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उल्टा-पुल्टा अलग अलग अर्थ और किताब

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प्रस्तुति - अनामी शरण बबल

क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो रामायण की कथा पढ़ी जाए और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े
तो कृष्ण भागवत की कथा सुनाई दे।

जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्"ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है।

इस ग्रन्थ को
‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे
पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और
विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक।

पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ "राघवयादवीयम।"

उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो
जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।

विलोमम्:

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

अर्थातः
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के
चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ
विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।

 "राघवयादवीयम"के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं:-

राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

विलोमम्:
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ २॥

विलोमम्:
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ २॥

कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिका ।
सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥

विलोमम्:
भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।
कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥

रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।
नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥

विलोमम्:
यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।
तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥

यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥

विलोमम्:
तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।
सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥ ५॥

मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।
काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥

विलोमम्:
तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।
तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥

रामनामा सदा खेदभावे दया-वानतापीनतेजारिपावनते ।
कादिमोदासहातास्वभासारसा-मेसुगोरेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥

विलोमम्:
मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सारसा भास्वताहासदामोदिका ।
तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥

सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।
साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसारहा ॥ ८॥

विलोमम्:
हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्वसा ।
यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससारसा ॥ ८॥

सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।
सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥

विलोमम्:
सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।
यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥

तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।
यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥

विलोमम्:
हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।
सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥

वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।
भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्यसौ ॥ ११॥

विलोमम्:
सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्वभाः ।
होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥

यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।
सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा ॥ १२॥

विलोमम्:
भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा ।
वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥

रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।
यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥

विलोमम्:
नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।
हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥

यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।
सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥

विलोमम्:
यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।
गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥

दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।
ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥

विलोमम्:
नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥

सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।
तं द्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥ १६॥

विलोमम्:
हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रुतम् ।
जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥

सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।
न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७ विलोमम्:
तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।
सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥

तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।
वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥

विलोमम्:
केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।
ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥

गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।
सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥

विलोमम्:
हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।
यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥

हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।
राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥

विलोमम्:
घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिराः ।
धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥

ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।

हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि  ॥ २१॥

विलोमम्:
विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।
ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥

भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।
चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥ २२॥

विलोमम्:
ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधीरुचा ।
हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥

हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।
तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥

विलोमम्:
योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारुतम् ।
जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥

भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।
तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥

विलोमम्:
विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।
तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥

हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।
राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥

विलोमम्:
यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।
निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥

सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।
तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतोगजम् ॥ २६॥

विलोमम्:
जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमासतं ।
हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥ २६॥

वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।
तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥

विलोमम्
नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।
सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥

हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।
चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥

विलोमम्
हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।
सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥

नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।
रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥

विलोमम्:
नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणावरा ।
कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥ २९॥

साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः ॥
निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥

विलोमम्:
भाजरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।स
गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्यसा ॥ ३०॥

॥ इति श्रीवेङ्कटाध्वरि कृतं श्री  ।।

कृपया अपना थोड़ा सा कीमती वक्त निकाले और उपरोक्त श्लोको को गौर से अवलोकन करें।

गुलजारी लाल नंदा के साथ कुछ पल दो पल /अनामी शरण बबल

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 गुलजारी लाल नंदा को अब याद करने का मतलब / अनामी शरण बबल


[11/08/2018, 00:09] anami sharan:

आजाद भारत के दूसरे गृहमंत्री और दो दो बार  कार्यवाहक प्रधानमंत्री रह चुके गांधीवादी नेता सजग हमेशा सक्रिय ईमानदार कई  संगठनों के जन्मदाता, दर्जनों किताबों के लेखक भारत रत्न से नवाजे गये कालजयी नेता  गुलजारी लाल नंदा को आज याद करने का कोई मतलब नहीं है।

आज से बीस साल पहले भारत रत्न से सुशोभित होने वाले श्री नंदा नै जीवन का शतक पूरा करके अंतिम सांस ली थी। यानी वे आज 120 साल के होते। तो आज जब ज्यादातर लोग अपने जीते हुए ही अपनी पहचान खो देते हैं। उसी आधुनिक समाज में 121 साल के किसी रंगहीन गंधहीन सीधे साधे सरल सहज सबों के लिए सुलभ ईमानदार नेता मंत्री को अब क्यों याद किया जाए? मगर जमाना कितना भी बन जाए, मगर नंदा जैसे नेता न कभी अप्रासंगिक होते हैं और ना ही अपना महत्व खोते हैं। यही उनकी सादगी सज्जनता सरलता की ताकत  है कि उनकी यादें मंद हो जाने के बाद भी नंदा सरीखे महामानव के उपर कुछ लिखने के लालच से  आज बीस साल के बाद भी अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूं।



मुमकिन है कि आज के ज्यादातर लोग शायद नंदा जी के बारे मे अपनी अनभिज्ञता ही प्रकट करे। तो मै भी यह साफ कर दूं कि नंदा जी को लेकर मेरे मन में भी कोई बडा आदर भाव या जानकारियां का भंडार नहीं था। मगर जब कभी भी भारत के प्रधानमंत्रियों की सूचना पर नजर जाती एक पल के लिए मेरा मन ठहर जाता। मैं इनके बारे में जानने को उत्कंठित हो जाता कि इतना वरिष्ठ और काबिल होने के बाद भी नंदा पीएम क्यों नहीं सन सके?। यही उत्कंठा मुझे नंदा जी के साथ बांध रखा था। जब अगस्त 1996 में मुझे सपरिवार अपने छोटे भाई आत्म स्वरुप के पास अहमदाबाद जाने का मौका मिला। अहमदाबाद की यह मेरी पहली यात्रा थी। मैं काफी उत्साहित भी था। नंदा जी का पता तो नहीं मिला, मगर आवश्यक जानकारियों का पुलिंदा मेरे पास था। अहमदाबाद में उस समय मेरिट छोटा भाई स्वामी शरण गुजरात के उस समय इकलौते हिंदी अखबार विराट वैभव में बतौर उपसंपादक काम करता था। पटना के मेरे सबसे घनिष्ठ पत्रकार संपादक रहे शर्मान्जु किशोर उस समय विराट वैभव के संपादक थे। अहमदाबाद में पहुंचते ही मैं अगले दिन विराट वैभव में जाकर उनसे मिला। पटना में करीब चार साल 1983-87 जून तक। जीवंत संपर्क में रहने के बाद भी कभी मुलाकात नहीं हुई थी। मेरी पत्रकारिता के विकास और उत्थान में इनकी कितनी बडी और निस्वार्थ भूमिका रही है इस  संदर्भ को विश्लेषित करने के लिए एक लेख लिखना मेरे लिए अनिवार्य है। हालांकि लेख पढकर बहुतों की भुकृटियां तन जाएगी। लोग नापसंद भी करेंगे, मगर हर आदमी हर किसी के लिए एकसमान सरल सरस सहज  नहीं हो सकता और खासकर जब  इनके निधन के लगभग डेढ़ दशक बीत जाने पर तो उनपर लिखना और जरूरी हो जाता है कि कैसे और किस तरह उन्होंने मुझे पत्रकारिता का ककहरा सीखाया था हां तो विराट वैभव के दफ्तर से नंदा जी की बेटी डॉ. प्रतिभा पाटिल के घर यानी नौरंगपुरा के हिंदू कालोनी का पता मिल गया। जब मैं शर्मान्जु किशोर से विदा होने लगा तब उन्होंने बताया कि गुजरात भाजपा में भयानक भीतरघात उफान पर है। तुम गांधीनगर आने का पक्का कार्यक्रम और डेट बताओगे तो मैं पायनियर के ब्यूरो चीफ आर के मिश्र से टाईम तय कराके सीएम सुरेश मेहता और भाजपा के खंभा उखाड़ पोलिटिक्स कर रहे शंकर सिंह वाघेला से तेरी बातचीत करवा देंगे। शर्मान्जु जी के इतने ग्लैमरस अॉफर पर मेरा मन खिल उठा। पर फिलहाल कल नंदा जी से श्री गणेश कर आगे की योजना तय करने का मन बनाया।



अगले दिन सुबह सुबह बिना फोन फान किए ही अपने भाई के साथ नौरंगपुरा के हिंदू कालोनी में था उस समय सुबह के लगभग नौ बज रहे थे तो मुझे लगा कि मैं कुछ पहले ही आ गया हूं। आटो से उतरकर डॉ. प्रतिभा पाटिल के घर की खोज करना उचित प्रतीत हुआ। और विभिन्न सडकों गलियों में भटकते हुए नंदा जी और डॉ. पाटिल की टोह ली। मुझे यह जानकर विस्मय हुआ कि ज्यादातर लोगों ने दोनों के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की। अलबत्ता कुछेक ने बताया कि अगली सडक पर कोई वीआईपी फेमिली है जहां पर अक्सर गवर्नर सीएम या दिल्ली से आने वाले मिनिस्टर आते-जाते रहते हैं। मैं अपनी मंजिल के काफी करीब था। करीब दस बज चुके थे, लिहाजा मिडल क्लास संभ्रांत कॉलोनी में खोजबीन बंद कर एक चाय की दुकान से सही-सही पता लेकर मैं आजाद भारत के पहले गृहमंत्री और दो दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे गुलजारी लाल नंदा के निवास के बाहर कॉलबेल बजा रहा था। अपने साधारण से घर के बरामदे में बैठीं कोई 70-75 साल की एक महिला दरवाजे के करीब आयी। नमस्कार करके मैंने बंद दरवाजे के बाहर से ही अपना विजिटिंग कार्ड आगे करते-करते हुए कहा कि मैं अनामी शरण बबल पत्रकार दिल्ली से आया हूँ। आपके  घर का फोन नंबर मेरे पास नहीं था इस कारण बिना बताए समय लिए ही आ गया कि जब अहमदाबाद में हूँ तो नंदा जी के दर्शन के बगैर लौटने का मन नहीं किया मेरे परिचय प्रवचन का महिला पर अच्छा प्रभाव पड़ा। मेरे कार्ड को लेकर सीधे गेट खोलती हुई पूछी आपको यहां तक आने में तो कोई दिक्कत नहीं हुई अनामी। उनके मुंह से अपना नाम सुनकर बहुत भला लगा। अपना परिचय देती हुई वे बोली  मैं नंदा जी की बेटी डॉ. प्रतिभा पाटिल हूं। उनकी सहजता सरलता सरसता और आत्मीय माधुर्य को देखते हुए हम दोनों भाईयों ने बारी बारी से पैर छूकर प्रणाम किया। वे लगभग भाव विभोर सी हो उठी। मेरे हाथों को पकड़ कर वे बोली चरण स्पर्श करनेवाले किसी पत्रकार को मैं पहली बार देख रही हूं। फौरन पलटते ही मैंने कहा कि मैं भी सबका पैर नहीं छूता दीदी मगर कहां पर खड़ा हूं काल पात्र पद गरिमा और छवि को तो देखना पड़ता है। मैं देश के एक अनमोल रत्न को देखने-सुनने आ रहा हूं जहां पर पत्रकार का अभिमान करना बेमानी होगा। मेरी बातें सुनकर वे खिलखिला उठी और उनकी नजर मेरे भाई की तरफ गयी। मैंने तुरंत उसका परिचय देते हुए कहा कि यह मेरा अपना सगा छोटा भाई स्वामी शरण है और अहमदाबाद से हिंदी के इकलौते अखबार विराट वैभव  में उपसंपादक है। मैनें अपनी जेब से उसके कार्ड को निकाल कर आगे कर दिया। उसके कार्ड को लेकर देखा। उन्होंने जिज्ञासा प्रकट की कि स्वामी जी एकदम खामोश हैं इ  पर खिलखिला पडा़। अरे दीदी बस मेरे सम्मान में खामोश है अन्यथा बातचीत में वो मुझसे स्मार्ट है। तो इस तरह पांच मिनट के भीतर ही हमलोग पूरी तरह स्नेहिल माहौल में बातचीत करने लगे। मैने अब नंदा जी से मिलने का आग्रह किया तो वे फौरन हमलोग को लेकर अंदर चलने को तत्पर हो गयी।



और इस तरह जब मैं कमरे में दाखिल हुआ तो एकदम कमजोर काया के अत्यंत दुर्बल नंदा जी अचेतावस्था में बिस्तर पर सो रहे थे। डॉ. प्रतिभा ने बताया कि बाबूजी अमूमन सोए ही रहते हैं। इनकी देखभाल और देखरेख के लिए चार सहायक हैं। दो सहायता तो दिनरात यहीं पर रहते हैं, जबकि दो सहायक चार पांच  घंटे के लिए सुबह शाम आते हैं। पंडित हजारीलाल शर्मा सुबह शाम आकर भजन कीर्तन सुनाते हैं। जबकि देखभाल आदि के लिए हजारी चंद ठाकुर भंवरलाल नायक चिमन भाई चावला और कनुभाई के सहारे ही नंदा जी का सारा नित्य कर्म जीवन संपादित होता था। नंदा जी कितना समझ बूझ पाते थे यह तो नहीं कहा जा सकता था मगर सुबह-सुबह अखबारों की हेडिंग सुनते जबकि शाम को दूरदर्शन पर समाचार देखकर बताया जाता था। ड. प्रतिभा को सरकार द्वारा इनकी उपेक्षा का मलाल के साथ क्षोभ था। 1980 तक नंदा जी दिल्ली के हरियाणा भवन में रहते थे। मगर गिरने से पैरों की हड्डी टूट गई। कोई सरकारी आवास नहीं होने के कारण लाचार नंदा जी को  अपनी बेटी प्रतिभा पाटिल के साथ साथ रहने के लिए विवश होना पड़ा। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री पीवी  नरसिम्हा राव को पत्र लिखकर अपना इलाज कराने की गुहार की. मगर प्रधानमंत्री राव की तरफ से कोई जवाब तक नहीं आया। अलबत्ता प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा द्वारा इलाज पेंशन सहायकों की सरकारी खर्चे पर व्यवस्था करा दी गयी। निरंतर जांच की व्यवस्था भी हुई। सरकार विदेश में भी इलाज के लिए सहमत थी मगर दुर्बलता के कारण डॉ. "बेटी ने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दी।



करीब एक दर्जन किताबों के लेखक नंदा जी ने ही मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए इंटक का गठन कराया। भारत साधू समाज संगठन समाज हितकारी संगठनों की नींद रखी। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद कार्य वाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किए गये। इसके बावजूद कभी पीएम बनने की लालसा मध्य में नहीं जागी। जीवनभर सादगी और ईमानदारी के लिए विख्यात नंदा जी को भारत रत्न नहीं दिए जाने का मलाल पूरे परिवार को है। करीब दो घंटे तक की गयी ढेरों यादों और दो दो बार चाय बिस्कुट के स्वागत परांत मै अपने बैग को संभालने लगा। दरवाजे तक आयी डॉ प्रतिभा का मन रखने के लिए मैनें कहा कि देखिएगा दीदी जिस दिन नंदा जी को भारत रत्न मिलेगा उस दिन मैं स्पेशली आपसे मिलकर खुशियों बांटने अहमदाबाद में  साथ-साथ रहूंगा।मेरी बात सुनकर वे खिलखिला पड़ी। क्या तुमको विश्वास है? मैनें तुरंत कहा कि यदि शंकर दयाल शर्मा जैसे समकालीन और नंदा जी को बहुत करीब से देखने और जानने वाला आदमी यदि राष्ट्रपति होकर भी भारत रत्न का सम्मान नहीं देंगे तो फिर भविष्य में भारत रत्न की उम्मीद बेमानी है। मेरी बातें सुनकर उनकी आंखे सजल हो गयी। इस तरह हास्य परिहास के बीच नंदा जी के सहायकों से भी हाथ मिलाकर मैं वहां से विदा हो गया।




