसे भी यहां पर घूमने जाना वर्जित है। क्योकि यहां बड़े बड़े बाघ एवं भालू जैसे हिंसक जीव पाए जाते हैं।
इन पहाड़ियों के बीच में एक बिल्कुल खाली एवं साफ सुथरा लगभग पचासों एकड़ में फैला स्थान है। बिल्कुल सपाट एवं समतल स्थान है। यहां तक पहुंचने के लिए एक अति संकरी पगडंडी जो पहाड़ियों के बीच से होकर पेड़ो एवं घनी झाड़ियों से गुजराती है, उसी से आना होता है।
सुगंध से ही पता चलता है इस स्थान पर महात्मा जी आने वाले हैं,कौन है वह चमत्कारिक महात्मा... 
प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की दशमी एवं कृष्ण पक्ष की अष्टमी को एक महात्मा जी यहां आते हैं। कभी कभी नहीं भी आते हैं। मैंने कई बार कोशिश की, लोगों के साथ जाता था लेकिन निराश होकर लौटना पड़ता था। किन्तु एक बार दर्शन हो ही गए।
नाम मात्र के वस्त्र शरीर पर, रंग बिल्कुल काला, आंखे बड़ी-बड़ी बहुत ही चमकदार एवं तीव्र वेधन क्षमता वाली रोशनी से भरी हुई, बड़ी बड़ी दाढी मूंछें, लगभग सात फिट से भी ज्यादा लम्बाई, पूरे शरीर पर कोई बहुत ही खुशबूदार भस्म लपेटे हुए, बहुत ही भद्दी-मोटी शरीर की चमड़ी किन्तु चेहरे पर साहस, सफलता एवं खुशी का ओज।
एक सफेद चट्टान जो मैदान के एक किनारे पर एक बड़े चिनार जैसे बड़े चपटे पत्तों वाले पेड़ के नीचे था, उसी पर बैठ जाते थे। किसी से डोगरी भाषा में, किसी से पश्तों तथा किसी से हिंदी में बाते बड़ी आसानी से करते हैं।
एक चमड़े की झोली उनके कंधे पर लटकी रहती है। लोग कहते थे कि हर बार उनकी झोली बदल जाती है। मुझे लगता था कि वह किसी जानवर के ताजा चमड़े से बनी झोली थी। वह कहां से और किस रास्ते से आते हैं, किसी ने नहीं देखा है।
ऐसा सुनने में आया है कि उसी मैदान में किसी किनारे से एक सुरंग निकलती है जो जम्मू में बड़ीब्रह्मणा नामक जगह पर खुलती है। मान्यता है कि जाम्बवंत जी इसी सुरंग से आते जाते थे।
खैर मैंने सुरंग नहीं देखी, किन्तु उनके आने जाने को कोई नहीं देख पाता है। केवल सुगंध से ही पता लगता है कि अब महात्मा जी आने वाले हैं। वहां पर लाइन लगाने की जरूरत नहीं है। चाहे आप कहीं भी बैठे, वह जरूरतमंद को दूर से भी बुला लेते हैं। 
पूरे जम्मू में क्यों नहीं है सांस, दमा और हड्डी के रोगी.... 
लेकिन एक बात आज भी प्रत्यक्ष है कि उस सौ किलोमीटर की दूरी में कोई भी व्यक्ति दमा, टीबी, गठिया, संधिवात, कुष्ठ, आमवात या किसी अस्थि रोग से पीड़ित नहीं है। महात्मा बहुत ही अचूक औषधि वह प्रदान करते हैं। एक रोग के लिए एक दिन में वह मात्र तीन या चार रोगी को ही दवा देते हैं। अर्थात गठिया के चार रोगी, कुष्ठ के चार रोगी आदि।
मैंने पूछा भी था, किन्तु उन्होंने बड़ी सौम्यता से उत्तर दिया कि इतनी ही औषधि वह एकत्र ही कर पाते हैं। उनको यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि कौन दूर से आया है तथा कौन फिर दोबारा या तिबारा भी आ सकता है। इसीलिए लोग परस्पर झगड़ा भी नहीं करते हैं। क्योंकि चाहे कितना भी परस्पर वाद विवाद कर लो, उन्हें जिसको औषधि देनी होगी, उसे ही वह देंगे। चाहे कोई कुछ भी कर लें। 
पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला को क्यों नहीं मिला बाबा का आशीर्वाद...
लोग बताते हैं कि एक बार शेख अब्दुल्ला जो वहां के मुख्यमंत्री थे, अपने किसी रिश्तेदार को लेकर आए। उस दिन वह महात्मा आए ही नहीं। लगभग चार-पांच बार ऐसा हुआ, किन्तु वह महात्मा नहीं आए। 
लोगों को लगा कि शायद उन्हें किसी हिंसक जानवर ने मार डाला। सात महीने बाद वह फिर दिखाई दिए। लोग आने-जाने लगे। फिर शेख अब्दुल्ला पहुंचे। किन्तु वह उस दिन नहीं आए। ऐसा कई बार हुआ। अंत में लोगों ने महात्मा जी से इसका कारण पूछा। 
उन्होंने बताया कि यदि कोई लाव लस्कर के साथ उनके पास आएगा तो वह नहीं आएंगे। कुछ आतंकवादियों ने वहां अपना डेरा बनाना चाहा। किन्तु सभी बारी-बारी मरते रहे। इसीलिए डर के मारे उस पहाड़ी की तरफ आतंकवादी भी नहीं जाते हैं। अंत में शेख अब्दुल्ला की रिश्तेदार वह महिला अन्य लोगों के साथ पैदल चलकर वहां पहुंची तथा औषधि लेकर गई।
एक चमत्कार से बदल गई महिला द्वारा महात्माजी को दी गई भेंट....
उस महिला ने महात्माजी के उस बैठने वाले चट्टान को हटवा कर वहां पर ग्यारह कुंतल वजन के चांदी का बहुत ही नक्काशीदार आसन बनवा कर रखवाया। किन्तु महात्मा जी के बैठते ही वह काले मिट्टी में बदल गया।
उन्होंने लोगों से उसे हटाने को कहा। लोग हटाने लगे तो वह टूटकर रेत की तरह बिखर गया। फिर महात्माजी ने अकेले उतने बड़े भारी पत्थर को जिस पर वह बैठते थे, धकेल कर वही पर लाए जहां पर वह पहले बैठते थे और फिर उसी पर बैठने लगे।
संभवतः अभी भी वह आते हैं, लेकिन किस महीने आएंगे, यह ठीक पता नहीं है। मैंने उनसे इसका भी कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि अभी औषधियां बहुत कम मिल रही है तथा लोग अब दुर्लभ औषधियों की काला बाजारी भी करने लगे हैं। उन्होंने यह बात अच्छी तरह समझ ली थी कि मैं कोई मरीज नहीं बल्कि उत्सुकतावश केवल जानकारी लेने के लिए गया हुआ था।
ऐसे कौन-सी जड़ी है जिससे हड्डी जुड़ जाती थी...
महात्माजी झोली में ढेर सारी जड़ी-बूटियां भर कर लाते थे। किन्तु उन्होंने बता रखा था कि उनके पास श्वसन तथा अस्थि तंत्र के अलावा अन्य किसी भी व्याधि की औषधि नहीं है। फिर भी लोग अंधश्रद्धा एवं विश्वास के कारण नई व्याधियों से ग्रसित होने पर भी जाते ही थे।
आपको संभवतः यह जानकर और आश्चर्य होगा कि जम्मू तथा जम्मू से सटे किसी भी शहर या नगर के किसी भी अस्पताल में श्वसन या हड्डी के रोग से संबधित कोई भी मरीज नहीं मिलेगा। मैंने तो बहुत खोजा। किन्तु कहीं कोई मरीज नहीं मिला। बस वही आदमी भूले भटके इन अस्पतालों में चला जाएगा जो इस महात्मा के बारे में नहीं जानता हो। या फिर उस बीहड़ में जाने से डरता हो। या फिर वातानुकूलित जगह को छोड़ना नहीं चाहता हो। 
महात्मा जी ने जो जडी-बूटियां कुछ मरीजों को दी थी, उन्हें मैंने देखा तो बहुत ज्यादा तो नहीं पहचान सका किन्तु ऐसा लगा कि भावार्थ रत्नाकर एवं शारंगधर संहिता में जो जड़ी-बूटियां बताई गई है, वे ही है। थोड़ा-बहुत अंतर दिखाई दे रहा था।
जैसे डिडबेहडा- कहा जाता है कि यदि घोड़े की भी टांग टूट गई हो, तथा एक दिन से ज्यादा का विलंब नहीं हुआ हो तो इसे हल्दी के साथ पीस कर लगा देने से वह हड्डी तो जुड़ ही जाती है। अगले दिन वह घोड़ा फिर दौड़ने के लिए पूरी तरह तैयार होता है। 
फिर दूसरा बघमकोय-सुश्रुत ने बघमकोय को रक्त रोग के लिए रामबाण बताया है। उन्होंने तो इसके बारे में यहां तक कह दिया है कि यदि बघमकोय से कुष्ठ रोग ठीक नहीं हुआ तो चाहे शुक्राचार्य या अश्विनीकुमार ही क्यों न चिकित्सा करें, वह ठीक नहीं हो सकता।
फिर तीसरा शीतलपाटी-बृहतसंहिता में कहा गया है कि जिस किसी कन्या को कुंडली में विषघात, विषकन्या या वैधव्य योग हो, या आर्द्रोपेत कणिकाओं जिसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान संभवतः अनुमान के सहारे स्यूडाफेड्रीलरी सेल्स कहता है, बेतरतीब अनियमित हो गई हो, या देहातों या ग्रामीण आंचल में कहते हैं कि किसी दुर्योग के कारण जब किसी लड़की की शादी नहीं हो पाती है तो इस झाड़ी के मूल, छिलके एवं पत्तियों के रस के विविध प्रयोग से अचूक सफलता मिलती है।
इसी शीतल पाटी वनस्पति से वर्तमान समय में 'साराभाई केमिकल्स'नाम की गुजरात स्थित दवा कंपनी अत्यंत महंगा कैप्सूल संभवतः उसका नाम 'ब्लेंटाडीन'है बनाती है। जो एक कैप्सूल लगभग सात हजार रुपए से भी ज्यादा का मिलता है। 
मैंने महात्माजी से यह प्रार्थना की कि यदि यह औषधि सरकार बनाए तो इस पर और ज्यादा शोध होकर ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए प्रयुक्त हो सकती है। बहुत ही सोच कर एवं गंभीर मुद्रा में उन्होंने उत्तर दिया कि यदि इसे आज सरकार जान जाए तो इन गरीबों का क्या होगा जो सरकारी या बड़े-बड़े चिकित्सालयों का भारी-भरकम खर्च न उठा सकते हो? मैं निरूत्तर हो गया।

