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जगत विख्यात रामलीला

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पूरे विश्व में अनोखी है काशी की रामलीला

 
Vartman Ankur | : Admin | : Oct 09, 2015 23:51:16 IST

ramlila varanasi
- जी हां, यूनेस्को की अमूर्त विरासत सूची में शामिल देश की सबसे पुरानी रामनगर की रामलीला भारत ही नहीं सात समुंदर पार भी ख्यातिलब्ध है। ऐसा इसलिए कि जहां एक तरफ हर ओर पाश्चात्य संस्कृति व आधुनिकता की छाप है वहीं काशी के रामनगर की रामलीला आज भी भारतीय संस्कृति से सुसज्जित दौ साल पूर्व के परंपरा के तहत ही मंचन की जा रही है। खास बात यह है कि पहली बार दूरदर्शन पर काशी की रामलीला का मंचन हो रहा है, जो लोगों को खूब भा रही है। तकरीबन 200 साल से चली आ रही इस पुश्तैनी रामलीला का प्रसारण हर रोज रात साढ़े आठ बजे से डी.डी भारती पर किया जा रहा है
सुरेश गांधी 
तीनों लोकोंमें न्यारी भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिकी काशी के रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला अब दूरदर्शन पर छा गयी है। अनूठे आयोजन के संयोजन और सहभाग की समानांतर तैयारियों के बीच लीला प्रेमियों के तन-मन में धर्म अध्यात्म प्रस्तुत हो रहा है। लीला देख नेमियों का मन अवध, दिल जनकपुर हो चला है। श्रद्धा और आस्था के इस अनूठे समागम में विदेशी भी गोता लगा रहे है। टीबी में लीला देख लोग खासा प्रभावित है। लीला का ही चमत्कार है कि 11 माह काशी से लोग भले ही दूर रहे हो, लेकिन लीलार्पयत काशी ही उनकी जिंदगी की धुरी होती है और जैसे ही लीला शुरु होने की बात आती है तो वह खींचे चले आते है। क्योंकि ऐसी सादगी, सहजता, श्रद्धा का अलौकिक सौंदर्य अल्हड़पन और मौजमस्ती के साथ श्रद्धा-भक्ति एवं समर्पण का ऐसा दुर्लभ वातावरण उन्हें काशी के सिवाय कहीं और देखने को नहीं मिलता। यह रामलीला दुनिया का पहला गतिशील (मूविंग) नाट्य मचंन है जो हर दिन अलग अलग स्थानों पर किया जाता है। रामचरित मानस की चौपाइयों पर आधारित अवधि में होने वाली इस रामलीला में न तो कोई माइक होता है और न ही लाईट बल्कि पेट्रोमैक्स की रोशनी में इस रामलीला को खेला जाता है और 40 किलोमीटर दूर के गांवों से लाखों लोग इसे देखने आते हैं। इस रामलीला की खासियत यह है कि रामलीला के दौरान रावण दहन या आतिशबाजी और मंच सज्जा के सभी कारीगर मुस्लिम होते हैं। रामलीला के पात्र वही होते हैं जो 200 साल से पुश्तैनी रूप से अभिनय करते रहे हैं। यही वजह है कि रामनगर की जीवंत लीला देखने के लिए परदेसी नेमियों ने तो रामनगर या गंगा तट स्थित किसी होटल, धर्मशाला में डेरा जमाया ही है। शाम ढलते ही पास-पड़ोस के लोग भी बड़ी संख्या में लीला स्थल पहुंच जाते है।
राम कथा पर आधारित यहां की लीलाएं व्यापक क्षेत्र में प्रचलित है, किन्तु काशी की रामलीला की अपनी निजी विशिष्टता है जिसके कारण उसे देश एवं विदेश में भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। रामनगर के महाराजा गत 200 सालों से इस रामलीला का आयोजन करते रहे हैं जो 31 दिन तक रोज होती है। देश के किसी भी हिस्से में इतने दिनों तक कोई भी रामलीला नहीं होती है। यह रामलीला रामनगर में 4 किलोमीटर के दायरे में 31 स्थानों पर जगह बदल-बदल कर होती हैं। देखा जाय तो काशी में कई प्रकार की लीलाएं भी होती है। काशी की विश्वप्रसिद्ध रामलीला का आज भी जबर्दस्त आकर्षण हैं। काशी की रामलीला को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इस लीला का इतना भावपूर्ण मंचन होता है कि दर्शक पूरे राममय हो जाते हैं। जहां तक रामनगर की रामलीला की शुरुवात का मसला है तो लोग बताते है कि राजा महीप नारायण सिंह छोटा मीरजापुर की रामलीला के मुख्य अतिथि थे। लेकिन किसी कारणवश वे रामलीला में कुछ देर से पहुंचे। तब तक धनुषभंग हो चुका था। इसका उन्हें अत्यधिक खेद हुआ। तब उन्होंने 1855 ई. में रामनगर में रामलीला कराने का निर्णय लिया। रामनगर की रामलीला को नाटकीय रूप से समृद्ध करने का श्रेय महाराजा ईश्वरीनारायण सिंह को जाता है। उन्हेंने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और रीवां के महाराजा रघुराज सिंह के सहयोग से रामलीला के संवादों का पुन: लेखन कराया। साथ ही कथा के अनुसार अयोध्या, जनकपुर, अशोक वाटिका और लंका को रामनगर के अलग-अलग स्थानों का नाम दिया। एक ही दिन अलग-अलग स्थानों पर कई दृश्यों का मंचन होता है। परम्परा के अनुसार रामलीला का शुभारंभ प्रतिदिन शाम पांच बजे शहनाई वादन के साथ होता है। इसी समय हाथी पर सवार होकर काशीनरेश लीला स्थल पर आते हैं। रामलीला शाम सात बजे से रात 10 बजे तक चलती है। जिसका लोग भरपूर आनंद उठाते हैं। रामनगर की रामलीला भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी से लेकर अश्विन पूर्णिमा तक चलती है। यानी 31 दिनों तक रामनगर में भगवान राम की लीलाएं होती रहती है। रामलीला के लिए पात्रों का चयन ब्राह्मण परिवार के 10 से 12 वर्ष के बीच बटुकों में से पहले ही हो जाता है। जो राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और सीता का पाठ निभाते हैं। रामलीला की अन्य भूमिकाओं के लिए 16 वर्ष से अधिक आयु वाले बच्चों का चयन होता है। रामलीला होने से करीब दो महीने पहले से ही चयनितों को व्यास प्रशिक्षण देने लगते हैं। रामलीला में चौपाइयों को संगीतमय ढंग से प्रस्तुत करने वाले को रामायणी कहते हैं। रामलीला के निर्देशक व संचालक को व्यास कहते हैं। रामनगर की रामलीला देखने के लिए लोगों में गजब की उत्कंठा रहती है।
रामनगर की अभिनय प्रधान रामलीला में झांकियों पर कम ध्यान दिया जाता है। फिर भी क्षीर-सागर, राम-जन्म, विराट-दर्शन और राज्याभिषेक की झांकियां प्रसिद्ध है। तीन जुलूस बहुत प्रसिद्ध हैं-राम बारात, विजयादशमी के दिन राम-लखन के साथ महाराज की सवारी तथा भरत-मिलाप। लीला समाप्त होने पर प्रतिदिन ऊंचे मंच पर राम-लक्ष्मण को बिठाकर आतिशबाजी के प्रकाश में आरती की जाती है। फुलवारी, धनुष-यज्ञ, अशोक-वाटिका तथा लक्ष्मण-शक्ति की लीलाएं बहुत प्रसिद्ध हैं तथा सायंकाल 5 बजे विगुल और शहनाई के साथ महाराज की सवारी आती है, हाथी पर। अगल-बगल कुछ विशेष लोग भी हाथियों पर होते हैं। आरम्भ में 45 मिनट रामलीला होती है, तत्पश्चात राजा चले जाते है। पुन: सात से दस बजे तक लीला होती है। काशी में अधिकतर स्थानों में लीला शुरु होने के पहले पात्रों को कंधे पर बैठाकर रामलीला मैदान में लाया जाता है। भूतपूर्व काशी नरेश स्वर्गीय डा. विभूति नारायण सिंह रामलीला के प्रति राजकुल की परम्परा का निर्वाह करते हुए नवरात्रि पर्यन्त जानकी जी के चरण धोकर पीत रहे हैं। इन दिनों जानकी जी रावण द्वारा अशोक वाटिका में बन्दी रहती है। अशोक वाटिका पहुंच कर महाराजा सोने के लोटे में रखे गंगाजल से सोने की थाली में जानकी जी के चरण धोते थे। चरुणामृत लेते थे और चमेली के फूलों का एक गुलदस्ता भेंट करके लौट जाते थे। वह परंपरा आज भी कायम हैं। पात्रों की वेशभूषा पर विशेष ध्यान रखा जाता है। जैसे अयोध्या में राम-लक्ष्मण व सीता जरी के वस्त्र व बनारसी साड़ी धारण करते है और वनवास के समय चित्रकूट की लीला में राम-लक्ष्मण पीले रंग की अल्पियां धारण करते हैं। ये तुलसी की माला, बाजू-बन्द और केयूर धारण करते हैं। हनुमान का मुखौटा यहां राम के मुकुट के बाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। मेघाभगत को अश्वारोही कुमारों ने धनुष-बाण दिया था, अत: यहां धुनष-बाण का बहुत महत्व है। धनुष-बाण की झांकी वाले दिन उसकी आरती उतारी जाती है, और चढ़ावा चढ़ता है।
चेतगंज की नाककटैया :-काशी में चेतगंज की नाककट्टैया भी काफी प्रसिद्ध है। इसमें तकरीब एक लाख से भी अधिक लोगों की भीड़ जुटती है। लोग अपने घरों की छतों से भी इस लीला को देखते हैं। शूपर्णखा की नाक कट्टैया के दृश्य के रूप में यह लीला प्रचलित है। लक्ष्मण जी की ललकार के जवाब में चेतगंज में एक विशाल राक्षस सेना जुलूस के रूप में आती है। यह जुलूस पिशाचमोचन से शुरू होकर रामलीला मैदान तक जाता है। इस दृश्य को देखने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ता है। लोग अपने कैमरे में इस दृश्य को कैद करते हैं। नाक कट्टैया करवा चैथ या कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष के चतुर्थी को पड़ती है।
भरत मिलाप :-काशी में नाटी ईमली का भरत मिलाप भी विश्व प्रसिद्ध है। विजयादशमी के दूसरे दिन एकादशी को भरत मिलाप का आयोजन बड़े ही रोचक एवं आकर्षक ढंग से किया जाता है। इस लीला में एक अभूतपूर्व झांकी होती है। जिसमें राम, सीता और लक्ष्मण तपस्वी के वेश में मंच पर बैठे रहते हैं। वहीं दूसरी ओर भरत और शत्रुघ्न रहते हैं जो उनके सामने आकर साष्टांग प्रणाम करते हैं। राम उन्हें गले से लगा लेते हैं। इसके बाद विमान आकर राजकुमार को नगर की ओर ले जाता है। यह लीला महज 5 मिनट की होती है। लेकिन इस ऐतिहासिक भावपूर्ण मंचन को देखने के लिए लाखों की भीड़ जुटती है। भरत मिलाप के सम्मान में काशी में उस दिन कहीं पर रामलीला नहीं होती है।
नागनथैया:-काशी में नाग नथैया का भी अपना अलग आकर्षण है। तुलसीघाट पर मात्र पांच मिनट की इस कृष्ण लीला को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। इस लीला के दौरान श्रीकृष्ण अपनी मित्र मंडली के साथ यमुना तट पर गेंद खेल रहे होते हैं। तभी गेंद नदी में चली जाती है। गेंद निकालने के लिए कृष्ण कदम्ब की डाली से यमुना में कूद जाते हैं। कुछ देर बाद विषधर कालिया के फन (मस्तक) पर खड़े होकर नदी के सतह पर आते हैं। इस लीला में भाग लेने वाले बच्चे 11 से 14 वर्ष के होते हैं। लोग कदम्ब की डाल संकटमोचन मंदिर से तुलसीघाट तक लाते हैं। लीला समाप्त होने के बाद डाली गंगा तट पर रोप दी जाती है। इसको देखकर लोग भाव विभोर हो जाते हैं। हर साल महाराजा के गुरुकुल के बच्चे इस रामलीला के पात्र होते हैं। रामनगर के महाराजा ही इन बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्च उठाते हैं और ये बच्चे 31 दिनों तक संयमित ढंग से खान-पान और आचरण भी करते हैं। उन्हें रामलीला के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। हर साल गुरुकुल के नए बच्चे इस रामलीला में अभिनय करते हैं।

वीरेन्द्र सहवाग

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मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
विस्फोटक सलामी बल्लेबाज़ वीरेन्द्र सहवाग
भारतीय पताका
वीरेन्द्र सहवागभारत
पूरा नामवीरेन्द्र सहवाग
जन्म20 अक्टूबर 1978
बल्लेबाज़ी का तरीक़ा{{{बल्लेबाज़ी का तरीक़ा}}}
गेंदबाज़ी का तरीक़ा{{{गेंदबाज़ी का तरीक़ा}}}

टेस्ट क्रिकेटएकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट
मुक़ाबले92240
बनाये गये रन78908025
बल्लेबाज़ी औसत52.1634.85
100/5022/3015/37
सर्वोच्च स्कोर319219
फेंकी गई गेंदें32434230
विकेट3992
गेंदबाज़ी औसत44.4140.39
पारीमें 5 विकेट10
मुक़ाबले में 10 विकेट0नहीं है
सर्वोच्च गेंदबाज़ी5/104{{{एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सर्वोच्च गेंदबाज़ी}}}
कैच/स्टम्पिंग44/069/0
8 दिसम्बर, 2011के अनुसार
स्रोत: [1]
वीरेन्द्र सहवाग (अंग्रेजी: Virender Sehwag, जन्म: 20 अक्टूबर 1978, हरियाणा) एक भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं। प्यार से उन्हें सभी "वीरू"ही कहते हैं। वैसे उन्हें "नज़फ़गढ़ के नवाब"व "आधुनिक क्रिकेट के ज़ेन मास्टर"के रूप में भी जाना जाता है। वे दायें हाथ के आक्रामक सलामी बल्लेबाज तो हैं ही किन्तु आवश्यकता के समय दायें हाथ से ऑफ स्पिन गेंदबाज़ी भी कर लेते हैं। उन्होंने भारतकी ओर से पहला एकदिवसीय मैच 1999 में व पहला टेस्ट मैच 2001 में खेला था। अप्रैल 2009 में सहवाग एकमात्र ऐसे भारतीयबने जिन्हें "विजडन लीडिंग क्रिकेटर ऑफ द ईयर"के खिताब से नवाज़ा गया। उन्होंने अगले वर्ष भी इस ख़िताब को फिर जीता।[1]

अनुक्रम

व्यक्तिगत जीवन

सहवाग का जन्म 20 अक्टूबर 1978 को हरियाणाके एक जाटपरिवार में हुआ। सहवाग अपने माता-पिता के चार बच्चों में तीसरे संतान हैं। सहवाग से बड़ी दो बहनें मंजू और अंजू हैं जबकि उनसे छोटा एक भाई है विनोद। सहवाग के पिता किशन सहवाग बताते हैं कि वीरू में क्रिकेट के लिये प्यार सात माह की उम्र से ही जाग गया था जब उन्होंने पहली बार उसे खिलौना बैट लाकर दिया। यही वीरू बारह साल की उम्र में क्रिकेट के दौरान जब अपना दाँत तुड़वाकर घर पहुँचा तो पिता ने उसके क्रिकेट खेलने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। बाद में वीरू की माँ कृष्णा सहवाग के हस्तक्षेप के बाद ही यह प्रतिबन्ध हटा। उसके बाद तो क्रिकेट उनकी जिन्दगी का जैसे पहला प्यार ही बनकर रह गया। वैसे यह अलग बात है कि 2004 में उन्होंने आरती नाम की एक कन्या से शादी रचा ली और उससे उनके दो पुत्र भी हैं। वे अपने परिवार के साथ दिल्लीके नज़फगढ इलाके में रहते हैं।[2]

खिलाड़ी जीवन

"वीरेन्द्र सहवाग भारतका ऐसा बल्लेबाज़जिससे दुनिया का हर गेंदबाज खौफ खाता है"यह मानना है इमरान ख़ानसे लेकर रिचर्ड हेडली और बॉब विलिस के दिल में खौफ पैदा करने वाले विवियन रिचर्डसका।[3]अभी हाल ही में दक्षिण अफ्रीकाके खिलाफ युसूफ पठान ने यादगार तूफानी पारी खेलने के बाद पत्रकारों से कहा था "वीरेंद्र सहवाग के बेखौफ अंदाज ने उन्हें इस कदर खेलने के लिए प्रेरित किया।"सहवाग भारतीय टीम को बहुत तेज शुरुआत देते हैं और गेंदबाजों पर शुरू से ही हावी हो जाते हैं। सहवाग अगर अपने फॉर्म में हों तो किसी भी आक्रमण को ध्वस्त करने की क्षमता रखते हैं। सहवाग जब तक क्रीज पर रहते हैं तब तक विरोधियों के माथे पर उनकी क्रीज पर मौजूदगी का खौफ साफ-साफ देखा जा सकता है।[4]
"नज़फगढ़ के नवाब", "मुल्तान के सुल्तान"और "जेन मास्टर ऑफ़ माडर्न क्रिकेट"जैसे अनेक उपनामों से नवाज़े जाने जाने वाले वीरेंद्र सहवाग ने अपना पहला अन्तरराष्ट्रीय मैच 1999 में पाकिस्तानके खिलाफ खेला था। इस मैच में सहवाग एक रन बनाकर चलते बने और गेंदबाजी के दौरान तीन ओवरों में 35 रन दे डाले। इसके बाद सहवाग को काफी समय तक टीम में शामिल नहीं किया गया। दिसम्बर 2000 में जिम्बाब्वेके खिलाफ घरेलू सीरीज में सहवाग को फिर से टीम में शामिल किया गया। अगस्त 2001 में श्रीलंकाऔर न्यूजीलैंडके खिलाफ ट्राई सीरीज में सहवाग ने पारी की शुरुआत करते हुए कैरियर का पहला अर्धशतक जमाया। इसी सीरीज में न्यूजीलैंड के खिलाफ 69 गेंदों पर शतक ठोककर सहवाग ने अपने हुनर का नमूना पेश किया।
टेस्ट क्रिकेट में भारत की ओर से तिहरा शतक जड़ने के रिकार्डधारी सहवाग ने अब तक 228 एकदिवसीय मैच में 13 शतक और 36 अर्धशतकों की मदद से 7380 रन बनाए हैं। उनका एकदिवसीय बैटिंग औसत 34.65 का है। एकदिवसीय मैचों में उनका सर्वाधिक स्कोर 219 रन है। दिलचस्प तथ्य यह है कि सहवाग की आक्रामक खेल शैली वनडे क्रिकेट के अनुकूल है लेकिन वह टेस्ट मैचों में अधिक सफल रहे हैं जिसमें उन्होंने 72 टेस्ट मैचों में 52.50 के औसत से 17 शतक और 19 अर्धशतकों समेत 6248 रन बनाये हैं।

कीर्तिमान

एकदिवसीय क्रिकेट मैचों में सबसे तेज गति से शतक बनाने वाले भारतीय खिलाड़ी का रिकार्ड भी सहवाग के ही नाम है। मार्च 2010 में उन्होंने हैमिल्टन में न्यूजीलैंडके खिलाफ सिर्फ 60 गेंदों पर शतक बनाया था। टेस्ट क्रिकेट में पहले विकेट के लिये सबसे बड़ी साझेदारी का रिकार्ड भी सहवाग के ही नाम है। राहुल द्रविड़के साथ 410 रन की साझेदारी बना करके वीरू ने कीर्तिमान बनाया था। एकदिवसीय क्रिकेट मैच में उनका सर्वाधिक स्कोर 219 रन है जो अभी तक एक विश्व रिकार्ड है।[5]सहवाग एकमात्र ऐसे भारतीय खिलाड़ी हैं जिन्होंने टेस्ट मैच में तिहरा शतक जड़ा है। सर डोनाल्ड ब्रेडमैनऔर ब्रायन लाराके बाद सहवाग दुनिया के तीसरे ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में दो बार तिहरा शतक बनाने का कीर्तिमान स्थापित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में किसी बल्लेबाज द्वारा यह सबसे तेज गति से बनाया तिहरा शतक (319 रन) भी है। तीन सौ उन्निस रन बनाने के लिये उन्होंने सिर्फ़ 278 गेंद ही खेलीं। तीस से ज्यादा औसत के साथ सहवाग का स्ट्राइक रेट दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसके अलावा वह दुनिया के एकमात्र ऐसे क्रिकेटखिलाड़ी हैं जिन्होंने टेस्ट मैचों में दो तिहरे शतक बनाने के साथ एक पारी में पाँच विकेट भी हासिल किये।

पुरस्कार

सहवाग को भारत सरकारने 2002 में अर्जुन पुरस्कारदेकर सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त उन्हें 2008 में अपने शानदार प्रदर्शन के लिये "विजडन लीडिंग क्रिकेटर इन द वर्ल्ड"के सम्मान से नवाजा गया। सहवाग ने इस पुरस्कार को 2009 में दुबारा अपने नाम किया। 2011 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर के नाते "ईएसपीएन क्रिकीन्फो अवार्ड"भी दिया गया।[6]

सन्दर्भ


गांधी परिवार की सादगी ईमानदारी और देशभक्ति पर कौन न हो जाए शर्मिंदा

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जब राहुल (गांधी) की गजब कहानी


अस्वीकरण (DISCLAIMER):
मैं किसी राजनैतिक पार्टी का समर्थन नहीं करता हूँ.
जो मायावती ने किया, मैं उसका भी समर्थन भी नहीं करता हूँ .
 पर जब मैंने उत्तर प्रदेश में हो रहे किसान आन्दोलन पर राहुल गाँधी की पाखण्ड भरी टिप्पणी सुनी,  तब मुझे बहुत बुरा लगा.

