*नारीरूप धरकर राधाजी की परीक्षा लेने आए थे नटखट नंदलाल*
*लीलाधारी भगवान कृष्ण की लीला अद्भुत है एक बार तो श्रीराधाजी की प्रेम परीक्षा लेने के लिए नारी बन उनके महल में पहुंच गए*
*श्रीगर्ग संहिता से सुंदर कृष्ण कथा*
*शाम को श्रीराधाजी अपने राजमंदिर के उपवन में सखियों संग टहल रही थीं तभी बागीचे के द्वार के पास मणिमंडप में एक अनजान पर बेहद सुंदर युवती को खड़े देखा. वह बेहद सुंदर थी उसके चेहरे की चमक देख श्रीराधा की सभी सहेलियां अचरज से भर गईं श्रीराधा ने गले लगाकर स्वागत किया और पूछा सुंदरी सखी तुम कौन हो कहां रहती हो और यहां कैसे आना हुआ*
*श्रीराधा ने कहा तुम्हारा रूप तो दिव्य है. तुम्हारे शरीर की आकृति मेरे प्रियतम श्रीकृष्ण जैसी है. तुम तो मेरे ही यहां रह जाओ. मैं तुम्हारा वैसे ही ख्याल रखूंगी जैसे भौजाई, अपनी ननद का रखती है*
*यह सुनकर युवती ने कहा- मेरा घर गोकुल के नंदनगर में नंदभवन के उत्तर में थोड़ी ही दूरी पर है. मेरा नाम गोपादेवी है. मैंने ललिता सखी से तुम्हारे रूप-गुण के बारे में बहुत सुन रखा था इसलिए तुम्हें देखने के लोभ से चली आई थोड़ी ही देर में गोपदेवी श्रीराधा और बाकी सखियों से साथ घुल-मिलकर गेंद खेलने और गीत गाने के बाद बोली- मैं दूर रहती हूं. रास्ते में रात न हो जाए इसलिए मैं अब जाती हूं*
*उसके जाने की बात सुन श्रीराधा की आंख से आंसू बहने लगे. वह पसीने-पसीने हो वहीं बैठ गईं सखियों ने तत्काल पंखा झलना शुरू किया और चंदन के फूलों का इत्र छिड़कने लगी*
*यह देख गोपदेवी बोली सखी राधा मुझे जाना ही होगा पर तुम चिंता मत करो सुबह मैं फिर आ जाउंगी. अगर ऐसा न हो तो मुझे गाय, गोरस और भाई की सौगंध है*
*यह कह वह सुंदरी चली गई*
*सुबह थोड़ी देर से गोपादेवी श्रीराधाजी के घर फिर आयी तो वह उसे भीतर ले गयीं और कहा मैं तुम्हारे लिए रात भर दुखी रही अब तुम्हारे आने से जो खुशी हो रही है उसकी तो पूछो नहीं श्रीराधा जी की प्रेम भरी बातें सुनने के बावजूद जब गोपादेवी ने कोई जवाब नहीं दिया और अनमनी बनी रही तो श्री राधाजी ने गोपादेवी की इस खामोशी की वजह पूछा*
*गोपादेवी बोली- आज मैं दही बेचने निकली. संकरी गलियों के बीच नन्द के श्याम सुंदर ने मुझे रास्ते में रोक लिया और लाज शरम ताक पर रख मेरा हाथ पकड़ कर बोला कि मैं कर टैक्स लेने वाला हूं. मुझे कर के तौर पर दही का दान दो*
*मैंने डपट दिया चलो हटो अपने आप ही कर लेने वाला बन कर घूमने वाले लंपट मैं तो कतई तुम्हें कोई कर न दूंगी. उसने लपक कर मेरी मटकी उतारी और फोड़कर दही पीने के बाद मेरी चुनरी उतार कर गोवर्धन की ओर चल दिया*
*इसी से मैं क्षुब्ध हूं श्रीराधे जी इस बात पर हंसने लगीं तो गोपदेवी बोली सखी यह हंसने की बात नहीं है वह कला कलूटा ग्वाला न धनवान न वीर आचरण भी अच्छे नहीं मुझे तो वह निर्मोही भी लगता है*
*सखी ऐसे लड़के से तुम कैसे प्रेम कर बैठी. मेरी मानो तो उसे दिल से निकाल दो श्रीराधा जी बोलीं तुम्हारा नाम गोपदेवी किसने रखा वह ग्वाला है इसलिए सबसे पवित्र है सारा दिन पवित्र पशु गाय की चरणों की धूल से नहाता है. तुम उन्हें निर्धन ग्वाला कहती हो*
*जिनको पाने को लक्ष्मी तरस रही हैं ब्रह्माजी, शिवजी भी श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं उनको काला कलूटा और उसे निर्बल बताती हो जिसने बकासुर, कालिया नाग, यमलार्जुन, पूतना जैसों का चुटकी में वध कर ड़ाला*
*जो अपने भक्तों के पीछे पीछे इसलिए घूमते हैं कि उनकी चरणों की धूल मिल जाये उसे निर्दयी कहती है गोपदेवी बोली राधे तुम्हारा अनुभव अलग है और मेरा अलग. किसी अकेली युवती का हाथ पकड जबरन दही छीनकर पी लेना क्या सज्जनों के गुण हैं*
*श्रीराधे ने कहा- इतनी सुंदर होकर भी उनके प्रेम को नहीं समझ सकी! बड़ी अभागिन है. यह तो तेरा सौभाग्य था पर तुमने उसको गलत समझ लिया गोपदेवी बोली अच्छा तो मैं अपना सौभाग्य समझ के सम्मान भंग कराती*
*अब बात बढ़ गई थी आखिर में गोपदेवी बोली अगर तुम्हारे बुलाने से श्रीकृष्ण यहां आ जाते हैं तो मैं मान लूंगी कि तुम्हारा प्रेम सच्चा है और वह निर्दयी नहीं है और यदि नहीं आये तो*
*इस पर राधा रानी बोलीं कि यदि नहीं आये तो मेरा सारा धन, भवन तेरा शर्त लगाकर श्रीराधा आंख मूंद ध्यान में बैठ श्रीकृष्ण का एक-एक नाम लेकर पुकारने लगीं जैसे जैसे श्रीराधा का ध्यान और दिल से की जाने वाली पुकार बढ रही थी सामने बैठी गोपदेवी का शरीर कांपता जा रहा था*
*श्रीराधा के चेहरे पर अब आंसुओं की झड़ी दिखने लगी. माया की सहायता से गोपदेवी का रूप लिए भगवान श्रीकृष्ण समझ गये कि प्रेम की ताकत के आगे अब यह माया नहीं चलने वाली, मेरा यह रूप छूटने वाला है*
*वे रूप बदलकर श्री राधे-राधे कहते प्रकट हो गए और बोले- राधारानी आपने बुलाया. मैं भागता चला आ गया. श्रीराधाजी चारों ओर देखने लगीं तो श्रीकृष्ण ने पूछा अब किसको देख रही हैं वे बोली गोपदेवी को बुलाओ, वह कहाँ गई श्री कृष्ण बोले जब मैं आ रहा था तो कोई जा रही थी, कौन थी*
*राधा रानी ने उन्हें सारी बातें बतानी शुरू की और श्रीकृष्ण सुनते चले गए. मंद-मंद मुस्काते हुए श्रीकृष्ण ने कहा- आप बहुत भोली हैं. ऐसी नागिनों को पास मत आने दिया करें*
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
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