क्यों कैमरे में कैद नहीं हो पाता था महात्माजी का फोटो...
आश्चर्य तब हुआ जब मैंने उनसे उनका फोटो खींचने का आग्रह किया। तो उन्होंने मंजूरी तो दे दी, किन्तु यह बता दिया कि शरीर पर लगे खुशबूदार भस्म पदार्थ के कारण उनका फोटो नहीं आ सकता। और बात भी सही थी, कोई फोटो नहीं आया। 
मैं अपनी नौकरी की मजबूरी के कारण फिर दोबारा न जा सका, या फिर इसलिए भी नहीं प्रयत्न किया कि बार-बार इतना पैसा क्यों एवं कहां से खर्च करूं? 
मैं ठहरा एक निश्चित वेतन पर काम करने वाला सरकारी नुमाइंदा। इसलिए फिर दोबारा उधर जाना नहीं हुआ। किन्तु इतना निश्चित है कि वह महात्मा कुछ विशेष प्राकृतिक जड़ी-बूटियों के बहुत ही उत्कृष्ट जानकार थे। जैसे उस सुगंध की ऐसी कौन-सी विशेषता थी कि उनके शरीर से टकरा कर आने वाली किरणें कैमरे में नहीं आ पाती थीं?
मैंने उस स्थान का कुछ चित्र ले रखा है। किन्तु मेरे सिम कार्ड में मात्र कुछ एमबी यूसेज ही बचा हुआ है। इसलिए मैं इन्हें अपलोड नहीं कर पा रहा हूं।
मैं वर्ष 2003-2004 में जम्मू में पोस्टेड था। तो तीन चार बार उनके दर्शन हुए। मेरे साथ काम करने वाले कुछ एक लोगों को उनकी औषधि से अचूक लाभ भी हुआ। जो सैनिक चिकित्सालय में कई वर्षों से चिकित्सा करा रहे थे। किन्तु सेना की नौकरी में इतनी छुट्टी कहां मिलती है? 
इसलिए मैं फिर उसके बाद वहां नहीं जा सका। किन्तु फिर भी शिवखेरी के मेले में आज भी लोग कोने-कोने से जाते रहते हैं। तथा उस संकरी गुफा में बड़ी ही कठिनाई से प्रवेश कर आशुतोष भगवान भोलेनाथ का दर्शन कर उनका कृपा प्रसाद प्राप्त कर अधिभौतिक एवं अधिदैविक विपदाओं से त्राण पाते रहते हैं।

दोस्तों  आपको ये ब्लॉग कैसा लगता है। कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा। जिससे मुझे प्रोत्साहन मिलता रहे ।

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रहस्य रोमांच

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...तो इस वजह से घट जाती है शादीशुदा जिंदगी में सेक्स की चाह!  

यदि आप विवाहित हैं और समय के साथ यौन गतिविधियों में रुचि घटती जा रही है, तो चकित होने की जरूरत नहीं है. एक नए रिसर्च के मुताबिक, विवाहित जीवन शुरू करने के 12 महीने के भीतर घरेलू झगड़ों और तीखी बहसों की वजह से द ...  और पढ़ें»

जिंदा दफ्न हुई गर्भवती कुत्तिया को दो दिन बाद सही सलामत निकाला गया  

जान बचाने की यह एक अद्भुत कहानी हैं. रूस के वोरोनिश शहर के फुटपाथ के नीचे बेलका नाम की एक गर्भवती कुतिया को दफन कर दिया गया था. लेकिन उसको दो दिन बाद रेस्क्यू करके बचाया गया. ...  और पढ़ें»

दिवाली पर पटाखों पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मासूम बच्चे  

शुद्ध हवा में सांस लेने के अधिकार के लिए सुप्रीम कोर्ट में तीन नवजात बच्चों ने ऐसी याचिका दाखिल की है जो आपको भी सोचने पर मजबूर कर देगी. ...  और पढ़ें»
Top Stories

जुगाड़ टेक्नोलॉजी से उड़ते प्लेन में बचाई बच्चे की जान  

पूरी दुनिया भारत के जुगाड़ टेक्नोलॉजी का लोहा मानती है. जुगाड़ टेक्नोलॉजी से कई अनोखे काम तो होते हैं लेकिन क्या आप ने सोचा है कि ये जुगाड़ टेक्नोलॉजी किसी बच्चे की जान भी बचा सकती है. जी हाँ भारतीय मूल के तेज  ...  और पढ़ें»

शादी न होने से परेशान युवक ने की आत्महत्या  

शादी तय होने के एक वर्ष होने को आ रहा है लेकिन अब तक शादी नहीं हुई, जिससे परेशान होकर एक युवक ने घर में मिट्टी का तेल डालकर आग लगा ली, जिससे उसकी मौत हो गई. घटना उत्तर प्रदेश के झांसी जिले की है. फिलहाल पुलिस न ...  और पढ़ें»

कुत्ते की जान बचाने के लिए दो दिन तक रेस्क्यू  

जान बचाने की यह एक अद्भुत कहानी हैं. रूस के वोरोनिश शहर के फुटपाथ के नीचे बेलका नाम की एक गर्भवती कुतिया को दफन कर दिया गया था. लेकिन उसको दो दिन बाद रेस्क्यू करके बचाया गया. ...  और पढ़ें»

रिश्तों को खत्म कर सकता है स्मार्टफोन  

अपने महबूब या महबूबा के साथ समय बिताने के दौरान स्मार्टफोन से चिपकने के नतीजे उससे कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं जितने का आप शायद अनुमान लगाते हों. एक अध्ययन से पता चला है कि यह हरकत रोमांटिक रिश्तों को तबाह क ...  और पढ़ें»

पुरुषों में पोर्न की चाहत बढ़ी, महिलाओं में घटी  

इंटरनेट पर लगातार बढ़ रही नि:शुल्क पोर्न सामग्री उपलब्ध कराने वाली वेबसाइटों की संख्या की जहां पुरुषों में स्वीकार्यता बढ़ी है, वहीं महिलाओं में इसे लेकर नाकारात्मक रुख देखा गया. ...  और पढ़ें»

पोर्न की लत से मानसिक बीमारी का खतरा  

यदि पोर्नोग्राफी के प्रति आपकी लत हद से अधिक है, तो संभल जाइए, क्योंकि एक अध्ययन के मुताबिक, यह लत आपको मानसिक तौर पर बीमार बना सकता है. ...  और पढ़ें»

एड्स रोकने के लिए एनजीओ ने दान किए एक लाख कंडोम  

आप ने लोगों द्वारा लाखों रूपए दान करने की खबर तो की बार सुनी होगी लेकिन कंडोम दान करने के बारे में क्या सुना है आप ने. जी हां दिल्ली के रेड लाइट एरिया जीबी रोड में हुई कंडोम की कमी की खबर के बाद एड्स के मरीजों  ...  और पढ़ें»

इन जोड़ियों ने अपने ही प्रोफेशन वाले लोगों से की है शादी  

सर्वे में बताया, इसमें सबसे ज्यादा किसानों, मछली का व्यापार, और वन विभाग वाले लोग सबसे ज्यादा हैं.  प्राइवेट सेक्टर, शिक्षक और डॉक्टर पेशा के लोगों ने भी अपनी ही प्रोफेशन के लोगों से ही शादी करना पसंद किया है. ...  और पढ़ें»

जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर ऐसा प्यार देख, जरूर भावुक हो जाएंगे  

कहते हैं प्यार की कोई उम्र और सीमा नहीं होती. प्यार वो होता है जो मिसाल बन जाए. हीर-राझां, लैला मजनू की कहानी तो आप ने बहुत सुनी और देखी होगी लेकिन आज हम आप को ऐसे दो प्यार करने वालों के बारे में बताएंगे जो इसस ...  और पढ़ें»

चार महीने पुराने 12 भैंसों की चोरी के मामले में दिल्ली पुलिस को मिली सफलता  

भैंस चुराने वाले चोरों के लिए सिर्फ यूपी पुलिस ही नहीं दिल्ली पुलिस भी दिन रात एक कर रही हैं. जी हां, कुछ महीनों पहले यूपी के मंत्री आजम खान की भैंस चोरी के मामले ने तब खूब सुर्खियां बटोरी थीं जब यूपी पुलिस ने  ...  और पढ़ें»

दोस्ती की मिसाल: जब मादा कुत्ते ने बचायी अपने साथी की जान  

सदियों से ये बात कही जाती रही है कि कुत्ते इंसानों के सबसे अच्छे और वफादार दोस्त होते हैं, लेकिन वॉशिंगटन की एक घटना ने साबित किया है कि वे सिर्फ इंसानों के ही नहीं बल्कि अपनी प्रजाति के प्रति भी बेहद वफादर हो ...  और पढ़ें»

सबसे ऊंची इमारतों के बीच रस्सी पर चल कर बनाया रिकॉर्ड  

ऊंची इमारतों को देखकर आम लोगों का भले ही सिर चकरा जाए, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के एक जांबाज ने बुधवार को दुनिया की सबसे ऊंची रिहायशी इमारतों के बीच रस्सी पर चलकर अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया. ...  और पढ़ें»

गांववालों की मदद से 15 फुट कुएं से निकला हाथी का बच्चा  

केरल के इर्नाकुलम में 6 साल का हाथी का बच्चा अपने परिवार से बिछड़ कर 15 फुट गहरे कुएं में गिर गया. ...  और पढ़ें»

केम्पिन्सकी एम्बिएन्स में मेई कुन रेस्तरां हुआ 100 फीसदी शाकाहारी  

केम्पिन्स्की एम्बिएन्स होटल का एशियाई कुसीन रेस्तरां, मेई कुन अब 100 फीसदी शाकाहारी रेस्तरां बन गया है, जो स्वादिष्ट शाकाहारी व्यंजनों के शानदार मैन्यू को पेश करेगा. रेस्तरां के इस मैन्यू में दुनिया भर से दिलकश ...  और पढ़ें»

...जब लड़की का पति निकला उसका भाई!  

महिला ने जब अपनी शिकायत के पीछे की वजह पुलिसवालों को बताई तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. दरअसल एक मामला सामने आया है जिसमें एक लड़की ने अपने कज़न ब्रदर से अंजाने में शादी कर ली है. ...  और पढ़ें»

LOVE AFFAIR: जब सरेआम भिड़ गए IPS और IAS अधिकारी  

महाराष्ट्र में हाल ही में एक शीर्ष आईपीएस अधिकारी और महिला आईएएस अधिकारी के बीच प्रेम ने लड़ाई और मारपीट का रूप ले लिया. दोनों के बीच विवाद के बाद हाथापाई की नौबत आ गई. शीर्ष अधिकारियों ने बीच-बचाव कर मामले को  ...  और पढ़ें»

जज्बे को सलाम: 95 साल की उम्र में इस बिहारी बुजुर्ग ने लिया एमए में दाखिला  

कहते हैं पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती. इस कहावत को 95 साल के बुजुर्ग राज कुमार वैश्य ने सही साबित कर दिखाया है. अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर (एमए) की डिग्री के सपने को पूरा करने के लिए राज कुमार ने उम् ...  और पढ़ें»

हरियाणा: अब 10वीं पास ही लड़ पाएंगे पंचायत चुनाव!  

राज्य विधानसभा ने आज पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित करने वाला एक विधेयक पारित कर दिया जिसमें अन्य शर्तों के साथ साथ प्रत्याशियों के घर में काम आने वाला शौचालय होना  ...  और पढ़ें»

104 साल की अम्मा ने बदल दी गांव की तकदीर!  

धमतरी के कलेक्टर भीम सिंह की अपील पर गांव की 104 साल की वृद्धा कुंवर बाई यादव सबसे पहले शौचालय बनाने के लिए आगे आईं. कुंवर बाई की दृढ़इच्छा शक्ति ने आज गांव की तकदीर बदल कर रख दी है. ...  और पढ़ें»

MUST WATCH: जब हाथ में राखी बांधे लड़कों ने छेड़ा बस स्टैंड पर खड़ी लड़की को!  

सच्ची घटना पर आधारित ये वीडियो नए झोंके की मानिंद है जिसमें समाज के बदलने और उसे नई दिशा देने का संदेश छिपा है. ...  और पढ़ें»

सेक्स करने के दौरान प्रेमी जोड़े की मौत  

फ्रांस के एक प्रेमी जोड़े की इंग्लिश चैनल के शोजी द्वीप के एक किले की चहारदीवारी पर सेक्स करने के दौरान नीचे गिरने से मौत हो गई. ...  और पढ़ें»

लड़कियां! अगर सेक्स संबंध बनाया तो दोस्त होंगे कम: स्टडी  

लड़के-लड़कियों के दोस्ती के पैमाने अलग- अलग होते हैं और ये पैमाने वक़्त के साथ बदलते रहते हैं. एक ताज़ा स्टडी के मुताबिक सेक्स के बाद जहां लड़कियों का फ्रैंड सर्किल सिकुड़ जाता है, वहीं लड़कों के दोस्तों में इज ...  और पढ़ें»

बदलते भारत में शहरो के बच्चे 14 की उम्र में कर लेते हैं सेक्स  

आमतौर भारतीय समाज में सेक्स पर बात करना अपराध जैसा है. घर तो घर स्कूलों में भी सेक्स एजुकेशन दिए जाने को लेकर सरकारें अनाकानी करती हैं. ...  और पढ़ें»

16 साल के भारतीय मूल के अनमोल ने बनाया गूगल से तेज सर्च इंजन  

भारतीय मूल के कनाडावासी 16 साल के अनमोल टुकरेल ने एक प्राइवेट सर्च इंजन बनाया है, अनमोल के दावे के अनुसार यह सर्च इंजन गूगल से 47 फीसदी बेहतर है. ...  और पढ़ें»

सेक्सुअल एक्साइटमेंट से जुड़ी समस्याओं की वजह कंडोम नहीं  

अगर आप यह सोचते हैं कि कंडोम के इस्तेमाल से आपको सेक्सुअल एक्साइटमेंट से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं तो आप गलत हैं. ...  और पढ़ें»

रिकॉर्ड उपलब्धि का या भाषण का?  

इतिहास के पन्नों में 69वां 'स्वतंत्रता दिवस'रिकॉर्ड बन गया है. लालकिले की प्राचीर से पहली स्वंतत्रता की अलस्सुबह बने रिकॉर्ड को तोड़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने. पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1947 में  ...  और पढ़ें»

नक्सलियों ने स्कूल में तिरंगा की जगह जबरन फहराया काला झंडा  

एक ओर पूरा देश जहां आजादी के जश्न में डूबा हुआ था, वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में बस्तर के सुरनार इलाके में एक गांव नक्सलियों के काले दिन के आगोश में था. वहां हथियार से लैस सैकड़ों नक्सलियों ने स्कूल परिसर को चारो ...  और पढ़ें»

...जब किन्नर का सिर मुड़ने वाले नाई ने कर ली ‘आत्महत्या’  

जौनपुर जिले के जफराबाद थाना क्षेत्र में वसूली को लेकर किन्नरों के बीच विवाद में एक किन्नर को बाल मुड़वाकर बाजार में घुमाये जाने की एक घटना के सिलसिले में बाल मुड़ने वाले नाई ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली. ...  और पढ़ें»

