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न्यू मीडिया” / मीडिया का आत्मावलोकन…




प्रस्तुति- अनिल कुमार सिंह

फेसबुक क्रांति के नौ वर्ष

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4 फरवरी को दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने अपने जीवन का नौवां वसंत देखा। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्र मार्क जुकरबर्ग ने 4 फरवरी, 2004 को फेसबुक की शुरूआत फेसमैश के नाम से   की थी। शुरू में यह हार्वर्ड के छात्रों के लिए ही अंतरजाल का काम कर रही थी, लेकिन शीघ्र ही लोकप्रियता मिलने के साथ इसका विस्तार पूरे यूरोप में हो गया। सन 2005 में इसका नाम परिवर्तित कर फेसबुक कर दिया गया। दुनिया भर में 2.5 अरब उपयोगकर्ताओं वाली फेसबुक में भी वक्त के साथ कई आयाम जुड़ते चले गए। सन 2005 में फेसबुक ने अपने उपयोगकर्ताओं को नई सौगात दी, जब उसने उन्हें फोटो अपलोड करने की भी सुविधा प्रदान की।
          फेसबुक के सफर का यह सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी कदम था, जिसने वर्चुअल दुनिया को नए आयाम देने का काम किया। फोटो अपलोड करने की सुविधा इस लिए क्रांतिकारी कदम थी, क्योंकि फोटो के माध्यम से विचारों की अभिव्यक्ति को जीवंतता मिली। बदलते वक्त और बदलते समाज का आईना बनी फेसबुक से देखते ही देखते नौ वर्षों में अरबों लोग जुड़े। सन 2006 के सितंबर माह में फेसबुक ने 13 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को फेसबुक से जुड़ने की स्वतंत्रता प्रदान की। इससे इसका दायरा और भी व्यापक हुआ। प्रारंभ में फेसबुक का उपयोग सोशल नेटवर्क स्थापित करने और नए लोगों से जुड़ने के लिए ही होता रहा। लेकिन वक्त की तेजी के साथ ही फेसबुक को भी नए आयाम मिले। संगठित मीडिया की चुनी हुई और प्रायोजित खबरों की घुटन से निकलने के लिए भी सामाजिक तौर पर सक्रिय लोगों ने फेसबुक का प्रयोग किया। दिसंबर 2010 में विश्व ने अरब में क्रांति का अदभुत दौर देखा, अद्भुत इसलिए कि अरब के जिन देशों में कई दशकों से तानाशाही शासन चल रहा था, वहां लोगों ने सड़कों पर उतरकर मुखर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन ही नहीं तानाशाहियों को सत्ता से खदेड़ने का काम किया। समस्त विश्व उस समय हतप्रभ रह गया कि यह कैसे हुआ ?
       जिस अरब में आम लोग सरकार की नीतियों की आलोचना करने से भी डरते थे, वहां सत्ता विरोधी ज्वार अचानक कैसे आया। इसका उत्तर केवल यही था, सोशल मीडिया के कारण। ट्यूनीसिया, मिस्र, यमन, लीबिया, सीरिया, बहरीन, सउदी अरब, कुवैत, जार्डन, सूडान जैसे पूर्व मध्य एशिया और अरब के देशों ने क्रांति की नई सुबह को देखा। इसका कारण यही था कि वहां के सत्ता प्रतिष्ठानों द्वारा संचार माध्यमों पर लागू लौह परदा के सिद्धांत का विकल्प लोगों को सोशल मीडिया के रूप में मिल गया। सरकारी मीडिया आमजन की जिस आवाज और गुस्से को मुखरित होने से रोक देता था, सोशल मीडिया ने उसका विकल्प और जवाब आम जन के सामने रखा।