 दिल्ली आकर नंदा जी की खबर सहित अहमदाबाद से लौटकर मेरी कोई चार पांच खबरें प्रकाशित हुई। फोन करके डॉ. प्रतिभा पाटिल को बताया और उनके आग्रह पर सहारा की कुछ प्रतियां भिजवा दी गयी। दिल्ली आकर भी मैं कुछेक दिनों में नंदा जी के हालचाल के साथ साथ अपनी मां से बडी़ उम्र की बहिन का भी हाल खबर ले लेता था। मैनें भले ही उनका मन रखने के लिए भारत रत्न मिलने की भविष्यवाणी कर दी हो पर हम सबको इसको लेकर अविश्वास ही था। तभी अचानक मुझे कुछ बहुत जरूरी काम से अगले साल यानी 1997के जुलाई माह के आखिरी सप्ताह में अहमदाबाद जाना पडा। गांधीनगर में फंसे रहने के चलते किसी से भी मिलने का समय नहीं निकाल सका। 25 जुलाई को शाम मे ट्रेन थी। 24 जुलाई को देर  रात तक सारा काम निपटाने के बाद भाई के साथ घर लौटा। अगले दिन यानी 25 जुलाई के पेपर में सुबह सुबह देखा कि नंदा को भारत रत्न मिल गया है राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने अपने पंचवर्षीय कार्यकाल के आखिरी दिन 24जुलाई 1997 को अरुणा आसफ अली और गुलजारी लाल नंदा को भारत रत्न प्रदान करने के आदेश पर हस्ताक्षर करके इस सर्वोच्च सम्मान की घोषणा को सार्वजनिक कर दी। पेपर देखते ही मैं उछल पडा और डॉ. पाटिल की खुशी में शामिल होने के लिए निकल गया।

 अपने घर के बाहर मुझे खड़ा देखकर डॉ. पाटिल अचंभित  सी हो गयी। भावविभोर होकर मेरा सत्कार की।  सजल नेत्रों से मुझे लेकर अंदर गमी और सबसे मेरा बतौर पत्रकार परिचय कराया
अमरीका में रह रही बेटी अभिलाषा और दामाद रश्मि भी मारे खुशी के फोन से पूरा-पूरा हाल लेने में तल्लीन थे। डा. पाटिल के पुत्र अलंकार नायक और बहू गीता नायक के चेहरे दमक रहे थे। बहू गीता अपने इस सौभाग्य पर नाज कर रही थी कि वे इस परिवार की बहू हैं। डा. पाटिल ने बताया कि कल से  सैकड़ों लोग आ चुके हैं और आज शाम तक कोई मुंबई से कोई चेन्नई कोलकाता दिल्ली या पटना लखनऊ से केवल शुभकामनाएं और मंगलमय बधाइयां देने के लिए आ रहे हैं। घर के चारो तरफ गुलदस्ते ही गुलदस्ते पडे थे। ओर इन्हीं फूलों के बीच 99 साल के नंदा जी के सहायक किसी तरह आरामकुर्सी पर सचेत सचेतन सचेतावस्था मे बैठा रखा था। इस भीड़ से अचंभित नंदा जी का चेहरा भी प्रफुल्लित था। नंदा जी के दोनों बेटे भी अपनी खुशी संभाल नहीं पा रहे थे। वही गेट के बाहर बैठे खुफिया अधिकारी भवानी गौड़ भी कल से इस घर के बाहर भीतर की हलचल में व्यस्त थे। बकौल भवानी
अमूमन यह घर शांत ही रहता था मगर कल से वीआईपी के आने-जाने का तांता लगा हुआ है। आसपास के लोगों को भी काफी खुशी है। बहुतों को तो यह विस्मय हो रहा है कि उनके घर के बगल में इतनी बड़ी हस्ती सालों-साल से रह रहा है और इसकी भनक तक नहीं थी। घर के इर्द-गिर्द घूमती घाम और हाल का जायजा लेने के बाद मैंने रूस्तम होना ही बेहतर माना डा. प्रतिभा से मिला तो वे इन व्यस्तताओं के बाद भी मुझे मिठाई दी और मिठाई काएक डिब्बा देने लगी। मेरे तमाम विरोध के बाद भी वे बार बार बोलती रही कि इस मिठाई और सम्मान पर तुम्हारा भी अधिकार है। तुमने न केवल इस सम्मान की घोषणा की बल्कि इस अवसर पर यहां आकर मेरी खुशी को बढा दिए। बकौल डा. प्रतिभा कल जब बाबूजी को इस सम्मान की घोषणा हुई तो मुझे तुम याद आए, मगर तुम इतनी जल्दी मेरे सामने खड़े रहोगे यह तो अकल्पनीय है। मेरे सिर पर हाथ फेरती हुई वै गदगद हो उठी और मैं  भावुक। अलबत्ता एचडी देवेगौड़ा को पूरा देश भले ही एक एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री मानता रहा हो मगर डा. प्रतिभा देवेगौड़ा को सबसे संवेदनशील और अपने देश के बुजुर्ग नेताओं के सच्चे हितैषी और अपना परिजन मानने वाला नेता की तरह देखती हैं। इस भावविभोर माहौल में सबों को नमस्कार करते हुए बाहर निकला। उनके बेटे ने अपनी कार से कॉलोनी के बाहर आटो स्टैंड तक छोड़ दिया। जहां से मैं अपने भाई के घर पहुंचा। शाम की ट्रेन से वापस दिल्ली आया। और दफ्तर में जाकर रिपोर्ट लिखी। जिसकी धूम रही। और इस तरह देश के एक महान स्वतंत्रता सेनानी और नेता से दो दो बार मिलने का मौका मिला या केवल देखने- का यह अहसास आज भी रोमांचित करता है। अलबत्ता 1998 मे नंदा जी के देहावसान के बाद तक तो मैं प्रतिभा नायक के संपर्क में रहा, मगर आज बीस साल के बाद वे या उनके परिवार में कौन है कहां है? इसकी जानकारी नहीं। इस बीच पिछले ही साल अहमदाबाद तीन बार गया मगर नंदा या नायक परिवार की न कोई खबर ले पाया न मिलकर हालचाल ही लिया। डा. प्रतिभा नायक दीदी अगर जीवित होंगी तो उनकी आयु भी कोई 93-94 साल की होगी। इस उम्र में उनको बेहतर सेहत की शुभकामनाएं दूं या.... दिवंगत दीदी के प्रति श्रध्दांजलि अर्पित करें। यह एक जटिल सवाल है। सबसे बेहतर है सबको सलाम नमस्कार के साथ अब भावनाओं की रेल को रोककर बस किया जाए। नंदा जी को विनम्र श्रद्धांजलि और नमन प्रणाम श्रद्धा सुमन अर्पित है।     -_

--   /    अनामी शरण बबल /13082018
8076124377 

नाकाबंदी में यूपी के हाटस्पाट इलाके

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प्रस्तुति -  राजेश सिन्हा / आकांक्षा गुप्ता

*आगरा
आठ मस्जिदों सहित 22 इलाके बने हॉट स्पॉट।झारखंड
आजमपाड़ा, मंटोला, मगतई, हींग की मंडी सील।
तोपखाना, वजीरपुरा, घटिया, साबुन कटारा सील।
सीतनानगर, मोहरपुरा, इमिनेंट अपार्ट, कृष्णा विहार बंद।
सार्थक हॉस्पिटल, एसआर हॉस्पिटल क्षेत्र प्रतिबंधित।
सीतानगर, चारसू गेट सील।
किशोरपुरा, छोगरा तेहरा, सुभाषनगर बंद।
हसनपुर, घटिया, बसंत विहार सील।

*गाजियाबाद*


1. नंद ग्राम निकट मस्जिद थाना क्षेत्र सिहानी गेट
2. केडीपी ग्राउंड सवाना राजनगर एक्सटेंशन थाना क्षेत्र सिहानी गेट
3. B-77/ जी-5 शालीमार गार्डन extension-2 थाना क्षेत्र साहिबाबाद
4. पसोंडा थाना क्षेत्र टीला मोड़
5. ऑक्सी होम भोपुरा थाना क्षेत्र टीला मोड़
6. वसुंधरा सेक्टर 2-बी थाना क्षेत्र इंदिरापुरम
7. सेक्टर-06 वैशाली थाना क्षेत्र इंदिरापुरम
8.गिरनार सोसायटी कौशांबी थाना क्षेत्र कौशांबी
9. नाईपुरा लोनी
10. मसूरी
11. खाटू श्याम कॉलोनी दुहाई
12. कोविड-1 सीएचसी मुरादनगर
13. सेवियर सोसायटी मोहन नगर थाना क्षेत्र साहिबाबाद

*लखनऊ*


कैंट थाना क्षेत्र में अलीजान मस्जिद के आसपास का क्षेत्र सील-
वजीरगंज थाना क्षेत्र में मोहम्मदी मस्जिद के आसपास का क्षेत्र सील-
कैसरबाग थाना क्षेत्र में फूल बाग मस्जिद के आसपास का इलाका सील-
कैसरबाग थाना क्षेत्र में नजर बाग मस्जिद के आसपास का इलाका सील-
सहादत गंज थाना क्षेत्र में मोहम्मदिया मस्जिद के आसपास का इलाका सील-
तालकटोरा थाना क्षेत्र में पीर मक्का मस्जिद के आसपास का क्षेत्र सील-
हसनगंज थाना क्षेत्र में त्रिवेणी नगर में खजूर वाली मस्जिद के आसपास का इलाका सील-
गुडंबा थाना क्षेत्र में रजौली मस्जिद के आसपास का क्षेत्र सील-

लखनऊ के 8 बड़े हॉटस्पॉट के साथ 4 छोटे हॉटस्पॉट क्षेत्रों को भी सील किया गया
गोमती नगर थाना क्षेत्र में विजय खंड इलाका आंशिक तौर पर-
इंदिरानगर थाना क्षेत्र में मेट्रो स्टेशन, मुंशी पुलिया का आंशिक क्षेत्र-
खुर्रमनगर थाना क्षेत्र में अलीना एनक्लेव का आंशिक क्षेत्र-
मड़ियाव थाना क्षेत्र में आईआईएम पावर हाउस के पास का आंशिक क्षेत्र-

*नोएडा*


1-सेक्टर 41 नोएड़ा
2-हाईड पार्क सेक्टर 78, केप टाउन सेक्टर 74
3-लोटस ब्लू वर्ड सेक्टर 100
4 -अल्फा  1 ग्रेटर नोएडा
5 -निराला ग्रीन शायर सेक्टर 2 ,पतवाड़ी गांव
6- पारस टेरा सोसाइटी ,लोगिज बलुसम काउंटी ,वाजिदपुर गांव सेक्टर 137
7- एटीएस डॉल्स ज़ीटा 1 ग्रेटर नोएडा
8- एस गोल्फ सायर सेक्टर 150
9 -सेक्टर 27 और सेक्टर 28
10-ओमिक्रोन 3 सेक्टर 3 ग्रेटर नोएडा
11-मेहक रेजीडेंसी अच्छेजा
12 -जेपी विश टाउन 128
13-सेक्टर 44
14-ग्राम विश्नोई
15-सेक्टर 37
16-गांव घोड़ी बछेड़ा
17-स्टेलर एमआई ओमिक्रोन 3
18 -पाल्म ओलंपिया गौर सिटी 2 नोएड़ा वेस्ट सेक्टर 16
19-सेक्टर 22 चौड़ा गांव
20 -ग्रांड ओमेक्स सेक्टर 93 b
21-सेक्टर 5 और सेक्टर 8 जेजे कालोनी
22-डिजाइनर पार्क सेक्टर 62

*कानपुर नगर*

इन थाना क्षेत्र में है हॉट स्पॉट ।।
चमनगंज
अनवरगंज
कर्नलगंज
नौबस्ता
घाटमपुर
सजेती
बाबूपुरवा

*मेरठ*

शास्त्री नगर सेक्टर 13, थाना नौचंदी
सराय बहलीम सोहराब गेट थाना कोतवाली
हुमायु नगर थाना खरखोदा, व लिसाड़ी गेट
हरनाम दास रोड थाना सिविल लाइन
सूर्या नगर  थाना सिविल लाइन
आज़ाद नगर कॉलोनी थाना सरधना
ग्राम महेलका थाना फलावदा
मोहल्ला कल्याण सिंह थाना मवाना
मोहल्ला मुन्ना लाल थाना मवाना
AS डिग्री कॉलेज (मोहल्ला बड़ा महादेव) थाना मवाना
कस्बा खिवाई थाना सरूरपुर

*वाराणसी*


वाराणसी में सीलिंग प्रक्रिया को लेकर जिलाधिकारी का बयान
वाराणसी में 4 स्थानों को बनाया गया है पहले से हॉटस्पॉट
गंगापुर , लोहता ,मदनपुरा और बजरडीहा में रहेगा हॉटस्पॉट
वाराणसी में पहले जो प्रक्रिया चलती आ रही है वही रहेगा
जिन स्थानों पर नए मरीज मिलेंगे उन्हें सील किया जाएगा
हॉटस्पॉट इलाको में सीलिंग की तारीख बढाया गया है
30 अप्रैल तक हॉटस्पॉट एरिया में रहेगी सीलिंग

*सहारनपुर*

4 जगहों को बनाया गया है हॉट स्पॉट।
सहारनपुर थाना कुतुबशेर का मौहल्ला बकरीवाला, ढोलिखाल, जनकपुरी का महीपुरा और थाना चिलकाना का गांव दुमझेड़ा।

*महराजगंज*

दो थाना छेत्रो के 4 गाँव हुए सील
पुरंदरपुर और कोल्हुई थाना के चार गाव सील
पुरंदरपुर थाना के विशुनपुर  कुर्थीया,विशुनपुर फुलवरिया सील
कोल्हुई थाना के बड़हरा इंद्रदत्त, कम्हरिया बुजुर्ग गाँव हुआ सील
डीएम एसपी ने पहले ही किया था इन गावो को सील
आने जाने पर पूर्णतया प्रतिबंध
होम डिलीवरी से होगी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति

*बुलंदशहर*

बुलंदशहर सदर,
सिकंदराबाद
जहाँगीराबाद कोतवाली

*बस्ती*

बस्ती शहर में तीन चिन्हित हॉट स्पॉट
रहमतगंज, तुर्कहिया और गिदही खुर्द
तीनों स्पॉट शहर के अंदर
रहमतगंज और तुर्कहिया आपस में मिला हुआ मुहल्ला
रेड ज़ोन में सभी के आवागमन पूर्ण रूप प्रतिबंधित

लघुकथा - - नि:शब्द / श्याम सुंदर भाटिया

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 नि:शब्द
                                            
 हिंदी के प्रो. राम नारायण त्रिपाठी को उनके सहपाठी और चेले पीठ पीछे प्रो.बक - बक त्रिपाठी कहते ... प्रो.त्रिपाठी के समृद्ध शब्दों के भंडार का कोई सानी नहीं था...लेकिन सवालों का पिटारा शब्द भंडार से भी संपन्न... कोरोना के चलते लाकडाउन तो बहाना था...बतियाने को किसी न किसी की रोज दरकार रहती... श्रीमती के इशारे पर तपाक से प्रो. त्रिपाठी मास्क लगाकर सब्जी खरीदने पहुंच गए...सोशल   डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए व्हाइट सर्किल में अनुशासित मुद्रा में खड़े होकर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे...नंबर आते ही बाबू ने सवाल दागा...क्या - क्या दे दें प्रोफेसर साहिब... सवाल पूर्ण होने से पहले ही धारा प्रवाह  बोलना शुरु कर दिया... गोभी क्या रेट है...खराब तो नहीं...नहीं साहिब...बाबू ने रिस्पॉन्ड  किया... प्रो. त्रिपाठी बोले,क्या गारंटी है...बताओ... टमाटर, आलू,प्याज, लौकी से लेकर बैंगन,धनिया, पोधीना होते हुए खरबूजे और तरबूज तक पहुंच गए... प्रो. आदतन दो ही सवाल करते ...क्या रेट...और क्या  गारंटी...20 मिनट हो गए और व्हाइट सर्किल में कतार और लंबी हो गई तो प्रो. त्रिपाठी से बाबू ने थोड़ा रफ लहजे में कहा...आपसे भी साहिब हम एक सवाल पूछ लेता हूं...आप तो बड़ी क्लास के टीचर...पूरी दुनिया और उसके कायदे जानते हो ... हां ... हां ... बोलो ना... प्रो.साहब ने सोचा...ससुर क्या पूछेगा...   कोरोना महामारी से कब मुक्ति मिलेगी...या...यूनिवर्सिटी कब खुलेगी...वगैरह...वगैरह...आप हर सब्जी और फल की गारंटी तो पूछ रहे हो... प्रो.साहिब इंसान की भी आज कोई गारंटी है क्या...यह सुनते ही प्रोफेसर त्रिपाठी  नि:शब्द हो गए... आनन - फानन में एक झ्टके में थैला उठाया और घर की ओर तेज - तेज कदमों से कूच कर गए...                                                             
 0 श्याम सुंदर भाटिया                                                   
विभागाध्यक्ष,पत्रकारिता कॉलेज                             
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी,मुरादाबाद                             
7500200085।।।।




राहुल बाबा के नक्शे कदम पर सोनिया गांधी

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प्रस्तुति - शिशिर सोनी

लगता है सोनिया गांधी पर भी अब राहुल गांधी का असर होने लगा है। तभी वो राहुल गांधी जैसी बहकी बहकी बातें कर रही हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि मीडिया को दिया जाने वाला विज्ञापन कोरोना से लड़ने के लिए दो साल के लिए बंद किया जाए।

मीडिया के बुनियाद पर वो चोट करने को क्यों कह रही हैं? जाहिर है कि उनका गुस्सा राहुल गांधी को लेकर मीडिया के ठंडे रवैये से होगा। गोया कि राहुल गांधी में दम नहीं तो उस बेदम में दम मीडिया कैसे फूंक दे?