राहुल गाँधी: "उत्तर प्रदेश  में जो कुछ हुआ उसे देखकर मुझे अपने आपको भारतीय कहने में शर्म आती है."

यू. पी. के लिए शर्मिन्दा होने की इतनी भी क्या जल्दी है?
यू. पी. के लिए शर्मिन्दा होने की इतनी भी क्या जल्दी है? आज़ादी के पहले से लेकर आज़ादी के बाद तक, 1939 से 1989 तक ( इक्का दुक्का अन्य सरकारों और आपातकाल को छोड़कर जो आपकी  दादी माँ इंदिरा गाँधी की सौगात थी), कांग्रेस ने इस देश पर ज़्यादातर समय तक राज किया है.
भारत के 14 में से 8 प्रधानमन्त्री यू पी से थे, 8 में से 6 प्रधानमन्त्री कांग्रेस से थे...
आपकी पार्टी के पास कम से कम आधी शताब्दी और आधे से ज्यादा प्रधानमंत्री थे देश का  निर्माण  करने  के लिए...
मुलायम सिंह जैसे लोग मुख्यमंत्री सिर्फ इसलिए बने क्योंकि आपकी पार्टी राज्य में अपने काम-काज को लेकर 'गांधीवादी'सिर्फ कागजों पर थी. अगर आप थोड़ा ध्यान दें तो शायद आपको यह अहसास होगा कि यू पी की अभी की अराजकता वाली हालत कांग्रेस के लगभग 50 साल तक रहे गरिमामय शासन का ही नतीजा है.
तो  राहुल बाबू.....यू. पी. के लिए शर्मिन्दा होने की इतनी भी क्या जल्दी है? मायावती तो सिर्फ उसी 'जमीन अधिशासन विधेयक'का इस्तेमाल कर रही है जिसका आपकी कांग्रेस ने किसानों को लूटने के लिए कई बार इस्तेमाल किया है.
आपकी पार्टी ने इस विधेयक को तब क्यों नहीं बदला जब वो शासन में इतने लम्बे समय तक थी?
मैं मायावती के काम को समर्थन नहीं दे रहा...
लेकिन आपकी पार्टी द्वारा किये जाने वाले काम और आपकी टिप्पणी आपकी 'नीयत'और 'विश्वसनीयता'पर भी सवाल खड़े करती है.

अगर आप वास्तव में शर्मिन्दा होना चाहते हैं
घबराइये मत, मैं आपको शर्मिन्दा होने के कई कारण देने वाला हूँ...
अगर आप वास्तव में शर्मिन्दा होना चाहते हैं!
पहले तो आप प्रणव मुखर्जी से पूछिए कि वो स्विस बैंकों में अकाउंट्स रखने वालों के बारे में सूचना क्यों  नहीं दे रहे...
अपनी माँ से पूछिए कि  74 ,000 करोड़ के  कर चोरी के मामले में हसन अली के खिलाफ जांच कौन रोक रहा है.
नवम्बर 1999 में राजीव गांधी के गुप्त बैंक खाते में 2 .5 बिलियन स्विस फ्रांक (2.2 बिलियन डॉलर)  थे   (ANNEXURE 10 देखें)
उनकी मृत्यु के बाद सोनिया गांधी इस पैसे की एकमात्र हकदार थीं. यह तो 1991 की बात है, सिर्फ उन्हें पता है अब इसमें कितने पैसे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि इसी कारण से भारत सरकार स्विस बैंकों में अकाउंट्स रखने वालों के नाम नहीं दे रही?
उनसे जाकर पूछिए, 2G घोटाले में 60 % हिस्सा  किसे मिला?
कलमाडी पर कुछ सैकडे करोड़ रुपयों का इलज़ाम है. कॉमनवेल्थ गेम्स के बाकी पैसे किसकी जेब में गए?
प्रफुल पटेल से पूछिए किसने इन्डियन एयरलाइन्स की हालत खराब की. एयर इंडिया ने  लाभकारी रूट्स को क्यूँ छोड़ा?
हम टैक्स भरने वाले एयर इंडिया के नुकसान को क्यों भरें?
जब आप एक एयर लाइन प्रोपर्टी नहीं चला सकते, देश कैसे चलाएंगे?
मनमोहन सिंह से पूछिए. वो इतने समय से शांत क्यों  हैं?
लोग कहते हैं वो इमानदार हैं. उनकी इमानदारी किसकी तरफ है - देश की ओर या एक व्यक्ति विशेष  की ओर?
सी बी आई ने रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया पर छापा मारा और उसे 500 एवं 1000 के नोटों की भारतीय  नकली मुद्राओं का ज़खीरा मिला. वो भी रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया में?
भारत सरकार इस पर चुप क्यों है?
तो फिर इस बढ़ती मुद्रास्फीती का कारण है क्या - वाणिज्य या राजनीति ? ( इकोनोमिक्स या पोलिटिक्स )

भोपाल गैस ट्रेजेडी  के गुनाहगार अभी तक खुले आम घूम रहे हैं. कौन है इसका जिम्मेवार? (इसमें 20,000 लोग मारे गए थे)
1984 में सिखों की सामूहिक ह्त्या हुई. वो भी सरकार के समर्थन से. किसने यह करवाया?
1976 -77 की इमरजेंसी के बारे में पढ़ना मत भूलिए. जब हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव में चयन को अवैध ठहराया, उन्होंने कैसे देश को इमरजेंसी में धकेल दिया.
(ज़ाहिर है कि  उनके मन में भी लोकतंत्रन्यायपालिका और स्वतंत्र प्रेस के लिए तहे दिल से इज्ज़त थी.)
जवाब तो आप जान ही गए होंगे.
    पर मेरा प्रश्न है कि मायावती और उनके परिवार व पार्टी पर फैसला करने में दुहरे मापदंड का इस्तेमाल क्यों ?
मैं मायावती की निंदा करता हूँ. पर राहुलजी, आप सिर्फ उनके लिए शर्मिन्दा क्यों होते हैं?
अपने करीबियों के लिए इतनी नरमी बरतने की क्या ज़रुरत है? देश को खस्ताहाल में लाने में उनका योगदान कोई कम तो नहीं है.
आप किसानों से उनकी ज़मीन लिए जाने की निंदा करते हैं. ज़रा बताइये कि आपकी पार्टी के शासनकाल  में विदर्भ में कितने किसानों ने खुदकुशी की. उसके लिए आपको शर्मिन्दगी नहीं होती?

72 ,000 करोड़ के लोन की माफी
आपकी पार्टी ने किसानों का 72 ,000 करोड़ का लोन माफ़ किया. पर वो तो किसानों तक पहुंचा भी नहीं.
आपने अपनी सरकार द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करने पर ध्यान तो दिया नहीं, पर अपनी सुन्दर छवि बनाने के लिए हम पर किसानों के साथ भोजन करते हुए खुद की तस्वीर मीडिया में छपवाते रहते हैं.
आप शर्मिन्दा होना चाहते हैं ना! तो इस बात के लिए शर्मिन्दा होइए कि आपकी पार्टी ने लोगों का पैसा (72 ,000 करोड़) सरकार की तिजोरी से खर्च करने के लिए लिया और पूरी तरह बर्बाद कर दिया..


केवल इस गिरफ्तारी पर इतना हल्ला क्यों?
राहुलजी , सितम्बर 2001 में आप एफ बी आई द्वारा बोस्टन एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किये गए थे.
आपके पास नकद में $ 1 ,60 ,000 मिले  थे . आपने अभी तक जवाब नहीं दिया आप इतना सारा पैसा क्यों ले जा रहे थे.
संयोग से आप अपनी कोलंबियन गर्लफ्रेंड और  एक कथित रूप से ड्रग माफिया सरगना की बेटी, वेरोनिक कार्टेली,के साथ 9 घंटों तक एयरपोर्ट पर रोककर रखे गए थे.
बाद में प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी के हस्तक्षेप पर आपको छोड़ा गया. एफ बी आई ने अमेरीका में FIR जैसी शिकायत दर्ज करके आपको जाने दिया.
जब सूचना के अधिकार का प्रयोग करते हुए FBI से आपकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचना माँगी गयी तो   FBI ने आपसे 'कोई आपत्ति नहीं'का सर्टिफिकेट माँगा.
आपने तो कभी जवाब ही नहीं दिया.
यह गिरफ्तारी न अखबारों की हेडलाइन बनी ना न्यूज चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज. आपको खुद ही मीडिया के पास जाना चाहिए था और बोलना चाहिए था : "मुझे खुद को भारतीय कहते हुए शर्म आती है."
कहीं ऐसा तो नहीं कि आप सिर्फ दिखावटी गिरफ्तारियों (उत्तर प्रदेश) पर बवाल मचाते हैं और वास्तविक गिरफ्तारियों (बोस्टन) को कूड़े के डब्बे में डाल देते हैं?

बताइये!!!
खैर, अगर आप और शर्मिन्दा महसूस करना चाहते हैं तो पढ़ते जाइए...


2004 में आपकी माँ द्वारा प्रधानमंत्री पद के तथाकथित त्याग के बारे में.
नागरिक अधिनियम के एक प्रावधान के अनुसार...
एक विदेशी नागरिक अगर भारत का नागरिक बन जाता है तो उस पर वही नियम-क़ानून लागू होंगे जो एक भारतीय नागरिक के इटली के नागरिक बन जाने पर लागू होते हैं.
(Principle of Reciprocity पर आधारित शर्त)
[ANNEXURE 1&2 पढ़ें]

जिस तरह आप इटली में प्रधानमंत्री नहीं बन सकते अगर आप वहाँ पैदा नहीं हुए
ठीक उसी तरह आप भारत में प्रधानमंत्री नहीं बन सकते अगर आप यहाँ पैदा नहीं हुए!

डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी (2G का खुलासा करने वाले) ने भारत के राष्ट्रपति का ध्यान इस बात पर दिलाते हुए एक पत्र भेजा.  [ANNEXURE 3 में उस पत्र को पढ़ें]
17 मई 2004 को शाम 3 :30 बजे भारत के राष्ट्रपति ने इस सम्बन्ध में एक पत्र सोनिया गांधी को भेजा.
शपथ ग्रहण समारोह उसी दिन शाम 5 बजे होना था.
तब लाज बचाने के लिए अंतिम पल में मनमोहन सिंह को लाया गया.

सोनियाजी द्वारा किया गया  त्याग महज एक नौटंकी था. 
क्योंकि सच तो यह है कि सोनियाजी ने अलग अलग सांसदों द्वारा हस्ताक्षर किये गए 340 पत्र राष्ट्रपति कलाम को भेजे थे, जिनमें खुद के प्रधानमन्त्री बनने की योग्यता की वकालत की गयी थी.
उनमें से एक पत्र में लिखा था - मैं, सोनिया गांधी, राय बरेली से चयनित सदस्या, सोनिया गांधी की प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्ताव रखती हूँ.
  तो स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री तो वह बनना चाहती थीं  जब तक उन्हें संवैधानिक प्रावधानों का पता नहीं था.
गौरतलब यह कि उन्होंने कोई त्याग नहीं किया, दरअसल वह कानूनन रूप से देश की प्रधानमंती बन ही नहीं सकती थीं. 

राहुलजी, आपको इस बात के लिए शर्मिन्दा होना चाहिए. सोनिया जी के पास एक विश्वसनीयता थी वो भी एक झूठ था.

अब ज़रा अपने बारे में सोचिये
आप डोनेशन कोटा पर हार्वर्ड जाते हैं (हिंदुजा भाइयों ने हार्वर्ड को 11 मिलियन डॉलर उसी साल दिए जिस साल राजीव गांधी सत्ता में थे)
आप 3 महीने में निकाले जाते हैं/आप 3 महीनों में ड्रॉप आउट हो जाते हैं ( दुर्भाग्य से मनमोहन सिंह उस समय हार्वर्ड के डीन नहीं थे, नहीं तो आपको एक चांस और मिल जाता. पर क्या करें, दुनिया में एक ही मनमोहन सिंह हैं)
कुछ स्त्रोतों का कहना है, आपको राजीव गांधी की ह्त्या के कारण ड्रॉप आउट करना पडा.
शायद ऐसा हो. लेकिन फिर आप हार्वर्ड से अर्थशास्त्र में मास्टर्स होने का झूठ क्यों बोलते रहे....जब तक कि आपके बायो- डाटा  पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी (2G का खुलासा करने वाले) ने सवाल नहीं उठाया.
सैंट स्टीफेंस  में आप हिन्दी में फेल कर जाते हैं.
हिन्दी में फेल!!
और आप देश के सबसे बड़े हिंदीभासी राज्य का प्रतिनिधत्व कर रहे हैं?

सोनिया गांधी की शैक्षिक उपलब्धियां
सोनिया गांधी ने एक उम्मीदवार के रूप में एक हलफनामा दायर किया है जिसमें लिखा है कि उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी की पढाई की है.
[ANNEXURE-6 7_37a देखें]
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अनुसार ऐसी कोई छात्रा कभी थी ही नहीं! [ANNEXURE-7_39 देखें]
 डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा एक केस दायर करने पर,
उन्होंने अपने हलफनामा से कैम्ब्रिज की बात हटा दी.
सोनिया गांधी ने हाई स्कूल तक पास नहीं किया. वो सिर्फ 5 वीं  पास हैं!
शिक्षा के मामले में, मामले में वो 2G घोटाले के दूसरे सहयोगी करूणानिधि के बराबर हैं -
आप अपनी शिक्षा की नक़ली डिग्री दिखाते हैं; आपकी माँ अपनी शिक्षा की नक़ली डिग्री दिखाती हैं.
और फिर आप युवाओं के बीच में आकर बोलते हैं : "हम राजनीति में शिक्षित युवाओं को चाहते हैं."

EC और लोकसभा के स्पीकर को  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा भेजे गए पत्र पढ़ें - ANNEXURE 7_36 &7_35

एक गांधीजी थे, वो दक्षिण अफ्रीका गए, वहाँ अपनी योग्यता से वकील बने, उसे दक्षिण अफ्रीका में सेवा करने के लिए छोड़ा, फिर अपने देश में सेवा करने के लिए...

क्यूंकि सच्चाई ये है कि  आप अभी तक राजनीति में नहीं आये हैं. दरअसल आप फैमिली  बिजनेस में आये हैं.
पहले राजनीति में आइये. राहुल गाँधी के नाम से नहीं, राओल विन्ची के नाम से चुनाव जीतकर दिखाइये. तब युवाओं और शिक्षित लोगों को राजनीति में आने की सीख दीजिए.
और तब तक हमें सचिन पायलट, मिलिंद देवरा और नवीन जिंदल जैसे युवाओं का उदाहरण मत दीजिये जिन्होंने राजनीति  में पदार्पण किया है.
वो राजनीतिज्ञ नहीं हैं. बस राजनीति में किसी तरह आ गए हैं.
ठीक उसी तरह जैसे अभिषेक बच्चन और कई स्टारपुत्र जो अभिनेता नहीं है, बस अभिनय में किसी तरह आ गए हैं (कारण सभी जानते हैं)
इसलिए बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप युवाओं को राजनीति में आने की सीख देना  बंद करें जब तक खुद में थोड़ी काबिलियत ना आ जाए..

हम राजनीति में क्यों नहीं आ सकते!
राहुल बाबा, थोडा समझो. आपके पूज्य पिताजी के बैंक खाते (स्विस) में 10,000 करोड़ रुपये थे  जब वो स्वर्गवासी हुए.
सामान्य युवाओं को ज़िंदगी जीने के लिए वर्क करना पड़ता है.
आपके परिवार को बस थोड़ा नेटवर्क करना पड़ता है.
अगर हमारे पिता ने हमारे लिए हज़ारों करोड़ रुपए छोड़े होते तो शायद हम भी राजनीति में आने की सोचते...
लेकिन हमें काम करना पड़ता है. सिर्फ अपने लिए नहीं, आपके लिए भी. ताकि हमारी कमाई का 30% हिस्सा टैक्स के रूप में सरकार के पास जाए जो आपके स्विस बैंक और अन्य व्यक्तिगत बैंक खातों में पहुँचाया जा सके.
इसलिए प्यारे राहुल, बुरा ना मानो अगर युवा राजनीति में नहीं आ पाते. हम आपके चुनाव अभियानों और गाँवों में हैलीकॉप्टर यात्राओं के लिए भरपूर योगदान दे रहे हैं.
आप जैसे नेताओं बनाम राजकुमारों को  पालने के लिए किसी को तो कमाना पडेगा, खून पसीना एक करना पडेगा.

कोई आश्चर्य नहीं आप गांधी नहीं, सिर्फ नाम के गांधी हैं!
एयर इंडिया, KG गैस डिविजन, 2G, CWG, स्विस बैंक खातों की जानकारियाँ...हसन अली, KGB.
अनगिनत उदाहरण हैं आपके परिवार के कारनामों के.
उसके बाद सोनिया गांधी ने नवम्बर 2010 में इलाहाबाद की पार्टी रैली में भ्रष्टाचार के खिलाफ 'जीरो टोलेरेंस'की घोषणा की. पाखण्ड की भी हद है!
आप शर्मिन्दा होना चाहते हैं न!
यह सोचकर शर्मिन्दा होइए कि देश का  प्रथम राजनैतिक परिवार  क्या से क्या बन गया है...
...एक पैसा कमाने की शर्मनाक मशीन!