               सरकारी बंदिशों, संपादकीय नीति और समाचार माध्यमों पर बने बाजारू दबावों से मुक्त सोशल मीडिया ने आमजन की आवाज को मंच प्रदान कर मुखरित करने का कार्य किया। सोशल मीडिया द्वारा उभरी इस क्रांति का सबसे लोकप्रिय वाहक बना फेसबुक। एक समय पर अनेकों लोगों के संवाद करने की सुविधा, विचारों को आदान-प्रदान करने का मंच, जिसमें शब्दों की सीमा में बंधे बिना अपने विचारों को अभिव्यक्त किया जा सकता है। फेसबुक की इसी विशेषता ने आमजन के बीच चल रहे विचारों के प्रवाह को दिशा प्रदान की। अपनी व्यस्त जिंदगी में लोगों ने फेसबुक के माध्यम से अपने विचारों को एक-दूसरे को सहज ढंग से पहुंचाया और राजनीतिक-सामाजिक समस्याओं के प्रति जनांदोलनों की नींव रखी जाने लगी। सोशल मीडिया जनित यह आंदोलन अरब देशों तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि अमरीका के वाल स्ट्रीट होते हुए, यह दुनिया के सबसे बड़े  लोकतंत्र के जंतर-मंतर तक पहुंच गए। अमरीका में वाल स्ट्रीट घेरो आंदोलनहुआ, जिसमें अमीर देश का तमगा धारण किए अमरीका के नागरिकों ने आंदोलन किया और देश के संसाधनों का 1 प्रतिशत लोगों के हाथों में सिमटना चिंताजनक बताया। अमरीका में हुए इस आंदोलन ने दुनिया भर का ध्यान खींचा। इस आंदोलन ने बताया कि दुनिया का शीर्ष देश कहलाने वाले अमरीका में भी किस पर गैरबराबरी व्याप्त है। आंदोलनों की इस बयार से भारत भी अछूता नहीं रहा और यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार और नीतिगत असफलताओं को लेकर जंतर-मंतर से सड़कों तक सत्ता विरोधी आंदोलन के स्वर मुखरित हुए। यह आंदोलन सोशल मीडिया और उसके प्रमुख घटक फेसबुक की ही देन थे।
            फेसबुक के नौवें जन्मदिन से कुछ दिन पूर्व ही एक आंदोलन और हुआ। दिल्ली में हुए गैंगरेप के विरोध में आंदोलन। यह आंदोलन तो पूरी तरह उसी जमात का था, जिसे फेसबुकिया या सोशल मीडिया के क्रांतिकारी कहा जाता रहा है। यह कहना ठीक ही होगा कि अपने नौंवा वर्षों के संक्षिप्त समय में फेसबुक ने नई उंचाईयों को छुआ है और मुख्यधारा की मीडिया से अलग भी वैयक्तिक राय की स्वतंत्रता प्रदान करते हुए विभिन्न आंदोलनों को मूर्त रूप दिया है। उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में भी फेसबुक नए पायदान चढ़ता जाएगा और वर्चुअल दुनिया की यह क्रांतिकारी बुक आने वाले वक्त में भी आमजन की आवाज को मुखरता प्रदान करती रहेगी।

फेसबुक का बढ़ता जाल

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आज का युग इंटरनेट का युग है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने आज देश-विदेश में पूरी तरह से अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। लोगों का अधिकतर समय अब इन्हीं साइट्स पर बीतने लगा है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने हजारों किलोमीटर की दूरियों को तो जैसे खत्म सा कर दिया है। ट्विटर, आरकुट, माई स्पेस, गूगल प्लस या लिंक्ड इन जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स की फेहरिस्त में फेसबुक सबसे पहले नम्बर पर शुमार है। यह कहना गलत नहीं होगा कि आज आंदोलनों की शुरूआत ही फेसबुक से होती है। मिस्र में सरकार का तख्ता पलट कर देने वाले आंदोलन की शुरूआत भी फेसबुक द्वारा ही की गई थी। वायल गोनिम एक आनलाइन कार्यकर्ता ने एक गुमनाम पेज बनाया और लोगों को तहरीर चैक पर इकट्ठा होने की अपील की। यह आंदोलन 250 लोगों की मौत का कारण बनने के बावजूद सफल रहा और ऐतिहासिक भी।