  सोनिया गांधी की इस मांग का खूब मान मर्दन हो रहा है। होना भी चाहिए।

आईएएनएस, ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन सहित सभी मीडिया संगठनों ने सोनिया गांधी की इस मांग को अनुचित बताया है। समूची मीडिया को हर साल तकरीबन 2 हजार करोड़ रुपए का विज्ञापन केंद्र सरकार और विभिन्न पब्लिक सेक्टर यूनिट्स से रीलीज होता है। उसमें भी मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद कई तरह की बंदिशें लगी हैं। भरी बैठीं सोनिया गांधी को ज्ञान आया है कि मीडिया को विज्ञापन बंद कर दिया जाए। यानि मीडिया का गला घोट दिया जाए। ये लोकतंत्र के प्रहरी पर अंतिम प्रहार होगा।

सोनिया गांधी जैसे नेता आखिर इस बात पर सवाल क्यों नहीं उठाते कि सांसदों, विधायकों , विधान पार्षदों को वेतन और फिर फैमिली पेंशन क्यों दिए जाएं? वे जनसेवक या जनप्रतिनिधि हैं कोई सरकारी नौकर नहीं?

सोनिया गांधी ने ये क्यों नहीं प्रधानमंत्री से अपील किया कि

1. सांसदों को मिलने वाले वेतन को बंद कर दिया जाए इसके एवज में सरकार की तिजोरी में 2 हजार करोड़ रुपए हर साल बचत होगी।

2. पेंशन बंद किए जाएं जिससे तकरीबन 800 करोड़ रुपए की बचत होगी !!!

3. हर साल सांसद निधि के नाम पर 8 हजार करोड़ रुपए की लूट को सिरे से बंद किया जाए। इस निधि का सिवाय बंदरबाट के कुछ नहीं होता।

सोनिया गांधी ने इस पर सवाल क्यों नहीं उठाए कि

1. एक ही व्यक्ति जो विधायक रहा हो, विधान परिषद में रहा हो, राज्यसभा और लोकसभा का सदस्य भी रहा हो और अगर सरकारी सेवाओं में भी रहा हो तो उसे 5-5 पेंशन क्यों मिलना चाहिए?

क्या ये देश की गरीब जनता की लूट नहीं। ये एक पेेशेवर गैंग की दिनदहाड़े लूट है। इसे बंद होना चाहिए।

वो सांसद मर जाए तो उसके परिजनों को ताउम्र पचास फीसदी पेंशन हम अपने पॉकेट से क्यों दें? संसद से ये नियम बनाने से पहले ये नेता चुल्लू भर पानी में क्यों नहीं डूब मरे?



फणीश्वर नाथ रेणु से प्रेम / भारत यायावर

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रेणु से प्रेम
भारत यायावर

प्रेम क्या है? एक लगाव ही तो है ।एक समर्पण ।सबकुछ खो देने का भाव । त्याग और निष्ठा की निष्कंप दीपशिखा । मन- प्रांतर को आलोकित करती हुई । जब भाव की ऐसी स्थिति में व्यक्ति लम्बे समय से जी रहा हो ,तब सवाल तो उठता है ।

कुछ हमदर्द सवाल उठाते हैं कि मन नहीं ऊबता ? रेणु की एक कहानी है, 'उच्चाटन '। व्यक्ति है और उसका मन है तो कभी-कभी उच्चाटन तो होगा ही । उच्चाटन होता है अपनी जीवन-स्थितियों से ऊब जाने पर या अपने सुख के आधार को खो देने पर ।

प्रेम एक अद्भुत मायाजाल है । जो उसमें फँसा, फँसकर निकल नहीं पाया । दिन-रात बेचैनी और तड़प ! अपने को बंधा हुआ महसूस करना । आजादी, सुविधा और सुख का तिरोहित हो जाना । नहीं भाई,नहीं !
हर आदमी चाहता है कुछ सुख मिले ।सुख पाने के लिए वह शादी करता है । नौकरी करता है । सुख के लिए ही वह जीता है ।
सुख क्या है?
जो हमारे अनुकूल हो वह सुख है ।
हमारी कामना की पूर्ति से प्राप्त आनन्द ही सुख है ।
सुविधा से रहना,
चैन की नींद सोना,
आरामदेह जीवन जीना,
सुख है ।
सुख वह अनुभूति है जो तन- मन को अच्छा लगे ।

लेकिन प्यार के पथ पर चलने वाले को सुख कहाँ?
मैं रेणु को चाहता हूँ और पाने की खोज में भटकता रहता हूँ । उनसे विमुख न हो जाऊँ, इसलिए निराला की इस प्रार्थना को संकल्प की तरह मन में धारण किए रहता हूँ :

सुख का दिन डूबे डूब जाए
तुमसे न सहज मन ऊब जाए

खुल जाए न मिली गाँठ मन की
लुट जाए न उठी राशि धन की
धुल जाए न आन शुभानन की
सारा जग रूठे रूठ जाए

उलटी गति सीधी हो न भले
प्रति जन की दाल गले न गले
टाले न बान यह कभी टले
यह जान जाए तो खूब जाए

निराला का यह गीत एक कामना है । इस कामना में मैं अपना स्वर भी मिलाना चाहता हूँ । सुख का दिन डूबे अर्थात तिरोहित हो जाए ,कोई चिंता नहीं, रेणु से मेरा मन कभी न ऊबे! जो मन की डोर में रिश्ते की गाँठ पड़ी है, वही मेरे जीवन के धन की राशि है, वही मेरा शुभ आनन है, वह रहे! पूरा जग मुझसे रूठ जाए, कोई चिंता नहीं । और , यह जान भी चली जाए तो कोई बात नहीं ।

रेणु को मैंने पाया है ।पर इसके लिए मुझे कितना भटकना पड़ा है! कितने दुर्गम मार्ग पर चलना पड़ा है । फिर भी मैंने पूरी तरह से उन्हें आत्मसात कहाँ किया है ? लेकिन अब तक मन नहीं ऊबा है, भले ही सुख के अनेक मुहूर्तों की तिलांजली देनी पड़ी है ।

धीरे धीरे खत्म होते अखबार / रवि अरोरा

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क़त्ल होते अख़बार

रवि अरोड़ा
वर्ष 1990 में मैंने अपना एक अख़बार निकाला । नाम था दैनिक जन समावेश । ख़बरों के लिहाज़ से बहुत अच्छा चल रहा था मगर विज्ञापनों का मामला ठन ठन गोपाल ही रहा । लगभग ढाई साल इस अख़बार को मैंने किसी तरह खींचा और फिर हार कर उसे बंद कर दिया और साथ ही क़सम भी खाई कि अब कभी अख़बार नहीं निकालूँगा । चूँकि और कुछ आता-जाता नहीं था सो अगले बीस सालों तक राष्ट्रीय अख़बारों और पत्रिकाओं में नौकरी करता रहा । अब कहते हैं न कि वह आदमी ही क्या जो एक ही ग़लती बार बार न दोहराये सो पाँच साल पहले फिर अख़बार निकालने का भूत सवार हुआ और ज़ोर शोर से फिर अख़बार निकाला- पीपुल टुडे । विज्ञापन न मिलने से साल भर में ही फिर हौसले पस्त हो गए और एक बार फिर तीसरी क़सम के राज कपूर की तरह क़सम खाई कि अब कभी यह काम नहीं करूँगा । दरअसल अख़बार निकालना है ही बहुत टेडी खीर । हर किसी के बस का यह रोग नहीं है। ख़बरें तो इस देश में बिखरी पड़ी हैं मगर विज्ञापन ढूँढे से भी नहीं मिलते । थोड़ा बहुत सरकारी विज्ञापन का सहारा रहता है मगर वह भी बड़े अख़बारों में ही निपट जाता है और लघु व मध्यम दर्जे के अख़बार मुँह ताकते रहते हैं । अब कोरोना के आतंक के माहौल में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने सरकार को विज्ञापन बंद करने की जो सलाह दी है, वह यदि मान ली गई तो आपके घरों में जो अख़बार आते हैं उन्हें तो भूल ही जाइएगा ।

कोरोना की वजह से पूरे देश के सामने आर्थिक संकट है । अख़बार भी उसी नाँव पर सवार हैं जिन पर और सभी क्षेत्र के काम धंधे हैं । हालात को समझते हुए पत्रकारों के तमाम संघटनों ने जहाँ सोनिया गांधी के विज्ञापन वाले बयान की निंदा की है वहीं लघु और मध्यम दर्जे के अख़बारों के लिए पैकेज की भी माँग की है । इन संघटनों का कहना है कि पहले ही मीडिया हाउसेस की हालत पतली है और धड़ाधड़ नौकरियाँ जा रही हैं और ताज़ा माहौल में तो यह पूरा क्षेत्र ही डूब जाएगा । कुछ अख़बारों ने अभी से हाथ खड़े कर दिए हैं कि अप्रेल से वे अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पाएँगे । पहले से ही संकट में चल रहे अनेक अख़बारों ने तो अपने प्रकाशन ही बंद कर दिए हैं और अब केवल ऑनलाइन संस्करण ही निकाल रहे हैं । अब आप कहेंगे कि अख़बार बंद होते हैं तो होएँ हमें क्या ? मगर सच यह है कि इस संकट में हम भी अख़बार कर्मियों से कुछ कम प्रभावित होंगे ।

सरकारें हमेशा से अख़बारों की दुश्मन रही हैं । उनकी पल पल की ख़बर पहले केवल अख़बार और अब टीवी चैनल व अख़बार दोनो मिल कर जनता को बताते हैं । कल्पना कीजिए हमारे और सरकार के बीच से मीडिया हट जाये तो हमें केवल वही पता चलेगा जो सरकार हमें बताना चाहेगी । राजनैतिक दलों के आईटी सेल जो सोशल मीडिया के मार्फ़त हमें  झूठ परोसते हैं उन्हें सच की कसौटी पर मापने का कोई अन्य औज़ार भी हमारे पास तब नहीं होगा । मीडिया के अनेक लोगों के प्रति हमारी अच्छी बुरी कैसी भी राय हो सकती है मगर कहीं न कहीं हमारे लोकतंत्र के यही तो चौकीदार हैं । जी हाँ यही चौकीदार हैं , वे राजनीतिक दल और उनके नेता नहीं जो ख़ुद को चौकीदार कहते फिरते हैं । मुआफ़ कीजिएगा इन नेताओं से बचने के लिए ही तो हमें अख़बार जैसा चौकीदार चाहिये । कहिये क्या कहते हैं ? होने दें अख़बारों  क़त्ल या उनके साथ खड़े हों ?


कोरोनाय स्वाहा... / कवि अनाम

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*चौपाई:-*

*हे जिनपिंग! चीन के स्वामी।*
*तुम तो निकले बड़े हरामी।।1।।*
*कोरोना के पालन कर्ता।*
*मिल जाओ तो बना दें भरता।।2।।*

*कोई मुल्क नहीं है बाकी।*
*जहां ना मिलती इसकी झांकी।।3।।*
*लॉक हुए हैं घर मे अपने।*
*आज़ादी के देखें सपने।।4।।*

*पत्नी कोसे बच्चा रोये।*
*जिनपिंग नाश तुम्हारा होए।।5।।*
*जो वुहान से भेजा कीड़ा।*
*भोग रहा जग उसकी पीड़ा।।6।।*

*बीमारी तुमने फैलाई।*
*बेच रहे हो खुद ही दवाई।।7।।*
*अरे मौत के सौदागर सुन।*
*देह में तेरी लग जाये घुन।।8।।*

*काज तेरे सब विश्व अंत को।*
*आग लगे तेरे वामपंथ को।।9।।*
*छोटी आंखों वाले चीनी।*
*सबकी आंख से नींदे छीनी।।10।।*

*घर भीतर की यही कहानी।*
*रस्साकस्सी खींचातानी।।11।।*
*पति पर 21 दिन हैं भारी।*
*पत्नी के निकली है दाढ़ी।।12।।*

*काली रूप खोल के केशा।*
*बोल रही है शब्द विशेषा।।13।।*
*वो कहती है ये सुनता है।*
*बाकी जग ये सर धुनता है।।14।।*

*होता हर घर यही तमाशा।*
*खग जाने खग ही की भाषा।।15।।*
*सुन कर उसको दिग्गज डोले।*
*पति बेचारा कुछ ना बोले।।16।।*

*दुख सतावें नाना भांती।*
*छत पे नहीं पड़ोसन आती।।17।।*
*प्रेम का तारा कब का डूबा।*
*दिखी नहीं कब से महबूबा।।18।।*

*कोरोना के बने बराती।*
*बांट रहे हैं इसे जमाती।।19।।*
*उधर डॉक्टर लगे हुए हैं।*
*24 घण्टे जगे हुए हैं।।20।।*

*कुत्ते घूमें गली डगर में।*
*नहीं आदमी कहीं नगर में।।21।।*
*देश बजाता थाली ताली।*
*उधर विपक्षी देते गाली।।22।।*

*बन्द बज़ारें बन्द दुकानें।*
*सिगरेट खातिर सड़कें छानें।।23।।*
*एक हो गईं दो दो पीढ़ी।*
*बाप से ले गए बेटे बीड़ी।।24।।*

*मोदी जी कर लो तैयारी।*
*भीड़ बढ़ेगी एकदम भारी।।25।।*
*चीन से आगे हम जाएंगे।*
*विश्व विजेता कहलायेंगे।।26।।*

*घर की फुर्सत रंग लाएगी।*
*हमको वो दिन दिखलाएगी।।27।।*
*कीर्तिमान हम गढ़ जाएंगे।*
*10 करोड़ तो बढ़ जाएंगे।।28।।*

*घर में लेटे लेटे ऊबे।*
*सूरज कब निकले कब डूबे।।29।।*
*दिनचर्या है भंग हमारी।*
*सुनते रहते पलँग पे गारी।।30।।*

*हारेगा इक़ दिन कोरोना।*
*बन्द करेंगे बर्तन धोना।।31।।*
*झाड़ू पोंछा करते करते।*
*जिंदा हैं बस मरते मरते।।32।।*

*कुर्सी याद बहुत आती है।*
*आंखों में आंसू लाती है।।33।।*
*हालातों पर करके काबू।*
*आफिस जाएंगे बन बाबू।।34।।*

*डाउन होकर लॉक हुए हैं।*
*हम एकदम से शॉक हुए हैं।।35।।*
*बाहर जाने से डरते हैं।*
*कूलर में पानी भरते हैं।।36।।*

*कोरोना का चीन में डेरा।*
*पूरे विश्व को इसने घेरा।।37।।*
*भारत मे आकर हारेगा।*
*संयम ही इसको मारेगा।।38।।*

*नित्य प्रति जो पढ़े चलीसा।*
*वही निपोरे अपनी खीसा।।39।।*
*21 दिन जो नित्य रटेगा।*
*भरी जवानी टिकट कटेगा।।40।।*