सडकमार्ग में भारत दूसरा

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भारतीय रोड नेटवर्क है दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा, ये हैं यहां के बेस्ट EXPRESS WAYS

india topHighway_ Yamuna Express,Uttar Pradesh_001दुनिया में यदि रोड् की बात हों तो तरह-तरह की हैं, लेकिन हमें पसंद होती हैं ऐसी जिनसे गुजरने का बार-बार मन करे। अमरीका, चीन और यूरोप में दुनिया की सबसे बेहतर सडकें मानी जाती हैं मगर आपके लिए गर्व की बात यह है कि भारत का रोड नेटवर्क दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रोड नेटवर्क है। इसकी लंबाई लगभग 4,689,842 किलोमीटर है। इसमें एक्सप्रेस हाइवे, नेशनल हाइवे, स्टेट हाइवे और लोकल रोड शामिल हैं। पूरे विश्व को आखों के समक्ष पेश करने वाले माद्दे के साथ आज हम आपको भारत के टॉप भिन्न-भिन्न हाइवे की डार्इविंग करा रहे हैं। सबसे पहले बताते हैं उस एक्सप्रेस वे के बारे में जिसे बनाने के लिए यूपी में किसानों का जबरन अधिग्रहण किया, कर्इ को मार डाला भी गया। लेकिन उप्र की तत्कालीन मायावती सरकार ने कोर्इ परवाह न करते हुए टेक्नो ड्रीम्स् को रास्ता दिया…
यमुना एक्सप्रेस वे, उत्तर प्रदेश
यूपी भारत का सबसे बड़ा राज्य है, यहां बडे़ हाइवे का होना जरूरी था। लिहाजा यमुना एक्सप्रेस वे मिला, जिसे ताज एक्सप्रेस हाइवे के नाम से भी पुकारा जाता है। इसकी लंबार्इ सौ किलो मीटर से भी ज्यादा है। इसमें छह लाइने हैं। यह हाइवे ग्रेटर नोएडा को आगरा से जोड़ता है। हाइवे का उद्घाटन 9 अगस्त 2012 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया। इस हाइवे के निर्माण में 13 हजार करोड़ रुपए की लागत आई। इस हाइवे की वजह से ही दिल्ली से आगरा के बीच की दूरी घटी है। 164 किलोमीटर लंबा यह मार्ग हालांकि लगातार हो रहे हादसों से उतना मनमोहक भी नहीं है। अब आप इन दी गर्इ स्लाइड़स पर क्लिक कीजिए, जानते हैं इंडिया के दूसरे एक्सप्रेस वे के बारे में –
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दुनिया की सबसे खूबसूरत CITY

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150 नहरों के बीच 120 द्वीप, 400 पुल, ये है

Best Travel & Tourism Info for Venice ...Vijayrampatrika.com》WORLD TOURISM Desk:पानी में एक आइलैंड की तरह तैरते शहर की खूबसूरती किसी को भी अट्रैक्ट कर सकती है। इटली के प्रमुख शहरों में से एक वेनिस के साथ भी ऐसा ही है। पानी में तैरते एक द्वीप की तरह लगने वाला ये शहर कई मायनों में अपनी प्राकृतिक छटा और ब्यूटी के कारण दुनिया के शहरों से अलग है। आइए आज करा दें आपको यहां की सैर….
“Queen of the Adriatic”
इटली अपने ब्लू वाटर बीचेज एंड रिसॉर्टस के लिए मशहूर है। लेकिन इसके शहर वेनिस को प्रसिद्धि के चलते कर्इ उपनाम मिले हैं। इसे सिटी ऑफ ब्रिज़, द फ्लोटिंग सिटी, सिटी ऑफ कैनल्स, सिटी ऑफ मास्क, सेरेनिसेमा आदि पुकारा जाता है। यही वो सिटी है, जिसमें करीब 120 द्वीप हैं, इसलिए इसे ‘सिटी ऑन वॉटर’ कहते हैं। वेनिस की सबसे बड़ी नहर ग्रांड कैनाल ‘S’ शेप में है और पूरे शहर को दो भागों में बांटती है। 2.5 मील में फैली ये नहर 16 फीट गहरी है।
न घोड़ा हैं न गाडी़, बस नावों पर होती है सवारी
पूरे शहर में 150 नहरें हैं, जिन पर 400 पुल बने हैं। यहां रोड, बस, टैक्सी, ट्राम, मोटरसाइकल कुछ नहीं है। इटली के इस शहर को या तो नावों पर घूमा जा सकता है या फिर पैदल। वेनिस में प्रतिवर्ष 2 करोड़ से अधिक पर्यटक आते हैं। यह शहर हर साल 1-2 मिमी डूब रहा है। इस कारण स्थानीय वेनिस वासी पलायन करने लगे हैं।
बहुत पतली हैं खूबसूरत गलियां
वेनिस में की एक गली को दुनिया की सबसे पतली गलियों में शुमार किया जाता है। इसकी चौड़ाई 53 सेंटीमीटर है। गलियों के अलावा यहां पर सड़कों की भूमिका में नहरें हैं, जिनमें नाव चलती हैं। इन नावों को गोंडोला कहते हैं। इन नहरों पर 400 पुल बने हैं, जो शहर के एक छोर से दूसरे छोर को जोड़ते हैं। दुनिया की पहली ग्रैजुएट महिला एलेना लुक्रेजिया कोरनारो पिस्कोपिया वेनिस की रहने वाली थी, जिसका जन्म 1646 में हुआ था। एलेना 25 जून 1678 को ग्रेजुएट हुई थीं।
दिए गए फोटोज़छुएं और अंदर स्लाइड़समें पढें वेनिस से जुडे कुछरोचक फैक्ट्स..
इटली के खूबसूरत बीच और रिसॉर्टस घूमने के लिए यहां क्लिक करें
यूरोप के 10 शानदार हनीमून डेस्टिनेशन, आपने देखे क्या?

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गुप्त रास्ता

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बहुत खूबसूरत है पहाड़ों में छुपा ये महल, प्रवेश के लिए बना था गुप्त रास्ता

पहाडों में छुपे महल के रहस्य पता हैं आपको?》WORLD TOURISM Desk:दुनियाभर में कई ऐसी इमारतें हैं, जो अपनी ऐतिहासिकता के कारण लोगों को आकर्षित करती हैं। ऐसी ही एक इमारत स्लोवेनिया का प्रेद्जामा कैसल है, जो पहाड़ों के बीच छुपा है। इस तक पहुंचने के लिए एक गुप्त रास्ता बनाया गया था, जो 10 किलोमीटर लंबी सुरंग से होकर गुजरता था। हालांकि, अब ज्यादातर लोगों को इस छुपे हुए रास्ते की जानकारी हो गई, लेकिन 11वीं शताब्दी तक इस रास्ते के बारे में बहुत कम लोग जानते थे।
बताया जाता है कि इस महल का निर्माण एराजेम लूइगर नामक एक महान शूरवीर ने रोमन शासकों से अपनी जान बचाने के लिए करवाया था। दरअसल, एक दोस्त के सम्मान की रक्षा में लूइगर ने महान रोमन सम्राज्य के कमांडर की हत्या कर दी। कमांडर रोमन शासक फ्रेडरिक तृतीय का रिश्तेदार भी था। ऐसे में, रोमन सम्राट फ्रेडरिक तृतीय ने लूइगर को जिंदा या मुर्दा हाजिर करने का फरमान सुना दिया। इस आदेश के बाद लूइगर वहां से भागकर प्रेद्जाना की पहाड़ियों में छुप गए। इस दौरान उन्होंने यहां पर एक महल तैयार करवा लिया।
महल पर रोमन सम्राज्य के सैनिक अटैक न कर सकें, इसके लिए लूइगर ने पहाड़ों के बीच एक गुप्त रास्ता बनाया, जो 10 KM लंबी सुरंग के जरिए महल तक पहुंचता था। कई माह तक फ्रेडरिक के सिपाही तमाम कोशिशों के बावजूद लूइगर का पता लगाने में नाकाम रहे। हालांकि, एक साल बाद उन्हें पता चल गया कि लूइगर प्रेद्जाना की पहाड़ियों में छुपा हुआ है।
इतना ही नहीं, सिपाहियों ने महल तक पहुंचने के गुप्त रास्ते का भी पता लगा लिया। हालांकि, वे जैसे ही महल में घुसने की कोशिश करने लगे, तभी लूइगर ने रास्ते में खौलता हुए तेल डलवा दिया, जिससे सारे सैनिक वापस भाग गए। इसके बाद 400 फीट ऊंचे पहाड़ पर बने इस महल पर राजा के सिपाही बाहर से आक्रमण करने लगे। ये हमला लगातार 366 दिनों तक चला। बावजूद, इसके लूइगर को कोई क्षति नहीं पहुंची।
दिए गए फोटोज़ छुएं और अंदर स्लाइड्स में पढे़ं इस खूबसूरत महल की रोचक कहानी…….
यह भी पढे़:दुनिया के टॉप 10 मोस्ट ब्यूटिफुल कैसल, एक क्लिक पर घूमें इनमें
ये है भारत का सबसे सुंदर महल, देखें तस्वीर और जानें इसकी खासियत
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किले की सुरक्षा