फेसबुक के जरिये आज उपयोगकर्ता अपनी व दोस्तों-रिश्तेदारों की फोटो, वीडियो या अन्य बातें सबके साथ साझा करते हैं। दूर रहने वाले दोस्तों के साथ बातें करने और उनके साथ जुड़े रहने का यह एक ऐसा माध्यम है जिससे हर दिन नये-नये लोग जुड़ रहे हैं। फेसबुक की शुरूआत 4 फरवरी 2004 को हुई। इसे अभी एक दशक भी नहीं हुआ है कि विश्व में इसके कुल उपयोगकर्ता 75 करोड़ हैं। वर्तमान समय में भारत विश्व में फेसबुक उपयोगकर्ता की सूची में 8वें पायदान पर है। फेसबुक ने हाल ही में हैदराबाद में अपना एक कार्यालय खोला है। भारत में लाखों लोग फेसबुक से जुड़े हुए हैं। हालांकि गूगल की गूगल प्लस सोशल नेटवर्किंग सेवा ने इसके कुछ उपयोगकर्ताओं का रूख अपनी ओर तो किया है लेकिन अब भी फेसबुक ही सबसे आगे है।
भारत में फेसबुक का इतने बड़े स्तर पर प्रचलित होने के पीछे कारण यह है कि आज की पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की ओर बड़ी तेजी से अग्रसरित हो रही है। देश में लाखों युवा मोबाइल से फेसबुक पर लाग इन करते हैं। एप्पल जैसी कंपनियों ने अब ऐसे फोन निकाले हैं जो बिना इंटरनेट कनेक्शन के फेसबुक तक पहुंच रखने में सक्षम हैं। फेसबुक केवल बातचीत का जरिया न होकर और भी कई भूमिकाएं अदा कर रहा है। इन दिनों फेसबुक एक सशक्त और लोकप्रिय माध्यम बनकर उभरा है जो जनता के विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन चुका है। भारत में यह अन्ना की आवाज बनी है तो अमेरिका में ओबामा की। हाल ही में फेसबुक पर अन्ना के आंदोलन को मिला जनसमर्थन इसका प्रमाण है। देश भर में लाखों लोग अन्ना द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ षुरू किए गए आंदोलन इंडिया अगेंस्ट करप्शन‘नाम के पेज के साथ फेसबुक पर जुडे़। फेसबुक पर सबसे अधिक युवाओं की संख्या होने से इस आंदोलन को युवाओं का समर्थन भी अधिक मिला। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रमेश गौतम का मानना है
आंदोलन आज फेसबुक से शुरू होते हैं और आलोचना का लोकतंत्र भी नए मीडिया से बना है।
आज सामाजिक मुद्दों पर लोग लगातार अपनी राय रखते हैं। पिछले कुछ माह तक भूमि अधिग्रहण पर चली किसानों और सरकार के बीच की लड़ाई में भी लोगों ने फेसबुक पर बहस छेड़कर किसानों का समर्थन किया। इनके अलावा भी फेसबुक पर लोगों ने एक-दूसरे को किसी विशेष मुद्दे या लक्ष्य को लेकर संयुक्त रूप से जोड़ने के लिए कुछ आनलाइन कम्युनिटी और ग्रुप भी बनाए हुए हैं। हाल ही में फेसबुक पर एक हिन्दू स्ट्रगल कमेटी‘बनाई गई है जो सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा कानून‘के विरोध में है। इसी प्रकार से यूथ अगेंस्ट करप्शन नाम से भी युवाओं की एक कमेटी बनायी गई है। इसी तरह एक ही कालेज या कंपनी के सहकर्मी, कविताएं या शेरो-शायरी पसंद करने वाले युवा और इनके साथ गैरसरकारी संस्थाएं भी अपने ग्रुप बनाकर लोगों को जोड़े हुए हैं जो सभी के बीच संपर्क बनाने का काम करता है। इनसे हटकर देखा जाए तो आज फेसबुक युवाओं को नौकरियां भी दिला रहा है।