कोई आश्चर्य नहीं कि आप अपने रक्त से गांधी नहीं हैं. गाँधी तो बस एक अपनाया हुआ नाम है. आखिरकार इंदिरा ने महात्मा गाँधी के बेटे से शादी नहीं की थी,
अगर गाँधी का एक भी जीन आपके DNA में होता तो आप इतनी क्षुद्र महत्त्वाकांक्षा से ग्रस्त  नहीं होते ( सिर्फ पैसा बनाने की महत्त्वाकांक्षा) !

आप सच में शर्मिंदा होना चाहते हैं.
यह सोचकर शर्मिन्दा होइए कि आप जैसे तथाकथित गांधियों ने गांधी की विरासत का क्या हाल किया है.
कभी-कभी लगता है शायद गांधी ने अपने नाम का कॉपीराईट कराया होता.
फिलहाल मेरी सलाह है कि सोनिया गांधी अपना नाम बदल कर $onia Gandhi कर लें, और आप अपने नाम Rahul/Raul की शुरुआत रुपये के नए सिम्बल से करें.

राओल विंची:
'मुझे खुद को भारतीय कहने में शर्म आती है.
हमें भी आपको भारतीय कहते हुए शर्म आती है.'

उपसंहार:
पोपुलर मीडिया को अपनी बात मनवाने के लिए खरीदा, ब्लैकमेल या नियंत्रित किया जाता है.
मेरा मानना है कि सामाजिक मीडिया अभी भी के लोकतांत्रिक मंच है. (अब वो इसे भी नियंत्रित करने के लिए क़ानून ला रहे हैं!)
तब तक हम ये सवाल पूछते रहें  जब तक जवाब ना मिल जाएं. .
आखिर में हम सब गांधी हैं, क्योंकि हम भी बापू की संतान हैं.

अधिक जानकारी के लिए डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के बारे में पता लगाते रहें. आज उनके कारण 2G घोटाले की जांच हो रही है.
वो एक भूतपूर्व केंद्रीय क़ानून मंत्री हैं.


लेखक एवं निवेदक:
नितिन गुप्ता (रिवाल्डो)
बी टेक, आई आई टी बम्बई
www.humorbeings.in
    अनुवादक: आलोक रंजन
    ONION: http://alok160.blogspot.com/

To read the original post in English: https://www.facebook.com/note.php?note_id=10150165037156384


ANNEXURE 3 १५ मई को डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा राष्ट्रपति को दी गयी याचिकाANNEXURE 3 १५ मई को डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा राष्ट्रपति को दी गयी याचिका
ANNEXURE 7_39  लोक सभा समाहरणालय को सोनिया गांधी का बायो डाटाANNEXURE 7_39 लोक सभा समाहरणालय को सोनिया गांधी का बायो डाटा
ANNEXURE 7 _35   लोक सभा समाहरणालय को सोनिया गांधी का बायो डाटाANNEXURE 7 _35 लोक सभा समाहरणालय को सोनिया गांधी का बायो डाटा
ANNEXURE 7 _36   लोक सभा समाहरणालय को सोनिया गांधी का बायो डाटाANNEXURE 7 _36 लोक सभा समाहरणालय को सोनिया गांधी का बायो डाटा
ANNEXURE 7 _37   लोक सभा समाहरणालय को सोनिया गांधी का बायो डाटाANNEXURE 7 _37 लोक सभा समाहरणालय को सोनिया गांधी का बायो डाटा
ANNEXURE 1 _01 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _01 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _02 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _02 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _03 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _03 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _04 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _04 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _05 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _05 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _06 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _06 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _07 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _07 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _08 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _08 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _09 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _09 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _10 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _10 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _11 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _11 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 1 _12 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं  डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी  द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्रANNEXURE 1 _12 भारतीय नागरिक एक्ट का सेक्शन-5एवं reciprocity पर ध्यान डालता प्रावधान एवं डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी स्वामी द्वारा तात्कालीन उप प्रधान मंत्री आडवानी को लिखा पत्र
ANNEXURE 2_13 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधनANNEXURE 2_13 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधन
ANNEXURE 2_14 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधनANNEXURE 2_14 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधन
ANNEXURE 2_15 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधनANNEXURE 2_15 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधन
ANNEXURE 2_16 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधनANNEXURE 2_16 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधन
ANNEXURE 2_17 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधनANNEXURE 2_17 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधन
ANNEXURE 2_18 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधनANNEXURE 2_18 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधन
ANNEXURE 2_19 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधनANNEXURE 2_19 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधन
ANNEXURE 2_20 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधनANNEXURE 2_20 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधन
ANNEXURE 2_21 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधनANNEXURE 2_21 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधन
ANNEXURE 2_22 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधनANNEXURE 2_22 Constitution Review Commission के सदस्य पी. इ. संगमा द्वारा भारत में जन्मे नागरिकों द्वारा ऊंचे संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के ऊपर आलेख: संवैधानिक संशोधन
ANNEXURE 8 मतदाताओं को उपलब्ध उम्मीदवारों के धन एवं शिक्षा के बारे में जानकारी पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनाव आयोग को दिए निर्देश पर FRONTLINE में छापा आलेखANNEXURE 8 मतदाताओं को उपलब्ध उम्मीदवारों के धन एवं शिक्षा के बारे में जानकारी पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनाव आयोग को दिए निर्देश पर FRONTLINE में छापा आलेख
ANNEXURE 10 राजीव गांधी के स्विस बैंक खाते में जमा २ बिलियन  डॉलर/10 ,000 करोड़ रुपये पर 11 नवम्बर 1991 में Schweizer Illustrierte पत्रिका में  छपे लेख के अंशANNEXURE 10 राजीव गांधी के स्विस बैंक खाते में जमा २ बिलियन डॉलर/10 ,000 करोड़ रुपये पर 11 नवम्बर 1991 में Schweizer Illustrierte पत्रिका में छपे लेख के अंश
ANNEXURE 10 राजीव गांधी के स्विस बैंक खाते में जमा २ बिलियन  डॉलर/10 ,000 करोड़ रुपये पर 11 नवम्बर 1991 में Schweizer Illustrierte पत्रिका में  छपे लेख के अंशANNEXURE 10 राजीव गांधी के स्विस बैंक खाते में जमा २ बिलियन डॉलर/10 ,000 करोड़ रुपये पर 11 नवम्बर 1991 में Schweizer Illustrierte पत्रिका में छपे लेख के अंश
ANNEXURE 10 राजीव गांधी के स्विस बैंक खाते में जमा २ बिलियन  डॉलर/10 ,000 करोड़ रुपये पर 11 नवम्बर 1991 में Schweizer Illustrierte पत्रिका में  छपे लेख के अंशANNEXURE 10 राजीव गांधी के स्विस बैंक खाते में जमा २ बिलियन डॉलर/10 ,000 करोड़ रुपये पर 11 नवम्बर 1991 में Schweizer Illustrierte पत्रिका में छपे लेख के अंश
ANNEXURE 10 राजीव गांधी के स्विस बैंक खाते में जमा २ बिलियन  डॉलर/10 ,000 करोड़ रुपये पर 11 नवम्बर 1991 में Schweizer Illustrierte पत्रिका में  छपे लेख के अंशANNEXURE 10 राजीव गांधी के स्विस बैंक खाते में जमा २ बिलियन डॉलर/10 ,000 करोड़ रुपये पर 11 नवम्बर 1991 में Schweizer Illustrierte पत्रिका में छपे लेख के अंश
ANNEXURE 19 नागरिक एक्ट (१९५५) के Article 102(d) & (e) r/w Section 9(1) के अंतर्गत राहुल गाँधी की उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया पत्र. साथ ही 'हिन्दू' (30 .9.2001 ) में छापा लेख जिसमें राहुल गांधी की FBI द्वारा कैद की बात है. और राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर 'टेलीग्राफ' (30 .7.2004 ) में छापा लेखANNEXURE 19 नागरिक एक्ट (१९५५) के Article 102(d) & (e) r/w Section 9(1) के अंतर्गत राहुल गाँधी की उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया पत्र. साथ ही 'हिन्दू' (30 .9.2001 ) में छापा लेख जिसमें राहुल गांधी की FBI द्वारा कैद की बात है. और राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर 'टेलीग्राफ' (30 .7.2004 ) में छापा लेख
ANNEXURE 19 नागरिक एक्ट (१९५५) के Article 102(d) & (e) r/w Section 9(1) के अंतर्गत राहुल गाँधी की उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया पत्र. साथ ही 'हिन्दू' (30 .9.2001 ) में छापा लेख जिसमें राहुल गांधी की FBI द्वारा कैद की बात है. और राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर 'टेलीग्राफ' (30 .7.2004 ) में छापा लेखANNEXURE 19 नागरिक एक्ट (१९५५) के Article 102(d) & (e) r/w Section 9(1) के अंतर्गत राहुल गाँधी की उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया पत्र. साथ ही 'हिन्दू' (30 .9.2001 ) में छापा लेख जिसमें राहुल गांधी की FBI द्वारा कैद की बात है. और राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर 'टेलीग्राफ' (30 .7.2004 ) में छापा लेख
ANNEXURE 19 नागरिक एक्ट (१९५५) के Article 102(d) & (e) r/w Section 9(1) के अंतर्गत राहुल गाँधी की उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया पत्र. साथ ही 'हिन्दू' (30 .9.2001 ) में छापा लेख जिसमें राहुल गांधी की FBI द्वारा कैद की बात है. और राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर 'टेलीग्राफ' (30 .7.2004 ) में छापा लेखANNEXURE 19 नागरिक एक्ट (१९५५) के Article 102(d) & (e) r/w Section 9(1) के अंतर्गत राहुल गाँधी की उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया पत्र. साथ ही 'हिन्दू' (30 .9.2001 ) में छापा लेख जिसमें राहुल गांधी की FBI द्वारा कैद की बात है. और राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर 'टेलीग्राफ' (30 .7.2004 ) में छापा लेख
ANNEXURE 19 नागरिक एक्ट (१९५५) के Article 102(d) & (e) r/w Section 9(1) के अंतर्गत राहुल गाँधी की उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया पत्र. साथ ही 'हिन्दू' (30 .9.2001 ) में छापा लेख जिसमें राहुल गांधी की FBI द्वारा कैद की बात है. और राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर 'टेलीग्राफ' (30 .7.2004 ) में छापा लेखANNEXURE 19 नागरिक एक्ट (१९५५) के Article 102(d) & (e) r/w Section 9(1) के अंतर्गत राहुल गाँधी की उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग पर डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया पत्र. साथ ही 'हिन्दू' (30 .9.2001 ) में छापा लेख जिसमें राहुल गांधी की FBI द्वारा कैद की बात है. और राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर 'टेलीग्राफ' (30 .7.2004 ) में छापा लेख
ANNEXURE 6_34  2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान राय बरेली रिटर्निंग ऑफीसर को सोनिया गांधी द्वारा अपनी शैक्षणिक योग्यता पर दिया गया हलफनामाANNEXURE 6_34 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान राय बरेली रिटर्निंग ऑफीसर को सोनिया गांधी द्वारा अपनी शैक्षणिक योग्यता पर दिया गया हलफनामा
ANNEXURE 6_34  2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान राय बरेली रिटर्निंग ऑफीसर को सोनिया गांधी द्वारा अपनी शैक्षणिक योग्यता पर दिया गया हलफनामाANNEXURE 6_34 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान राय बरेली रिटर्निंग ऑफीसर को सोनिया गांधी द्वारा अपनी शैक्षणिक योग्यता पर दिया गया हलफनामा
Mr. CleanMr. Clean
Brijkishor GujratiVaise bhi Aise Gandgi wale Rajniti karte h baki to mukdarshak bankar hi kam chala late h...
कुलदीप शिशोदिया
कुलदीप शिशोदियाSONIYA 5 CLASS PASS HE ,ME TO B.A. KI HE JOB NAHI HE, 5 CLASS PASS KER NE SE DESH CHELA SEK TE HE TO, ME BHI 5 CLASS PASH KER KE DESH CHELA NE LEG TA, GADHI NAAM NAHI HE NA MERE PHICHHE KIYA KERO ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, VERY ---2 BEST INFORMATION HE SIR AAP KE PASH TO
Rajan Kumar
Rajan Kumarsir zabardast information dhanyewaad
Chhattisgarh Nazar
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Vinod Sahni
Vinod Sahnithanks for emegine information alok ji
Roky Roi
Roky Roimaja aa gya yar mukhota ke peche dekh ker, bas ab Hindustan ke her vykti ko ye bat batani h, jo face book per nhi kheto ke rhte h, ya vote dete time restedari or pasa dekhte h, are kala dhan ate hi tex band karo or perti vyykti salary bad gyegi, plz lege rho bhayo
Kapil Gupta
Kapil Guptasir ji very good information..every indian must know ..
Yogesh Salunke
Yogesh SalunkeMedia ne ye sawal rahul gandhi aur soniya ko puchane chahiye. Why media is not asking this to them ????????
Amit Garg
Amit GargTHESE SHOULD BE DEBATE IN PUBLIC DOMAIN THROGH MEDIA...
Bheem Gl Mehta
Bheem Gl MehtaTO alok ranjan:thanx boss for giving such vailuable informations.tabhi me sochun ye sali sonia PM kyun nahi bani.
Rakesh Kabra
Rakesh KabraGREAT WORK BOSS................. PLS SENT A HARD COPY TO CONGRESS HEADQUATER
Arun Rathi
Arun Rathivery good information..every indian must know
Mahavir Devpura
Mahavir Devpurayeh sab apne dighi raja ko forward karna padega taki vo soniya didi ke talve chatna or jyada kare
Sanjay Mehta
Sanjay MehtaTHIS IS SUPERB, REALLY NICE WORK HAS BEEN DONE BY YOU.
Daulat Ram
Kamal Gaur
Surendra Sharma
Amit Kumar Rawal
Amit Kumar RawalJAWAB NAHI SIR AAPKA AUR AAPKI RESEARCH KA........ISE HAR INDIAN TK PHUCHANA HAI.....
Vipin Gautam
Vipin Gautamsir aapko salute hai mera.....................
thts da pure indian ............................
Ravindra Chaudhary
Ravindra ChaudharyHAMARE DESH K NETAO K HAQUKAT. PLZ MUST READ THIS. AND FORWARD IT TO ALL INDIANS. SABHI KO YE MALLOOM HONA CHAHIYE.
डॉ. देवेन्द्र गोस्वामी
डॉ. देवेन्द्र गोस्वामीvery gud aaj desh ko jarurat he 1 kranti ki.....................
Yogesh Sharma
Neeraj Agnihotri
Neeraj AgnihotriThanks, it should reach to every Indian.
Jagdeep JP Vaishnav
Jagdeep JP Vaishnavghandhi ji mil gaye hai, ab Bhagat singh ki jarurat hai. Jai hind.
Abhas Verma
Anand Prakash
Anand PrakashReaaly Great work. I congratulate you on such a tremendous work and hope, in future too, we'll see some more informarions
Anand Prakash
Anand Prakashwo gandhi ji ki DNA wali baat kafi achchhi lgi
Abhishek Tiwary
Abhishek Tiwaryan eye opener for all , gr8 work
Shober Srivastava
Shober Srivastavashame for indian family no.1
Harish Rohilla
Harish Rohillathanks sir , for the information very nice information thanks again and again
Rohit Singh
Rohit Singhtufaan hai ye...
Main to upr se ni
che tak hil gaya...
Arghwan Rabbhi
Arghwan RabbhiWhen you start with excuses, it means you are not clean. Please prepare a similar document on your beloved BJP smile emoticon
Bharat Deep Singh Khangarot
Bharat Deep Singh Khangarotheads off bhai .......intreasting onformations which we hve 2 know ....
Bharat Deep Singh Khangarot
Bharat Deep Singh Khangarotwould u plz send its pdf file on bharatsinghphulera@gmail.com
Yogesh Sharma
Yogesh Sharma@wakeup india: 5popular news channels and many more newspapers r runned by congress itself, so forget that dey r going to cover any newz against dem. if u all wanna c the true face of congress party den jus watch chauthi duniya on youtube by vishwabandhu... u'll be ashamed of indian politicians....
Sunny Nel
Sunny Nelread the above post .. n if u have the guts ,,, post it ...
Hitesh Vaishnav
Hitesh Vaishnavise pade aur asliyat jane desh ke karndharo ki! very nice!
अजय शंकर शुक्ल
अजय शंकर शुक्लthis is actual face of rahul gandhi and congress
Sunny Nel
Sunny Nelhttp://www.indiankanoon.org/doc/514364/
1. In the course of proceedings before a Commission of Inquiry where the plaintiff was appearing in his professional capacity as a Senior Advocate, in his written submissions in the nature of arguments addressed to the Commission, the defendant allegedly made certain libellous statements...
indiankanoon.org
Sunny Nel
Sunny NelSubramanian Swamy is a liar.. he has lost a defamation case against Jethmalani.. and had to pay a fine
Chirag Sharma
Chirag SharmaSaala SG kaa sareeaam Gang**** hona chaahiye...
Shashank Shekhar
Shashank Shekharvery informative! thanks, Eye opening for blind congress supporters..
Sunny Nel
Sunny Nel
Sunny NelSee the Real Truth about Rahul Gandhi in the link above
Manoj Sharma
Manoj SharmaI'm going to share this note on my wall.
Sanjeev Sharma
Sanjeev Sharmathanx a lot sir... but in besharmo ko sharam kaha aayegi...... insaan ki aulad hote to sharam aayegi, ye to shaitan ki aulad hai...
आर्य अभिषेक शर्मा
Sharad Hanumant Bhosale
Raj Tomar Rajsuryan
Raj Tomar RajsuryanNehru ke poore khandan ne desh ko barbad kiya hai.
Anami Sharan Babal
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गुलाम मानसिकता की इस बेशर्म अदा पर आए लज्जा ई शरमा जाए

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 आज़ादी पर विशेष :

 

 

 

क्रूर अंग्रेज़ शासकों की याद में बना है पार्क

 

 

 दिल्ली में एक ऐसा पार्क है जो शहीदों की याद में नहीं बल्कि अंग्रेज़ शासकों की याद में बना है



  • 1911 में कॉरोनेशन पार्क में ही अंग्रेज़ों ने जॉर्ज-V को आधिकारिक रूप से भारत की सत्ता सौंपी थी।
    1911 में कॉरोनेशन पार्क में ही अंग्रेज़ों ने जॉर्ज-V को आधिकारिक रूप से भारत की सत्ता सौंपी थी। 
  • लगभग 60 एकड़ में फैला कॉरोनेशन पार्क ब्रिटिश राज की याद दिलाता है।
    लगभग 60 एकड़ में फैला कॉरोनेशन पार्क ब्रिटिश राज की याद दिलाता है। 
  • आज़ादी पर विशेष : दिल्ली में एक ऐसा पार्क है जो शहीदों की याद में नहीं बल्कि अंग्रेज़ शासकों की याद में बना है
    आज़ादी पर विशेष : दिल्ली में एक ऐसा पार्क है जो शहीदों की याद में नहीं बल्कि अंग्रेज़ शासकों की याद में बना है 
एक तरफ जहां हम देश की आज़ादी की 69वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ धीरपुर गांव में गुलाम भारत की याद दिलाने वाले कॉरोनेशन पार्क के पुर्ननिर्माण का काम चल रहा है। गांव के लोग चाहते हैं कि सरकार कॉरोनेशन पार्क में ब्रिटिश शासकों की मूर्तियों की जगह हमारे देश के महान क्रांतिकारियों की स्मारक बनवाए।