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प्रस्तुति-- दर्शनलाल



22 तोपों से होती है इस किले की सुरक्षा, रहस्य बना है इसकी झील का पानी

Murud-Janjira Fort - Maharashtra Tourism via facebook.com/VijayrampatrikaVijayrampatrika.com की ‘किलों का देश इंडिया’सीरीज के तहत आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे किले के बारे में जो 22 के अंक से खास तौर पर जुड़ा है। यह किला महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के मुरुद गांव में स्थित है और इसे मुरुद-जंजीरा फोर्ट कहते हैं।
22 वर्ष में बना, 22 एकड़ में फैला, 22 है सुरक्षा चौकियां
Murud-Janjira Fort – Maharashtra
बताया जाता है कि इसका निर्माण 22 वर्षों में हुआ था। यह किला 22 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें 22 सुरक्षा चौकियां है। कहते हैं कि ब्रिटिश और पुर्तगालियों सहित कई मराठा शासकों ने इसे जीतने का काफी प्रयास किया था, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। इस किले में सिद्दीकी शासकों की कई तोपें अभी भी रखी हुई हैं, जो हर सुरक्षा चौकी में आज भी मौजूद है।
आज तक नहीं जीता गया ये किला
भारत के पश्चिमी तट का यह एक मात्र ऐसा किला है, जो शत्रुओं द्वारा कभी जीता नहीं गया। यह किला 350 वर्ष पुराना है। murud janjira fort information in hindiइसमें मीठे पानी की एक झील है, जो समुद्र के खारे पानी के बीच बने इस किले की सबसे बड़ी खासियत है। इसमें एक शाह बाबा का मकबरा भी है। अरब सागर में स्थित यह किला समुद्र तल से 90 फीट ऊंचा है। इतिहास में यह किला जंजीरा के सिद्दीकियों की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है।
दिए गए फोटोज़ छुएं और अंदर स्लाइड्स में पढें इस किले से जुडी़ रोचक बातें…
यह भी पढें:इंडिया के टॉप 10 खूबसूरत किले
इस किले में बंद है अरबों का खजाना, जो गया लेने नहीं लौटा
इस किले में दी गर्इ हजारों महिलाओं की कुर्बानी, ऐसा था मुगलों का आतंक

सेक्स की आजादी

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यहां महिलाओं का चलता है राज, शादी के बाद बना सकती हैं गैर मर्दों से संबंध
(सहारा के मरुस्थल में रहने वाली एक जनजाति की महिलाएं)


प्रस्तुति--  दर्शनलाल

एक फोटोग्राफर ने अफ्रीकी देश नाइजर के सहारा मरुस्थल में रहने वाली अनोखी जनजाति की ताजा फोटोज जारी किए हैं। ये जनजाति है तो इस्लामिक, लेकिन इनके रिवाज और तौर-तरीके बाकी दुनिया से बिल्कुल अलग हैं। यहां महिलाओं को शादी के बाद भी गैर मर्दों से सेक्शुअल संबंध रखने की आजादी होती है। महिलाएं आमतौर पर बुर्का भी नहीं पहनती और तलाक होने पर सारी संपत्ति खुद ही रख लेती हैं। कई सौ साल पुरानी इन जनजातियों को तुआरेग के नाम से जाना जाता है। एक आम समाज के उलट यहां महिलाएं ही ज्यादातर चीजें तय करती हैं यानी उन्हीं का दबदबा होता है। यहां तलाक के बाद लड़कियों को पेरेंट्स की ओर से पार्टी देने का भी चलन है।
इन जनजातियों के पुरुष कई बार चेहरा ढक के आते-जाते हैं। फोटोग्राफर हेनरीटा बटलर ने पहली बार इस जनजाति को 2001 में देखा था। उन्होंने इनके साथ कुछ वक्त बिताया और फोटोज क्लिक किए। इन क्षेत्रों में इस्लामिक कट्टरपंथी विचारधारा के बढ़ते प्रभाव की वजह से कुछ रिपोर्टों में डर जाहिर किया गया है कि इन पर इस्लाम के परंपरागत रिवाजों को मानने के लिए दबाव बनाया जा सकता है।
यहां शादी से पहले भी महिलाएं जितने चाहें उतने ब्वॉयफ्रेंड रखती हैं। इस दौरान लड़के रातों में लड़कियों से मिलने भी जाते हैं, लेकिन घर के सदस्य ऐसे बर्ताव करते हैं जैसे उन्हें कुछ मालूम ही नहीं।
फोटोग्राफर बटलर का कहना है कि इस जनजाति के लोग काफी विनम्र होते हैं और हर काम पूरी चतुराई के साथ करते हैं। यहां की लड़कियां आमतौर पर 20 साल से कम उम्र में शादी नहीं करतीं।

बीबीसी स्पेशल

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प्रस्तुति- स्वामी शरण

बड़ी ख़बरें

इसराइल और ग़ज़ा के बीच संघर्ष

ग़ज़ा और इसराइल के बीच संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है.
  • 26 अगस्त 2014

अनामी रिपोर्ट/ नदियां

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प्रस्तुति- रेणु दत्ता


दुनिया भर में सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि कई देशों में नदियां गायब हो चुकी है। अब ऐसी ही बात सामने आई है कि कैसे लंदन में धीरे-धीरे कई नदियां गायब हो गई हैं। लंदन  की दर्जनों नदियां सौ साल से भी ज़्यादा समय पहले सड़कों के नीचे दफन हो गईं। आज उन नदियों और नहरों का क्या हाल है ? हमने उनकी  स्थिति जानने की कोशिश की। लंदन के बीचों-बीच भीड़ भरी सड़क सेंट पैनक्रस रोड और यूस्टन रोड पर गगनचुंबी मकानों के नीचे बहती इन नदियों की कल्पना करना भी मुश्किल है।
लंदन की गुम नदियों पर किताब लिखने वाले पॉल टैलिंग कहते हैं, “यह शर्म की बात है कि इतनी सारी नदियां ज़मीन के नीचे दबा दी गईं, आज वे होती तों यहां के दृश्य को और सुंदर बनातीं। लेकिन वे  यह भी कहते हैं, “पर उस समय ऐसा करना ज़रूरी भी था। विक्टोरिया युग के पहले ये नदियां खुले नाले में तब्दील हो चुकी थीं।”
यह एक बड़ा खुलासा प्रकृति के‌ लिए चौंकाने वाला है और अभी नहीं चेते तो फिर हम कब चेतेंगे। इन तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि कैसे नदियां गायब हो गईं।

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दुनिया में सबसे तेज़ हवाएँ कब और कहां कहां चली हैं ?

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  • 15 अक्तूबर 2015
Image copyrightRobert Mora Alamy Stock Photo
 
प्रस्तुति- स्वामी शरण दीपा शरण
 
जब कभी आपको तूफ़ान के दौरान तेज़ हवाओं का एहसास होता है तब क्या आप कभी सोचते हैं कि दुनिया में सबसे तेज़ हवाएं कहां बहती हैं.
शायद न सोचा हो. वैसे यदि आप ऐसा सोचें तो आपको ये जानकर अचरज होगा कि इस होड़ में कई शहर और क्षेत्र शामिल हैं.

बैरो आइलैंड

इस सूची में अव्वल नंबर पर स्थित है बैरो आइलैंड. ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित यह द्वीप तेज़ हवाओं के लिए मशहूर रहा है. 10 अप्रैल, 1996 को यहां के वेदर स्टेशन ने क़रीब 408 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चलने वाली हवाओं को रिकॉर्ड किया था.
विश्व मौसम विज्ञान संस्था (डब्ल्यूएमओ) के मुताबिक़ यह सबसे तेज़ हवाओं का रिकॉर्ड है. इस तेज़ हवा की वजह ओलिविया नामक ट्रॉपिकल साइक्लोन (उष्णकटिबंधीय चक्रवात) था.
Image copyrightSuzanne Long Alamy Stock Photo
ट्रॉपिकल साइक्लोन (उष्णकटिबंधीय चक्रवात) तब उठता है कि जब समुद्र की सतह पर वाष्प कम दबाव का क्षेत्र बनाते हैं. यह विषुवत्त रेखा की ओर सफ़र करती है.अगर यह तूफ़ान दक्षिण प्रशांत महासागर से उत्पन्न होती हैं तो इन्हें साइक्लोन कहते हैं. अगर यह उत्तरी प्रशांत महासागर में उत्पन्न होते हैं तो इन्हें टायफून कहते हैं और अगर यह अटलांटिक महासागर में उत्पन्न होते हैं तो हरिकेन कहते हैं.
साइक्लोन ओलिविया के दौरान हवा के एक तेज़ झोंके ने ज़रूर रिकॉर्ड बना दिया, लेकिन इस साइक्लोन को सबसे ख़तरनाक साइक्लोन नहीं माना जाता है.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक़, इस मामले में चैंपियन 1961 का टायफून नैंसी है, जो प्रशांत महासागर में उत्पन्न हुआ था, इसके जापान के तट से टकराने पर 170 लोगों की मौत हो गई थी.
नैंसी जब जापान के समुद्री तट से टकराया था, तब उसकी गति 346 किलोमीटर प्रति घंटा थी. हालांकि मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक़ यह बढ़ाचढ़ा कर पेश किया गया आंकड़ा हो सकता है.