संभावनाओं को देखते हुए बहुत सी कंपनियों ने फेसबुक पर अपने जाब पेज बनाए हुए हैं। इनके जरिये बहुत से युवाओं को नौकरी मिली है। कई युवाओं को फेसबुक से फ्रीलांसिंग का भी काम मिला है। युवाओं ने अपनी फेसबुक वाल पर अपने काम से जुड़ी जानकारियां दी हैं जो उन्हें नौकरी के लिए प्रस्ताव दिलाने में मददगार साबित होती हैं। फेसबुक पर कई कंपनियों ने अपने उत्पादों के विज्ञापन दिए हुए हैं जिससे कम खर्च में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ई-मार्केटिंग में भी बढ़ोत्तरी हुई है। फेसबुक उभरते हुए लेखकों के लिए एक मंच बन चुका है जो पुस्तक के विमोचन से पहले पुस्तक का कुछ अंश पाठकों की नजरों में लाने के लिए सहायक है। अब सरकारी निकायों ने अपने काम को मुस्तैदी के साथ करने के लिए खुद को फेसबुक से जोड़ लिया है। दिल्ली नगर निगम, दिल्ली पुलिस और ट्रैफिक पुलिस ने फेसबुक के माध्यम से लोगों की समस्याओं का निवारण किया है। ऐसा बताया जा रहा है कि जल्दी ही रेलवे विभाग भी फेसबुक पर शिरकत करेगा।
दफ्तरों की ही बात की जाए तो इसका एक और पक्ष सामने आया है। कुछ निजी कंपनियों के साथ-साथ सरकारी दफ्तरों में भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बैन लगा दिया गया है ताकि कर्मचारी इनसे अलग हटकर अपने काम पर अधिक ध्यान दें।
जहां फेसबुक एक ओर लोगों के बीच सेतु का काम कर रहा है वहीं दूसरी ओर फेसबुक लोगों को भटकाव की ओर भी लेकर जा रहा है। आजकल फेसबुक पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा फर्जी एकाउंट बनाए जाते हैं। लंदन में हो रहे दंगों की शुरूआत का कारण भी फेसबुक ही था। लंदन के ही दो युवकों ने फेसबुक पर एकाउंट बनाकर लोगों को आगजनी और लूटपाट के लिए उकसाया।
कुछ झूठे एकाउंट ऐसे होते हैं जो किसी बड़ी शखि़सयत के नाम पर होते हैं। हाल ही में, फेसबुक पर ब्रिटेन की मशहूर पाप सिंगर लेडी गागा की मौत की अफवाह उड़ाई गई जिससे लोग काफी हैरान हुए। इससे पहले भी फेसबुक बहुत से विवादों का केन्द्र बिन्दु रहा है। पिछले साल पाकिस्तान में फेसबुक पर बैन लगा दिया गया क्योंकि फेसबुक पर एक प्रतियोगिता आयोजित की गई थी कि लोग अपने तरीके से पैगंबर मोहम्मद की पेंटिंग बनाएं। पाकिस्तान में लगातार विरोध प्रदर्षन के बाद फेसबुक को बैन कर दिया गया। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी ने अश्लीलता फैलाने का हवाला देकर फेसबुक को बैन किया हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन में ऐसा इसीलिए किया गया है ताकि वहां लोकतंत्र न पनप पाए और लोग एक-दूसरे से न जुड़ पाएं। चीन फेसबुक और अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स के साथ अब तक लाखों वेबसाइट्स को भी बंद कर चुका है। फेसबुक का गलत तरीके से प्रयोग करने के संदर्भ में एक और उदाहरण सामने आया है। फेसबुक इन दिनों काल गर्ल्स के लिए एक बाजार बन कर उभर रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक 85 प्रतिशत काल गर्ल्स ने फेसबुक पर अपने एकांउट बनाए हुए हैं। उन्होंने लोगों को फंसाने और ग्राहकों को लुभाने के लिए कामुक तस्वीरें भी लगाई हुई हैं जिसे वे अपडेट करती रहती हैं।