अंग्रेज़ शासकों की मूर्तियां लगाकर यहां भव्य कब्रिस्तान बनाया जा रहा है। धीरपुर गांव के लोगों के लिए कॉरोनेशन पार्क गुलामी के दर्द की निशानी के सिवाए और कुछ भी नहीं। कॉरोनेशन पार्क के आसपास रहने वाले लोग नहीं चाहते कि उनकी आने वाली पीढ़ी गुलाम भारत की याद दिलाने वाली निशानी देखें।

धीरपुर में रहने वाले 70 वर्षीय रामफल मलिक बताते हैं 'हमारे पूर्वज 1860 में खेती करने के लिए यहां आकर बस गए थे। ब्रिटिश शासन में अंग्रेज़ों की बर्बरता के कई किस्से मेरे पिता मुझे बताया करते थे। 1911 में भी जब अंग्रेज़ों ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया था, तो पूरे धीरपुर गांव को छावनी में तब्दील कर दिया था। सेना को निर्देश दिए गए थे चाहे जो हो जाए समारोह के दौरान कोई ग्रामीण गांव से बाहर ना निकल पाए।'
पार्क में लगी जॉर्ज पंचम की प्रतिमा।

रामफल बताते हैं कि '1911 में कॉरोनेशन पार्क में ही अंग्रेज़ों ने जॉर्ज फ्रेडरिक अर्नेस्ट अल्बर्ट-V को आधिकारिक रूप से भारत की सत्ता सौंपी थी। धीरपुर गांव की ज़मीन पर ही अंग्रेज़ों ने बहुत बड़े समारोह का आयोजन किया था जिसमें जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना समेत भारत के कई कद्दावार नेता शामिल हुए थे। लेकिन पास में गांधी आश्रम होते हुए भी गांधी जी ने यहां आने से मना कर दिया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि गुलाम भारत के एक लोकप्रिय नेता ने समारोह में आने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि यह गुलामी को और मजबूत करने का जश्न है।'

रामफल बताते हैं कि आज भी कॉरोनेशन पार्क में कोई सच्चा देशभक्त आना पसंद नहीं करता। धीरपुर गांव में रहने वाले लोगों ने अंग्रेज़ों के बहुत ज़ुल्म सहे लेकिन आज़ादी की लड़ाई में गांधी जी का साथ नहीं छोड़ा। हमने सोचा था कि इस जगह पर स्वतंत्रता से जुड़ी यादें संजोई जाएंगी लेकिन ब्रिटिश राजवंश के पुतले हमारी आज़ादी नहीं हमारी गुलामी के दिनों को याद दिलाते हैं। उनके अनुसार 2016 में इसका उद्घाटन करने खुद ब्रिटेन की महारानी के आने का प्रोग्राम है इसलिए यहां काम जोर-शोर से चल रहा है।
धीरपुर गांव में रहने वाले समाजसेवी विनोद शर्मा को भी कॉरोनेशन पार्क को देखकर अपने बुज़ुर्गों पर हुए अत्याचार और गुलाम भारत की याद आती है। विनोद शर्मा कहते है, "गांव वालों को यह बात बिल्कुल रास नहीं आ रही कि गुलामी की निशानी पर करोड़ों रूपये खर्च किए जा रहे हैं। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हम देश की आज़ादी के लिए मरने वाले क्रांतिकारियों की स्मारक बनाने की बजाए गुलामी की याद दिलाने वाले पार्क पर करोड़ों रुपये खर्च करने में लगे हैं। क्या इसलिए हमारे बुज़ुर्गों ने इतना संघर्ष किया था, अपनी जान गंवाई थी?"
ब्रिटिश राज की याद दिलाते लगभग 60 एकड़ में फैले कॉरोनेशन पार्क में जॉर्ज-V की 60 फीट ऊंची मूर्ति है जिसे 1860 में इंडिया गेट के पास से लाकर कॉरोनेशन पार्क में लगाया गया है और साथ ही ब्रिटिश शासन के समय इंडिया के गर्वनर जनरल और वायसराय रहे चार अंग्रेज अधिकारियों की मूर्तियां भी हैं।

फर्जी विवि की लीला कैरियर के साथ रामलीला

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प्रस्तुति- स्वामी शरण

सावधान : देश में इन विश्वविद्यालयों को यूजीसी ने फर्जी बताया है
नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) ने (1 जुलाई) को एक बार फिर फर्जी विश्वविद्यालयों की लिस्ट जारी की है। यूजीसी के वेबसाइट पर जारी की गई लिस्ट के मुताबिक ये विश्वविद्यालय नियमों को पूरा नहीं करते हैं और इसलिए फर्जी हैं। (यहां क्लिक कर देखें यूजीसी की लिस्ट)

लिस्ट के अनुसार सबसे ज्‍यादा फर्जी विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश से हैं। यहां से आठ विश्वविद्यालयों को फर्जी बताया गया है। दूसरे नंबर पर देश की राजधानी है जहां से छह फर्जी विश्वविद्यालय चल रहे हैं।

इसके बाद तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल में एक-एक फर्जी विश्वविद्यालय हैं।

ये हैं देश की फर्जी यूनिवर्सिटी
उत्तर प्रदेश- महिला ग्राम विद्यापीठ (इलाहाबाद), गांधी हिंदी विद्यापीठ (इलाहाबाद), नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ इलेक्ट्रो कॉम्पलेक्स होम्योपैथी (कानपुर), नेताजी सुभाषचंद्र बोस यूनिवर्सिटी (अलीगढ़), उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय (कोसीकलां), महाराणा प्रताप शिक्षा निकेतन विद्यालय (प्रतापगढ़), इंद्रप्रस्थ शिक्षा परिषद (नोएडा फेस-2), गुरुकुल विश्वविद्यालय (वृंदावन)

दिल्ली- वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय (जगतपुरी), कमर्शियल यूनिवर्सिटी लिमिटेड, यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी, वोकेशनल यूनिवर्सिटी, एडीआर-सेंट्रल ज्यूडिशियल यूनिवर्सिटी, इंडियन इंस्टीट्यूट और साइंस एंड इंजीनियरिंग

पश्चिम बंगाल- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिन (कोलकाता)

कर्नाटक- बाडागानवी सरकार वर्ल्ड ओपन एजुकेशनल सोसायटी (बेलगाम)

बिहार- मैथिली यूनिवर्सिटी (दरभंगा)

मध्यप्रदेश- केशरवानी विद्यापीठ (जबलपुर)

केरल- सेंट जोन्स यूनिवर्सिटी (कृष्णाट्टम)

महाराष्ट्र- राजा अरेबिक यूनिवर्सिटी (नागपुर)

तमिलनाडु- डी डी बी संस्कृत विश्वविद्यालय (त्रिची)

अधिसूचना में कहा गया कि छात्रों एवं जनता को सूचित किया जाता है कि ऐसे 21 स्वयंभू एवं गैर मान्यता प्राप्त संस्थान यूजीसी कानून का उल्लंघन करते हुए परिचालनरत हैं और उन्हें फर्जी घोषित किया जाता है। वे आगे से कोई डिग्री प्रदान नहीं कर सकेंगे।

उच्च शिक्षा के लिए शीर्ष संस्था यूजीसी छात्रों के हितों के लिए समय समय पर फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी करता है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कानून 1956 के अनुसार केवल केन्द्र:राज्य:प्रांतीय कानून के अंतर्गत स्थापित विश्वविद्यालय अथवा कानून की धारा 3 के तहत विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त किसी संस्थान को ही खुद को विश्वविद्यालय करने का अधिकार है।

नीचे दी गई है पूरी लिस्ट


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समाचार लेखन के मुख्य तत्व

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प्रस्तुति-- अमन कुमार हुमरा असद


 परिचय: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए वह एक जिज्ञासु प्राणी है। मनुष्य जिस समुह में, जिस समाज में और जिस वातावरण में रहता है वह उस बारे में जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे एक प्रकार के संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसके लिये उसने प्राचीन काल से ही तमाम तरह के तरीकों, विधियों और माध्यमों को खोजा और विकसित किया। पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना इन माध्यमों में सर्वाधिक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया। पत्र के जरिये अपने प्रियजनों मित्रों और शुभाकांक्षियों को अपना समाचार देना और उनका समाचार पाना आज भी मनुष्य के लिये सर्वाधिक लोकप्रिय साधन है। समाचारपत्र रेडियो टेलिविजन समाचार प्राप्ति के आधुनिकतम साधन हैं जो मुद्रण रेडियो टेलीविजन जैसी वैज्ञानिक खोज के बाद अस्तित्व में आये हैं।
समाचार की परिभाषा
लोग आमतौर पर अनेक काम मिलजुल कर ही करते हैं। सुख दुख की घड़ी में वे साथ होते हैं। मेलों और उत्सव में वे साथ होते हैं। दुर्घटनाओं और विपदाओं के समय वे साथ ही होते हैं। इन सबको हम घटनाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। फिर लोगों को अनेक छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गांव कस्बे या शहर की कॉलोनी में बिजली पानी के न होने से लेकर बेरोजगारी और आर्थिक मंदी जैसी समस्याओं से उन्हें जूझना होता है। विचार घटनाएं और समस्यों से ही समाचार का आधार तैयार होता है। लोग अपने समय की घटनाओं रूझानों और प्रक्रियाओं पर सोचते हैं। उनपर विचार करते हैं और इन सबको लेकर कुछ करते हैं या कर सकते हैं। इस तरह की विचार मंथन प्रक्रिया के केन्द्र में इनके कारणों प्रभाव और परिणामों का संदर्भ भी रहता है। समाचार के रूप में इनका महत्व इन्हीं कारकों से निर्धारित होना चाहिये। किसी भी चीज का किसी अन्य पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से ही समाचार की अवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकतें हैं कि यह समाचार बनने योग्य है।
समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं के सबसे पहले बताया जाता है और उसके बाद घटते हुये महत्व क्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है।
किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है : डॉ निशांत सिंह
किसी घटना की नई सूचना समाचार है : नवीन चंद्र पंत
वह सत्य घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रूचि हो :
नंद किशोर त्रिखा
किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है : संजीव भनावत
ऐसी ताजी या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो : रामचंद्र वर्मा
समाचार के मूल्य
1 व्यापकता : समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस दृ पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दी समरुप माना जाता है। न्यूज का अर्थ है चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट और साउथ की सूचना। इस प्रकार समाचार का अर्थ पुऐ चारों दिशाओं में घटित घटनाओं की सूचना।
2 नवीनता: जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचार नही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का मतलब हुआ नई सूचना। अर्थात समाचार में नवीनता होनी चाहिये।
3 असाधारणता: हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना में समाचारपन होगा वही नई सूचना समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी असाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचारपन पैदा करे। काटना कुत्ते का स्वभाव है। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचार है क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। कहने का तात्पर्य है कि नई सूचना में समाचार बनने की क्षमता होनी चाहिये।
4 सत्यता और प्रमाणिकता : समाचार में किसी घटना की सत्यता या तथ्यात्मकता होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारित नही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता या तथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं।
5 रुचिपूर्णता: किसी नई सूचना में सत्यता और समाचारपन होने से हा वह समाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिसचस्पी भी होनी चाहिये। कोई सूचना कितनी ही आसाधरण क्यों न हो अगर उसमे लोगों की रुचि नही है तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटे जाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति को होने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्ण व्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिचस्पी हो सकती है।
6 प्रभावशीलता : समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा।
7 स्पष्टता : एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाष में न हो तो वह सूचना बेकार साबित होगी क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे। इसलिये समाचार की भाषा सीधीऔर स्पष्ट होनी चाहिये।उल्टा पिरामिड शैली
ऐतिहासिक विकास
इस सिद्धांत का प्रयोग 19 वीं सदी के मध्य से शुरु हो गया था, लेकिन इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ था। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेश के जरिये भेजनी पड़ती थी, जिसकी सेवायें अनियमित, महंगी और दुर्लभ थी। यही नहीं कई बार तकनीकी कारणों से टेलीग्राफ सेवाओं में बाधा भी आ जाती थी। इसलिये संवाददाताओं को किसी खबर कहानी लिखने के बजाये संक्षेप में बतानी होती थी और उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण तथ्य और सूचनाओं की जानकारी पहली कुछ लाइनों में ही देनी पड़ती थी।
लेखन प्रक्रिया:
उल्टा पिरामिड सिद्धांत : उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टा पिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना पिरामिड के निचले हिस्से में नहीं होती है और इस शैली में पिरामिड को उल्टा कर दिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरी हिस्से में होती है और घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनायें सबसे निचले हिस्से में होती है।स
माचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टि से मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इंट्रो समाचार के पहले और कभी-कभी पहले और दूसरे दोनों पैराग्राफ को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भी समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार की बॉडी आती है, जिसमें महत्व के अनुसार घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने के अलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष या समापन आता है।
समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती है और न ही समाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहां समाचार का समापन हो गया है। मुखड़ा या इंट्रो या लीड : उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है, जहां से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है।
एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिये। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है दृ क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है। आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक दृ दो ककार दिये जा सकते हैं। बॉडी: समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बॉडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो।
अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये। समाचार की बॉडी में छह ककारों में से दो क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है।
निष्कर्ष या समापन : समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये। समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।
समाचार संपादन
समाचार संपादन का कार्य संपादक का होता है। संपादक प्रतिदिन उपसंपादकों और संवाददाताओं के साथ बैठक कर प्रसारण और कवरेज के निर्देश देते हैं। समाचार संपादक अपने विभाग के समस्त कार्यों में एक रूपता और समन्वय स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
संपादन की प्रक्रिया-
रेडियो में संपादन का कार्य प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त होता है।
1. विभिन्न श्रोतों से आने वाली खबरों का चयन
2. चयनित खबरों का संपादन : रेडियो के किसी भी स्टेशन में खबरों के आने के कई स्रोत होते हैं। जिनमें संवाददाता, फोन, जनसंपर्क, न्यूज एजेंसी, समाचार पत्र और आकाशवाणी मुख्यालय प्रमुख हैं। इन स्रोतों से आने वाले समाचारों को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर खबरों का चयन किया जाता है। यह कार्य विभाग में बैठे उपसंपादक का होता है। उदाहरण के लिए यदि हम आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र के लिए समाचार बुलेटिन तैयार कर रहे हैं तो हमें लोकल याप्रदेश स्तर की खबर को प्राथमिकता देनी चाहिए। तत् पश्चात् चयनित खबरों का भी संपादन किया जाना आवश्यक होता है। संपादन की इस प्रक्रिया में बुलेटिन की अवधि को ध्यान में रखना जरूरी होता है। किसी रेडियो बुलेटिन की अवधि 5, 10 या अधिकतम 15मिनिट होती है।
संपादन के महत्वपूर्ण चरण
1. समाचार आकर्षक होना चाहिए।
2. भाषा सहज और सरल हो।
3. समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए।
4. समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
5. शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए।
6. समाचार में प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए।
7. कम शब्दों में समाचार का ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए।
8. रेडियो बुलेटिन के प्रत्येक समाचार में श्रोताओं के लिए सम्पूर्ण जानकारी होना
चाहिये ।
9. संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए।
10. समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
11. रेडियो के सभी श्रोता पढ़े लिखे नहीं होते, इस बात को ध्यान में रखकर भाषा और शब्दों का चयन किया जाना चाहिए।
12. रेडियो श्रव्य माध्यम है अतः समाचार की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए कि एक ही बार सुनने पर समझ आ जाए।
13. समाचार में तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार होने पर भी इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए।
14. समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, ताकि समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके।
समाचार संपादन के तत्व
संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
1. शीर्षक- किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं-
1. शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास हो जाए।
2. शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो।
3. शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं।
5. अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ‘ए’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षकों पर भी लागू होता है।
6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है।
7. शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
8. शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए।
2. आमुख- आमुख लिखते समय ‘पाँच डब्ल्यू’ तथा एक-एच के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न-Who, When, Where, What और How का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होना चाहिए।
3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लम्बे समाचार आकर्षित नहीं करते हैं।
समाचार सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है।
2. समाचार नीति के अनुरूप हो।
3. समाचार तथ्याधारित हो।
4. समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना।
5. समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे पुष्ट बनाएँ।
6. समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस कर दें।
7. समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो।
8. अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
9. ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो।
10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो।
11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो।
12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
13. समाचार की भाषा मेंे एकरूपता होना चाहिए।
14. समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना।
समाचार-सम्पादक की आवश्यकताएँ
एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत्में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें-
1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
2. एटलस।
3. शब्दकोश।
4. भारतीय संविधान।
5. प्रेस विधियाँ।
6. इनसाइक्लोपीडिया।
7. मन्त्रियों की सूची।
8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची।
10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख।
11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों व अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर।
14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें।
15. उच्चारित शब्द
समाचार के स्रोत
कभी भी कोई समाचार निश्चित समय या स्थान पर नहीं मिलते। समाचार संकलन के लिए संवाददाताओं को फील्ड में घूमना होता है। क्योंकि कहीं भी कोई ऐसी घटना घट सकती है, जो एक महत्वपूर्ण समाचार बन सकती है। समाचार प्राप्ति के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत निम्न हैं-
1. संवाददाता- टेलीविजन और समाचार-पत्रों में संवाददाताओं की नियुक्ति ही इसलिए होती हैकि वह दिन भर की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकलन करें और उन्हें समाचार का स्वरूप दें।
2. समाचार समितियाँ- देश-विदेश में अनेक ऐसी समितियाँ हैं जो विस्तृत क्षेत्रों के समाचारों को संकलित करके अपने सदस्य अखबारों और टीवी को प्रकाशन और प्रसारण के लिए प्रस्तुत करती हैं। मुख्य समितियों में पी.टी.आई. (भारत), यू.एन.आई. (भारत), ए.पी. (अमेरिका), ए.एफ.पी. (फ्रान्स), रॉयटर (ब्रिटेन)।
3. प्रेस विज्ञप्तियाँ- सरकारी विभाग, सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत प्रतिष्ठान तथा अन्य व्यक्ति या संगठन अपने से सम्बन्धित समाचार को सरल और स्पष्ट भाषा में लिखकर ब्यूरो आफिस में प्रसारण के लिए भिजवाते हैं। सरकारी विज्ञप्तियाँ चार प्रकार की होती हैं।
(अ) प्रेस कम्युनिक्स- शासन के महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस कम्युनिक्स के माध्यम से समाचार-पत्रों को पहुँचाए जाते हैं। इनके सम्पादन की आवश्यकता नहीं होती है। इस रिलीज के बाएँ ओर सबसे नीचे कोने पर सम्बन्धित विभाग का नाम, स्थान और निर्गत करने की तिथि अंकित होती है। जबकि टीवी के लिए रिर्पोटर स्वयं जाता है
(ब) प्रेस रिलीज-शासन के अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस रिलीज के द्वारा समाचार-पत्र और टी.वी. चैनल के कार्यालयों को प्रकाशनार्थ भेजे जाते हैं।
(स) हैण्ड आउट- दिन-प्रतिदिन के विविध विषयों, मन्त्रालय के क्रिया-कलापों की सूचना हैण्ड-आउट के माध्यम से दी जाती है। यह प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं।
(द) गैर-विभागीय हैण्ड आउट- मौखिक रूप से दी गई सूचनाओं को गैर-विभागीय हैण्ड आउट के माध्यम से प्रसारित किया जाता है।
4. पुलिस विभाग- सूचना का सबसे बड़ा केन्द्र पुलिस विभाग का होता है। पूरे जिले में होनेवाली सभी घटनाओं की जानकारी पुलिस विभाग की होती है, जिसे पुलिसकर्मी-प्रेस के प्रभारी संवाददाताओं को बताते हैं।
5. सरकारी विभाग- पुलिस विभाग के अतिरिक्त अन्य सरकारी विभाग समाचारों के केन्द्र होते हैं। संवाददाता स्वयं जाकर खबरों का संकलन करते हैं अथवा यह विभाग अपनीउपलब्धियों को समय-समय पर प्रकाशन हेतु समाचार-पत्र और टीवी कार्यालयों को भेजते रहते हैं।
6. चिकित्सालय- शहर के स्वास्थ्य संबंधी समाचारों के लिए सरकारी चिकित्सालयों अथवा बड़े प्राइवेट अस्पतालों से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
7. कॉरपोरेट आफिस- निजी क्षेत्र की कम्पनियों के आफिस अपनी कम्पनी से सम्बन्धित समाचारों को देने में दिलचस्पी रखते हैं। टेलीविजन में कई चैनल व्यापार पर आधारित हैं।
8. न्यायालय- जिला अदालतों के फैसले व उनके द्वारा व्यक्ति या संस्थाओं को दिए गए निर्देश समाचार के प्रमुख स्रोत हैं।
9. साक्षात्कार- विभागाध्यक्षों अथवा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार समाचार के महत्वपूर्ण अंग होते हैं।
10. समाचारों का फॉलो-अप या अनुवर्तन- महत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृत रिपोर्ट रुचिकर समाचार बनते हैं। दर्शक चाहते हैं कि बड़ी घटनाओं के सम्बन्ध में उन्हें सविस्तार जानकारी मिलती रहे। इसके लिए संवाददाताओं को घटनाओं की तह तक जाना पड़ता है।
11. पत्रकार वार्ता- सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अक्सर अपनी उपलब्धियों को प्रकाशित करने के लिए पत्रकारवार्ता का आयोजन करते हैं। उनके द्वारा दिए गए वक्तव्य समृद्ध समाचारों को जन्म देते हैं।
उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त सभा, सम्मेलन, साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम,विधानसभा, संसद, मिल, कारखाने और वे सभी स्थल जहाँ सामाजिक जीवन की घटना मिलती है, समाचार के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।