*चीन तनय संकट करन भीषण रूप कुरूप।*
*अंधकार को छांटती बस संयम की धूप।।*

*कोरोनाय स्वाहा!*

ठहरे हुए लोग / रवि अरोड़ा

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ठहरे हुए लोग


पंडित जवाहर लाल नेहरू की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक डिस्कवरी आफ इंडिया पर बने श्याम बेनेगल के टेलिविज़न धारावाहिक भारत एक खोज में एक रोचक दृश्य है । छत्रपति शिवाजी के दो अनुयायी सैनिक उनके एक क़िले के बाहर तैनात हैं । बरसों से वे इस क़िले के बाहर पहरा दे रहे हैं । उन्हें कोई व्यक्ति समझाने आता है कि शिवाजी महाराज अब नहीं रहे और उनका देहांत हुए सैंकड़ों साल हो गए हैं । देश में अब मराठों का शासन भी नहीं है अतः आप लोग अपने घर जायें मगर वे लोग नहीं मानते और कहते हैं कि नहीं शिवाजी महाराज ने हमारे ख़ानदान की ड्यूटी इस क़िले की सुरक्षा के लिए लगाई थी और हम पीढ़ी दर पीढ़ी इसे निभा रहे हैं और बिना उनकी आज्ञा के वे लोग इस क़िले से एक कदम भी बाहर नहीं रख सकते । आज जब समाचार मिला कि पटियाला में कुछ निहंगों ने पुलिस पर हमला कर दिया और एक पुलिस कर्मी का धारदार हथियार से हाथ काट कर अलग कर दिया तो बरबस शिवाजी के वे दो सिपाही याद आ गए । ये निहंग भी धारावाहिक भारत एक खोज के उन मराठा सिपाहियों जैसे ही तो हैं । इतिहास के किसी काल खंड में ठहरे हुए लोग । जो आज को न तो जानते हैं और न ही मानते हैं । एसे रुके हुए, इतिहास में कहीं ठहरे हुए लोग देश में भरे पड़े हैं और अफ़सोस यह कि बावजूद इसके उन्हें समाज में सम्मान की नज़रों से देखा जाता है । यह सम्मान तब तक अडिग रहता है जब तक पटियाला अथवा मरकज़ जैसी घटना सामने नहीं आती।

दशम गुरु गोविंद सिंह जी को इस जगत से विदा हुए तीन सौ साल हो चले हैं । आज न राजशाही है और न ही सिखों और उनके ग्रंथ साहब की सुरक्षा को कोई ख़तरा है । इसके अतिरिक्त न ही किसी को अपनी सुरक्षा के लिए निजी सैनिक रखने की इजाज़त है तो फिर ये हज़ारों सिख निहंग बन कर किसकी रक्षा कर रहे हैं और क्यों ? उस दौर में गुरुओं ने जो हथियार दिए थे जो हमलावर होने की ट्रेनिंग दी थी, क्यों अभी तक अपने सीने से चिपटाए घूम रहे हैं ? चलिए चिपटाया तो चिपटाया मगर क्यों बात बात पर क़ानून हाथ में ले लेते हैं और अब हिमाक़त देखिए कि एक पुलिस कर्मी का हाथ ही काट दिया ?

भारत भी अजब देश हैं । यहाँ गतिशील लोग कम और ठहरे लोग ज़्यादा हैं । कुम्भ के मेले में पहले स्नान करने के लिए लड़ने वाले नंग धड़ंग नागा हों या युगों बाद भी वही पुरातन कर्म कांड कराने वाले पंडे-पुरोहित , सभी एक ही क़तार के ही तो लोग हैं । ताजा नाम अब तबलीगी जमात का जुड़ा है जो देश-दुनिया को चौदह सौ साल पुराने काल खंड में ले जाने में लगे हैं ।  पता नहीं इन्हें कोई क्यों नहीं समझाता कि कायनात में सब कुछ परिवर्तनशील है तथा बस  एक चीज़ स्थाई है और वह है परिवर्तनशीलता का नियम । मगर ये लोग न जाने ख़ुद को वक़्त के अनुरूप बदलने को क्यों तैयार नहीं होते ?

चलिये माना कि लोकतंत्र है और सबको अपने धर्म और उससे जुड़ी मान्यताओं के पालन का अधिकार है मगर लखटका सवाल यह है कि फिर संविधान की क्या ज़रूरत है ? जब सबको अपने धर्म के अनुसार ही चलना है तो फिर इतनी मेहनत करके यह संविधान बनाया ही क्यों है ? बेशक किसी एक घटना को उससे जुड़े धर्म से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए । कोई अपराध व्यक्तिगत होता है और उसके कर्ता के धर्म से उसे जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिये । धर्म चाहे हिंदू हो मुस्लिम हो अथवा सिख उसके तमाम मानने वाले अपने किसी सधर्मी अपराधी के कारण कटघरे में खड़े नहीं किए जा सकते । मगर जमात अथवा निहंगों जैसी घटनाएँ होती हैं तो उस धर्म के लोगों को उस पर विचार तो करना ही चाहिए ना ।

रुप बदलकर कान्हा आयो.

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*नारीरूप धरकर राधाजी की परीक्षा लेने आए थे  नटखट नंदलाल*


*लीलाधारी भगवान कृष्ण की लीला अद्भुत है एक बार तो श्रीराधाजी की प्रेम परीक्षा लेने के लिए नारी बन उनके महल में पहुंच गए*
*श्रीगर्ग संहिता से सुंदर कृष्ण कथा*

*शाम को श्रीराधाजी अपने राजमंदिर के उपवन में सखियों संग टहल रही थीं तभी बागीचे के द्वार के पास मणिमंडप में एक अनजान पर बेहद सुंदर युवती को खड़े देखा. वह बेहद सुंदर थी उसके चेहरे की चमक देख श्रीराधा की सभी सहेलियां अचरज से भर गईं श्रीराधा ने गले लगाकर स्वागत किया और पूछा सुंदरी सखी तुम कौन हो कहां रहती हो और यहां कैसे आना हुआ*
*श्रीराधा ने कहा तुम्हारा रूप तो दिव्य है. तुम्हारे शरीर की आकृति मेरे प्रियतम श्रीकृष्ण जैसी है. तुम तो मेरे ही यहां रह जाओ. मैं तुम्हारा वैसे ही ख्याल रखूंगी जैसे भौजाई, अपनी ननद का रखती है*

*यह सुनकर युवती ने कहा- मेरा घर गोकुल के नंदनगर में नंदभवन के उत्तर में थोड़ी ही दूरी पर है. मेरा नाम गोपादेवी है. मैंने ललिता सखी से तुम्हारे रूप-गुण के बारे में बहुत सुन रखा था इसलिए तुम्हें देखने के लोभ से चली आई थोड़ी ही देर में गोपदेवी श्रीराधा और बाकी सखियों से साथ घुल-मिलकर गेंद खेलने और गीत गाने के बाद बोली- मैं दूर रहती हूं. रास्ते में रात न हो जाए इसलिए मैं अब जाती हूं*

*उसके जाने की बात सुन श्रीराधा की आंख से आंसू बहने लगे. वह पसीने-पसीने हो वहीं बैठ गईं सखियों ने तत्काल पंखा झलना शुरू किया और चंदन के फूलों का इत्र छिड़कने लगी*
*यह देख गोपदेवी बोली सखी राधा मुझे जाना ही होगा पर तुम चिंता मत करो सुबह मैं फिर आ जाउंगी. अगर ऐसा न हो तो मुझे गाय, गोरस और भाई की सौगंध है*

 *यह कह वह सुंदरी चली गई*
*सुबह थोड़ी देर से गोपादेवी श्रीराधाजी के घर फिर आयी तो वह उसे भीतर ले गयीं और कहा मैं तुम्हारे लिए रात भर दुखी रही अब तुम्हारे आने से जो खुशी हो रही है उसकी तो पूछो नहीं श्रीराधा जी की प्रेम भरी बातें सुनने के बावजूद जब गोपादेवी ने कोई जवाब नहीं दिया और अनमनी बनी रही तो श्री राधाजी ने गोपादेवी की इस खामोशी की वजह पूछा*
*गोपादेवी बोली- आज मैं दही बेचने निकली. संकरी गलियों के बीच नन्द के श्याम सुंदर ने मुझे रास्ते में रोक लिया और लाज शरम ताक पर रख मेरा हाथ पकड़ कर बोला कि मैं कर टैक्स लेने वाला हूं. मुझे कर के तौर पर दही का दान दो*
*मैंने डपट दिया चलो हटो अपने आप ही कर लेने वाला बन कर घूमने वाले लंपट मैं तो कतई तुम्हें कोई कर न दूंगी. उसने लपक कर मेरी मटकी उतारी और फोड़कर दही पीने के बाद मेरी चुनरी उतार कर गोवर्धन की ओर चल दिया*
*इसी से मैं क्षुब्ध हूं श्रीराधे जी इस बात पर हंसने लगीं तो गोपदेवी बोली सखी यह हंसने की बात नहीं है वह कला कलूटा ग्वाला न धनवान न वीर आचरण भी अच्छे नहीं मुझे तो वह निर्मोही भी लगता है*
 *सखी ऐसे लड़के से तुम कैसे प्रेम कर बैठी. मेरी मानो तो उसे दिल से निकाल दो श्रीराधा जी बोलीं तुम्हारा नाम गोपदेवी किसने रखा वह ग्वाला है इसलिए सबसे पवित्र है सारा दिन पवित्र पशु गाय की चरणों की धूल से नहाता है. तुम उन्हें निर्धन ग्वाला कहती हो*
*जिनको पाने को लक्ष्मी तरस रही हैं ब्रह्माजी, शिवजी भी श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं उनको काला कलूटा और उसे निर्बल बताती हो जिसने बकासुर, कालिया नाग, यमलार्जुन, पूतना जैसों का चुटकी में वध कर ड़ाला*
*जो अपने भक्तों के पीछे पीछे इसलिए घूमते हैं कि उनकी चरणों की धूल मिल जाये उसे निर्दयी कहती है गोपदेवी बोली राधे तुम्हारा अनुभव अलग है और मेरा अलग. किसी अकेली युवती का हाथ पकड जबरन दही छीनकर पी लेना क्या सज्जनों के गुण हैं*

*श्रीराधे ने कहा- इतनी सुंदर होकर भी उनके प्रेम को नहीं समझ सकी! बड़ी अभागिन है. यह तो तेरा सौभाग्य था पर तुमने उसको गलत समझ लिया गोपदेवी बोली अच्छा तो मैं अपना सौभाग्य समझ के सम्मान भंग कराती*
 *अब बात बढ़ गई थी आखिर में गोपदेवी बोली अगर तुम्हारे बुलाने से श्रीकृष्ण यहां आ जाते हैं तो मैं मान लूंगी कि तुम्हारा प्रेम सच्चा है और वह निर्दयी नहीं है और यदि नहीं आये तो*
 *इस पर राधा रानी बोलीं कि यदि नहीं आये तो मेरा सारा धन, भवन तेरा शर्त लगाकर श्रीराधा आंख मूंद ध्यान में बैठ श्रीकृष्ण का एक-एक नाम लेकर पुकारने लगीं जैसे जैसे श्रीराधा का ध्यान और दिल से की जाने वाली पुकार बढ रही थी सामने बैठी गोपदेवी का शरीर कांपता जा रहा था*
*श्रीराधा के चेहरे पर अब आंसुओं की झड़ी दिखने लगी. माया की सहायता से गोपदेवी का रूप लिए भगवान श्रीकृष्ण समझ गये कि प्रेम की ताकत के आगे अब यह माया नहीं चलने वाली, मेरा यह रूप छूटने वाला है*
*वे रूप बदलकर श्री राधे-राधे कहते प्रकट हो गए और बोले- राधारानी आपने बुलाया. मैं भागता चला आ गया. श्रीराधाजी चारों ओर देखने लगीं तो श्रीकृष्ण ने पूछा अब किसको देख रही हैं वे बोली गोपदेवी को बुलाओ, वह कहाँ गई श्री कृष्ण बोले जब मैं आ रहा था तो कोई जा रही थी, कौन थी*
*राधा रानी ने उन्हें सारी बातें बतानी शुरू की और श्रीकृष्ण सुनते चले गए. मंद-मंद मुस्काते हुए श्रीकृष्ण ने कहा- आप बहुत भोली हैं. ऐसी नागिनों को पास मत आने दिया करें*

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे



*"┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈"*

लक्ष्मण को रावण की सीख

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मरने से पहले रावण ने अपनी गलती स्वीकारी थी और  लक्ष्मण को बताई थीं ये 3 बातें

श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध को सत्य व असत्य का संघर्ष माना जाता है।।

रावण ने अधर्म और पाप की राह पर चलना स्वीकार किया लेकिन वह अत्यंत विद्वान और पराक्रमी भी था। उसकी कूटनीति और आतंक से उस जमाने के बड़े-बड़े शासक कांपते थे।

श्रीराम ने स्वयं लक्ष्मण से कहा था कि वे रावण से राजनीति और संसार से जुड़े उसके अनुभव सुनें। लक्ष्मण ने आज्ञा का पालन किया और रावण के सिरहाने की ओर खड़े हो गए। ...परंतु रावण ने कुछ नहीं कहा।

तब श्रीराम ने उन्हें कहा कि वे रावण के पैरों की ओर खड़े हों, क्योंकि उन्हें रावण से ज्ञान प्राप्त करना है। जिससे ज्ञान प्राप्त करना हो उसके पैरों की ओर स्थान ग्रहण करना चाहिए। लक्ष्मण ने ऐसा ही किया। उस समय रावण ने उन्हें जीवन की 3 प्रमुख बातें बताईं।रम्भा  अप्सरा के बलात्कार के बा्द नलकुबेर ने रावण को श्राप दिया था कि "यदि रावण ने किसी भी नारी को उसकी अस्वीकृति के बगैर छुआ तो रावण की तत्काल मृत्यु हो जाएगी।
यहाँ छूने से तात्पर्य शील भंग से है।रावण कोई चरित्रवान और सहृदय पुरूष नहीं था,जिसने सीता को छूने की धृष्टता नहीं की थी। वह श्राप से बन्धा हुआ था।

रामजी ने जब रावण की नाभि पर तीर चलाया तो रावण जमीन पर गिर पड़ा।राम जी ने अनुज लक्ष्मण से कहा कि रावण प्रकांड विद्वान है,उससे कुछ राजनीतिक शिक्षा सुनो,जो उसके अलावा कोई और नहीं दे सकता।

राम जी की आज्ञानुसार लक्ष्मण ने मरणासन्न रावण के सिर के पास जाकर खड़े होकर उससे उपदेश देने की प्रार्थना की तो रावण ने कोई उत्तर नहीं दिया।लक्ष्मण निराश होकर राम जी के पास आ गए।
तब राम जी ने लक्ष्मण जी को सलाह दी कि किसी से भी ज्ञान प्राप्ति के लिए उसके सिर के पास नहीं,पैरों के पास खड़े होते हैं।लक्ष्मण जी ने ऐसा ही किया।

तब रावण ने लक्ष्मण से कहा कि पराई स्त्री पर बुरी दृष्टि डालना तो मेरी भयंकर भूल थी,उसके अलावा भी मुझसे ये तीन गलतियाँ हुई हैं।
१.शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए और अशुभ कार्य को जितना अधिक टाल सको तो टालो।मुझे पता था कि रामचन्द्र जी दिव्य पुरूष हैं।मुझे उनकी शरण में आ जाना चाहिए था,उल्टे मैंने उनकी पत्नी का ही हरण कर लिया। इसी कारण मेरी यह दुर्दशा हुई।
२.मैंने वानरों और मानवों को हमेशा असुरों से तुच्छ समझा।मेरे पास एक से एक बड़ी शक्तियाँ थीं,मैंने कहा कि ये तुच्छ जीव मुझ जैसे विशाल साम्राज्य के स्वामी अकाट्य विद्वत्तायुक्त का क्या बिगाड़ लेंगे? इन को तो मैं वैसे ही चींटी की तरह मसल दूँगा।मगर,मेरा अहंकार ही मेरे पतन का कारण बन गया।चींटी कब विशालकाय हाथी की सूँड में घुसकर काल का ग्रास बना देती है, पता नहीं चलता।मैं मद में अन्धा हो गया था।
३. हे लक्ष्मण,जीवन में अपना सबसे बड़ा राज किसी को नहीं बताना चाहिए।यदि आज विभीषण रामचन्द्र जी को मेरी नाभि में अमृत होने की बात न बताता,तो रामजी मुझे कभी मार नहीं पाते।यह मेरी बहुत बड़ी ग़लती सिद्ध हुई।
तभी से कहावत चली:

"घर का भेदी लंका ढावे।"

परन्तु अब पछताय होत क्या……।
इक लख पूत, सवा लख नाती,ता रावण घर दिया न बाती।
बुराई का आचरण करना आसान होता है।यह एक दलदल की तरह होती है जिसमें एक बार पाँव पड़ जाए,इंसान डूबता ही चला जाता है। उसका विवेक जो मरता जाता है सही ग़लत का फ़र्क बताने वाला!