जिन देशों में फेसबुक है वहां उपयोगकर्ता की लापरवाही के कारण फेसबुक पर कई हैकर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज पासवर्ड चोरी कर लेते हैं। फेसबुक का सबसे बड़ा खतरा है कि इस पर उपयोगकर्ता की निजी जानकारियों तक कोई भी पहुंच सकता है और गलत फायदा उठा सकता है। कंपनियां अपने विज्ञापन के साथ कुछ जानकारियां भी डालती हैं जिससे कई बार कंपनी के डाटा हैक कर लिए जाते हैं। हाल ही में यू-ट्यूब पर एक अनजान हैकिंग समूह ने आपरेशन फेसबुक नाम से एक वीडियो अपलोड की है जिसमें व्यक्ति का चेहरा दिखाए बिना यह बताया गया है कि 5 नवम्बर 2011 को हम दुनिया की चहेती फेसबुक को खत्म कर देंगे, जिससे 75 करोड़ उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता खत्म हो जाएगी। इससे बचने के लिए फेसबुक से लगातार जुड़ते लोगों को तो यही सलाह दी जा सकती है कि वे इसका उपयोग करने से पहले इसकी पूर्ण जानकारी अवश्य ले लें।
वंदना शर्मा, सितम्बर अंक, २०११

वेब मीडिया का बढ़ता क्षितिज

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वर्तमान दौर संचार क्रांति का दौर है। संचार क्रांति की इस प्रक्रिया में जनसंचार माध्यमों के भी आयाम बदले हैं। आज की वैश्विक अवधारणा के अंतर्गत सूचना एक हथियार के रूप में परिवर्तित हो गई है। सूचना जगत गतिमान हो गया है, जिसका व्यापक प्रभाव जनसंचार माध्यमों पर पड़ा है। पारंपरिक संचार माध्यमों समाचार पत्र, रेडियो और टेलीविजन की जगह वेब मीडिया ने ले ली है।
वेब पत्रकारिता आज समाचार पत्र-पत्रिका का एक बेहतर विकल्प बन चुका है। न्यू मीडिया, आनलाइन मीडिया, साइबर जर्नलिज्म और वेब जर्नलिज्म जैसे कई नामों से वेब पत्रकारिता को जाना जाता है। वेब पत्रकारिता प्रिंट और ब्राडकास्टिंग मीडिया का मिला-जुला रूप है। यह टेक्स्ट, पिक्चर्स, आडियो और वीडियो के जरिये स्क्रीन पर हमारे सामने है। माउस के सिर्फ एक क्लिक से किसी भी खबर या सूचना को पढ़ा जा सकता है। यह सुविधा 24 घंटे और सातों दिन उपलब्ध होती है जिसके लिए किसी प्रकार का मूल्य नहीं चुकाना पड़ता।
वेब पत्रकारिता का एक स्पष्ट उदाहरण बनकर उभरा है विकीलीक्स। विकीलीक्स ने खोजी पत्रकारिता के क्षेत्र में वेब पत्रकारिता का जमकर उपयोग किया है। खोजी पत्रकारिता अब तक राष्ट्रीय स्तर पर होती थी लेकिन विकीलीक्स ने इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग किया व अपनी रिपोर्टों से खुलासे कर पूरी दुनिया में हलचल मचा दी। भारत में वेब पत्रकारिता को लगभग एक दशक बीत चुका है। हाल ही में आए ताजा आंकड़ों के अनुसार इंटरनेट के उपयोग के मामले में भारत तीसरे पायदान पर आ चुका है। आधुनिक तकनीक के जरिये इंटरनेट की पहुंच घर-घर तक हो गई है। युवाओं में इसका प्रभाव अधिक दिखाई देता है। परिवार के साथ बैठकर हिंदी खबरिया चैनलों को देखने की बजाए अब युवा इंटरनेट पर वेब पोर्टल से सूचना या आनलाइन समाचार देखना पसंद करते हैं। समाचार चैनलों पर किसी सूचना या खबर के निकल जाने पर उसके दोबारा आने की कोई गारंटी नहीं होती, लेकिन वहीं वेब पत्रकारिता के आने से ऐसी कोई समस्या नहीं रह गई है। जब चाहे किसी भी समाचार चैनल की वेबसाइट या वेब पत्रिका खोलकर पढ़ा जा सकता है।