रूपहले पर्दे के पीछे की वेश्या एं

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10 फ़िल्मी एक्ट्रेस जो पकड़ी गई सेक्स रैकेट में

पिछले कुछ समय से फिल्म अभिनेत्रियों का सेक्स रैकेट में पकडे जाना एक आम सी बात हो गई है। यदि हम पिछले एक दो साल पर नज़र डाले तो 10 से ज्यादा एक्ट्रेस सेक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार हो चुकी है। इसमें सबसे नया नाम जुड़ा है एक्ट्रेस श्वेता बसु का जिसे की हैदराबाद पुलिस ने 31 अगस्त को एक फाइव स्टार होटल से गिरफ्तार किया है। खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर अभिनेत्रियां साउथ की फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हुई हैं।

(यह भी पढ़े  10 अद्भुत और विचित्र सेक्स रिकॉर्ड ,     सेक्स से सम्बंधित 20 अनूठे कानून )

1. श्वेता बसु प्रसाद (Shweta Basu Prasad) :

श्वेता बसु प्रसाद (Shweta Basu Prasad)


फिल्म अभिनेत्री श्वेता बसु प्रसाद को हैदराबाद पुलिस ने एक सेक्स रैकेट में इंगेज रहने के चलते गिरफ्तार किया है। 23 साल की श्वेता ने विशाल भारद्वाज की चर्चित फिल्म मकड़ी में बाल कलाकार की हैसियत से काम किया था। इस फिल्म के लिए उन्हें 2002 में सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। बाद में उन्होंने एक और चर्चित हिंदी फिल्म इकबाल में भी काम किया। इसके अलावा उन्होंने टीवी धारावाहिक कहानी घर-घर की और करिश्मा का करिश्मा में भी काम किया। श्वेता पिछले कुछ समय से हैदराबाद में रहकर तेलुगु फिल्मों में काम कर रही थीं।

2. मिस्टी मुखर्जी (Misti Mukherjee) :

मिस्टी


9 जनवरी 2014 को मुंबई में एक आईएएस (बेस्टt के जीएम) ओपी गुप्ताM के घर छापेमारी के दौरान हाई प्रोफाइल सेक्सa रैकेट का भंडाफोड़ हुआ था। चौंकाने वाली बात यह थी कि रैकेट कोई और नहीं बल्कि बॉलीवुड अभिनेत्री मिस्टीट मुखर्जी चला रही थी। छापेमारी के दौरान पुलिस ने भारी मात्रा में ब्लूि फिल्म् की सीडियां बरामद की थीं और मिस्टीम मुखर्जी भी आपेत्तिजनक स्थिति में गिरफ्तार की गई थी।

3. श्रावणी (Shravni) : 

श्रावणी (Shravni)


तेलुगु धारावाहिक 'हिमाबिंदु'और 'लाया'में काम कर चुकी एक्ट्रेस श्रावणी को एक हाई-प्रोफाइल सेक्स रैकेट मामले में 3 अक्टूबर, 2013 को मधापुर में रंगे हाथों पकड़ा गया था। इतना ही नहीं साथ में जयराज स्टील के मालिक संजन कुमार गोयनका को भी धर लिया गया था। पुलिस ने मौके से 2 लाख रुपए नकद भी पकड़े।

4. किन्नरा (Kinnara) :

किन्नरा (Kinnara)


दक्षिण भारतीय अभिनेत्री किन्नरा को सेक्स ब्रोकर की भूमिका के लिए आरोपित किया गया था। इसका खुलासा एक न्यूज चैनल के स्टिंग में किया गया। बताया जाता है कि प्रोडयूसर्स और डायरेक्टर्स को प्रलोभन देकर किन्नरा ने फिल्मों में कई रोल हथियाए।

5. भुवनेश्वरी (Bhuvneshwari) :

भुवनेश्वरी (Bhuvneshwari)


कई तमिल फिल्मों और धारावाहिकों में काम कर अच्छा पैसा कमाने के बावजूद भी भुवनेश्वरी ने जिस्मफरोशी का रास्ता अपनाया। 2009 में भुवनेश्वरी को चेन्नई में मुंबई की दो लड़कियों सहित जिस्मफरोशी करते पकड़ा गया। भुवनेश्वरी पर अपने ही अर्पाटमेंट से सेक्स रैकेट चलाने का आरोप था। इस एक्ट्रेस के पड़ोसियों ने पुलिस को गड़बड़ी की आशंका की सूचना दी थी और मामला सेक्स रैकेट का निकला।

6. सायरा बानू (Saira Banu) :

सायरा बानू (Saira Banu)


हैदराबाद में 23 अगस्त 2010 को एक बड़े सेक्स रैकेट का भंडाफोड हुआ। इस रैकेट में एक्ट्रेसेज को रंगे हाथों पकड़ा गया। मौके से 9 लोगों को पकड़ा गया जिनमें 2 फिल्म एक्ट्रेस शामिल थी। इनमें से एक साउथ की सर्पोटिंग एक्ट्रेस सायरा बानू थी। साथ ही, एक उजबेकिस्तान की महिला को भी गिरफ्तार किया गया।

7. ज्योति (Jyoti) :

ज्योति (Jyoti)


दक्षिण भारतीय अभिनेत्री सायरा बानू जिस सेक्स रैकेट में पकड़ी गई उसी में ज्योति भी शामिल थी। 23 अगस्त 2010 को पुलिस की रेड में ये दोनों फिल्म एक्ट्रेस रंगे हाथों पकड़ी गई थी।

8. यमुना (Yamuna) :

यमुना (Yamuna)


पॉपुलर दक्षिण भारतीय अभिनेत्री यमुना को बेंगलुरु पुलिस ने कथित सेक्स रैकेट में शामिल रहने के आरोप के चलते गिरफ्तार किया। पुलिस ने बेंगलुरु की विट्ठल माल्या रोड़ पर स्थित एक होटल से यमुना को गिरफ्तार किया था।

9. ऐश अंसारी (Aesh Ansari) :

ऐश अंसारी (Aesh Ansari)


'चलते चलते'और 'ओम शांति ओम'जैसी बड़ी फिल्मों में काम कर चुकी दक्षिण भारतीय एक्ट्रेस ऐश अंसारी को 5 नवंबर, 2013 को रंगे हाथ जिस्मफरोशी करते हुए पकड़ा गया। जोधुपर के राइकाबाग रोड स्थित एक होटल में तीन अन्य महिलाओं के साथ इस एक्ट्रेस को धर लिया गया। बताया जाता है कि ऐश अंसारी से जुड़ा यह सेक्स रैकेट ऑनलाइन ऑपरेट होता था।

10. निहारिका (Niharika) :

निहारिका (Niharika)


दक्षिण की एक और अभिनेत्री को जिस्मफरोशी में लिप्त होने के चलते पकड़ा गया। निहारिका ने कुछ फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट के रूप में काम किया। निहारिका एक ज्वैलर के साथ रंगे हाथों पकड़ी गई थी। निहारिका ने बताया कि ज्वैलर ने उसे फिल्मों में काम दिलाने का भरोसा दिलाया था। उसका कहना था कि वह सेक्स रैकेट से इसलिए जुड़ी थी कि उसको फिल्मों के ऑफर मिलते रहें।

सामाजिक मीडिया / सोशल मीडिया / न्यू मीडिया

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प्रस्तुति- स्वामी शरण



सामाजिक मीडियापारस्परिक संबंध के लिए अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों को संदर्भित करता है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च पारस्परिक प्लेटफार्म बनाने के लिए मोबाइल और वेबआधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है।

अनुक्रम

स्वरूप

सामाजिक मीडिया के कई रूप हैं जिनमें कि इन्टरनेटफोरम, वेबलॉग, सामाजिक ब्लॉग, माइक्रोब्लागिंग, विकीज, सोशल नेटवर्क, पॉडकास्ट, फोटोग्राफ, चित्र, चलचित्र आदि सभी आते हैं। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई संचार प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं। उदाहरणार्थ-
फेसबूक – विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय सोशल साइट
  • सहयोगी परियोजना (उदाहरण के लिए, विकिपीडिया)
  • ब्लॉग और माइक्रोब्लॉग (उदाहरण के लिए, ट्विटर)
  • सोशल खबर ​​नेटवर्किंग साइट्स (उदाहरण के लिए डिग और लेकरनेट)
  • सामग्री समुदाय (उदाहरण के लिए, यूट्यूब और डेली मोशन)
  • सामाजिक नेटवर्किंग साइट (उदाहरण के लिए, फेसबुक)
  • आभासी खेल दुनिया (जैसे, वर्ल्ड ऑफ़ वॉरक्राफ्ट)
  • आभासी सामाजिक दुनिया (जैसे सेकंड लाइफ)[1]

विशेषता

सामाजिक मीडिया अन्य पारंपरिक तथा सामाजिक तरीकों से कई प्रकार से एकदम अलग है। इसमें पहुँच, आवृत्ति, प्रयोज्य, ताजगी और स्थायित्व आदि तत्व शामिल हैं। इन्टरनेट के प्रयोग से कई प्रकार के प्रभाव होते हैं। निएलसन के अनुसार ‘इन्टरनेट प्रयोक्ता अन्य साइट्स की अपेक्षा सामाजिक मीडिया साइट्स पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं’।
दुनिया में दो तरह की सिविलाइजेशन का दौर शुरू हो चुका है, वर्चुअल और फिजीकल सिविलाइजेशन। आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो-तीन गुना अधिक आबादी अंतर्जाल पर होगी। दरअसल, अंतर्जाल एक ऐसी टेक्नोलाजी के रूप में हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स संचार व सूचना का सशक्त जरिया हैं, जिनके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं। यही से सामाजिक मीडिया का स्वरूप विकसित हुआ है।[2]

व्यापारिक उपयोग

जन सामान्य तक पहुँच होने के कारण सामाजिक मीडिया को लोगों तक विज्ञापन पहुँचाने के सबसे अच्छा जरिया समझा जाता है। हाल ही के कुछ एक सालो में इंडस्ट्री में ऐसी क्रांति देखी जा रही है। फेसबुकजैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उपभोक्ताओं का वर्गीकरण विभिन्न मानकों के अनुसार किया जाता है जिसमें उनकी आयु, रूचि, लिंग, गतिविधियों आदि को ध्यान में रखते हुए उसके अनुरूप विज्ञापन दिखाए जाते हैं। इस विज्ञापन के सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हो रहे हैं साथ ही साथ आलोचना भी की जा रही है।[3]

समालोचना

सामाजिक मीडिया की समालोचना विभिन्न प्लेटफार्म के अनुप्रयोग में आसानी, उनकी क्षमता, उपलब्ध जानकारी की विश्वसनीयता के आधार पर होती रही है। हालाँकि कुछ प्लेटफॉर्म्स अपने उपभोक्ताओं को एक प्लेटफॉर्म्स से दुसरे प्लेटफॉर्म्स के बीच संवाद करने की सुविधा प्रदान करते हैं पर कई प्लेटफॉर्म्स अपने उपभोक्ताओं को ऐसी सुविधा प्रदान नहीं करते हैं जिससे की वे आलोचना का केंद्र विन्दु बनते रहे हैं। वहीँ बढती जा रही सामाजिक मीडिया साइट्स के कई सारे नुकसान भी हैं। ये साइट्स ऑनलाइन शोषण का साधन भी बनती जा रही हैं। ऐसे कई केस दर्ज किए गए हैं जिनमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का प्रयोग लोगों को सामाजिक रूप से हनी पहुँचाने, उनकी खिचाई करने तथा अन्य गलत प्रवृत्तियों से किया गया।[4][5]
सामाजिक मीडिया के व्यापक विस्तार के साथ-साथ इसके कई नकारात्मक पक्ष भी उभरकर सामने आ रहे हैं। पिछले वर्ष मेरठ में हुयी एक घटना ने सामाजिक मीडिया के खतरनाक पक्ष को उजागर किया था। वाकया यह हुआ था कि उस किशोर ने फेसबूक पर एक ऐसी तस्वीर अपलोड कर दी जो बेहद आपत्तीजनक थी, इस तस्वीर के अपलोड होते ही कुछ घंटे के भीतर एक समुदाय के सैकडों गुस्साये लोग सडकों पर उतार आए। जबतक प्राशासन समझ पाता कि माजरा क्या है, मेरठ में दंगे के हालात बन गए। प्रशासन ने हालात को बिगडने नहीं दिया और जल्द ही वह फोटो अपलोड करने वाले तक भी पहुँच गया। लोगों का मानना है कि परंपरिक मीडिया के आपत्तीजनक व्यवहार की तुलना में नए सामाजिक मीडिया के इस युग का आपत्तीजनक व्यवहार कई मायने में अलग है। नए सामाजिक मीडिया के माध्यम से जहां गडबडी आसानी से फैलाई जा सकती है, वहीं लगभग गुमनाम रहकर भी इस कार्य को अंजाम दिया जा सकता है। हालांकि यह सच नहीं है, अगर कोशिश की जाये तो सोशल मीडिया पर आपत्तीजनक व्यवहार करने वाले को पकडा जा सकता है और इन घटनाओं की पुनरावृति को रोका भी जा सकता है। केवल मेरठ के उस किशोर का पकडे जाना ही इसका उदाहरण नहीं है, वल्कि सोशल मीडिया की ही दें है कि लंदन दंगों में शामिल कई लोगों को वहाँ की पुलिस ने पकडा और उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए। और भी कई उदाहरण है जैसे बैंकुअर दंगे के कई अहम सुराग में सोशल मीडिया की बडी भूमिका रही। मिस्र के तहरीर चैक और ट्यूनीशिया के जैस्मिन रिवोल्यूशन में इस सामाजिक मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कैसे नकारा जा सकता है।[6]
सामाजिक मीडिया की आलोचना उसके विज्ञापनों के लिए भी की जाती है। इस पर मौजूद विज्ञापनों की भरमार उपभोक्ता को दिग्भ्रमित कर देती है तथा ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एक इतर संगठन के रूप में काम करते हैं तथा विज्ञापनों की किसी बात की जवाबदेही नहीं लेते हैं जो कि बहुत ही समस्यापूर्ण है।[7][8]

संदर्भ



  • शी, जहाँ ; रुई, हुवाक्सिया ; व्हिंस्तों, एंड्रू बी. (फोर्थ कमिंग). "कंटेंट शेयरिंग इन अ सोशल ब्रॉड कास्टिंग एनवायरनमेंट एविडेंस फ्रॉम ट्विटर". मिस क्वार्टरली

  • जनसंदेश टाइम्स,5 जनवरी 2014, पृष्ठ संख्या:1 (पत्रिका ए टू ज़ेड लाइव), शीर्षक:आम आदमी की नई ताक़त बना सोशल मीडिया, लेखक: रवीन्द्र प्रभात

  • "फेसबुक पर ग्राहकों के साथ बातचीत के तरीको में सुधार". क्लियरट्रिप डॉट कॉम. २७ जनवरी २०१४. अभिगमन तिथि: १९ फरबरी २०१४.

  • फित्ज़गेराल्ड, बी.  (२५ मार्च २०१३). "डिस अपियरिंग रोमनी". दि हफिंग्टन पोस्ट. अभिगमन तिथि: १९ फरबरी २०१४.

  • हिन्शिफ, डॉन. (१५ फरबरी २०१४). "आर सोशल मीडिया सिलोस होल्डिंग बेक बिज़नस". ZDNet.com. अभिगमन तिथि: १९ फरबरी २०१४.

  • जनसंदेश टाइम्स,5 जनवरी 2014, पृष्ठ संख्या:1 (पत्रिका ए टू ज़ेड लाइव), शीर्षक:आम आदमी की नई ताक़त बना सोशल मीडिया, लेखक: रवीन्द्र प्रभात

  • शेर्विन आदम, आदम (४ सितम्बर २०१३). "स्टाइल ओवर सब्सतांस: वायने रूनी क्लेअरेड ऑफ़ नाइके ट्विटर प्लग". दि इंडिपेंडेंट. अभिगमन तिथि: १९ फरबरी २०१४.

  • बाहरी कड़ियाँ

    दिक्चालन सूची

    BBC Hindi: निष्पक्ष पत्रकारिता के 75 वर्ष !