ओकलाहोमा

वैसे इससे भी तेज़ हवाएं टॉरनेडो में उत्पन्न होती है, ऐसे में दुनिया में सबसे तेज़ हवा वाला इलाक़ा अमरीका के मध्य में हो सकता है.
टॉरनेडो में हवा तेज़ी से ज़मीन से उठती है और थंडरस्टॉर्म का रूप लेती है. तेज़ी से घूमती हुई हवा कॉलम के रूप में होती है, जब यह पानी के संपर्क में आता है तब झरने की तरह पानी गिरना शुरू हो जाता है, जिसे वॉटरस्पाउट कहते हैं.
टॉरनेडो सबसे ख़तरनाक और हिंसक वायुमंडलीय तूफ़ान होता है.
अमरीका के नॉर्मन ओकलाहोमा स्थित नेशनल स्वीयर स्टॉर्म्स लेबोरेटॉरी के मुताबिक़ टॉरनेडो सबसे ख़तरनाक वायुमंडलीय तूफ़ान है.वैसे तो टॉरनेडो दुनिया भर में आते हैं लेकिन अमरीका में ये तूफ़ान सबसे ज़्यादा आते हैं. 27 अप्रैल, 2011 को अमरीका के दक्षिण पूर्वी राज्यों में 24 घंटे के अंदर 207 टॉरनेडो तूफ़ान आए. इस इलाके को टॉरनेडो एले के नाम से जानते हैं.
ओकलाहोमा में सबसे तूफ़ानी टॉरनेडो आया था. विश्व मौसम विज्ञान संस्थान के मुताबिक़ 3 मई 1999 को ब्रिज क्रीक के निकट आए टॉरनेडो तूफ़ान की गति 302 मील प्रति घंटा थी.
ये तूफ़ान निश्चित तौर पर ख़तरनाक होते हैं, लेकिन ज़्याद समय तक रहते नहीं. लेकिन एक जगह ऐसी है जहां सालों तूफ़ानी हवाएँ चलती हैं.

दक्षिणी समुद्र

Image copyrightGavin Newman Alamy Stock Photo
विषुवत्त रेखा के 30 डिग्री उत्तर और दक्षिण में काफी तेज़ हवा बहती है. इस इलाके में सूर्य की गर्मी पृथ्वी की सतह पर असमान रूप से पड़ती है.बहरहाल, दुनिया की सैर करने वाले किसी भी नाविक से आप पूछेंगे कि सबसे तेज़ हवाओं वाले समुद्र कौन से हैं तो वे दक्षिणी समुद्र का ही नाम लेंगे.
इन्हें इन अक्षांशों के नाम से जाना जाता है - रोरिंग 40, फ्यूरियस 50 और स्क्रीमिंग 60. इन इलाकों में महाद्वीपों की मौजूदगी से भी तेज़ हवाओं पर असर नहीं होता. औसतन हवा की गति 100 मील प्रति घंटे होती है.
एक शताब्दी पहले इनके दक्षिण में स्थित एक जगह की पहचान सबसे तेज़ हवा वाली जगह के तौर पर हुई.

अंटार्कटिका

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अंटार्कटिका में तेज़ हवाओं का झोंका चलता रहता है जिसे काटाबाटिक हवाएँ, या नीचे की ओर बहने वाली हवाएं भी कहते हैं. यह काफी हद तक ठंडे जलवायु पर निर्भर होती हैं.ब्रिटेन में केंब्रिज स्थित ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के जॉन किंग बताते हैं, "सतह के लगातर ठंडे होने से ख़ासकर अंटार्कटिक विंटर में, जब सूर्य हमेशा क्षितिज से नीचे होता है, तेज़ हवा की एक लेयर बन जाती है."
Image copyrightDesign Pics Inc Alamy Stock Photo
फरवरी, 1912 से लेकर दिसंबर, 1913 तक वैज्ञानिकों ने केप डेनिसन में हवा की स्पीड को मापने का इंतजाम पूर्वी अंटार्कटिका के कॉमनवेल्थ बे में किया.6 जुलाई, 1913 को यहां हवां की गति थी 153 किलोमीटर प्रति घंटा. केप डेनिसन अभियान दल के सर डगलस माउसन ने कहा, "साल भर यहां की जलवायु बर्फीले तूफ़ान वाली रहती है. सप्ताहों तक हरिकेन तूफ़ान शोर करता रहता है."
काफी तेज़ हवाओं के चलने और शून्य से कम तापमान के चलते काटाबाटिक हवाओं की गति को मापना ख़ासा मुश्किल है. ऐसी स्थिति में गति मापने वाले यंत्र भी कई बार नष्ट हो जाते हैं.
तो फिर सबसे तेज़ हवाओं वाली जगह कौन सी है? ऊपर दी गई जानकारी से स्पष्ट है कि ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस मापदंड से और किन भूगोलिक परिस्थितियों में ये तय कर रहे हैं.
अंग्रेज़ी में मूल लेख यहांपढ़ें, जो बीबीसी अर्थपर उपलब्ध है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिककर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुकऔर ट्विटरपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

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पत्रकारिता का इतिहास-- विहंगम मूल्यांकन

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समाचार लेखन और संपादन


परिचय:मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए वह एक जिज्ञासु प्राणीहै। मनुष्य जिस समुह में, जिस समाज में और जिस वातावरण में रहता है वह उसबारे में जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे मेंजानकर उसे एक प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसकेलिये उसने प्राचीन काल से ही तमाम तरह के तरीकों, विधियों और माध्यमों कोखोजा और विकसित किया। पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना इन माध्यमों मेंसर्वाधिक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बादअस्तित्व में आया। पत्र के जरिये अपने प्रियजनों मित्रों और शुभाकांक्षियोंको अपना समाचार देना और उनका समाचार पाना आज भी मनुष्य के लिये सर्वाधिकलोकप्रिय साधन है। समाचारपत्र रेडियो टेलिविजन समाचार प्राप्ति के आधुनिकतमसाधन हैं जो मुद्रण रेडियो टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोज के बाद अस्तित्वमें आये हैं।

समाचार की परिभाषा

लोग आमतौर पर अनेक काम मिलजुल कर ही करते हैं। सुख दुख की घड़ी में वे साथहोते हैं। मेलों और उत्सव में वे साथ होते हैं। दुर्घटनाओं और विपदाओं केसमय वे साथ ही होते हैं। इन सबको हम घटनाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। फिरलोगों को अनेक छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गांव कस्बे याशहर की कॉलोनी में बिजली पानी के न होने से लेकर बेरोजगारी और आर्थिक मंदीजैसी समस्याओं से उन्हें जूझना होता है। विचार घटनाएं और समस्यों से हीसमाचार का आधार तैयार होता है। लोग अपने समय की घटनाओं रूझानों औरप्रक्रियाओं पर सोचते हैं। उनपर विचार करते हैं और इन सबको लेकर कुछ करतेहैं या कर सकते हैं। इस तरह की विचार मंथन प्रक्रिया के केन्द्र में इनकेकारणों प्रभाव और परिणामों का संदर्भ भी रहता है। समाचार के रूप में इनकामहत्व इन्हीं कारकों से निर्धारित होना चाहिये। किसी भी चीज का किसी अन्यपर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से ही समाचार कीअवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगोंका सरोकार हो तो यह कह सकतें हैं कि यह समाचार बनने योग्य है।

समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं के सबसे पहले बताया जाता है और उसकेबाद घटते हुये महत्व क्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बतायाजाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसेमहत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है।
  •       किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है : डॉ निशांत सिंह
  •       किसी घटना की नई सूचना समाचार है : नवीन चंद्र पंत
  •       वह सत्य घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो : नंद किशोर त्रिखा
  •       किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है : संजीव भनावत
  •       ऐसी ताजी या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो : रामचंद्र वर्मा

समाचार के मूल्य

1 व्यापकता : समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस दृ पास औरचारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दीसमरुप माना जाता है। न्यूज का अर्थ है चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट और साउथ की सूचना। इस प्रकार समाचार का अर्थ पुऐ चारों दिशाओं मेंघटित घटनाओं की सूचना।

2 नवीनता: जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचारनही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारीहो। इस प्रकार समाचार का मतलब हुआ नई सूचना। अर्थात समाचार में नवीनता होनीचाहिये।

3 असाधारणता: हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना मेंसमाचारपन होगा वही नई सूचना समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसीअसाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचारपन पैदा करे। काटना कुत्ते का स्वभावहै। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचारहै क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। कहने का तात्पर्य हैकि नई सूचना में समाचार बनने की क्षमता होनी चाहिये।

4 सत्यता और प्रमाणिकता : समाचार में किसी घटना की सत्यता यातथ्यात्मकता होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारितनही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता यातथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं।

5 रुचिपूर्णता: किसी नई सूचना में सत्यता और समाचारपन होने से हा वहसमाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिसचस्पी भी होनी चाहिये।कोई सूचना कितनी ही आसाधरण क्यों न हो अगर उसमे लोगों की रुचि नही है तो वहसूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटेजाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति कोहोने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्णव्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिचस्पी हो सकती है।

6 प्रभावशीलता : समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये।हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे याअप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसीसमूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोईमतलब नही होगा।

7 स्पष्टता : एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनीचाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाष में न होतो वह सूचना बेकार साबित होगी क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे।इसलिये समाचार की भाषा सीधीऔर स्पष्ट होनी चाहिये।उल्टा पिरामिड शैली