तीन लाख साल रावण जिया,क्या लेकर गया?अपयश, घृणा और तिरस्कार!!!
अगर उसने अपने अहंकार और दुर्गुणों को दूर हटाने का वरदान माँगने के लिए तपस्या की होती तो आज वह पूरे जगत का प्रेरणास्रोत होता।

दशहरे पर पुतले न जल रहे होते,बल्कि दशानन की मूर्तियाँ पूजी जातीं।
इंसान अपने कर्मों से ही तो राम या रावण बनता है!
जरूरी है अपने अंदर के राम को जिन्दा रखना

कुछ कहावतें और कुछ कथाएं

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प्रस्तुति - कृष्ण मेहता: 🔆🔅🔆🔅🔆🔅
🔆🔅🔆

*आहारशुद्धि रखें*


*🔆कहावत है कि ’जैसा खाये अन्न वैसा बने मन । ’*
*🔆खुराक के स्थूल भाग से स्थूल शरीर और सूक्ष्म भाग से सूक्ष्म शरीर अर्थात् मन का निर्माण होता है । इसलिए सदैव सत्त्वगुणी खुराक लीजिये।*
*🔆दारु-शराब, मांस-मछली, बीड़ी-तम्बाकू, अफीम-गाँजा, चाय आदि वस्तुओं से प्रयत्नपूर्वक दूर रहिये । रजोगुणी तथा तमोगुणी खुराक से मन अधिक मलिन तथा परिणाम में अधिक अशांत होता है । सत्त्वगुणी खुराक से मन शुद्ध और शांत होता है ।*

*🔆 🙋🏻‍♂️प्रदोष काल में किये गये आहार और मैथुन से मन मलिन होता है और आधि-व्याधियाँ बढ़ती हैं । मन की लोलुपता जिन पदार्थो पर हो वे पदार्थ उसे न दें । इससे मन के हठ का शनैः-शनैः शमन हो जायेगा ।*

*🔆भोजन के विषय में ऋषियों द्वारा बतायी हुई कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए :*
*🔅१.     हाथ-पैर-मुँह धोकर पूर्वाभिमुख बैठकर मौन भाव से भोजन करें । जिनके माता-पिता जीवित हों, वे दक्षिण दिशा की ओर् मुख करके भोजन न करें । भोजन करते समय बायें हाथ से अन्न् का स्पर्श न करें और चरण, मस्तक तथा अण्डकोष को भी न छूएँ ।केवल प्राणादि के लिए पाँच ग्रास अर्पण करते समय तक बाय़ें हाथ  से पात्र को पकड़े रहें, उसके बाद छोड़ दें ।*
 
*🔅२.    भोजन के समय हाथ घुटनों के बाहर न करें । भोजन-काल में बायें हाथ से जलपात्र उठाकर दाहिने हाथ की कलाई पर रखकर यदि पानी पियें तो वह पात्र भोजन समाप्त होने तक जूठा नहीं माना जाता, ऎसा मनु महाराज का कथन है । यदि भोजन करता हुआ द्विज किसी दूसरे भोजन करते हुए द्विज को छू ले तो दोनों को ही भोजन छोड़ देना चाहिए ।*
 
*🔅३.    रात्रि को भोजन करते समय यदि दीप बुझ जाय तो भोजन रोक दें और दायें हाथ से अन्न् को स्पर्श करते हुए मन-ही-मन गायत्री का स्मरण करें । पुनः दीप जलने के बाद ही भोजन शरु करें ।*
 
*🔅४.    अधिक मात्रा में भोजन करने से आयु तथा आरोग्यता का नाश होता है । उदर का आधा भाग अन्न से भरो, चौथाई भाग जल से भरो और चौथाई भाग वायु के आवागमन के लिए खाली रखो ।*

*🔅५.    भोजन के बाद थोड़ी देर तक बैठो । फिर् सौ कदम चलकर कुछ देर तक बाइँ करवट लेटे रहो तो अन्न ठीक ढंग से पचता है । भोजन के अन्त में भगवान को अर्पण किया हुआ तुलसीदल खाना चाहिए ।*
 
*🔆भोजन विषयक इन सब बातों को आचार में लाने से जीवन में सत्वगुण की वृद्धि होती है ।*

*🙏🌹निष्काम भाव से सेवा करें*
निष्काम भाव से यदि परोपकार के कार्य करते रहेंगे तो भी मन की मलिनता दूर हो जायेगी । यह प्रकृति का अटल नियम है । इसलिए परोपकार के कार्य निष्काम भाव से करने के लिये सदैव तत्पर रहें ।
[07/04, 07:14] Morni कृष्ण मेहता: *योगमाया की भविष्यवाणी काकासुर की हार*
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इस बार मेरे काल ने जन्म लिया है यह सोचकर कंस घबराया हुआ था। उसने बंदीगृह में पहुंचते ही चिल्लाकर कहा- देवकी कहां है वह बालक? मै अभी अपनी तलवार से काटकर के टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।

देवकी ने बड़े दु:ख और करूणा से कहा- मेरे प्यारे भाई, यह तो कन्या है और यह भी तुम्हारी पुत्री के समान है। भला ये तुम्हे क्या मारेगी। तुम्हें इसकी हत्या नहीं करनी चाहिए। तुमने एक एक करके मेरे छह पुत्रों को मार डाला। मैने तुमसे कुछ नहीं कहा। मै तुमसे इसके प्राणों की भीख मांगती हूं। मै तुम्हारी छोटी बहन हूं। मुझ पर दया करों। यह मेरी अंतिम संतान है। मै हाथ जोड़कर तुमसे विनती करती हूं। यह मेरी अंतिम निशानी है।

कन्या को गोद में छिपाकर बड़ी दीनता के साथ देवकी ने याचना की। किंतु कंस बड़ा ही दुष्ट था। उसके ऊपर देवकी की विनती का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और कन्या को देवकी की गोद से छीनकर ले गया। प्रकृति भी उसकी क्रूरता पर चीख उठी। उसने जैसे ही कन्या को चट्टान पर पटकने की कोशिश की- वह उसके हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई।

वह कन्या कोई सधारण कन्या तो था नहीं, साक्षात श्रीकृष्ण की योगमाया थी। आकाश में जाते ही वह देवी के रूप में बदल गई। देवता, गन्धर्व, अप्सराएं उसकी स्तुति करने लगे।

उस देवी ने कंस से कहा- रे मूर्ख! मुझे मारने से तुझे क्या मिलेगा। तुझे मारने वाला तेरा शत्रु कहीं और पैदा हो चुका है। अब तू निर्दोष बालको की हत्या मत कर। कंस से ऐसा कहकर ही भगवती योगमाया अंतर्धान हो गयीं और विन्ध्याचल की विन्ध्येश्वरी नाम से प्रसिद्ध हुई।

कंस ने दूसरे दिन अपने दरबार में मंत्रियों को बुलवाया और योगमाया की सारी बातें उनसे बतायीं। कंस के मंत्री दैत्य होने के कारण स्वभाव से ही क्रूर थे। वे सब देवताओं के प्रति शत्रुता का भाव रखते थे। अपने स्वामी कंस की बात सुनकर उन सबों ने कहा- ‘यदि आपके शत्रु विष्णु ने कहीं और जन्म ले लिया है तो इस दस दिन के भीतर जन्में सभी बच्चों को आज ही मार डालेंगे। हम आज ही बड़े-बड़े नगरों, छोटे-छोटे गावों, अहीरों की बस्तियों में और अन्य स्थानों में जितने भी बच्चे पैदा हुए हैं, उन्हें खोजकर मारना शुरू कर देते हैं। शत्रु को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए। इसलिए उसे जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए आप हम जैसे सेवकों को आदेश दीजिए’। एक तो कंस की बुद्धि वैसे ही बिगड़ी हुई थी, दूसरे उसके मंत्री उससे भी अधिक दुष्ट थे। कंस के आदेश से दुष्ट दैत्य नवजात बच्चों को जहां पाते, वहीं मार देते। गोकुल में भी उत्पात शुरू हो गए। अभी छठी के दिन भगवान का जात कर्म संस्कार ही हुआ था कि कंस के द्वारा भेजी गई पूतना श्रीकृष्ण को मारने के लिए नंद बाबा के घर पहुंची। उसने सुंदर गोपी का वेष बनाकर श्रीकृष्ण को गोद में उठा लिया और अपने विष लगे स्तनों का दूध पिलाने लगी। श्रीकृष्ण ने दूध के साथ उसके प्राणों को भी खींच लिया और उसे यमलोक भेज दिया। एक दिन की बात है, नन्हें-से कन्हाई पालने में लेटे हुए अकेले ही कुछ हूं-हां कर रहे थे और अपने हाथ, पैरों को हिला रहे थे। उसी समय कंस का भेजा हुआ एक दुष्ट राक्षस कौवे का वेष बनाकर उड़ता हुआ वहां आ पहुंचा। वह बहुत विकराल था और अपने पंखों को फड़फड़ा रहा था। वह पहले तो भयकंर रूप से बार-बार श्रीकृष्ण को डराने का प्रयास करने लगा, पर श्रीकृष्ण मुस्कुराते रहे। फिर वह क्रोधित होकर बालकृष्ण को मारने के लिए झपटा। बालरूप भगवान श्रीकृष्ण ने बायें हाथ से कसकर उसके गले को पकड़ लिया। उसके प्राण छटपटाने लगे। भगवान ने उसे घुमाकर इतनी जोर से फेंका कि वह कंस के सभा मंडप में जा गिरा। बड़ी मुश्किल से उसे होश में लाया गया। कंस ने घबड़ाकर उससे पूछा- तुम्हारी ये दशा किसने की? काकासुर ने कहा – राजन जिसने मेरी गर्दन मरोड़कर यहां फेंक दिया, वे कोई साधारण बालक नहीं हो सकता। निश्चित ही भगवान श्रीहरि ने अवतार ले लिया है।
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[07/04, 07:14] Morni कृष्ण मेहता: 🙏 अभिमान 🙏

श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे। उनके पास ही गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे थे। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा, 'हे प्रभु, आपने त्रेता युग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे वे ज्यादा सुंदर थीं?'कृष्ण समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है। तभी गरुड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है?

सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठे कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है। क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है? भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है। ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ से कहा'हे गरुड़! तुम हनुमान के पास जाओ

और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरुड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए। इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं कृष्ण ने राम का रूप धारण कर लिया। मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेशद्वार पर पहरा दो। ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे। भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए।
गरुड़ ने हनुमान के पास पहुंच कर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा। हनुमान ने विनयपूर्वक गरुड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं। गरुड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा। खैर मैं भगवान के पास चलता हूं। यह सोचकर गरुड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर उड़े। पर यह क्या, महल में पहुंचकर गरुड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं। गरुड़ का सिर लज्जा से झुक गया।

तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवन पुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं? हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुका कर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकाल कर प्रभु के सामने रख दिया हनुमान ने कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था, इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें।

भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे। हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया, हे प्रभु! आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है। अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरुड़ तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। तीनों भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंख से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए।
[07/04, 07:14] Morni कृष्ण मेहता: शिवजी कहाँ से देते है....

एक गाँव में भगवान शिव का परमभक्त एक ब्राह्मण रहता था। पंडितजी जब तक रोज सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्यकर्मो से निवृत होने के पश्चात् भगवान शंकर का पूजन नहीं कर लेते, तब तक उन्हें चैन नहीं पड़ता था। जो कुछ भी दान दक्षिणा में आ जाता उसी से पंडित जी अपना गुजारा करते थे और दयालु इतने थे कि जब भी कोई जरूरत मंद मिल जाता, अपनी क्षमता के अनुसार उसकी सेवा जरुर करते थे। इस कारण शिव के परमभक्त ब्राह्मण देवता ओढ़ी हुई गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे थे।
पंडितजी की इस दानी प्रवृति से उनकी पत्नी उनसे चिढ़ती तो थी, किन्तु उनकी भक्ति परायणता को देख उनसे अत्यधिक प्रेम करती थी। इसलिए वह कभी भी उनका अपमान नहीं करती थी। साथ ही अपनी जरूरत का धन वह आस – पड़ोस में मजदूरी करके जुटा लेती थी।

एक समय ऐसा आया जब मन्दिर में दान – दक्षिणा कम आने लगी, जिससे पंडित जी को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। घर की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होने के कारण ब्राह्मणी दुखी रहने लगी।
इसी तरह दिन बीतने लगे। एक दिन महाशिवरात्रि का दिन आया। उस दिन भी पंडित जी हमेशा की तरह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्यकर्मो से निवृत होने के लिए नदी की ओर चल दिए।
संयोग से उस समय उस राह से पार्वती और शिवजी गुजर रहे थे। अचानक से पार्वतीजी की नजर पंडितजी पर पड़ी। आज पंडितजी महाशिवरात्रि को लेकर उतने उत्साहित नहीं थे, जितने की अक्सर हुआ करते थे। पार्वतीजी को बात समझते देर नहीं लगी।

उन्होंने शिवजी से कहा – “भगवन् ! यह ब्राह्मण देवता ! प्रतिदिन आपकी उपासना करते है, फिर भी आपको इसकी चिंता नहीं है !”
पार्वतीजी की बात सुनकर शिवजी बोले – “देवी ! अपने भक्तों की चिंता मैं नहीं करूँगा तो कौन करेगा !”
पार्वतीजी – “ तो हे देव ! आपने अब तक उसकी सहायता क्यों नहीं की ?”
शिवजी – “ देवी ! आप निश्चिन्त रहिये, अब तक उसने जितने बिल्वपत्र शिवलिंग पर चढ़ाएं है, वही आजरात्रि में उसे बिल्वपत्र उसे धनपति बना देंगे।
यह बातचीत करके पार्वतीजी और शिवजी तो चल दिए। किन्तु संयोग तो देखिये ! उसी समय उस राह से एक व्यापारी गुजर रहा था। उसने छुप कर शिव – पार्वती का यह वार्तालाप सुन लिया।

व्यापारी ने अपना  दिमाग चलाया। अगर बिल्वपत्र से ब्राह्मण धनपति हो सकता है, तो फिर मैं क्यों नहीं हो सकता। यही सोच वह ब्राह्मण के घर पहुँच गया और ब्राह्मण से बोला – “ पंडितजी ! आपने अब तक जितने भी बिल्वपत्र शिवपूजन में चढ़ाये है, वह सब मुझे दे दीजिए, बदले में मैं आपको १०० स्वर्ण मुदार्यें दूंगा।
पंडित जी ने अपनी पत्नी से पूछा तो वह बोली – “ पूण्य का दान ठीक तो नहीं, किन्तु दे दीजिए, हमें धन जरूरत है, इसलिए दे दीजिए”
पंडितजी ने सारे बिल्वपत्र के बोरे में भरकर सेठजी को दे दिए।
बिल्वपत्रों का बोरा लेकर सेठजी पहुँच गये मन्दिर और शिवलिंग पर चढ़ाकर देखने लगे तमाशा कि कब शिवजी कृपा करे, और कब वह धनपति हो।
प्रतीक्षा करते – करते सेठजी को आधी रात हो गई। सेठजी चमत्कार देखने के लिए बहुत उतावले हो रहे थे। आखिर तीसरा पहर गुजरने के बाद सेठजी के सब्र का बांध टूट ही गया और क्रोध ने आकर सेठजी शिवलिंग को झकझोरने लगे।
अब हुआ चमत्कार ! सेठजी के हाथ शिवलिंग से ही चिपके रह गये। उन्होंने बहुत प्रयास किया किन्तु हाथ हिले तक नहीं। थक – हारकर सेठजी शिवजी से क्षमा – याचना करने लगे।
तो शिवजी बोले – “ लोभी सेठ ! जिस ब्राह्मण से तूने ये बिल्वपत्र ख़रीदे है उसे १००० स्वर्ण मुद्रए से तब जाकर तेरे हाथ खुलेंगे।