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    राजनामा.कॉम। 
     बीबीसी अर्थात,ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन अपनी हिंदी सेवा के स्थापना के 75 वर्ष पूरे कर चुका है। बीबीसी परिवार से जुड़े सभी लोग मीडिया का सिरमौर समझे जाने वाले इस विश्व के सबसे प्रमुख एवं विश्वसनीय मीडिया हाऊस की स्थापना पर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

    हालांकि जनवरी 2011 में बीबीसी परिवार को उस समय एक बड़ा झटका लगा था जबकि बीबीसी के तत्कालीन प्रमुख पीटर हॉक्स ने अपनी एक अप्रत्याशित घोषणा में भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय बीबीसी रेडियो सर्विस के हिंदी प्रसारण सहित मैसोडोनिया, सर्बिया, अल्बानिया, रूस, यूक्रेन तुर्की, मेड्रिन, स्पेनिश, तथा अजेरी भाषा के बीबीसी प्रसारण मार्च 2011 के दूसरे पखवाड़े से बंद किए जाने की घोषणा की थी।
    इनमें अधिकांश देशों के प्रसारण बंद भी कर दिए गए। भारत में श्रोताओं व बीबीसी समर्थकों के भारी दबाव के बावजूद यहां भी बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी की गई तथा प्रसारण कार्यक्रमों में परिवर्तन किया गया।
    ग़ौरतलब है कि विश्व की सबसे लोकप्रिय निष्पक्ष एवं बेबाक समझी जाने वाली बीबी सी समाचार सेवा का मुख्यालय हालांकि लंदन स्थित बुश हाऊस में है तथा यह सेवा पब्लिक ट्रस्ट से संचालित होती है। परंतु बी बी सी के कर्मचारियों तथा पत्रकारों की तनख़्वाह के लिए ब्रिटेन का विदेश मंत्रालय पैसा मुहैया कराता है।
    लिहाज़ा ब्रिटिश विदेश मंत्रालय ने ही 2011 में यह फैसला लिया था कि बी बी सी को दिए जाने वाले अनुदान में 16 प्रतिशत की कटौती की जाए। तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मंत्री विलियम हेग का कहना था कि बीबीसी की भविष्य की प्राथमिकताएं नए बाज़ार होंगे। जिसमें ऑनलाईन प्रसारण,इंटरनेट तथा मोबाईल बाज़ार प्रमुख हैं।
    इस फैसले से बी बी सी से आत्मीयता का गहरा रिश्ता रखने वाले समाचार श्रोताओं के हृदय पर यह निर्णय एक कुठाराघात भी साबित हुआ था। परंतु समय के साथ-साथ संचार माध्यमों में आए परिवर्तन के चलते बीबीसी ने स्वयं को उसी के अनुरूप ढाल कर एक बार पुन: समाचार जगत में अपनी विश्वसनीयता तथा लोकप्रियता को बरकरार रखने का पूरा प्रयास किया है।
    जिस समय 2011 में लंदन में बैठकर बीबीसी के नीति निर्धारकों द्वारा बीबीसी हिंदी सेवा के रेडियो प्रसारण को बंद किए जाने का फैसला लिया जा रहा था इससे भारत में बीबीसी से नाता रखने वाले करोड़ों लोग बेहद दु:खी थे।
    इसका सीधा एवं स्पष्ट कारण यही था कि बीबीसी विश्व समाचार हिंदी के रेडियो प्रसारण ने अपनी निष्पक्ष,बेबाक, शुद्ध साहित्य,सही उच्चारण से परिपूर्ण तथा त्वरित पत्रकारिता के चलते भारत की करोड़ों अवाम के दिलों में जो सम्मानपूर्ण जगह बनाई थी वह जगह अन्य मीडिया घराने यहां तक कि सरकारी मीडिया हाऊस भी नहीं बना सके थे।
    बीबीसी ने अपने शानदार समाचार विश्लेषण,साहित्यिक सूझबूझ रखने वाले पत्रकारों तथा शुद्ध एवं शानदार उच्चारण के चलते स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक भारतीय श्रोताओं के दिलों पर राज किया।
    यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि बीबीसी सुनकर ही हमारे देश में न जाने कितने युवक आईएएस अधिकारी बने,कितने लोग नेता बने तथा तमाम लोग छात्र नेता, लेखक,पत्रकार,व अन्य अधिकारी बन सके। बीबीसी परीक्षार्थियों तथा विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले युवकों को भी अत्यंत लोकप्रिय था।
    बीबीसी रेडियो की हिंदी सेवा ने गरीबों,रिक्शा व रेहड़ी वालों,चाय बेचने वालों, दुकानदारों से लेकर पंचायतों व चौपालों आदि तक पर लगभग 6 दशकों तक राज किया। भारत में अब भी बीबीसी के लाखों श्रोता ऐसे हैं जिनका नाश्ता बीबीसी की पहली प्रात:काल सेवा से ही होता है तथा रात में अंतिम सेवा सुनकर ही उन्हें नींद आती है।
    यह कहने में भी कोई हर्ज नहीं कि भारत में बीबीसी हिंदी सेवा सुनने के लिए ही समाचार प्रेमी श्रोतागण रेडियो व ट्रांजिस्टर खरीदा करते हैं। तमाम भारतीय समाचार पत्र-पत्रिकाएं तथा टी वी चैनल बीबीसी के माध्यम से खबरें लेकर प्रकाशित व प्रसारित केवल इसलिए किया करते हैं क्योंकि बीबीसी की खबरों की विश्वसनीयता की पूरी गांरटी हुआ करती है।
    इसमें कोई दो राय नहीं कि 2011 में पूरा विश्व विशेषकर पश्चिमी देश भारी मंदी व इसके कारण पैदा हुए आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहे थे। परंतु आर्थिक संकट के उस दौर में यदि कटौती करनी भी चाहिए तो सर्वप्रथम युद्ध के खर्चों में कटौती की जानी चाहिए थी।
    इराक, अफगानिस्तान तथा अन्य उन तमाम देशों में जहां अमेरिका तथा उसके परम सहयोगी देश के रूप में ब्रिटिश फौजें तैनात थीं दरअसल वहां होने वाले भारी-भरकम एवं असीमित खर्चों में कटौती की जानी चाहिए थी। न कि पूरी दुनिया में विश्वसनीयता का झंडा गाडऩे वाले बीबीसी जैसी रेडियो सेवा पर खर्च होने वाले पैसों में।
    बीबीसी हिंदी सेवा के प्रसारणों में कमी के कारण यहां के श्रोतागणों की नाराज़गी भारतवर्ष में उस समय काफी मुखरित होती दिखाई दे रही थी। परंतु बड़े ही संतोष का विषय है कि बीबीसी के कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर की गई छंटनी तथा रेडियो सेवा के अतिरिक्त वेब पोर्टल जैसे अन्य वर्तमान आधुनकि संचार माध्यमों के द्वारा भी बीबीसी ने स्वयं को उसी प्रकार स्थापित कर अपने समर्थकों, शुभचिंतकों तथा श्रोताओं को मायूस होने से बचा लिया है।
    बीबीसी ने अपनी शानदार पत्रकारिता एवं बेहतरीन प्रसारण के बल पर श्रोताओं के मध्य विश्व स्तर पर जो प्रतिष्ठा अर्जित की थी वह अब तक दुनिया की किसी और समाचार सेवा ने नहीं हासिल की। बीबीसी ने भारत में अपने श्रोताओं से संबंध स्थापित करने के लिए कभी विशेष रेल यात्रा निकाली तो कभी अपनी टीम के साथ देश के विभिन्न राज्यों में बस यात्राएं कीं।
    बीबीसी के इन्हीं प्रयासों से यह प्रतीत होता है कि वह अपने प्रसारकों व पत्रकारों को ही नहीं बल्कि अपने श्रोताओं को भी अपने परिवार का ही एक सदस्य समझती है। और यही वजह है कि बीबीसी के श्रोता यह आस भी लगाए बैठे हैं कि संभवत: अब बीबीसी का हिंदी न्यूज़ चैनल भी शीघ्र ही शुरु होगा।
    विश्व की इस सबसे प्रतिष्ठित व विश्वसनीय समाचार सेवा को और अधिक मज़बूत व मुखरित तथा प्रतिष्ठापूर्ण बनाने के लिए बीबीसी प्रबंधन को तथा ब्रिटिश सरकार को और अधिक प्रयास करने चाहिए। ब्रिटिश सरकार को स्वयं इस बात पर $गौर करना चाहिए कि वॉयस ऑफ अमेरिका रूस,चीनी तथा जर्मनी रेडियो की समाचार सेवाओं को कहीं पीछे छोड़ते हुए बीबीसी ने अपनी लोकप्रियता का जो झंडा बुलंद किया है उसे बरकरार रखा जाए।
    यह कहना गलत नहीं होगा कि दुनिया में ब्रिटेन का आज भी जो थोड़ा-बहुत सम्मान आम लोगों के दिलों में है उसका एक प्रमुख बड़ा कारण बीबीसी लंदन जैसी विश्वसनीय समाचार सेवा भी है। ज़ाहिर है विश्वास के इस वातावरण को और भी अधिक मज़बूत व भरोसेमंद बनाए जाने की ज़रूरत है।
    आले हसन,पुरुषोत्तमलाल पाहवा,विजय राणा,रामपाल,मार्क टुली,ओंकार नाथ श्रीवास्तव,से लेकर संजीव श्रीवास्तव,सलमा ज़ैदी,राजेश जोशी,महबूब खान,रेहान फज़ल,भारतेंदु विमल, पंकज प्रियदर्शी तथा अविनाश दत्त तक बीबीसी के सभी योग्य एवं होनहार पत्रकारों ने निश्चित रूप से भारतीय श्रोताओं के दिलों पर दशकों तक राज किया है।
    भारतीय श्रोता बीबीसी के आजतक,विश्वभारती, आजकल तथा हम से पूछिए जैसे उन कार्यक्रमों को कभी नहीं भुला सकेंगे जो भारतीय चौपालों,पंचायतों,भारतीय सीमाओं तथा चायख़ानों तक में बड़ी गंभीरता से सुने जाते थे। बीबीसी हिंदी प्रसारण के शाम को प्रसारित होने वाले इंडिया बोल कार्यक्रम में भारतीय श्रोता अपने विचार अपने दिलों की गहराईयों से व्यक्त करते रहते हैं। अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे करने के अवसर पर समस्त बीबीसी परिवार बधाई एवं शुभकामना का पात्र है।
    निष्पक्ष समाचार प्रसारण सेवा की इतनी लंबी यात्रा पूरी कर लेने पर कारपोरेशन के जि़म्मेदार लोगों को इसे सुदृढ़, और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए और अधिक प्रयास करने की ज़रूरत है। बहुत ही कम समय में हालांकि बीबीसी ने वेबसाईट व दूसरे सोशल मीडिया माध्यमों के द्वारा स्वयं को इस माध्यम में भी स्थापित करने जैसा सफल प्रयास किया है।
    बीबीसी को चाहिए कि भारत में अभी भी हिंदी न्यूज़ चैनल के क्षेत्र में यहां के दर्शकों व श्रोताओं को एक निष्पक्ष,विश्वसनीय व दमदार टीवी चैनल की आवश्यकता महसूस हो रही है। बीबीसी के नीति निर्धारक इस कमी को पूरा कर सकते हैं।
    अपनी स्थापना के 75 वर्ष पूरे करने के शुभ अवसर पर उन्हें यह निर्णय लेना चाहिए कि वे अपने अंग्रेज़ी टीवी समाचार चैनल की ही तरह हिंदी भाषा में भी एक 24/7 का एक टीवी चैनल प्रारंभ करें। आशा है बीबीसी प्रबंधन यथाशीघ्र इस ओर भी ध्यान देगा।

    tanvir

    ……..तनवीर जाफरी

    1618, महावीर नगर, मो: 098962-19228 अम्बाला शहर। हरियाणा

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    और अब देशव्यापी प्रदर्शन करेंगे पत्रकार

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    Posted by on Nov 2, 2015 | 0 comments
    Jpegनई दिल्ली 2 नवंबर 2015:- नेशनल यूनियन आॅफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) की अगुवाई में आगामी 7 दिसंबर को पत्रकार सुरक्षा अधिनियम की गठन की मांग को लेकर देशभर के पत्रकार संसद का घेराव करेंगे। सोमवार 2 नंवबर, 2015 को एनयूजे के जंतर मंतर स्थित कार्यालय में आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में यह घोषणा की गई। इस मौके पर प्रस्तावित घेराव का पहल पोस्टर भी जारी किया गया। इंटरनेशनल फैडरेशन आफ जर्नलिस्ट्स (ब्रूसेल्स) के अंतराष्ट्रीय कार्यक्रम ‘‘यून डे टू एंड-ईम्पयून्टिी एगेस्ट जर्नलिस्ट्स‘‘ के लिए प्रतिबद्धता जताते हुए बैठक में निर्णय लिया गया 2 नवंबर से 23 नवंबर, 2015 तक एनयूजेआई की सभी राज्य इकाईयां प्रदेश तथा जिला स्तर पर ज्ञापन देकर पत्रकारों की हत्याओं, शोषण और छंटनी के खिलाफ आवाज बुलंद करेगी। इस कड़ी में आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को ज्ञापन दिया गया।
    बैठक में एनयूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष रासविहारी, महासचिव रतन दीक्षित, कोषाध्यक्ष दधिबल यादव, भारत सरकार की प्रेस एसोसिएशन के सचिव मनोज वर्मा, दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के महासचिव आनंद राणा,एनयूजे कार्यकारिणी के सदस्य मनोज मिश्र, प्रमोद मजूमदार, मनोहर सिंह, के अलावा वरिष्ठ पत्रकार राकेश आर्य, अशोक किंकर, संजीव सिन्हा, पवन भार्गव ने अपने विचार रखे।
    राष्ट्रीय अध्यक्ष रासविहारी ने पत्रकार सुरक्षा अधिनियम के गठन को अत्यंत आवश्यक बताते हुए कहा कि आज देश भर में पत्रकारों की हत्या और जानलेवा हमलों की वारदाते बेतहाशा बढ़ती जा रही हैं। पत्रकारों में असुरक्षा का महौल व्याप्त है। उन्होंने कहा कि मीडिया काउंसिल और मीडिया कमीशन की मांग भी संसद घेराव के दौरान पुरजोर ढंग से उठाई जाएगी।
    महासचिव रतन दीक्षित ने कहा कि इस प्रर्दशन में देशभर से करीब दो हजार पत्रकार हिस्सा लेगें। उन्होंने ‘‘एंड-ईम्पयून्टिी‘‘ में एनयूजे आई की भागीदारी का खाका पेश करते हुए बताया कि सभी राज्य इकाइयां संबंधित राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन देकर पत्रकार सुरक्षा के लिए आवाज बुलंद करेंगी। ज्ञापन जिला स्तर पर भी दिया जाएगा।
    डीजेए महासचिव आनंद राणा ने  संसद के घेराव और ‘‘यून डे टू एंड-ईम्पयून्टिी एगेस्ट जर्नलिस्ट्स‘‘ कार्यक्रम को लेकर चलाए जा रहे राष्ट्रव्यापी सोशल मीडिया कंपैन की प्रगति पर रिपोर्ट बैठक में रखी।
    बैठक में निर्णय लिया गया की आगामी एक महीने के दौरान राजनैतिक दलों, सांसदों और सामाजिक और श्रमिक संगठनों को पत्रकारों से जुड़ी समस्याओं से अवगत कराया जाएगा।