ऐतिहासिक विकास

इस सिद्धांत का प्रयोग 19 वीं सदी के मध्य से शुरु हो गया था, लेकिन इसकाविकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ था। उस समय संवाददाताओं को अपनीखबरें टेलीग्राफ संदेश के जरिये भेजनी पड़ती थी, जिसकी सेवायें अनियमित, महंगी और दुर्लभ थी। यही नहीं कई बार तकनीकी कारणों से टेलीग्राफ सेवाओंमें बाधा भी आ जाती थी। इसलिये संवाददाताओं को किसी खबर कहानी लिखने केबजाये संक्षेप में बतानी होती थी और उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण तथ्य औरसूचनाओं की जानकारी पहली कुछ लाइनों में ही देनी पड़ती थी।

लेखन प्रक्रिया:

उल्टा पिरामिड सिद्धांत : उल्टापिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन कासबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांतकथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार यासमस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टापिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचनापिरामिड के निचले हिस्से में नहीं होती है और इस शैली में पिरामिड को उल्टाकर दिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरीहिस्से में होती है और घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनायें सबसेनिचले हिस्से में होती है।समाचारलेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टिसे मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो यालीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इंट्रो समाचार के पहले औरकभी-कभी पहले और दूसरे दोनों पैराग्राफ को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भीसमाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्णतथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार की बॉडी आती है, जिसमें महत्व के अनुसार घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने केअलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष यासमापन आता है। समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती है और न हीसमाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहां समाचार का समापन हो गया है।मुखड़ा या इंट्रो या लीड :उल्टापिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन याइंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है, जहां सेकोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता कानिर्धारण होता है। एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्णसूचना आ जानी चाहिये और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहींहोना चाहिये। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश कीजाती है दृ क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआहै। आमतौर पर माना जाता है किएक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े कोप्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक दृ दो ककार दिये जा सकतेहैं।बॉडी:समाचार लेखन की उल्टापिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषणसमाचार की बॉडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है किकिसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु परसमाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहनाचाहिये, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्णहो। अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशालीहोना चाहिये। समाचार की बॉडी में छह ककारों में से दो क्यों और कैसे काजवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने केलिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने कीकोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर कोस्पष्ट किया जा सकता है।निष्कर्ष या समापन :समाचार का समापनकरते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गयेहैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये।समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये किउससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।

समाचार संपादन

समाचार संपादन का कार्य संपादक का होता है। संपादक प्रतिदिन उपसंपादकों औरसंवाददाताओं के साथ बैठक कर प्रसारण और कवरेज के निर्देश देते हैं। समाचारसंपादक अपने विभाग के समस्त कार्यों में एक रूपता और समन्वय स्थापित करनेकी दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

संपादन की प्रक्रिया-

रेडियो में संपादन का कार्य प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त होता है। 
1. विभिन्न श्रोतों से आने वाली खबरों का चयन
2. चयनित खबरों का संपादन :  रेडियो के किसी भी स्टेशन में  खबरों के आनेके कई स्रोत होते हैं। जिनमें संवाददाता, फोन, जनसंपर्क, न्यूज एजेंसी, समाचार पत्र और आकाशवाणी मुख्यालय प्रमुख हैं। इन स्रोतों से आने वालेसमाचारों को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर खबरों का चयनकिया जाता है।  यह कार्य विभाग में बैठे उपसंपादक का होता है। उदाहरण केलिए यदि हम आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र के लिए समाचार बुलेटिन तैयार कर रहेहैं तो हमें लोकल याप्रदेश स्तर की खबर को प्राथमिकता देनी चाहिए। तत्पश्चात् चयनित खबरों का भी संपादन किया जाना आवश्यक होता है। संपादन की इसप्रक्रिया में बुलेटिन की अवधि को ध्यान में रखना जरूरी होता है। किसीरेडियो बुलेटिन की अवधि 5, 10 या अधिकतम 15मिनिट होती है।

संपादन के महत्वपूर्ण चरण

1.  समाचार आकर्षक होना चाहिए।
2.  भाषा सहज और सरल हो।
3.  समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए।
4. समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
5. शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए।
6.  समाचार में प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए।
7.  कम शब्दों में समाचार का ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए।
8.  रेडियो बुलेटिन के प्रत्येक समाचार में श्रोताओं के लिए सम्पूर्ण जानकारी होना
 चाहिये । 
9.   संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए।
10.  समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
11.  रेडियो के सभी श्रोता पढ़े लिखे नहीं होते, इस बात को ध्यान में रखकर भाषा और शब्दों का चयन किया जाना चाहिए।
12. रेडियो श्रव्य माध्यम है अतः समाचार की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए कि एक ही   बार सुनने पर समझ आ जाए।
13. समाचार में तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार   होने पर भी   इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए। 
14. समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता  होती है, ताकि समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके।

समाचार संपादन के तत्व

संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
1. शीर्षक-किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है।शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरितहोता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेताहै। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षकमें निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-
1.  शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास  हो जाए। 
2.  शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो।
3.  शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं।
5.  अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ’ ‘एन’, ‘दीआदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखेशीर्षकों पर भी लागू होता है। 
6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या   उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है। 
7.  शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
8.  शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए।   

2. आमुख-आमुख लिखते समय पाँच डब्ल्यूतथा एक-एच के सिद्धांत कापालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न-Who, When, Where, What और How का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान मेंइस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखनेकी प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटेआमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होनाचाहिए।

3. समाचार का ढाँचा-समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों कोक्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथाअधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लम्बे समाचारआकर्षित नहीं करते हैं।

 समाचार सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
  1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है। 
  2.  समाचार नीति के अनुरूप हो।
  3.  समाचार तथ्याधारित हो।
  4.  समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना।
  5.  समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे   पुष्ट बनाएँ।
  6.  समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस   कर दें।
  7.  समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो।
  8.  अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
  9.  ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो। 
 10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो। 
 11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो।
 12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
 13.  समाचार की भाषा मेंे एकरूपता होना चाहिए। 
 14.    समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना।

समाचार-सम्पादक की आवश्यकताएँ
एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचारजगत्में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालयमें अवश्य रखें-
1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
2. एटलस।
3. शब्दकोश।
4. भारतीय संविधान।
5. प्रेस विधियाँ।
6. इनसाइक्लोपीडिया।
7. मन्त्रियों की सूची।
8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची।
10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख।
11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों व अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर।
14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें।
15. उच्चारित शब्द

समाचार के स्रोत

कभी भी कोई समाचार निश्चित समय या स्थान पर नहीं मिलते। समाचार संकलन केलिए संवाददाताओं को फील्ड में घूमना होता है। क्योंकि कहीं भी कोई ऐसी घटनाघट सकती है, जो एक महत्वपूर्ण समाचार बन सकती है। समाचार प्राप्ति के कुछमहत्वपूर्ण स्रोत निम्न हैं-
1. संवाददाता-टेलीविजन और समाचार-पत्रों में संवाददाताओं कीनियुक्ति ही इसलिए होती हैकि वह दिन भर की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकलन करेंऔर उन्हें समाचार का स्वरूप दें।
2. समाचार समितियाँ-देश-विदेश में अनेक ऐसी समितियाँ हैं जोविस्तृत क्षेत्रों के समाचारों को संकलित करके अपने सदस्य अखबारों और टीवीको प्रकाशन और प्रसारण के लिए प्रस्तुत करती हैं। मुख्य समितियों मेंपी.टी.आई. (भारत), यू.एन.आई. (भारत), ए.पी. (अमेरिका),  ए.एफ.पी. (फ्रान्स), रॉयटर (ब्रिटेन)।
3. प्रेस विज्ञप्तियाँ-सरकारी विभाग, सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगतप्रतिष्ठान तथा अन्य व्यक्ति या संगठन अपने से सम्बन्धित समाचार को सरल औरस्पष्ट भाषा में  लिखकर ब्यूरो आफिस में प्रसारण के लिए भिजवाते हैं।सरकारी विज्ञप्तियाँ चार प्रकार की होती हैं।
(अ) प्रेस कम्युनिक्स- शासन के महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस कम्युनिक्स केमाध्यम से समाचार-पत्रों को पहुँचाए जाते हैं। इनके सम्पादन की आवश्यकतानहीं होती है। इस रिलीज के बाएँ ओर सबसे नीचे कोने पर सम्बन्धित विभाग कानाम, स्थान और निर्गत करने की तिथि अंकित होती है। जबकि टीवी के लिएरिर्पोटर स्वयं जाता है 
(ब) प्रेस रिलीज-शासन के अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस रिलीज केद्वारा समाचार-पत्र और टी.वी. चैनल के कार्यालयों को प्रकाशनार्थ भेजे जातेहैं। 
(स) हैण्ड आउट- दिन-प्रतिदिन के विविध विषयों, मन्त्रालय के क्रिया-कलापोंकी सूचना हैण्ड-आउट के माध्यम से दी जाती है। यह प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरोद्वारा प्रसारित किए जाते हैं।
(द) गैर-विभागीय हैण्ड आउट- मौखिक रूप से दी गई सूचनाओं को गैर-विभागीय हैण्ड आउट के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। 
4. पुलिस विभाग-सूचना का सबसे बड़ा केन्द्र पुलिस विभाग का होता है।पूरे जिले में होनेवाली सभी घटनाओं की जानकारी पुलिस विभाग की होती है, जिसे पुलिसकर्मी-प्रेस के प्रभारी संवाददाताओं को बताते हैं।
5. सरकारी विभाग-पुलिस विभाग के अतिरिक्त अन्य सरकारी विभागसमाचारों के केन्द्र होते हैं। संवाददाता स्वयं जाकर खबरों का संकलन करतेहैं अथवा यह विभाग अपनीउपलब्धियों को समय-समय पर प्रकाशन हेतु समाचार-पत्रऔर टीवी कार्यालयों को भेजते रहते हैं।
6. चिकित्सालय-शहर के स्वास्थ्य संबंधी समाचारों के लिए सरकारी चिकित्सालयों अथवा बड़े प्राइवेट अस्पतालों से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
7. कॉरपोरेट आफिस-निजी क्षेत्र की कम्पनियों के आफिस अपनी कम्पनीसे सम्बन्धित समाचारों को देने में दिलचस्पी रखते हैं। टेलीविजन में कईचैनल व्यापार पर आधारित हैं।
8. न्यायालय-जिला अदालतों के फैसले व उनके द्वारा व्यक्ति या संस्थाओं को दिए गए निर्देश समाचार के प्रमुख स्रोत हैं।
9. साक्षात्कार-विभागाध्यक्षों अथवा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार समाचार के महत्वपूर्ण अंग होते हैं।
10. समाचारों का फॉलो-अप या अनुवर्तन-महत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृतरिपोर्ट रुचिकर समाचार बनते हैं। दर्शक चाहते हैं कि बड़ी घटनाओं केसम्बन्ध में उन्हें सविस्तार जानकारी मिलती रहे। इसके लिए संवाददाताओं कोघटनाओं की तह तक जाना पड़ता है। 
11. पत्रकार वार्ता-सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अक्सर अपनीउपलब्धियों को प्रकाशित करने के लिए पत्रकारवार्ता का आयोजन करते हैं। उनकेद्वारा दिए गए वक्तव्य समृद्ध समाचारों को जन्म देते हैं।
उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त सभा, सम्मेलन, साहित्यिक व सांस्कृतिककार्यक्रम,विधानसभा, संसद, मिल, कारखाने और वे सभी स्थल जहाँ सामाजिक जीवनकी घटना मिलती है, समाचार के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।