लगभग सभी बड़े-छोटे समाचार पत्रों ने अपने ई-पेपर‘यानी इंटरनेट संस्करण निकाले हुए हैं। भारत में 1995 में सबसे पहले चेन्नई से प्रकाशित होने वाले ‘हिंदू‘ ने अपना ई-संस्करण निकाला। 1998 तक आते-आते लगभग 48 समाचार पत्रों ने भी अपने ई-संस्करण निकाले। आज वेब पत्रकारिता ने पाठकों के सामने ढेरों विकल्प रख दिए हैं। वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों में जागरण, हिन्दुस्तान, भास्कर, डेली एक्सप्रेस, इकोनामिक टाइम्स और टाइम्स आफ इंडिया जैसे सभी पत्रों के ई-संस्करण मौजूद हैं।
भारत में समाचार सेवा देने के लिए गूगल न्यूज, याहू, एमएसएन, एनडीटीवी, बीबीसी हिंदी, जागरण, भड़ास फार मीडिया, ब्लाग प्रहरी, मीडिया मंच, प्रवक्ता, और प्रभासाक्षी प्रमुख वेबसाइट हैं जो अपनी समाचार सेवा देते हैं।
वेब पत्रकारिता का बढ़ता विस्तार देख यह समझना सहज ही होगा कि इससे कितने लोगों को रोजगार मिल रहा है। मीडिया के विस्तार ने वेब डेवलपरों एवं वेब पत्रकारों की मांग को बढ़ा दिया है। वेब पत्रकारिता किसी अखबार को प्रकाशित करने और किसी चैनल को प्रसारित करने से अधिक सस्ता माध्यम है। चैनल अपनी वेबसाइट बनाकर उन पर बे्रकिंग न्यूज, स्टोरी, आर्टिकल, रिपोर्ट, वीडियो या साक्षात्कार को अपलोड और अपडेट करते रहते हैं। आज सभी प्रमुख चैनलों (आईबीएन, स्टार, आजतक आदि) और अखबारों ने अपनी वेबसाइट बनाई हुईं हैं। इनके लिए पत्रकारों की नियुक्ति भी अलग से की जाती है। सूचनाओं का डाकघर‘कही जाने वाली संवाद समितियां जैसे पीटीआई, यूएनआई, एएफपी और रायटर आदि अपने समाचार तथा अन्य सभी सेवाएं आनलाइन देती हैं।
कम्प्यूटर या लैपटाप के अलावा एक और ऐसा साधन मोबाइल फोन जुड़ा है जो इस सेवा को विस्तार देने के साथ उभर रहा है। फोन पर ब्राडबैंड सेवा ने आमजन को वेब पत्रकारिता से जोड़ा है। पिछले दिनों मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट की ताजा तस्वीरें और वीडियो बनाकर आम लोगों ने वेब जगत के साथ साझा की। हाल ही में दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने गांवों में पंचायतों को ब्राडबैंड सुविधा मुहैया कराने का प्रस्ताव रखा है। इससे पता चलता है कि भविष्य में यह सुविधाएं गांव-गांव तक पहुंचेंगी।
वेब पत्रकारिता ने जहां एक ओर मीडिया को एक नया क्षितिज दिया है वहीं दूसरी ओर यह मीडिया का पतन भी कर रहा है। इंटरनेट पर हिंदी में अब तक अधिक काम नहीं किया गया है, वेब पत्रकारिता में भी अंग्रेजी ही हावी है। पर्याप्त सामग्री न होने के कारण हिंदी के पत्रकार अंग्रेजी वेबसाइटों से ही खबर लेकर अनुवाद कर अपना काम चलाते हैं। वे घटनास्थल तक भी नहीं जाकर देखना चाहते कि असली खबर है क्या\
यह कहा जा सकता है कि भारत में वेब पत्रकारिता ने एक नई मीडिया संस्कृति को जन्म दिया है। अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी पत्रकारिता को भी एक नई गति मिली है। युवाओं को नये रोजगार मिले हैं। अधिक से अधिक लोगों तक इंटरनेट की पहुंच हो जाने से यह स्पष्ट है कि वेब पत्रकारिता का भविष्य बेहतर है। आने वाले समय में यह पूर्णतः विकसित हो जाएगी।
वंदना शर्मा, अगस्त अंक, २०११

सामाजिक आंदोलन और न्यू मीडिया

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क्रांति का वाहक बनता न्यू-मीडिया