    समय के साथ बदली हिंदी पत्रकारिता की भाषा

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    संजय कुमार।

    संजय कुमार।
    हालांकि, इलैक्टोनिक मीडिया में आम बोलचाल की भाषा को अपनाया जाता है। इसके पीछे तर्क साफ है कि लोगों को तुंरत दिखाया/सुनाया जाता है यहाँ अखबार की तरह आराम से खबर को पढ़ने का मौका नहीं मिलता है। इसलिए रेडियो और टी.वी. की भाषा सहज, सरल और बोलचाल की भाषा को अपनाया जाता है। कई अखबारों ने भी इस प्रारूप को अपनाया है खासकर हिन्दी के पाठकों को ध्यान में रख कर भाषा का प्रयोग होने लगा है।
    शुरुआती दौर की हिन्दी पत्रकारिता की भाषा साहित्य की भाषा को ओढे हुए थी। ऐसे में हिन्दी पत्रकारिता साहित्य के बहुत करीब थी। जाहिर है इससे साहित्यकारों का ही जुड़ाव रहा होगा। बल्कि हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास पर नजर डालने से यह साफ हो जाता है। 30 मई 1826 में प्रकाशित हिंदी के पहले पत्र ‘‘उदंत मार्तण्ड’’ के संपादक युगल किशोर शुक्ल से लेकर भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र, पंडित मदनमोहन मालवीय, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, अंबिका प्रसाद वाजपेयी, बाबू राव विष्णु पराड़कर, आचार्य शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी सहित सैकड़ों ऐसे नाम है जो चर्चित साहित्यकार-रचनाकार रहे हैं। अपने दौर में हिन्दी पत्रकारिता से जुड़े रहे और दिशा दिया। लेकिन समय के साथ ही हिंदी पत्रकारिता भी बदली है। संपादन, साहित्यकार से होते हुए पत्रकार के हाथों पहुंच गया और हिन्दी पत्रकारिता में हिन्दी भाषा की बिंदी अंग्रेजी बन गयी।
    हिन्दी पत्रकारिता ने आज तकनीक विकास के साथ-साथ भाषायी विकास भी कर लिया है। भाषा को आम-खास के लिहाज से परोसा जा रहा है। जहाँ प्रिंट मीडिया व निजी सेटेलाइट चैनलों की भाषा अलग है वहीं सरकारी मीडिया रेडियो और दूरदर्शन की बिलकुल ही अलग। लेकिन, यह बात अहम है कि आज रेडियो, दूरदर्शन, सेटेलाइट चैनल और सोशल मीडिया पर हिन्दी को तरजीह मिल रही है। हिन्दी का वर्चस्व बढ़ा है, जो पूरे प्रभाव में है।
    जहाँ धीरे-धीरे बदलाव के क्रम में पत्रकारिता से साहित्य और साहित्यकार दूर होते गये। वहीं भाषा में भी बदलाव आता गया। पत्रकारिता की साहित्यिक भाषा के स्थान पर सहज व सरल हिन्दी भाषा जो बोलचाल की भाषा रही है ने पांव जमा लिया। पैमाना बना कि पत्रकारिता की अच्छी भाषा वही है जिससे सूचना/खबर/जानकारी को साफ, सरल तथा सहज तरीके से लोगों तक पहुँचायी जा सके। पत्रकार और पत्रकारिता के उद्देश्य का वास्ता देकर कहा जाने लगा कि लाखों लोगों तक सूचना/खबर/जानकारी पहुँचे और सहजता से आम-खास जनता उसे समझ सकें। यही हुआ, हिन्दी पत्रकारिता में भाषा को आम चलन के तौर पर प्रयोग होते देखा गया।
    मालवीय पत्रकारिता संस्थान, काशी विद्यापीठ के पूर्व निदेशक, राममोहन पाठक की माने तो, ‘वर्तमान दौर की शायद सबसे बड़ी चुनौती पत्रकारिता की भाषा है। पौने दो सौ से ज्यादा साल में भी संचार और जन माध्यमों की एक सर्वस्वीकृति वाली भाषा का प्रारूप नहीं तैयार हो सका है। यह भी सच है कि इस बीच समाज की भाषा भी काफी बदली है और लगातार बदल रही है। बाबूराव विष्णु पराड़कर ने मीडिया की भाषा को आमजन, मजदूर, पनवाड़ी पान बेचने वाले, अशिक्षित या कम शिक्षितों की भाषा बनाने का विचार दिया था।
    इसके साथ ही, वह व्याकरण या शब्द-रचना को भ्रष्ट भी नहीं होने देना चाहते थे। वैश्विक स्तर पर ‘नव परंपरावादी’ कन्जर्वेटिस्ट, स्कूल व्याकरण को बाध्यकारी न मानकर, यह मानता है कि संदेश पहुंचना चाहिए, व्याकरण जरूरी नहीं है। इस आधार पर व्याकरण को न मानने वालों की मीडिया में तादाद बढ़ी है, किंतु इससे एक अनुशासनहीन भाषा संरचना विकसित होने का खतरा है। (देखें-‘‘नई भाषा गढ़ रहा है हिंदी मीडिया’, हिन्दुस्तान लाइव ,30-5-2014)। हुआ भी यही। हिन्दी पत्रकारिता की भाषा को लेकर सवाल उठने लगे। बाबूराव विष्णु पराड़कर की सोच जहाँ दिखी वहीं राममोहन पाठक की चिंता भी। व्याकरण को न मानने वालों की मीडिया में तादाद बढ़ी है। देसज शब्द के साथ-साथ अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन बढ़ता ही गया और आज यह हिन्दी पत्रकारिता का हिस्सा बन चुका है।
    इन सबके बीच आज के दौर में सबसे बड़ी चुनौती हिन्दी पत्रकारिता की भाषा को है। इसे लेकर कोई मापदण्ड तय नहीं हो पाया है। बल्कि कोई प्रारूप भी नहीं है। जिसे जो मन में आया वह करता जा रहा है। जल्द से जल्द और पहले पहल खबर लोगों तक पहुंचने की होड़ में लगे खबरिया चैनलों में कई बार भाषा के साथ खिलवाड़ होते देखा जा सकता है। कहा जा सकता है कि अनुशासनहीन भाषा की संरचना विकसित हो गयी है। खबर के लिए सुबह अखबार के इंतजार को इंटरनेट मीडिया और 24 घंटे खबरिया चैनल ने खत्म कर दिया है। चंद मिनट में घटित घटना लोगों तक पुहंच रहा है। ऐसे में भाषा का की गंभीरता का सवाल सामने आ जाता है।
    हालांकि, इलैक्टोनिक मीडिया में आम बोलचाल की भाषा को अपनाया जाता है। इसके पीछे तर्क साफ है कि लोगों को तुंरत दिखाया/सुनाया जाता है यहाँ अखबार की तरह आराम से खबर को पढ़ने का मौका नहीं मिलता है। इसलिए रेडियो और टी.वी. की भाषा सहज, सरल और बोलचाल की भाषा को अपनाया जाता है। कई अखबारों ने भी इस प्रारूप को अपनाया है खासकर हिन्दी के पाठकों को ध्यान में रख कर भाषा का प्रयोग होने लगा है। इसके पीछे सोच यह है कि हिन्दी के पाठक हर वर्ग से हैं। इसमें पढे़-लिखे, आमजन, मजदूर, पनवाड़ी, चाय विके्रता, अशिक्षित या कम शिक्षित सब शामिल है। बाबूराव विष्णु पराड़कर ने भी मीडिया की भाषा को आमजन, मजदूर, पनवाड़ी, अशिक्षित या कम शिक्षितों की भाषा बनाने का विचार दिया था। हिन्दी के साथ यह देखा जा सकता है। चाय या पान की दूकान हो या ढाबा अशिक्षित या कम शिक्षित यहाँ रखे अखकार को उलट-पुलट कर पढ़ने की कोशिश करते है। टो-टो कर पढ़ते हैं और फिर खबर पर चर्चा भी करते हैं। इन सब के बीच क्षेत्रीय बोलियों का भी समावेश हुआ है। राष्ट्रीय से राजकीय और जिला यानी क्षेत्रीय स्तर पर अखबारों के प्रकाशन से भाषा में बदलाव आया है। क्षेत्रीय और जिले तक सिमटे मीडिया में वहां की बोलियों को स्थान मिल रहा है ताकि पाठक अपने आपको जुड़ा महसूस करें।
    वहीं, यह भी सच है कि मीडिया खुद अपनी भाषा गढ़ रहा है। इसमें अंग्रेजी से आये संपादक और अंगे्रजीदां मालिक की भूमिका अहम रही है। नयी पीढ़ी तक अखबार को पहुंचाने के आड़ में हिन्दी में अंग्रेजी को प्रवेश करा दिया गया है। दिल्ली से प्रकाशित ज्यादातर हिन्दी अखबार की खबरें हिंगलीश हो गयी वहीं, र्शीषक आधा हिन्दी आधा अंग्रेजी में दिया जाता है। इसमें हिन्दी के चर्चित अखबार भी शामिल हुए जो हिन्दी भाषा के लिए जाने जाते थे। वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर की माने तो, ’नवभारत टाइम्स के दिल्ली संस्करण से विद्यानिवास मिश्र विदा हुए ही थे। वे अंग्रेजी के भी विद्वान थे, पर हिंदी में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग बिलकुल नहीं करते थे। विष्णु खरे भी जा चुके थे। उनकी भाषा अद्भुत है। उन्हें भी हिंदी लिखते समय अंग्रेजी का प्रयोग आम तौर पर बिलकुल पसंद नहीं। स्थानीय संपादक का पद सूर्यकांत बाली सँभाल रहे थे। अखबार के मालिक समीर जैन को पत्रकारिता तथा अन्य विषयों पर व्याख्यान देने का शौक है। उस दिनों भी था। वे राजेंद्र माथुर को भी उपदेश देते रहते थे, सुरेंद्र प्रताप सिंह से बदलते हुए समय की चर्चा करते थे, विष्णु खरे को बताते थे कि पत्रकारिता क्या है और हम लोगों को भी कभी-कभी अपने नवाचारी विचारों से उपकृत कर देते थे। आडवाणी ने इमरजेंसी में पत्रकारों के आचरण पर टिप्पणी करते हुए ठीक ही कहा था कि उन्हें झुकने को कहा गया था, पर वे रेंगने लगे। मैं उस समय के स्थानीय संपादक को रेंगने से कुछ ज्यादा करते हुए देखता था और अपने दिन गिनता था। समीर जैन की चिंता यह थी कि नवभारत टाइम्स युवा पीढ़ी तक कैसे पहुँचे(देखें-‘हिंदी पत्रकारिता की भाषा’, हिन्दी समय में प्रकाशित)।
    वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर जी की टिप्पणी देखें तो हिन्दी पत्रकारिता की भ्रष्ट होती भाषा के पीछे मालिकों की सोच जिम्मेदार है। अंग्रेजी भाषा में विद्वान होने के बावजूद हिन्दी के प्रति संपादकों का समपंर्ण दर्शाता है कि वे भाषा के प्रति सजग थे चाहे वह कोई भी भाषा हो, साथ ही उस भाषा से समझौता नहीं करते थे। हिन्दी पत्रकारिता की भ्रष्ट भाषा को खबरिया चैनलों ने भी खूब बढ़ावा दिया है। समाचार हो या बहस हिन्दी भाषा की टांग तोड़ा जाता है। व्याकरण का गड़बड़ झाला और हिन्दी में अंग्रेजी का तड़का अजीब हालात पैदा कर जाता है। हालांकि अभी भी कुछ मीडिया हाउस व्याकरण के गड़बड़ झाला और हिन्दी में अंग्रेजी के तड़के से परहेज करते है। कोशिश करते हैं कि भाषा भ्रष्ट न हो। लेकिन बाजारवाद के झांझेवाद में फंसा हिन्दी पत्रकारिता कंशमंश की स्थिति में है। बाजारवाद को भले ही दोषी ठहरा दें, यह भी वजह है कि आज पत्रकारिता में वह तेवर नहीं या फिर वह पुरानी बात नहीं जहंा आने वाला शक्स भाषा विद्वान हुआ करता था। भाषा पर पकड़ होती थी। अंग्रेजी हो या हिन्दी उसकी विद्ववता साफ झलकती थी। बदलाव के काल में हिन्दी पत्रकारिता की भाषा बदली तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन सवाल इसके भ्रष्ट होने का है। जो भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।
    संजय कुमार दूरदर्शन केन्द्र, पटना में समाचार संपादक हैं.
    संपर्क: 09934293148 ईमेल: sanju3feb@gmail.com

    टीवी रिपोर्टिंग सबसे तेज, कठिन और चुनौती भरा काम

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    डॉ. ब्रजमोहन:

    ( नवभारत टाइम्स से पत्रकारिता की शुरूआत। दिल्ली में दैनिक जागरण से जुड़े। 1995 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में। टीवीआई (बी.आई.टीवी), सहारा न्यूज, आजतक, स्टार न्यूज, IBN7 जैसे टीवी न्यूज चैनलों और ए.एन.आई, आकृति, कबीर कम्युनिकेशन जैसे प्रोडक्शन हाउस में काम करने का अनुभव। IBN7 न्यूकज चैनल में एसोसिएट एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर रहे । प्रिंट और इलेक्ट्रॉंनिक मीडिया में 19 साल का अनुभव)।

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    गरमी से जीव जंतुसमेत धरती बेहाल

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     दिसंबर का महीना, सर्दी का नामोनिशान नहीं

    Posted on: December 01, 2014 02:53 PM IST | Updated on: December 01, 2014 02:53 PM IST


    नई दिल्ली।दिसंबर का महीना है, लेकिन सर्दी का नामोनिशान नहीं। हल्के-फुल्के कपड़े में धूप सेंकने वाला मौसम है। कायदे से दिसंबर में अच्छी-खासी ठंड होने लगती है मगर इस बार ऐसा नहीं है। इस गुनगुने मौसम का आनंद जरूर लें लेकिन बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मौसम की ये बेवफाई है खतरे की ग्लोबल घंटी।
    धरती धीरे-धीरे गरम ग्रह में बदल रही है। दिल्ली में 28 नवंबर 5 साल का सबसे गरम दिन रहा। 5 साल में नवंबर के सबसे गर्म दिन के तौर पर 28 नवंबर का तापमान 30.2 डिग्री सेल्सियस रहा। साल 2014 की ये कोई अकेली घटना नहीं है। दुनिया की गरम मिजाजी का सबसे बड़ा सबूत ये है कि साल 2014 दुनिया का सबसे गरम साल साबित हो सकता है।
    दुनिया में 1880 से हर साल के तापमान का रिकॉर्ड रखा जा रहा है, 130 साल के इतिहास में सबसे गरम साल साबित हो सकता है। ये इशारा है कुदरत के उस गुस्से का जिसकी वजह से दुनिया में बारहोमासी मौसम एक जैसा होने की तरफ बढ़ रहा है। यानी मई-जून, दिसंबर-जनवरी हर महीने में दुनिया एक जैसी होगी। ऐसा हुआ तो गंभीर नतीजे भुगतने पड़ेंगे।
    लंबे वक्त से जानकार चेता रहे हैं कि एक जैसा मौसम हुआ तो दुनिया प्रलय के मुहाने पर आ सकती है। एक जैसा मौसम अपने साथ कई समस्याएं ले कर आएगा। फसलें चौपट हो जाएंगी, बीमारियां महामारी का रूप लेने लगेंगी और दुनिया के इस बदले चेहरे के जिम्मेदार होंगे हम।
    दिसंबर 2014 में सर्दी में भी गर्मी, सितंबर 2014 'जनत'में जल प्रलय, जुलाई 2014 114 साल का सबसे बड़ा सूखा, जून 2014 औसत तापमान 45 डिग्री से.। ये साल 2014 की चार तस्वीरें हैं, जो मौसम के मिजाज में बदलाव का ही नहीं बल्कि सीधे जलवायु परिवर्तन की तरफ इशारा कर रही हैं।
    इस साल भारत में हर मौसम में मौसम ने अपना चरम रूप दिखाया है। सितंबर में जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में भयंकर बाढ़ आई। जुलाई में बादल ऐसे रूठे थे कि 2014 में 114 साल का सबसे बड़ा सूखा पड़ा और मई-जून-और जुलाई में सूरज के सितम की कहानी ये थी कि भारत के तमाम शहरों में दिन चढ़ते ही कर्फ्यू जैसे हालात बन जाते थे।
    इन महीनों में आमतौर पर शहरों का औसत तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के आसपास डोलता रहा। रही सही कसर दिसंबर में पूरी होती नजर आ रही है। जिस मौसम में सर्दी से हाड़-मांस कांप जाता था, उस मौसम में लोग स्वेटर पहने बिना दिन में गुलाबी गुनगुनी धूप सेंकते नजर आ रहे हैं।
    नवंबर के आखिरी हफ्ते और दिसंबर में मौसम की तस्वीर, 28 नवंबर का तापमान बताने के लिए काफी है। 28 नवंबर का अधिकतम तापमान इस साल 30.2 डिग्री सेल्सियस था। 2013 में ये 28 डिग्री सेल्सियस था। 2012 में 26 डिग्री सेल्सियस ही था।
    सर्दी में गर्मी का ये अहसास सिर्फ अहसास की ही बात नहीं है, वैज्ञानिक पड़ताल की हकीकत भी गरम होते ग्रह की कहानी कह रही है। भारत ही नहीं समूची दुनिया में गर्मी बढ़ रही है। अमेरिकी वैज्ञानिक एजेंसी नेशनल ओशियानिक एंड एटमोसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन NOAA ने ताजा आंकड़ों के आधार पर आशंका जताई है कि साल 2014 दुनिया का सबसे गरम साल हो सकता है।
    दुनिया में 1880 से यानी जबसे तापमान का रिकॉर्ड रखा जाना शुरू हुआ है, उसके मुताबिक 130 साल के इतिहास में 2014 के पहले 10 महीने सबसे गर्म रहे हैं। अमेरिका में हाल के हफ्तों में शुरुआती कड़ाके की सर्दी के बावजूद धरती के लिए यह साल अब तक का सबसे गर्म साल रहा है।
    दुनिया के अबतक के आंकड़ों के मुताबिक में अक्टूबर का हालिया महीना सबसे गर्म रहा है। 20वीं सदी में अक्टूबर के औसत तापमान के मुकाबले साल 2014 का तापमान 0.74 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा है, जो इशारा है कि साल 2014 सबसे गर्म साल हो सकता है। हालांकि नासा ने साल 2014 को दूसरा सबसे गर्म साल और ब्रिटेन के मौसम विभाग ने इसे तीसरा सबसे गर्म साल कहा है।
    अब तक साल 2010 दुनिया का सबसे गरम साल माना जाता है, इसके बाद 1998 को दूसरा सबसे गरम साल कहा जाता है। साल 2014 दोनों को पछाड़ पाएगा या नहीं, सही मायने में ये तय होगा अगले साल की जनवरी-फरवरी में जब 2014 के पूरे आंकड़े आ जाएंगे।
    अलग अलग संस्थाएं अपने तरीके से मौसम का आकलन करती हैं। लिहाजा साल 2014 को लेकर हर संस्था के नजरिए में फर्क दिख रहा है। लेकिन अमेरिका के NOAA, NASA और ब्रिटेन के मौसम विभाग के आंकड़े विश्व मौसम विभाग भी लेता है। इनके आधार पर तय होगा कि साल 2014 कितना गर्म रहा-लेकिन इसमें कोई शक नहीं है दुनिया में गरमी बढ़ रही है।
    2009 के कोपेनहेगन समझौते के मुताबिक दुनिया के तापमान में दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की कोई भी बढ़ोतरी खतरनाक हो सकती है। दुनिया के तापमान में 2 से 3 डिग्री बढ़ोतरी के खौफनाक नतीजे सामने आ सकते हैं। भयंकर गर्मी, जबरदस्त सूखा, हाहाकारी तूफान, और जमा देने वाली बर्फबारी से जलवायु हमेशा के लिए बदल सकती है। इस लिहाज से खतरे की घंटी बज भी चुकी है। दुनिया के 10 सबसे गर्म साल 1997 के बाद रिकॉर्ड किए गए हैं। बीसवीं सदी में जहां औसत तापमान 57.1 डिग्री फाहरेनहाइट रहा है वहीं अब पारा इससे एक डिग्री से ऊपर चढ़ चुका है।


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    Ebook :अजब-गजब हिन्दुस्तान
    Author : Anami Sharan Babal
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    किधर किस रास्ते पत्रकारिता