 


Wi-Fi है साइलेंट किलर..जो धीरे-धीरे करता है तबाह

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प्रस्तुति- रूही सिन्हा जूही सिन्हा




 नई दिल्ली। सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में इंसान आज मशीनों का गुलाम हो गया है, आज उसकी पूरी लाइफ टेक्निकल चीजों पर आधारित हो गई है, अगर आज वो फोन के जरिये स्मार्ट हुआ है तो वहीं वो इनकी वजह से खुले आम बीमारियों को दावत भी दे रहा है। आज कल लोग हर समय इंटरनेट का यूज करते हैं जिसके कारण हर घर-ऑफिस में वाई-फाई का धड़ल्ले से प्रयोग होता है। शर्मनाक- पोर्न सर्च करने में सबसे आगे हैं भारत के 6 शहर वाई-फाई के जरिये इंसान अपनी कई चीजों को एक साथ जोड़ता है, अक्सर लोग वाई-फाई से अपनो मोबाइल को कनेक्ट करके पचासों काम करते हैं लेकिन अज्ञानता के कारण वो यह नहीं जानते कि वो हर तरफ से अपने स्वास्थ्य पर बुरा असर डलवा रहे हैं। ब्रिटीश हेल्थ ऐजेंसी के मुताबिक वाई-फाई एक साइलेंट किलर की तरह काम करता है जो कि केवल इंसानों के लिए ही खतरनाक नहीं हैं बल्कि इसका घातक असर पौधों पर भी होता है। क्या होती हैं परेशानियां? अत्यधिक थकान कान में दर्द हमेशा तेज सिर दर्द आंखों में दर्द एकाग्रता का अभाव नींद पूरी ना होना Positive India: इंडिया को तरक्की के लिए चाहिए High-way भी I-way भी हम प्रौद्योगिकी के बिना नहीं रह सकते हैं - यह एक तथ्य है। लेकिन हमें इसके हानिकारक प्रभावों से खुद को सुरक्षित करने की जरूरत है। आईये जानते हैं वाई-फाई का प्रयोग करते हुए हम अपने आप को सुरक्षित कैस रख सकते हैं.. Auto Play 1/6 वाई-फाई को डिस्कनेक्ट कर दीजिये वाई-फाई को डिस्कनेक्ट कर दीजिये सोने से पहले वाई-फाई को डिस्कनेक्ट कर दीजिये ताकि मोबाइल का प्रयोग सोते समय आप ना कर पायें। Show Thumbnail ADVERTISEMENT Read more about: internet, mobile, study, survey, wifi, health, website, इंटरनेट, मोबाइल, शोध, सर्वे, वाईफाई, स्वास्थ्य, वेबसाइट

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पत्रकारिता की जय हो या क्षय ?

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भटका’ और ‘अटका’ पत्रकारिता विश्वविद्यालय

रामनगर की लीला यानी रामलीला

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प्रस्तुति- डा. ममता शरण 







रामनगर
—  city  —
समय मंडल:आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देशFlag of India.svg भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलावाराणसी
जनसंख्या39,941 (2001 तक )
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)

• 64 मीटर (210 फी॰)
निर्देशांक: 25.28°N 83.03°Eरामनगरभारतके उत्तर प्रदेशराज्य के वाराणसी जिलाका एक तहसील है। रामनगर में एक किला है जिसे रामनगर किलाकहते हैं और ये यहां के राजा काशी नरेशका आधिकारिक और पैतृक आवास है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं।[1]रामनगर किला]] में यहां के राजाओं का एक संग्रहालय भी है। ये राजाओं का १८वीं शताब्दी से आवास है।[2]

अनुक्रम

रामनगर की रामलीला

यहां दशहरात्यौहार खूब रौनक और तमाशों से भरा होता है। इस अवसर पर रेशमी और ज़री के ब्रोकेड आदि से सुसज्जित भूषा में काशी नरेश की हाथी पर सवारी निकलती है और पीछे-पीछे लंबा जलूस होता है।[1]फिर नरेश एक माह लंबे चलने वाले रामनगर, वाराणसीकी रामलीला का उद्घाटन करते हैं।[1]रामलीला में रामचरितमानसके अनुसार भगवान श्रीरामके जीवन की लीला का मंचन होता है।[1]ये मंचन काशी नरेश द्वारा प्रायोजित होता है अर पूरे ३१ दिन तक प्रत्येक शाम को रामनगर में आयोजित होता है।[1]अंतिम दिन इसमें भगवान राम रावणका मर्दन कर युद्ध समाप्त करते हैं और अयोध्यालौटते हैं।[1]महाराजा उदित नारायण सिंहने रामनगर में इस रामलीला का आरंभ १९वीं शताब्दीके मध्य से किया था।[1]

सरस्वती भवन

रामनगर किले में स्थित सरस्वती भवन में मनुस्मृतियों, पांडुलिपियों, विशेषकर धार्मिक ग्रन्थों का दुर्लभ संग्रह सुरक्षित है। यहां गोस्वामी तुलसीदासकी एक पांडुलिपि की मूल प्रति भी रखी है।[1]यहां मुगल मिनियेचर शैली में बहुत सी पुस्तकें रखी हैं, जिनके सुंदर आवरण पृष्ठ हैं।[1]
व्यास मंदिर, रामनगरप्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब वेद व्यासजी को नगर में कहीं दान-दक्षिणा नहीं मिल पायी, तो उन्होंने पूरे नगर को श्राप देने लगे।[1]उसके तुरंत बाद ही भगवान शिव एवं माता पार्वतीएक द पति रूप में एक घर से निकले और उन्हें भरपूर दान दक्षिणा दी। इससे ऋषि महोदय अतीव प्रसन्न हुए और श्राप की बात भूल ही गये।[1]इसके बाद शिवजी ने व्यासजी को काशी नगरी में प्रवेश निषेध कर दिया।[1]इस बात के समाधान रूप में व्यासजी ने गंगा के दूसरी ओर आवास किया, जहां रामनगर में उनका मंदिर अभी भी मिलता है।[1]

भूगोल

रामनगर 25.28°N 83.03°Eपर स्थित है।[3]यहां की औसत ऊंचाई६४ मीटर (२०९ फीट) है।

सन्दर्भ





  • मित्रा, स्वाति (२००२). गुड अर्थ वाराणसी सिटी गाइड. आयशर गुडार्थ लि.. प॰ २१६. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788187780045.

  • Mitra, Swati (2002). Good Earth Varanasi city guide. Eicher Goodearth Limited. प॰ 216. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788187780045.

  • बाहरी कड़ियाँ

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