प्रातःकाल जब पंडित जी पूजन के लिए आये तो देखा कि सेठ शिवलिंग पर हाथ चिपकाकर रो रहा है। उन्होंने पूछा तो सेठ बोला – “ पंडितजी ! शीघ्रता से मेरे बेटे को १००० स्वर्ण मुद्राए लेकर मन्दिर आने को कहिये।
पंडितजी ने सेठ के बेटे को बुलाया और सेठ ने वह स्वर्ण मुद्राएँ ब्राहमण को दिलवा दी और सेठ मुक्त हो गया।
अब पार्वतीजी शिवजी से पूछती है, “हे नाथ ! आपने अब तक अपने भक्त को कोई धन नहीं दिया ?”
शिवजी बोले – “ देवी ! मेरे पास कहाँ धन है, जो दूंगा। किन्तु मेरा भक्त अब गरीब नहीं है।

मीडिया का बुरा हाल है

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गुलजार साहब की यह कविता आज बहुत याद आ रही है...👏👏

*"बे वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है"*
*"मौत से आँखे मिलाने की ज़रूरत क्या है"*

*"सब को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल"*
*"यूँही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है"*

*"ज़िन्दगी एक नेमत है उसे सम्भाल के रखो"*
*"क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है"*

*"दिल बहलाने के लिये घर में वजह हैं काफ़ी"*
*"यूँही गलियों में भटकने की ज़रूरत क्या है"*

🖋🖋🖊🖊
[13/04, 19:11] As अशोक सिंह: *Media Updates*

1.Indian Express and Business Standard have asked staff to take salary cuts
2. Outlook has stopped print publication.
3. News Nation terminated 16 English digital employees
4. TOI sacked the entire Sunday mag team
5. About half of the Quint team has been asked to go on leave without pay
6. India Today has prepared a list of 46 reporters, 6 cameramen and 17 producers who are being removed due to losses right away
[13/04, 20:06] As अशोक सिंह: 😀😃😄😂😄😃😀
*एक बार एक बंदर को उदासी के कारण मरने की इच्छा हुई, तो उसने एक सोते हुए शेर के कान खींच लिये।*

*शेर उठा और*
*गुस्से से दहाड़ा-*
*“किसने किया ये..? किसने अपनी मौत बुलायी है..?”*

*बंदर: "मैं हूँ महाराज। दोस्तो के अभाव में अत्याधिक उदास हूँ,*
*मरना चाहता हूँ,*
*आप मुझे खा लीजिये।"*

*शेर ने हँसते हुए पूछा-*
 *“ मेरे कान खीँचते हुए तुम्हें किसी ने देखा क्या..?”*
🤔

*बंदर: "नहीं महाराज..."*

*शेर: "ठीक है, एक दो बार और खीँचो, बहुत ही अच्छा लगता है.... !!"*

*इस कहानी का सार :*

*अकेले रह-रह कर जंगल का राजा भी बोर हो जाता है।*

*इसलिए अपने दोस्तों के संपर्क में रहें, कान खीँचते- खिचाते रहे, पंगा लेते रहे...।*

*सुस्त न रहे,*
*मस्ती 👇👆🤪करते रहें..!*

*आप सभी भी अपने मित्रों से संपर्क बनाकर रखिए*
*विश्वास कीजिए आपका मन सदा ही प्रफुल्लित और आप सदैव स्वस्थ रहेंगे*
🥰🥰🥰😍🥰🥰🥰
[13/04, 20:31] As अशोक सिंह: न्यूज़ नेशन की पूरी इंग्लिश डिजिटल टीम फायर, 15 से ज्यादा लोग सड़क पर

लॉक डाउन के साइड इफेक्ट भयानक हैं। कोरोना और लॉक डाउन का बहाना लेकर धड़ाधड़ छँटनी की जा रही है। मीडिया कम्पनियों को तो वैसे भी छँटनी करने का कोई बहाना चाहिए। न्यूज़ नेशन चैनल से भी कई लोगों के निकाले जाने की सूचना अभी अभी मिली है।

बताया जा रहा है कि न्यूज़ नेशन की पूरी इंग्लिश डिजिटल टीम को ही प्रबंधन ने गुड बॉय बोल दिया है। इस टीम में 15 से ज्यादा लोग थे। इस टीम को हेड वरुण शर्मा कर रहे थे।

सूत्रों के मुताबिक प्रबन्धन ने बिना किसी को समय दिए, अचानक ही फायर कर दिया। बस एक मेल भेजा। कोरोना संकट, लॉक डाउन और आर्थिक संकट का हवाला देते हुए। फिर सबको जाने को कह दिया।

मीडिया हाउसेज की तानाशाही को बस इसी बात से समझा जा सकता है कि वे न तो पीएम की बात को मानते हैं और न किसी नियम कानून को।

पीएम मोदी ने कोरोना काल में इम्प्लाइज को जोड़े रखने, उन्हें सपोर्ट-हेल्प करने की बात इम्पलॉयर्स से कही। इस बाबत आदेश भी जारी हुआ। पर आदेशों को आईना दिखा रहे हैं खुद मीडिया हाउस ही, जो दुनिया भर को नियम कानून नैतिकता का पाठ पढ़ाते रहते हैं।मीडिया का बुरा हाल है 

परम गुरू हुजूर के बचन उपदेश

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प्रस्तुति - स्वामी शरण /
आत्म स्वरूप / संत शरण

**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात- 1,2 सितंबर 1932- बृहस्पतिवार व शुक्रवार:- 1 सितंबर की सुबह को 1:00 बजे के करीब बंगलुरु के लिए रवाना हुए। मद्रास तक कोई सत्संगी नहीं मिला। अलबत्ता बल्लारशाह स्टेशन पर संयोगवश प्रेमी भाई रघुनाथ प्रसाद मिल गए जो 3 स्टेशन तक सहयात्री रहे । बेजवाड़ा स्टेशन तक सख्त गर्मी रही लेकिन यहां पहुंचने पर बारिश होने लगी और हवा में खांसी ठंडक आ गई। बल्लारशाह से बेजवाड़ा तक आला हजरत निजाम हैदराबाद  का क्षेत्र है जगह-जगह तुर्की टोपिया प्रकट है। दो मुसाफिर हमारे कंपार्टमेंट में सवार हो गए। हैदराबाद के रहने वाले हैं। ऐसी मीठी उर्दू बोलते हैं कि जिस का बयान नहीं हो सकता । बात-बात पर लफ्ज़ शुक्रिया इस्तेमाल करते हैं । दरयाफ्त करने पर मालूम हुआ रियासत हैदराबाद में अधिक तादाद हिंदुओं की आबाद है । व्यापार व भूमि ज्यादातर हिंदुओं के हाथों में है लेकिन सरकारी मुलाजिमतों  पर अधिकतर मुसलमान तैनात है । मगर हिंदू मुसलमान अमन अमान से जिंदगी बसर करते हैं। 2 सितंबर के दोपहर को बेजवाड़ा स्टेशन आया। अब मद्रास सिर्फ 7 घंटे का सफर रह गया ।     मद्रास स्टेशन भी आ गया। प्रेमी भाई सत्यनारायण सेक्रेटरी मद्रास ब्रांच सत्संग मौजूद थे। डेढ़ घंटे बाद बंगलूरू के लिए गाड़ी जाती थी। उन्होंने उतरने के लिए जोडर दिया इसलिए उतर गए ।रास्ते की गर्मी से तबीयत ज्यादा थक गई थी। रात भर की यात्रा का और भी खराब असर पड़ता इसलिए चंद घंटों के लिए मद्रास में ठहराव करना मंजूर कर लिया।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सतसंग के उपदेश -भाग 2-( 41)【 बंधन व फर्ज में बड़ा फर्क है।】:- दुनिया का अजीब इंतजाम है।  इधर तो कुदरत ने मां बाप के दिल में औलाद की चाह धर दी है, उधर यह कायदा कर  रखा है कि बहुत से वाल्दैन के कतई औलाद नहीं होती और जिनके होती है तो अक्सर छोटी उम्र में या कुछ बड़ी होकर मर जाती है। जिन शख्सों के औलाद नहीं होती उसके लिए जहान भर की कोशिशें करते हैं । कोई दवा दारू ऐसी नहीं जिसे वे खाने के लिए तैयार न हो, कोई हकीम डॉक्टर ऐसा नहीं है। जिसके दरवाजे की हाजिरी से उन्हें इंकार हो और मालिक से लेकर भूत पलीत तक कोई ऐसे ग्रुप शक्ति नहीं जिसका दरवाजा खटखटाने में उन्हे शर्म हो। "बेचारे गरजबस बावले"  होकर तरह-तरह की मुसीबतें नुकसान उठाते हैं और जब तक मनोरथ पूरा नहीं हो जाता अपनेतई जीते जी मरा समझते हैं। दवा ईलाज या पूजा पाठ कराने पर जब किसी गरीब की आरजू पूरी हो जाती है तो बेहतर खुशियां मनाता है जिस देवता की पूजा करते करते औलाद हुई है उसी को सच्चा करतार और कुल मालिक समझने लगता है। अरसे तक उसके खानदान में बल्कि उसके जुमला संगी साथियों के घर में उसी देवता का सेवन रहता है और इस तरह समझ बूझ का कहना एक तरफ रख कर लोग किस्म किस्म के इष्ट धारण करते हैं और जब कुछ अर्से बाद उनकी औलाद मर जाती है तो वह कष्ट उनको होता है उसका अंदाजा लगाना हर इंसान के लिए कठिन है। ऐसे शख्सों के अलावा बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिनके औलाद मामलों तौर से हो जाती है और वे लड़का या लड़की के मर जाने पर सख्त दुख महसूस करते हैं। खासकर बुढ़ापे की उम्र में औलाद का सदभा सख्त रंज का वायस होता है।

 क्रमशः-🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1- कल का शेष:-( 11) यहां पर यह बात बयान करना जरूर है कि शिवाय संत मत के जितने मत की दुनिया में जारी है वह या तो ब्रह्मा और ईश्वर के( जिसको संत ब्रह्मांडी मन कहते हैं)  या पिंडी मन और बुद्धि के बनाए हुए हैं और इन दोनों का असली झुकाव बाहर और नीचे की तरफ है, यानी निज घर का भेद और पता इन मतों में बिल्कुल नहीं है और ना चलने की जुगत का जिक्र है।।          (12) और जो इनकी( यानी मन और माया की हद में किसी दर्जे के हासिल करने के लिए किसी मत में हिदायत भी है, तो उसके चलने की जुगत ऐसी मुश्किल राह से बताई गई है पुलिस की कार्रवाई आमतौर पर मुमकिन नहीं है, यानी पिंड और ब्रह्मांड में भी आला दर्जे किसी को हासिल नहीं हो सकता।  और इसी सबब से किसी का सच्चा उद्धार बिल्कुल नहीं हो सकता यानी जन्म मरण और देह के साथ बंधन नहीं छूट सकता।।                            (13) संत किसी पर जब्र और जबरदस्ती नहीं करते और ना किसी को लोभ और लालच दिखलाते हैं, सिर्फ बचन सुना कर निज घर का भेद और उसके पहुंचने की जुगत समझाते हैं। जो कोई माने तो उसको मदद देकर निज घर में पहुंचाने का अभ्यास कराते हैं और पहुंचाते हैं और जो ना माने तो उन पर उनके आइंदा की बेहतरी के वास्ते दया की नजर फरमाते हैं। पर उनकी मौजूदा हालत के बदलने के वास्ते किसी तरह का जोर या दबाव नहीं डालते।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



राधास्वामी
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घर किसे बैठना है मोदीजी / रवि अरोड़ा

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घर किसे बैठना है मोदी जी

रवि अरोड़ा


कल एक बेहद नज़दीकी मित्र की अचानक तबीयत बिगड़ गई । उन्हें तुरंत लेकर अस्पताल जाना पड़ा । दुर्भाग्य एसा रहा कि उन्हें बचाया भी नहीं जा सका । कल से लेकर आज दोपहर तक अस्पताल, मित्र के घर, बाज़ार और हिंडन स्थित श्मशान घाट तक कार से अनेक जगह जाना पड़ा । मित्र की हालत ख़राब होने की जब सूचना मिली तो मन में भय हुआ कि लॉकडाउन में घर से कैसे निकलूँगा । कोई कर्फ़्यू पास है नहीं और कार पर प्रेस का स्टीकर तक मैंने नहीं लगा रखा । आजकल स्थाई रूप से किसी अख़बार में नहीं हूँ अतः  प्रेस का आईडी कार्ड भी नहीं है । अब एसे में रास्ते में यदि कोई पुलिस वाला मिल गया तो क्या होगा ? यदि कोई पहचान का मिल गया तो ठीक वरना अपमानित भी होना पड़ सकता है । चूँकि मित्र दिल के बेहद क़रीब था अतः घर से निकलने का रिस्क लेना ही पड़ा । मगर यह क्या रास्ते में कहीं भी कोई पुलिस वाला दिखा ही नहीं । केवल यही नहीं कल से अब तक लगभग आधा शहर और प्रत्येक प्रमुख जगह से मैं गुज़रा , कहीं भी एक भी पुलिस कर्मी नहीं दिखा । सड़कों पर पचासों कारें और स्कूटर मोटर साइकिल दिखे मगर कहीं कोई पूछताछ होती नहीं मिली । अनेक जगह बेरिकेडिंग तो थे मगर उनके पास कोई पुलिस अथवा प्रशासनिक कर्मी नहीं था । सच कहूँ तो यह सब देख कर अपने शहर वालों पर ख़ूब लाढ़ आया कि देखो इसे कहते हैं सेल्फ डिसिप्लेन ।

सबको पहले से ही अनुमान था कि लॉकडाउन अभी और आगे बढ़ेगा । हालाँकि यह भी उम्मीद थी कि देश के नाम अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री जी लॉकडाउन में कुछ रियायतों की भी घोषणा आज करेंगे । बेशक अभी उन्होंने एसा नहीं किया मगर देश अनुशासित रहा तो बीस अप्रैल के बाद एसा कुछ होने की पूरी सम्भावना है । मोदी जी का यह वाक्य दिमाग़ में छप सा गया है कि हमें जान और जहान दोनो का ख़याल रखना पड़ेगा । अब जहान सम्भालना है तो खेती-किसानी, उद्योग और तमाम ज़रूरी कामों से जुड़े लोगों को कुछ रियायतें तो देनी ही पड़ेंगी । बहुत लम्बे समय तक इसी तरह लॉकडाउन चलाया भी तो नहीं जा सकता । प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि जहाँ कोरोना के मामले नहीं बढ़ेंगे , उन क्षेत्रों को ही रियायत मिलेगी मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि सारी ज़िम्मेदारी जनता-जनार्दन की होगी या पुलिस-प्रशासन की भी कुछ चूड़ियाँ टाइट की जाएँगी । माना शुरुआती दौर में अधिकारियों ने बहुत अच्छा काम किया । नतीजा पूरे देश ने इसके लिए उनका आभार भी व्यक्त किया । मोदी जी के कहने पर बालकनी में खड़े होकर ताली-थाली भी बजाई मगर इतनी जल्दी ही ये लोग थक गए , शिथिल हो गये ?

पता नहीं अफ़सर अब अपने घरों से निकल भी रहे हैं या अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर ही काग़ज़ी योजनाएँ बना रहे हैं ?  राशन, किराना और दवा की दुकानें पता नहीं किसके आदेश पर केवल तीन घंटे सुबह और तीन घंटे शाम को खुल रही हैं ? नतीजा इस दौरान दुकानों पर भीड़ लग रही है और सोशल डिसटेंसिंग का आदेश ही मटियामेट हो रहा है । डीएम और एसएसपी समेत तमाम बड़े अधिकारियों के आवास से तीन सौ मीटर दूर राजनगर के सेक्टर दस की मार्केट का यह हाल है तो दूर दराज़ के इलाक़ों की क्या हालत होगी ? कैला भट्टा निवासी एक मित्र ने आज बताया कि सघन आबादी वाले हमारे इलाक़े में तो शाम होते ही लोगबाग़ बाज़ार में टूट ही पड़ते हैं और लोगों को कंट्रोल करने के लिए व्यापक सुरक्षा बल तो दूर एक सिपाही तक नज़र नहीं आता । अब आप ही हिसाब लगायें कि एसे थामेंगे हम कोरोना को ? प्रधानमंत्री जी बताइए तो सही कि आपने हमें घर बैठने के लिए कहा था या इन अफ़सरों को ?