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    प्रस्तुति- हुमरा असद

    आज की पत्रकारिता पिछले पचास सालों में न जाने कितनी बदल गई है कि आपस में तुलना करना ही मुश्किल
    सा हो गया है.उस जमाने में पत्रकारिता का पहला काम था देश, विदेश व प्रदेश की खबरों को निष्पक्ष भाव से आम जनता तक पहुँचाना. उनका किसी राजनैतिक दल से या किसी औद्योगिक अनुष्ठान से कोई नाता नहीं होता था. हो सकता है कि किसी औद्योगिक संस्थान के पास उस समाचार पत्र का मालिकाना हक रहा होगा, किंतु इसका कोई भी असर खबरों के खुलासे पर नहीं होता था.
    समाचार पत्रों में होड़ लगी होती थी कि कौन सबसे पहले जनता तक खबर पहुँचाएगा और किसकी खबर कितनी सही होती थी. इसीलिए सारे खबरनवीस अपने - अपने खबरचियों को भेजकर सही खबर जुटाने का प्रयास करते थे. भाषा इतनी सुंदर होती थी कि पढ़ने का मन करता था. बहुतों के लिए तो यह भाषा सीखने का माध्यम भी होता था. मैंने अखबार में फिल्मी कलाकारों के नाम पढ़-पढ़ कर बंगाली सीखी है. गुजरात में स्थानाँतरण पर ऐसे ही गुजराती भी सीखी. किंतु क्या अब वैसा संभव है?
    भाषा की शुद्दता की तो बात ही गजब थी. दि हिंदू, टाईम्स ऑफ इंडिया, स्टेट्समेन, हिदुस्तान टाईम्स यहाँ तक कि हिंदी अखबार नव भारत, नवभारत टाईम्स, महाकौशल, से भी बच्चे भाषा सीखते थे. हर उम्र के लिए अखबार में कुछ न कुछ होता था. बच्चे बूढ़े स्त्रियाँ सभी अखबार पढ़ने को आतुर रहते थे. कई तरह की मनोरंजक कथाएं, बाल कविताएं,  पकाइए-खाईए और खिलाइए जैसे लेख, संपादकीय में उत्कृष्ट भाषा - अखबार के मुख्य आकर्षण होते थे. खबर तो अखबार का मुख्य मुद्दा ही था.  
    घर - घर में साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्रिकाएँ आया करती थी. जिससे कि घरवाले फुरसत की घड़ियों में पढ़ सकें और सीखें. खास कर गर्मियों में बच्चों को धूप से दूर रखने का यह एक सही उपाय था. बच्चे गर्मी से बचते भी थे और साथ ही साथ सीखते भी थे. ज्ञान का ज्ञान और साथ में भाषा भी. अब बच्चों के पास भी कंप्यूटर गेम खेलने व सामाजिक पोर्टलों पर सर्फिंग करने के अलावा समय ही कहाँ है. वे जानते ही नहीं कि मैदान में कैसा खेला जाता है. वे देखना जानते हैं – वाडियो क्लिप पर.
    जैसे पहले खबर हुआ करती थी  “ट्रक के टक्कर से एक की मौत”. आज वही खबर “अनियंत्रित ट्रक ने दलित को चपेट में लेकर कुचला” लिखी जाएगी. यह है खास परिवर्तन. सामाजिक पहलू पर जोर देकर खबर को भड़काऊ बनाया जाएगा. जैसे बूढे को पीटा, स्त्री पर ताकत दिखाया, जाति की खबर देकर अत्याचार किया – सा लिका जाएगा. पहले खबर होती थी कि भारत ने पाकिस्तान को 8 विकेट से करारी शिकस्त दी. अब  लिखा जाता है “भारतीय वीरों ने पाकिस्तान को कुचल डाला या रौंदा.”
    भाषा में विशेष तौर पर भड़काऊ अंदाज आ गया है. खबर होगी “ट्रेन पटरी से उतरी और झोपड़ी में घुसी”. यदि पटरी के बगल में झोपड़ी बना ली गई हो, तो की क्या करे. कोई सरकार की तो सुनता नहीं है और वैसे भी जबरन जगह घेरने की परंपरा हमारे देश में बहुत ही प्रचलित है. कुछ सालों बाद नेता लोगों की सहायता से इन्हें नियमित करा दिया जाता है.
    आज पत्रकारिता में भाषा के स्तर की बात करना ही बेमानी है. इससे भाषा सीखी तो नहीं जा सकती, हाँ सीखी
    एम.आर.अयंगर
    सिखाई भाषा को यह खराब जरूर कर देगी. हर जगह भड़काऊ वक्तव्य मिलेंगे. वैसे हमारे नेता भी भड़काऊ वक्तव्य देने लगे हैं. जिनके मुँह जो आए जिसे जो भाए कहता रहता है. दूसरों पर वह किस प्रकार का असर करेगा, यह सोचना उनके लिए जरूरी नहीं है. वैसे ही पत्रकारिता में प्रयुक्त भाषा का जनमानस पर क्या प्रभाव होगा, इसकी चिंता करने की किसी को जरूरत महसूस ही नहीं होती.  
    हमारी टीम एक मैच जीत लेती है तो भारतीय खिलाड़ियों के बारे सातवें आसमान से बातें करते हैं. तारीफों के ऐसे पुल बाँधते हैं कि पढ़ने वाले को भी शर्म आ जाए. लेकिन यदि वो अगला मैच हार जाती है तो ब्रह्मा-विष्णु-महेश समझे जाने वाले, वे ही हफ्ते भर में नकारा हो जाते हैं. उनके बारे में भद्दी-भद्दी टिप्पणियाँ शुरु हो जाती हैं. या तो हम सर पर बिठाएंगे या कदमों तले रौंद देंगे. गले लगाने वाली परंपरा तो कभी की खत्म कर दी गई है.
    हाल ही के एक दास्ताँ में एक कलाकार के वक्तव्य पर पत्रकारिता ने इतना बवाल मचाया कि ऐसा लगा - मानो देश के टुकड़े ही कर दिए गए. उसने अपनी राय दी और कुछ ने उसका विरोध किया. उन सब वक्तव्यों पर नमक मिर्च छिड़क कर पत्रकारों ने उसे अपने समाचार पत्रों की बिक्री का जरिया बना डाला. चेनलों का टीआर बढ़ाने का जरिया बना डाला. सही है कि पत्रकारिता में भी अब व्यापार आ गया है, लेकिन इस हद तक कि मानवीयता को भूल जाया जाए? 
    कल जब परदेश में देश के प्रधानमंत्री कह आए कि कल तक भारतीयों को भारतभूमि पर जन्म लेने की बात पर शर्म आती थी – तब तो समाचार पत्र ऐसा बवाल नहीं मचा पाए... शायद इसलिए कि प्रधानमंत्री के पास बहुत अधिकार होते हैं और वे चाहें तो मिनटों में क्या चुटकियों में समाचार पत्र का खात्मा तक कर सकते हैं. और हाँ आजकल हर समाचार पत्र किसी न किसी औद्योगिक घराने से ताल्लुक रखता है और इसी कारण उसे पत्रकारिता में भी घराने के व्यापारिक लाभ – हानियों का भी ध्यान रखना पड़ता है. एक ही खबर को अलग - अलग समाचार पत्र और टी वी चेनल अलग - अलग ढंग से दिखाने का भी यही कारण है.
    एक जमाना था जब पत्रकारिता को समाज का आईना कहा जाता था. उसी दौर में सिनेमा को भी समाज का दर्पण कहते थे. लेकिन अब न तो पत्रकारिता वैसी रह गई है और न ही सिनेमा. दोनों पूरी तरह व्यापारिक संगठन हो गए हैं. पैसा कमाना ही एक मात्र ध्येय रह गया है दोनों का.
    ये सामाजिक पोर्टल सबके लिए उपलब्ध हैं. जिसे जो चाहे लिख सकता है. समाज के सदस्य ही उस पर अपनी टिप्पणियाँ करते हैं और आपस में बाँटते रहते हैं. जब इतने से नहीं होता तो समाचार पत्र इन सामाजिक पोर्टलों के खींचा-तानी को अखबार में छापते हैं ताकि जन मानस में नमक मिर्च लगाकर अपना अखबार बेचा जा सके. शायद उनके पास कोई विशेष समाचार नहीं होता इसीलिए वे नाहक खबरों से पत्र को भर लते हैं. जिनके पास सामाजिक पोर्टल की पहुँच नहीं भी हैं उनको भी इस कीचड़ में घसीटा जाता है, इन खबरनवीसों द्वारा. खास कर जिन वक्तव्यों में भड़काऊ मसाला है, उसमें में तो इनकी चाँदी - चाँदी हो जाती है. 
    आज आप एक प्रतिष्ठित अखबार उठाइए. मुख्य खबरों पर नजर डालने में आपको दो मिनट से ज्यादा समय नहीं लगेगा. अब आएँ आपके पसंदीदा खबरों पर - उनको पढ़कर अखबार परे करने में आपको शायद पाँच से दस मिनट लग जाएंगे. रही बात संपादकीय की तो वह खाली वक्त में ही पढ़ा जा सकता है. जब भी पढ़ना शुरु करेंगे - या तो आप उसे दो लाईन पढ़कर छोड़ दोगे या फिर पाँच मिनट में पढ़लोगे. इस तरह एक प्रतिष्ठित अखबार ज्यादा से ज्यादा आपका एक घंटा साथ दे सकता है. यही अखबार पिछले दशकों में पूरे दिन पढ़े जाते थे. सुबह खास खबरें देखी और जरूरी एक दो खबर पूरी पढ़ ली. पंद्रह मिनट लगाए और दफ्तर की तैयारी में जुट गए. शाम लौटकर थकान पूरी की, कोई बाजार का काम हो तो किया या फिर किसी के घर बैठने जाना है तो हो आए और फिर घुस गए अखबार में. अब अखबार पूरी तरह पढ़ा जाता था. रात होते – होते समाचार तो पूरे पढ़ लिए जाते थे, किंतु संपादकीय रह जाता था, जो अक्सर छुट्टी के दिनों मे या रविवार को पढ़ा जाता था. रविवार को सारे सप्ताह के अखबारों में छपे नए शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर रख लिए जाते थे. इसी तरह भाषा ज्ञान में उन्नति होती थी.
    यह रचना माड़भूषि रंगराज अयंगर जी द्वारा लिखी गयी है . आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में रत है . आप की विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन पत्र -पत्रिकाओं में होता रहता है . संपर्क सूत्र - एम.आर. अयंगर. 8462021340
    वेंकटापुरम, सिकंदराबाद, तेलंगाना -500015  Laxmirangam@gmail.com

    पत्रकारिता और भाषा

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    माड़भूषि रंगराज अयंगर



    पत्रकारिता समाज का एक ऐसा विभाग है जिसमें दैनंदिन पिछले 24 घंटो के विभिन्न घटनाओं का उल्लेख होता है. पत्रकारिता मौखिक लैखिक व द्रैश्यिक तीनों तरह की होती हैं. रेड़ियो पर केवल खबरों की मौखिक जानकारी मिलती है और अखबारों में कुछ चित्रों में और कुछ लिखित जानकारी होती है. टी वी में में चलचित्रों सहित विस्तृत द्रैश्यिक जानकारी होती है. पर सँजोने के लिए अखबार सबसे आसान तरीका है. 
    घटनाओं का विवरण देने के लिए भाषा की जरूरत होती है. विवरण देने वाले को भाषा  पर पकड़ होना जरूरी है ताकि वह घटना को आसानी से, कम से कम शब्दों में सँजो सके. भाषा सौम्य और सभ्य होनी चाहिए और समाज के बहुत बड़े तबके को समझ में आनी चाहिए. इसमें शालीनता भी अत्यंत आवश्यक अंग है. पढ़े लिखे लोग तो थोड़ी बहुत इधर उधर भी समझ ही जाते हैं किंतु कम - पढ़ों (अनपढ़ नहीं) को कुछ स्थानीय भाषा का पुट भी चाहिए. कुछ प्रमुख विषयों पर संपादक अपनी राय संपादकीय में देते हैं और कुछ विशिष्ट व्यक्तियों के लेख व आलेख खास विषयों पर दिए जाते हैं ताकि समाज को उस विषय के बारे में विस्तृत जानकारी दी जा सके. 
    कुल मिला कर पत्रकारिता के लिए संपादक को घटनाओं के अलावा भाषा पर विशेष ध्यान देना होता है. अलग - अलग घटनाओं को भाषा में पिरोना व उसे संपादित करने के लिए, विषय विशेष से संबंधित पदावली की जानकारी वाले शख्स भी तो चाहिए. इसी खासियत के कारण समाचार पत्रों को भाषा का एक स्तंभ माना जाता था. करीब 50 वर्ष पूर्व जब एक जानकार के घर में जब दो रिशतेदारों के बीच भाषा की पकड़ पर जिरह हुआ कि कौन बेहतर है – बड़ों ने दोनों को पुराने अखबार की प्रतियों से एक ही अंश के हर शब्द के प्रयुक्त अर्थ का समानार्थी लिखने को कहा. साथ में हिदायत दी कि शब्द जितनी बार आएगा, उतनी बार उसका वह अर्थ लिखा जाए, जिसके लिए वह प्रयुक्त हुआ है क्योंकि अनेकार्थी शब्द भी होते हैं. जिसको ज्यादा शब्दों के सही अर्थ पता थे, उसकी पकड़ को ज्यादा आँका गया. कहने का तात्पर्य यह कि उस जमाने में भी भाषा के मानकीकरण के लिए अखबार की तरफ देखा जाता था. आज अखबारों की भाषा का स्तर कम गया है, फिर भी साधारणतया देखा जाए तो अखबार जन साधारण से तो बेहतर भाषा ही देते हैं.  
    ऐसे में जब विभिन्न घटनाओं को विस्तृत रूप में वर्णन करते हैं तो ऐसे बहुत से मौके आते होंगे जहां नए हालातों के लिए नए शब्द खोजने पड़ते होंगे. इसी तरह प्रयोग में लाए गए ये शब्द, धीरे धीरे प्रचलन में आते हैं और कुछ समय बाद भाषा में अपना लिए जाते हैं. इससे भाषा भी समृद्ध होती रहती है. इसी लेख के शुरु में प्रयोग किया गया शब्द “द्रैश्यिक” बहुत ही कम उपयोग किया जाता है.
    शब्दों को प्रचलित करने में पत्रकारिता का बडा ही महत्व है. क्रिकेट की शब्दावली के लिए क्रिकेट कामेंट्रेटर को बहुत छूट या कहें मौके होते हैं. नए ए शाट खेले जाते हैं और नई तरह की बौलिंग की जाती है तो उनके लिए नए शब्दों को लाना ही पड़ेगा. पहले पहल तो विस्तृत विवरण दिया जा सकता है किंतु कुछ एक अंतराल के बाद उसके लिए कोई उचित शब्द तो गढ़ना ही होगा. आज से 25-30 बरस पहले दूसरा नामका को कोई भॉल होता ही नहीं था. पहली बाकर यॉर्कर भागवत चंद्रशेखर की बॉल पर सुना था.बाउंसर पहले भी थए किंतु हेजिंग अहभ आई है. इस तरह हर खेल में और जीवन की हर विधा में नए नए परिवर्तनों की वजह से नए शब्दों को लाना ही पड़ता है. इस मकसद से पत्रकारिता में भाषा का विकास बहुत अच्छी तरह संभव है.
    यदि पत्रकारिता में भाषा का ध्यान न रखा गया, तो पत्रकारिता ही खराब हो जाती है. इसलिए पत्रकारों को भाषा पर विशेष ध्यान भी देना पड़ता है. मुसीबतें के साथ खुशीबतें और गलतफहमी को साथ सहीफहमी या खुशफहमी, दुखफहमी इत्यादि शब्द तो हो ही सकते हैं उनका प्रयोग में न आना आश्चर्यकारक लगता है. शब्दों के अर्थों में जाएं तो लगता है कि फहमी यानी एक प्रकार का विश्वास हो जाना. गलत फहमी यानी गलत विश्वास हो जाना जैसे “ सॉरी, मुझे गलत फहमी हो गई थी कि वह तुम्हारी बीवी है.”
    एक जमाना था जब पत्रकारिता की भाषा को साहित्य का एक स्वरूप माना जाता था. बहुत बार तो पत्रकारिता में प्रयुक्त नए शब्द या शब्द युग्म आधुनिक भाषा की नींव बनते हैं. नई तरह के घटना के रूप में विवरण के लिए नए शब्द बना लिए, तो अगली बार के लिए आसान हो जाता है. यही शब्द जब जन साधारण में चला जाता है तो वहीं भाषा का अंग बन जाता है.
    समाचार पत्र हर दिन प्रकाशित होता है और उसमें बिना किसी प्रतिबंध के हर तरह की खबरें छपती हैं इसलिए विषयों की भरमार होती है. आए दिन की घटनाओं को नए तरह से पेश करने के लिए साहित्य में पकड़ तो होनी ही चाहिए ताकि विवरण दिलचस्प और सटीक भी हो. ऐसी हालातों में नए परिस्थितियों में नए शब्दों की आवश्यकता होती है, और तदनुसार शब्द गढ़ लिए जाते हैं. अन्यथा वही भाषा वही विवरण से लोग पक जाते हैं. अखबार की भी साख कमने लगती है. इस तरह पत्रकारिता में भाषा को धनी बनाने के असंख्य अवसर होते हैं. किंतु आज की पत्रकारिता को देखने से पता लगता है कि प्रकाशक या संपादक खर्च कम करने के लिए अनुपयुक्त कामगारों को रखकर निचली श्रेणी की भाषा में खबर परोस देता है. उसे शायद एहसास नहीं होता कि कुछेक दिन के लिए तो ठीक है किंतु लंबे समय में यह घाटे का ही सौदा साबित होता है.
    आज की पत्रकारिता में अधिकतर खरोंचने और भड़काने वाली भाषा का प्रयोग होता है. 30-35 साल पहले चंड़ीगढ़ से प्रकाशित (पं जगतनारायण जी का) पंजाब केसरी ही ऐसी खबरों की भाषा का प्रयोग करता था. जैसे -   “बस सड़क से उतरी और घर में घुसी”.  आज कल यह आम बात हो गई है. खबर होगी – “हिंदू ने मारी टक्कर – दो मुसलमान मौके पर ही मारे गए”. सीधी सादी खबर है कि वाहन के टकराव से दो व्यक्ति मारे गए. असमें हिंदू या मुसलमान होने की बात कहकर अखबार वाला क्या कहना चाहता है?  या फिर “पाकिस्तान का विमान गुरुद्वारे पर गिरा”. ऐसी खबरें माहौल को खराब करने के अलावा और कुछ नहीं करती. अखबारों का काम खबर देना है, भड़काना नहीं. लगता है नेताओं का काम अब अखबारों ने ले लिया है.
    हाल ही में बंग्लादेश से क्रिकेट में मिली हार के बाद अखबारों में – भारतीय खिलाड़ी आधे मुंडे सर के साथ दिखाए गए और केप्शन लिखा – “स्टेडियम के बाजार में मुर्तिजर ब्लेड भी मिलते हैं”. कितना घिनौना था यह मजाक. लेकिन तकलीफ तभी होती है जब हम पर कोई वार करता है. जब हम वार करते हैं तो मजा ही आता है, उनके तकलीफ की तरफ तो हमारी सोच जा ही नहीं सकती. हमारी मानसिकता ही ऐसी हो गई है.
    हममें इंसानियत का नाता भी बचा नहीं रह गया है. इन दिनों बेगलूरू में SHE transport शुरु की गई है. पता नहीं कहाँ दुबक गए वे जो नारी उत्थान की बात करते अनथके कहते हैं कि आज नारी को किसी प्रकार का आरक्षण नहीं चाहिए, किसी प्रकार की विशेष सुविधा नहीं चाहिए. किसी भी विधा में देखिए, वह हर नर के समकक्ष नहीं तो आगे व ऊपर खड़ी है. “चित भी अपना, पट भी अपना और अंटा मेरे बाप का” –  कहावत सोलह आने सच साबित हो रही है. और इसी तरह अखबार वाले भी सरकार व समाज के उन्ही लोगों के साथ हाँ में हाँ मिलाते चापलूसी करते नजर आते हैं. चलो कुछ लोग तो करेंगे ही, लेकिन यहाँ तो ढर्रा ही हो गया है. इन सबके बाद भी, भाषा की शैली पुराने घिसे पिटे शब्दों मे ही हो रही है. नए मौके हैं, नई पीढ़ी है. नए इरादे हैं . उन सबके साथ भाषा का नवीनीकरण भी तो हो सकता है.
    अखबारों में लिपि की गलतियाँ तो इतनी होती हैं कि कोई सीखे भी तो इनसे क्या सीखे
    एम.आर.अयंगर
    यह बात सही है कि समाचारों को सब तक पहुँचाने के लिए साहित्यिक भाषा का प्रयोग नहीं हो सकता. इसके लिए रोजमर्रा की बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग करना पड़ेगा. किंतु उस रोजमर्रा की भाषा का भी तो उत्थान हो सकता है. साहित्यिक न सही , सही भाषा तो लिखी जा सकती है. इसका यह भी तो मतलब नहीं कि बुद्ध जीवी अखबार पढ़ना ही छोड़ दे. उनके लिए भी तो कुछ हो. पहले अखबारों में संपादकीय पृष्ठ बुद्ध जीवियों के लिए होता था. होता तो अब भी है किंतु फर्क इतना जरूर हो गया है कि कुछ विशिष्टों को छोड़कर साधारणतः संपादकीय पृष्ठ की भाषा ही कमजोर हो गई है. विषयों का चयन भी कमजोर हो गया है. और इसीलिए लोगों में भाषा की उन्नति का रास्ता भी बंद हो गया है. स्कूल कालेज की पढ़ाई, वह भी भाषाओं के बारे में – क्या टिप्पणी करें. विषयों में ही बच्चे बिना ट्यूशन के पास नहीं हो पाते.
    खैर लगने लगा है कि लेख भी विषय से भटकने लगा है. साराँशतः कहना यही है कि अखबारों की सामर्थ्यता बढ़ाई जाए. उनके अवमूल्यन पर ध्यान दिया जाए. ताकि भाषा के इस स्तंभ को पिनर्जीवन मिल सके और भा, के विद्यार्थी अखबारों के सहारे परानी तरह से खबरों की जानकारी लेते हुए नई भाषा से भी मुखरित हो सके.
     माड़भूषि रंगराज अयंगर
    संपर्क सूत्र - एम.आर.अयंगर. , इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड,जमनीपाली, कोरबा. मों. 084620213

    2015 विश्व प्रेस ट्रेंड्स रिपोर्ट

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    प्रस्तुति- किशोर प्रियदर्शी



    2015 विश्व प्रेस ट्रेंड्स रिपोर्ट परिसंचरण, विज्ञापन, पाठकों, शीर्षक, राजस्व, डिजिटल प्लेटफॉर्म और अधिक पर एकत्रित अंतरराष्ट्रीय डेटा के साथ, वैश्विक समाचार पत्र उद्योग के एक स्नैपशॉट प्रदान करता है।रिपोर्ट अनुकूलित रिपोर्ट में डेटा निर्यात करने के लिए राष्ट्रीय रिपोर्ट और उपकरण शामिल हैं जो वान-IFRA के विश्व प्रेस रुझान डेटाबेस से तैयार की है।लिखित रिपोर्ट प्रदान करता है की तुलना में अधिक लचीलेपन की जरूरत है, जो उन लोगों के लिए, विश्व प्रेस रुझान डेटाबेस सदस्यता के माध्यम से उपलब्ध है
    रिपोर्ट में पिछले एक साल में खबर मीडिया के कारोबार में परिभाषित किया गया है और इसे आकार देने के लिए जारी कर रहे हैं कि वैश्विक रुझानों की पड़ताल।प्रत्येक अध्याय में, एक विशिष्ट प्रवृत्ति की पहचान करने के अलावा, हम कुछ दिलचस्प उदाहरण और उद्योग के अंदरूनी सूत्र देखा है कि एक प्रमुख नवाचार अवसर पर प्रकाश डाला।
    साल के लिए विकसित किया गया है, जो अखबार के व्यापार मॉडल में एक गहरा पारी के अंत में यहाँ है।वैश्विक अखबार परिसंचरण राजस्व पहली बार इस सदी के लिए राजस्व के विज्ञापन की तुलना में अधिक हैं।दर्शकों को राजस्व के प्रकाशकों 'सबसे बड़ा स्रोत बन गए हैं।उद्योग 2014 में एक अनुमान के अनुसार अमेरिका परिसंचरण और विज्ञापन राजस्व में 179,000,000,000 $ उत्पन्न - पुस्तक प्रकाशन, संगीत या फिल्म उद्योगों की तुलना में यह बड़ा बनाता है। $ 87000000000 विज्ञापन से आया है, जबकि नब्बे दो अरब डॉलर, प्रिंट और डिजिटल प्रचलन से आया था।
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