समाचार पत्रों और चैनलों में व्यावसायीकरण के प्रभाव के कारण निष्पक्ष विचारों का प्रभाव बहुत कम होता जा रहा है। निष्पक्ष विचार रखने वालों को मीडिया जगत में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में न्यू मीडिया एक वरदान के रूप में उभर कर सामने आया है। सस्ता व सुलभ संचार माध्यम होने के कारण इसने काफी कम समय में प्रसिद्धि पाई है। वहीं न्यू मीडिया ने सामाजिक आंदोलनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई है।
अरब देशों में हुई जनक्रांति के पीछे न्यू मीडिया का बड़ा योगदान रहा है। सरकार द्वारा समाचार पत्रों और चैनलों पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद वहां की जनता एक-दूसरे से सोशल साइटों के जरिए जुड़ी और जनक्रांति को एक नई दिशा मिली। भारत में भी पिछले कुछ दिनों में हुए आंदोलनों में न्यू मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आरूषि तलवार को इंसाफ दिलाने के लिए कैंडल लाइट मार्च से लेकर अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के आंदोलनों में जनसमर्थन प्राप्त करने के लिए न्यू मीडिया के माध्यम से लोगों से संपर्क साधा गया। इसके लिए एक ओर फेसबुक जैसी सोशल साइट पर एक पेज बनाकर लोगों को आंदोलन व उसके समय, स्थान की जानकारी दी गई, वहीं मोबाइल फोन पर भी एसएमएस द्वारा लोगों को सूचित किया गया। फेसबुक, ऑरकुट व ट्विटर जैसी सोशल साइट्स पर अब लोग राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर भी जमकर बहस करने लगे हैं जिससे आम जन के बीच जागरूकता आई है।
ब्लॉग व वेब पोर्टल तो अपना विचार निष्पक्ष रूप से रखने वालों के लिए वरदान साबित हुए हैं। न्यू मीडिया जगत में तो वेब पोर्टलों की बाढ़ सी आ गई है। ख्याति पाने के लिए अधिकतर लोग अपना निजी वेब पोर्टल बनाते हैं। पोर्टलों और ब्लॉग पर राष्ट्रीय मुद्दों पर परिचर्चा होने लगी है। इसका फायदा यह है कि इसमें सभी लोगों को अपने विचार व्यक्त करने का स्थान मिल जाता है जिसके परिणामस्वरूप वह उस मुद्दे में विशेष रूचि लेने लगते हैं।
यू-ट्यूब पर तो किसी भी मुद्दे से संबंधित वीडियो देखे जा सकते है जिसके कारण इसकी लोकप्रियता तीव्र गति से बढ़ी है। न्यू मीडिया से राजनीतिक हल्कों की नींद भी उड़ गई है। गूगल द्वारा जारी की गई ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार की ओर से गूगल को कई बार प्रधानमंत्री, कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों की आलोचना करने वाली रिपोर्ट्स, ब्लॉग और यू-ट्यूब वीडियो हटा देने को कहा गया।
जुलाई 2010 से लेकर दिसंबर 2010 के बीच गूगल के पास इस तरह के 67 आवेदन आए जिनमें से 6 अदालतों की ओर से, बाकी सरकार की ओर से आए। यह आवेदन 282 रिपोर्ट्स को हटाने के थे जिनमें से 199 यू-ट्यूब के वीडियो, 50 सर्च के परिणामों, 30 ब्लॉगर्स की सामग्री हटाने के थे। हालांकि गूगल ने इन्हें नहीं हटाया और केवल 22 प्रतिशत में बदलाव किया।
न्यू मीडिया ने समाज में अलग पहचान बनाई है और इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इससे युवा पीढ़ी ज्यादा जुड़ रही है। भविष्य में मीडिया के इस नए माध्यम की संभावनाएं और अधिक बढे़गी।
नेहा जैन, जुलाई अंक, २०११

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