राधास्वामी संत मत दयालबाग के गुरु सत्संगी साहब का संदेश

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डॉ0 स्पेन्टा रूस्तम वाडिया के डायमंड जुबली मेमोरियल सेमिनार के अवसर पर
परम पूज्य हुज़ूर प्रो0 प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा फ़रमाया गया अमृत बचन संदेश

(29 फ़रवरी, 2020)
     
 यह वास्तव में अत्यन्त चित्ताकर्षक है तथापि Max Planck के अंक तथा अन्य विचार जो 10-35m से प्रारम्भ होकर उसे सूक्ष्म और सूक्ष्मतर बनाते हैं, को 10-¥ से अनन्त कोटि और अनन्त से अनन्त तक होना
चाहिए।

macrocosmically (स्थूल जगत में) यह सत्यापित किया जा सकता है किन्तु इसे करने में विज्ञान को एक लम्बा समय लगेगा। प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर एक microcosm (सूक्ष्म जगत) भी है इसके बल पर मैं यह कह सकता हूँ कि हालाँकि string theory (स्ट्रिंग सिद्धान्त) प्रमुखतः पदार्थ व मन के 10 आयामों की चर्चा करती है वे microcosmically (सूक्ष्म जगत में) 14 हैं और उनको हम पूरब के संतों के ग्रन्थों में वर्णित वेद, उपनिषद, भगवदगीता आदि के माध्यम से भलीभाँति समझते हैं।

तो इस प्रकार 14 कोटि स्वतंत्रता या स्वच्छन्दता है जिसे स्थूल जगत में (macrocosmically) आप पदार्थ व मन के वृहद् भागों (Grand Divisions of matter and mind) में अंत में जाकर खोज पाएंगे। किन्तु इसके अतिरिक्त निर्मल चेतनता का एक और वृहद् भाग है जो पूरी तरह छूटा हुआ है।

वह भी hierarchical (श्रेणीबद्ध) प्रकृति या स्वभाव का है और यह अन्य 7 कोटि या स्वतन्त्रता के सूचक हैं। तो इस प्रकार कुल मिलाकर सृष्टि जगत के वृहद् तीन विभागों-पदार्थ, मन व निर्मल-चेतनता, प्रत्येक में 7 स्तर या श्रेणी हैं।

और यह ही इसका सार है। हम, प्रो. प्रेम सरन सतसंगी तत्कालीन Director DEI और श्री प्रेम कुमार, तत्कालीन President of General Body, DEI (Deemed to be University) की भूमिका में Discourses on Radhasoami Faith, 2004 के संस्करण में जिसमें अनुपूरक संलग्न है और जो आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कर्म के निष्ठुर नियमों व अन्य सम्बन्धित विषयों की व्याख्या करता है


International Journal of General Systems (Published by Taylor & Francis) के System movement; Autobiographical Retrospectives में Editor-in-chief Prof. George Klir के विशिष्ट आमंत्रण पर प्रकाशित है,  Ashby’s Law of Requisite Variety  के सिद्धान्त को प्रतिपादित करता है और उसके आधार पर पदार्थ मन व निर्मल चेतनता, प्रत्येक तीन विभागों में जो अपेक्षित विविधता है वह 7 है और इस प्रकार कुल 21 हैं। अतएव String Theoryद्वारा पदार्थ  व  मन  के  वृहद  विभागों  को  समझने  के  लिए  10  आयाम से बढ़कर 14 में विकसित होना अपेक्षित है।

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
।।।।।।




महाबली का डर / संजय कुंदन

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*महाबली का डर*

वह नींद में कोड़े फटकारता है
और चिल्लाता है वैज्ञानिकों, डॉक्टरों पर
-जल्दी शोध पूरा करो, हमें दवा चाहिए
टीका चाहिए इस बीमारी का

वह परेशान है
अपने देश में लाशों के लगते ढेर से नहीं
आकाश की बढ़ती नीलिमा से
नदियों के पारदर्शी होते पानी से
साफ और भारमुक्त होती हवा से

वह घबराया हुआ है कि
सड़कों पर बेफिक्र दौड़ रहे हैं हिरण
फुटपाथों पर धमाचौकड़ी मचा रहे ऊदबिलाव
संग्रहालय का निरीक्षण कर रही पेंग्विनें

समुद्र तट पर लौट आई हैं डॉल्फिनें
लौट आए हैं लहरों के राजहंस
एक शहर की जिंदगी में फिर से दाखिल हुआ एक पहाड़
जैसे तीरथ करके वापस आए हों कोई बुजर्गवार

एक गोरा आदमी बीमार काले आदमी के
आंसू पोंछ रहा है
एक मुसलमान हिंदू की अर्थी उठा रहा है

यह कौन सी दुनिया है
कहीं इसी में रम न जाए संसार
महाबली सोचता है
कहीं नीले आकाश के पक्ष में लोग
कल घर से निकलने से ही इनकार न कर दें
वे जुगनुओं के लिए रोज थोड़ी देर बत्तियां न गुल करने लगें
वे पेड़ों की जगह अपनी इच्छाओं पर कुल्हाड़ियां न चलाने लग जाएं
वे एक ही कमीज और पैंट में महीना न काटने लग जाएं

चिंतित है महाबली
कि कहीं विकास का पहिया थम न जाए
कहीं युद्ध बंद न हो जाएं
अलकायदा के लड़ाके हथियार छोड़कर
कहीं अफगानी क्रिकेटरों से क्रिकेट न सीखने लग जाएं
किम जोंग उन बाल मुंडवाकर किसी बौद्ध विहार में
ओम मणि पद्मे हुम के जाप में न लग जाएं

वह डरा हुआ है
कि लोग कहीं उससे डरना बंद न कर दें
कहीं उसका नीला रक्त लाल न हो जाए!
.......
संजय कुंदन
13.4.20


  • (कुंदन नवभारत टाइम्स में वरिष्ठ पत्रकार हैं)


दौलत / कवि - अनाम गुमनाम

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अख़बार बेचने वाला 10 वर्षीय बालक एक मकान का गेट बजा रहा है।
मालकिन - बाहर आकर पूछी क्या है ?
बालक - आंटी जी क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं ?
मालकिन - नहीं, हमें नहीं करवाना है, और आज अखबार नही लाया ।
बालक - हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में.. "प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा,आज अखबार नही छपा,कल छुट्टी थी दशहरे की ।"


मालकिन - द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा ?"
बालक - पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना।"
मालकिन- ओह !! आ जाओ अच्छे से काम करना ।
(लगता है बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ..मालकिन बुदबुदायी।)

मालकिन- ऐ लड़के..पहले खाना खा ले, फिर काम करना ।
बालक -नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना।
मालकिन - ठीक है, कहकर अपने काम में लग गयी।
बालक - एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं।
मालकिन -अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए। यहां बैठ, मैं खाना लाती हूँ।
जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया, बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा।
मालकिन - भूखे काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले। जरूरत होगी तो और दे दूंगी।

बालक - नहीं आंटी, मेरी बीमार माँ घर पर है,सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है,पर डाॅ साहब ने कहा है दवा खाली पेट नहीं खाना है।


मालकिन की पलके गीली हो गई..और अपने हाथों से मासूम को उसकी दूसरी माँ बनकर खाना खिलाया फिर उसकी माँ के लिए रोटियां बनाई और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आयी ।

और आते आते कह कर आयी "बहन आप बहुत अमीर हो जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है वो हम अपने बच्चों को नहीं दे पाते हैं"।
माँ बेटे की तरफ डबडबाई आंखों से देखे जा रही थी...बेटा बीमार मां से लिपट गया...।

कवि-अनाम-गुमनाम

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अजी विचार तो करने दीजिए /रवि अरोड़ा

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अजी विचार तो करने दीजिये

बच्चों की शादी में कितने लोगों को बुलाना है , अक्सर यह हिसाब लगाता हूँ । खुले दिल से भी सूचि बनाऊँ तो दो तीन हज़ार लोगों से ऊपर नाम नहीं जा पाते । वैसे तो लगभग इतने लोग और भी होंगे जिनसे कभी वास्ता नहीं रहा मगर मैं उन्हें भलीभाँति जानता हूँ । जो मुझे नहीं जानते मगर मैंने उन्हें कभी न कभी कभी-कहीं न कहीं देखा है, एसे लोगों की संख्या भी चार पाँच हज़ार तो अवश्य होगी । स्कूल कालेज के अनजान चेहरे , तमाम शिक्षक , रिक्शा वाले, दिहाड़ी मज़दूर और जीवन में कभी जिनसे वास्ता पड़ा, पाँच छः हज़ार तो वे भी ज़रूर होंगे । राजनीति, फ़िल्मे और तमाम सामाजिक लोग जो मुझे नहीं जानते मगर मुझे उनके बारे में मालूम है , एसे लोगों को भी चार पाँच हजार तो मान ही लो । जीवन में कभी सुने हुए नामों को भी जोड़ लूँ तब भी पूरी फ़ेहरिस्त पच्चीस हज़ार को पार नहीं कर पाएगी । यानि यही है मेरी दुनिया । यही है मेरा संसार । तो क्या इतनी सी संख्या के बल पर मैं कह सकता हूँ कि मुल्क के एक सौ तीस करोड़ लोगों को मैं जानता हूँ  , उनके दुःख-सुख समझता हूँ , उनकी तकलीफ़ महसूस कर सकता हूँ ? अब यदि फिर भी मैं कहूँ कि मैं कर सकता हूँ तो यक़ीनन मैं साथ उठाने-बैठाने लायक़ आदमी नहीं हूँ । जिसे अपने रहनुमाओं पर यक़ीन ही नहीं उससे कोई वास्ता ही क्यों रखा जाये ?

मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर कल जो हज़ारों प्रवासी मज़दूर पहुँचे , उनमें से किसी को मैं नहीं जानता । जिन्होंने कल पुलिस की लाठियाँ खाईं , उनमे से कोई भी मेरा अपना नहीं था । दो दिन पहले गुजरात के सूरत शहर में रोटी के लिए हंगामा करने वालों से भी कभी वास्ता नहीं पड़ा । दिल्ली अथवा आसपास के इलाक़े से पैदल ही अपने गाँव और क़स्बों के लिए सैंकड़ों किलोमीटर के सफ़र पर चल पड़े लोगों को मैंने देखा अवश्य मगर उनमे से एक का नाम भी मुझे नहीं पता । आनंद विहार बस अड्डे पर दुत्कारे गये हज़ारों लोगों की तो मैंने शक्ल भी नहीं देखी । पाँच रूपल्ली की पूड़ी सब्ज़ी के लिए आजकल एक के ऊपर चढ़ने वाले कौन हैं इसका तो मुझे अंदाज़ा तक नहीं है । पता नहीं कहाँ तक सत्य है मगर अख़बार में पढ़ा कि ये तमाम लोग जो इन दिनो ठोकरें खा रहे हैं , इनकी संख्या कम से कम चालीस करोड़ है । यानि एक तिहाई हिंदुस्तान । इनसे दो गुने तो इनके परिवार वाले भी ज़रूर होंगे । कोई बड़ा आदमी तो यह भी बता था कि इन चालीस करोड़ लोगों में से बारह करोड़ का काम धंधा अब छिन सा गया है। आख़िर कौन हैं ये लोग ? हमारे क्या लगते हैं ? क्यों हम इनकी चिंता करें ? कम से कम मैं क्यों करूँ ?

वैसे मेरा ख़याल है कि देश को चलाने वाले तो ज़रूर इन लोगों को जानते होंगे । सुबह शाम वे इन लोगों की ही तो बातें करते हैं । सारी योजनाएँ इन्हीं के लिए ही तो बनाते हैं । उनकी चिंता में ही तो घुले जाते हैं । मैंने कई बार उन्हें कहते सुना है कि यही लोग असली हिंदुस्तान हैं । बड़े साहब को मैंने कई बार टीवी पर ‘एक सौ तीस करोड़-एक सौ तीस करोड़’ कहते भी सुना हैं । इसका मतलब वे इन्हें अपनो में गिनते भी होंगे । उनके सम्बोधन में बार बार ‘मेरे प्यारे देशवासियों’ शब्द मैंने अपने कानों से सुना है । मुझे पक्का यक़ीन है कि उन्होंने जिन्हें ‘प्यारे’ कहा उनमे ये लोग भी होंगे । मुझे मालूम है कि हमारा देश चलाने वाले बहुत क़ाबिल हैं । सब कुछ पहले से ही जान जाते हैं । पहचान जाते हैं कि भीड़ लगाने वालों में से कौन किस धर्म का है ? उनके किस विरोधी ने साज़िशन यहाँ भीड़ जमा कराई है ? हुनरमंद भी ख़ूब हैं , हज़ारों की भीड़ को टीवी पर देख कर ही पता लगा लेते हैं कि किसके हाथ में थैला है और किसके हाथ में नहीं है ? भला इनकी नज़र से ये दो तिहाई आबादी कैसे बचेगी ? अब आप उतावले मत होईए , थोड़ा धीरज रखिये । जब मेरी तरह इन लोगों को जानते ही नहीं तो क्यों इनका ज़िक्र आते ही चिल्लाने लगते हैं ? उन्हें थोड़ा विचार तो करने दीजिये । कभी सुना नहीं कि सब्र का फल मीठा होता है ?

गुलजारी लाल नंदा के साथ पल दो पल / अनामी शरण बबल

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गुलजारी लाल नंदा के साथ कुछ यादें /अनामी शरण बबल
13082018

 नंदा जी को अब याद करने का मतलब


जाद भारत के दूसरे गृहमंत्री और दो दो बार  कार्यवाहक प्रधानमंत्री रह चुके गांधीवादी नेता गुलजारी लाल नंदा को याद करने का आज क्या मतलब है? सजग हमेशा सक्रिय ईमानदार कई  संगठनों के जन्मदाता, दर्जनों किताबों के लेखक भारत रत्न से नवाजे गये कालजयी नेता  गुलजारी लाल नंदा को आज याद करने का कोई मतलब नहीं होने के बाद भी  नंदा के होने के कई मतलब होते हैं।

आज से 22 साल पहले भारत रत्न से सुशोभित होने वाले श्री नंदा नै जीवन का शतक पूरा करके अंतिम सांस ली थी। यानी वे आज 120 साल के होते। तो आज जब ज्यादातर लोग अपने जीते हुए ही अपनी पहचान खो देते हैं। उसी आधुनिक समाज में 121 साल के किसी रंगहीन गंधहीन सीधे साधे सरल सहज सबों के लिए सुलभ ईमानदार नेता मंत्री को अब क्यों याद किया जाए? मगर जमाना कितना भी बन जाए, मगर नंदा जैसे नेता न कभी अप्रासंगिक होते हैं और ना ही अपना महत्व खोते हैं। यही उनकी सादगी सज्जनता सरलता की ताकत  है कि उनकी यादें मंद हो जाने के बाद भी नंदा सरीखे महामानव के उपर कुछ लिखने के लालच से  आज बीस साल के बाद भी अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूं।



मुमकिन है कि आज के ज्यादातर लोग शायद नंदा जी के बारे मे अपनी अनभिज्ञता ही प्रकट करे। तो मै भी यह साफ कर दूं कि नंदा जी को लेकर मेरे मन में भी कोई बडा आदर भाव या जानकारियां का भंडार नहीं था। मगर जब कभी भी भारत के प्रधानमंत्रियों की सूचना पर नजर जाती एक पल के लिए मेरा मन ठहर जाता। मैं इनके बारे में जानने को उत्कंठित हो जाता कि इतना वरिष्ठ और काबिल होने के बाद भी नंदा पीएम क्यों नहीं सन सके?। यही उत्कंठा मुझे नंदा जी के साथ बांध रखा था। जब अगस्त 1996 में मुझे सपरिवार अपने छोटे भाई आत्म स्वरुप के पास अहमदाबाद जाने का मौका मिला। अहमदाबाद की यह मेरी पहली यात्रा थी। मैं काफी उत्साहित भी था। नंदा जी का पता तो नहीं मिला, मगर आवश्यक जानकारियों का पुलिंदा मेरे पास था। अहमदाबाद में उस समय मेरा छोटा भाई स्वामी शरण गुजरात के उस समय इकलौते हिंदी अखबार विराट वैभव में बतौर उपसंपादक काम करता था। पटना के मेरे सबसे घनिष्ठ पत्रकार संपादक रहे शर्मान्जु किशोर उस समय विराट वैभव के संपादक थे।

 अहमदाबाद में पहुंचते ही मैं अगले दिन विराट वैभव में जाकर उनसे मिला। पटना में करीब चार साल 1983-87 जून तक। जीवंत संपर्क में रहने के बाद भी कभी मुलाकात नहीं हुई थी। मेरी पत्रकारिता के विकास और उत्थान में इनकी कितनी बडी और निस्वार्थ भूमिका रही है इस  संदर्भ को विश्लेषित करने के लिए एक लेख लिखना मेरे लिए अनिवार्य है। हालांकि लेख पढकर बहुतों की भुकृटियां तन जाएगी। लोग नापसंद भी करेंगे, मगर हर आदमी हर किसी के लिए एकसमान सरल सरस सहज और अच्छा नहीं हो सकता और खासकर जब  इनके निधन के लगभग डेढ़ दशक बीत जाने पर तो उनपर लिखना और जरूरी भी हो जाता है कि कैसे और किस तरह उन्होंने मुझे पत्रकारिता का ककहरा बताया और सीखाया था।

हां तो विराट वैभव के दफ्तर से नंदा जी की बेटी डॉ. प्रतिभा पाटिल के घर यानी नौरंगपुरा के हिंदू कालोनी का पता मिल गया। जब मैं शर्मान्जु किशोर से विदा होने लगा तब उन्होंने बताया कि गुजरात भाजपा में भयानक भीतरघात उफान पर है। तुम गांधीनगर आने का पक्का कार्यक्रम और डेट बताओगे तो मैं पायनियर के ब्यूरो चीफ आर के मिश्र से टाईम तय कराके सीएम सुरेश मेहता और भाजपा के खंभा उखाड़ पोलिटिक्स कर रहे शंकर सिंह वाघेला से तेरी बातचीत  पक्कर करवाता हूं।  शर्मान्जु जी के इतने ग्लैमरस आफर पर मेरा मन खिल उठा। पर फिलहाल कल नंदा जी से श्री गणेश कर आगे की योजना तय करने का मन बनाया।



अगले दिन सुबह सुबह बिना फोन फान किए ही मैं अपने भाई के साथ नौरंगपुरा के हिंदू कालोनी में था। उस समय सुबह के लगभग नौ बज रहे थे तो मुझे लगा कि मैं कुछ पहले ही आ गया हूं। आटो से उतरकर डॉ. प्रतिभा पाटिल के घर की खोज करना उचित प्रतीत हुआ। और विभिन्न सडकों गलियों में भटकते हुए नंदा जी और डॉ. पाटिल की टोह ली। मुझे यह जानकर विस्मय हुआ कि ज्यादातर लोगों ने दोनों के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की। अलबत्ता कुछेक ने बताया कि अगली सडक पर कोई वीआईपी फेमिली है जहां पर अक्सर गवर्नर सीएम या दिल्ली से आने वाले मिनिस्टर आते-जाते रहते हैं। मैं अपनी मंजिल के काफी करीब था। करीब दस बज चुके थे, लिहाजा मिडल क्लास संभ्रांत कॉलोनी में खोजबीन बंद कर एक चाय की दुकान से सही-सही पता लेकर मैं आजाद भारत के दूसरे गृहमंत्री और दो दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे गुलजारी लाल नंदा के निवास के बाहर कॉलबेल बजा रहा था। अपने साधारण से घर के बरामदे में बैठीं कोई 74-75 साल की एक महिला दरवाजे के करीब आयी। नमस्कार करके मैंने बंद दरवाजे के बाहर से ही अपना विजिटिंग कार्ड आगे करते-करते हुए कहा कि मैं अनामी शरण बबल पत्रकार दिल्ली से आया हूँ। आपके  घर का फोन नंबर मेरे पास नहीं था इस कारण बिना बताए समय लिए ही आ गया कि जब अहमदाबाद में हूँ तो नंदा जी के दर्शन के बगैर लौटने का मन नहीं किया मेरे परिचय प्रवचन का महिला पर अच्छा प्रभाव पड़ा। मेरे कार्ड को लेकर सीधे गेट खोलती हुई पूछी आपको यहां तक आने में तो कोई दिक्कत नहीं हुई अनामी। उनके मुंह से अपना नाम सुनकर बहुत भला लगा। अपना परिचय देती हुई वे बोली  मैं नंदा जी की बेटी डॉ. प्रतिभा पाटिल हूं। उनकी सहजता सरलता सरसता और आत्मीय माधुर्य को देखते हुए हम दोनों भाईयों ने बारी बारी से पैर छूकर प्रणाम किया। वे लगभग भाव विभोर सी हो उठी। मेरे हाथों को पकड़ कर वे बोली चरण स्पर्श करनेवाले किसी पत्रकार को मैं पहली बार देख रही हूं। फौरन पलटते ही मैंने कहा कि मैं भी सबका पैर नहीं छूता दीदी मगर कहां पर खड़ा हूं काल पात्र पद गरिमा और छवि को तो देखना पड़ता है। मैं देश के एक अनमोल रत्न को देखने-सुनने आ रहा हूं जहां पर पत्रकार का अभिमान करना बेमानी होगा। मेरी बातें सुनकर वे खिलखिला उठी और उनकी नजर मेरे भाई की तरफ गयी। मैंने तुरंत उसका परिचय देते हुए कहा कि यह मेरा अपना सगा छोटा भाई स्वामी शरण है और अहमदाबाद से हिंदी के इकलौते अखबार विराट वैभव  में उपसंपादक है। मैनें अपनी जेब से उसके कार्ड को निकाल कर आगे कर दिया। उसके कार्ड को लेकर देखा। उन्होंने जिज्ञासा प्रकट की कि स्वामी जी एकदम खामोश हैं इस पर मैं खिलखिला पडा़। अरे दीदी बस मेरे सम्मान में यह खामोश है अन्यथा बातचीत में वो मुझसे भी स्मार्ट है। तो इस तरह पांच मिनट के भीतर ही हमलोग पूरी तरह स्नेहिल माहौल में बातचीत करने लगे। मैने अब नंदा जी से मिलने का आग्रह किया तो वे फौरन हमलोग को लेकर अंदर चलने को तत्पर हो गयी।



और इस तरह जब मैं कमरे में दाखिल हुआ तो एकदम कमजोर काया के अत्यंत दुर्बल नंदा जी अचेतावस्था में बिस्तर पर सो रहे थे। डॉ. प्रतिभा ने बताया कि बाबूजी अमूमन सोए ही रहते हैं। इनकी देखभाल और देखरेख के लिए चार सहायक हैं। दो सहायता तो दिनरात यहीं पर रहते हैं, जबकि दो सहायक चार पांच  घंटे के लिए सुबह शाम आते हैं। पंडित हजारीलाल शर्मा सुबह शाम आकर भजन कीर्तन सुनाते हैं। जबकि देखभाल आदि के लिए हजारी चंद ठाकुर भंवरलाल नायक चिमन भाई चावला और कनुभाई के सहारे ही नंदा जी का सारा नित्य कर्म जीवन संपादित होता था। नंदा जी कितना समझ बूझ पाते थे यह तो नहीं कहा जा सकता था मगर सुबह-सुबह अखबारों की हेडिंग सुनते जबकि शाम को दूरदर्शन पर समाचार देखकर बताया जाता था। डा. प्रतिभा को सरकार द्वारा इनकी उपेक्षा का मलाल के साथ क्षोभ  भी था। 1980 तक नंदा जी दिल्ली के हरियाणा भवन में रहते थे। मगर गिरने से पैरों की हड्डी टूट गई। कोई सरकारी आवास नहीं होने के कारण लाचारगी में नंदा जी को  अपनी बेटी प्रतिभा पाटिल के साथ साथ रहने के लिए  अहमदाबाद लौटने पर विवश होना पड़ा। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री पीवी  नरसिम्हा राव को पत्र लिखकर अपना इलाज कराने की गुहार की. मगर प्रधानमंत्री राव की तरफ से कोई जवाब तक नहीं आया। अलबत्ता प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा द्वारा इलाज पेंशन सहायकों की सरकारी खर्चे पर व्यवस्था करा दी गयी। निरंतर जांच की व्यवस्था भी हुई। सरकार विदेश में भी इलाज के लिए सहमत थी मगर दुर्बलता के कारण डॉ. "बेटी ने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दी।



करीब एक दर्जन किताबों के लेखक नंदा जी ने ही मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए इंटक का गठन कराया। भारत साधू समाज संगठन समाज हितकारी संगठनों की नींद रखी। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद कार्य वाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किए गये। इसके बावजूद कभी पीएम बनने की लालसा मन में नहीं जागी। जीवनभर सादगी और ईमानदारी के लिए विख्यात नंदा जी को भारत रत्न नहीं दिए जाने का मलाल पूरे परिवार को है।

करीब दो घंटे तक की गयी ढेरों यादों और दो दो बार चाय बिस्कुट के स्वागत परांत मै अपने बैग को संभालने लगा। दरवाजे तक आयी डॉ प्रतिभा का मन रखने के लिए मैनें कहा कि देखिएगा दीदी जिस दिन नंदा जी को भारत रत्न मिलेगा तो उस दिन मैं स्पेशली आपसे मिलकर खुशियों बांटने अहमदाबाद में  साथ-साथ रहूंगा। मेरी बात सुनकर वे खिलखिला पड़ी। क्या तुमको विश्वास है? मैनें तुरंत कहा कि यदि शंकर दयाल शर्मा जैसे समकालीन और नंदा जी को बहुत करीब से देखने और जानने वाला आदमी यदि राष्ट्रपति होकर भी भारत रत्न का सम्मान नहीं देंगे तो फिर भविष्य में भारत रत्न की उम्मीद बेमानी है। मेरी बातें सुनकर उनकी आंखे सजल हो गयी। इस तरह हास्य परिहास के बीच नंदा जी के सहायकों से भी हाथ मिलाकर मैं वहां से विदा हो गया।




 दिल्ली आकर नंदा जी की खबर सहित अहमदाबाद से लौटकर मेरी कोई चार पांच खबरें प्रकाशित हुई। फोन करके डॉ. प्रतिभा पाटिल को बताया और उनके आग्रह पर सहारा की कुछ प्रतियां भिजवा दी गयी। दिल्ली आकर भी मैं कुछेक दिनों में नंदा जी के हालचाल के साथ साथ अपनी मां की उम्र से भी बडी़ उम्र की प्रतिभा बहिन का भी हाल चाल खबर ले लेता था। मैनें भले ही उनका मन रखने के लिए भारत रत्न मिलने की भविष्यवाणी कर दी हो पर हम सबके मन में एक अविश्वास (भी) ही था।

तभी मुझे कुछ बहुत जरूरी काम से अगले साल यानी 1997 के जुलाई माह के आखिरी सप्ताह में अचानक अहमदाबाद जाना पडा। गांधीनगर में फंसे रहने के चलते किसी से भी मिलने का समय नहीं निकाल सका। 25 जुलाई को शाम मे ट्रेन थी। 24 जुलाई को देर  रात तक सारा काम निपटाने के बाद मैं अपने भाई के साथ घर लौटा। अगले दिन यानी 25 जुलाई के पेपर में सुबह सुबह देखा कि नंदा को भारत रत्न मिल गया है राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने अपने पंचवर्षीय कार्यकाल के आखिरी दिन 24जुलाई 1997 को अरुणा आसफ अली और गुलजारी लाल नंदा को भारत रत्न प्रदान करने के आदेश पर हस्ताक्षर करके इस सर्वोच्च सम्मान की घोषणा को सार्वजनिक कर दी। पेपर देखते ही मैं उछल पडा और डॉ. पाटिल की खुशी में शामिल होने के लिए निकल गया।

 अपने घर के बाहर मुझे खड़ा देखकर डॉ. पाटिल अचंभित  सी हो गयी। भावविभोर होकर मेरा सत्कार की।  सजल नेत्रों से मुझे लेकर अंदर गमी और सबसे मेरा बतौर पत्रकार परिचय कराया
अमरीका में रह रही बेटी अभिलाषा और दामाद रश्मि भी मारे खुशी के फोन से पूरा-पूरा हाल लेने में तल्लीन थे। डा. पाटिल के पुत्र अलंकार नायक और बहू गीता नायक के चेहरे दमक रहे थे। बहू गीता अपने इस सौभाग्य पर नाज कर रही थी कि वे इस परिवार की बहू हैं। डा. पाटिल ने बताया कि कल से  सैकड़ों लोग आ चुके हैं और आज शाम तक कोई मुंबई से कोई चेन्नई कोलकाता दिल्ली या पटना लखनऊ से केवल शुभकामनाएं और मंगलमय बधाइयां देने के लिए आ रहे हैं। घर के चारो तरफ गुलदस्ते ही गुलदस्ते पडे थे। ओर इन्हीं फूलों के बीच 99 साल के नंदा जी के सहायक किसी तरह आरामकुर्सी पर सचेत सचेतन सचेतावस्था मे बैठा रखा था। इस भीड़ से अचंभित नंदा जी का चेहरा भी प्रफुल्लित था। नंदा जी के दोनों बेटे भी अपनी खुशी संभाल नहीं पा रहे थे। वही गेट के बाहर बैठे खुफिया अधिकारी भवानी गौड़ भी कल से इस घर के बाहर भीतर की हलचल में व्यस्त थे। बकौल भवानी
अमूमन यह घर शांत ही रहता था मगर कल से वीआईपी के आने-जाने का तांता लगा हुआ है।

आसपास के लोगों को भी काफी खुशी है। बहुतों को तो यह विस्मय हो रहा है कि उनके घर के बगल में इतनी बड़ी हस्ती सालों-साल से रह रहा है और इसकी भनक तक नहीं थी। घर के इर्द-गिर्द घूमती घाम और हाल का जायजा लेने के बाद मैंने रूखस्त होना ही बेहतर माना डा. प्रतिभा से मिला तो वे इन व्यस्तताओं के बाद भी मुझे मिठाई दी और मिठाई का एक डिब्बा देने लगी। मेरे तमाम विरोध के बाद भी वे बार बार बोलती रही कि इस मिठाई और सम्मान पर तुम्हारा भी अधिकार है। तुमने न केवल इस सम्मान की घोषणा की बल्कि इस अवसर पर यहां आकर  तुमने मेरी खुशी को बढा दिए। बकौल डा. प्रतिभा कल जब बाबूजी को इस सम्मान की घोषणा हुई तो मुझे तुम याद आए, मगर तुम इतनी जल्दी मेरे सामने खड़े रहोगे यह तो अकल्पनीय है। मेरे सिर पर हाथ फेरती वै गदगद हो उठी और मैं  भावुक।

अलबत्ता एचडी देवेगौड़ा को पूरा देश भले ही एक एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री मानता रहा हो मगर डा. प्रतिभा देवेगौड़ा को सबसे संवेदनशील और अपने देश के बुजुर्ग नेताओं के सच्चे हितैषी और अपना परिजन मानने वाला नेता की तरह देखती हैं। इस भावविभोर माहौल में सबों को नमस्कार करते हुए बाहर निकला। उनके बेटे ने अपनी कार से कॉलोनी के बाहर आटो स्टैंड तक छोड़ दिया। जहां से मैं अपने भाई के घर पहुंचा। शाम की ट्रेन से वापस दिल्ली आया। और दफ्तर में जाकर रिपोर्ट लिखी। जिसकी धूम रही। और इस तरह देश के एक महान स्वतंत्रता सेनानी और नेता से दो दो बार मिलने का मौका मिला या केवल देखने- का यह अहसास आज भी रोमांचित करता है। अलबत्ता 1998 मे नंदा जी के देहावसान के बाद तक तो मैं प्रतिभा नायक के संपर्क में रहा, मगर आज बीस साल के बाद वे या उनके परिवार में कौन है कहां है? इसकी जानकारी नहीं। इस बीच पिछले ही साल अहमदाबाद तीन बार गया मगर नंदा या नायक परिवार की न कोई खबर ले पाया न मिलकर हालचाल ही लिया। डा. प्रतिभा नायक दीदी अगर जीवित होंगी तो उनकी आयु भी कोई 93-94 साल की होगी। इस उम्र में उनको बेहतर सेहत की शुभकामनाएं दूं या.... दिवंगत दीदी के प्रति श्रध्दांजलि अर्पित करें। यह एक जटिल सवाल है। सबसे बेहतर है सबको सलाम नमस्कार के साथ अब भावनाओं की रेल को रोककर बस किया जाए। नंदा जी को विनम्र श्रद्धांजलि और नमन प्रणाम श्रद्धा सुमन अर्पित है।     -_

--   /    अनामी शरण बबल /13082018
8076124377
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