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लक्ष्मण को रावण की सीख

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मरने से पहले रावण ने अपनी गलती स्वीकारी थी और  लक्ष्मण को बताई थीं ये 3 बातें

श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध को सत्य व असत्य का संघर्ष माना जाता है।।

रावण ने अधर्म और पाप की राह पर चलना स्वीकार किया लेकिन वह अत्यंत विद्वान और पराक्रमी भी था। उसकी कूटनीति और आतंक से उस जमाने के बड़े-बड़े शासक कांपते थे।

श्रीराम ने स्वयं लक्ष्मण से कहा था कि वे रावण से राजनीति और संसार से जुड़े उसके अनुभव सुनें। लक्ष्मण ने आज्ञा का पालन किया और रावण के सिरहाने की ओर खड़े हो गए। ...परंतु रावण ने कुछ नहीं कहा।

तब श्रीराम ने उन्हें कहा कि वे रावण के पैरों की ओर खड़े हों, क्योंकि उन्हें रावण से ज्ञान प्राप्त करना है। जिससे ज्ञान प्राप्त करना हो उसके पैरों की ओर स्थान ग्रहण करना चाहिए। लक्ष्मण ने ऐसा ही किया। उस समय रावण ने उन्हें जीवन की 3 प्रमुख बातें बताईं।रम्भा  अप्सरा के बलात्कार के बा्द नलकुबेर ने रावण को श्राप दिया था कि "यदि रावण ने किसी भी नारी को उसकी अस्वीकृति के बगैर छुआ तो रावण की तत्काल मृत्यु हो जाएगी।
यहाँ छूने से तात्पर्य शील भंग से है।रावण कोई चरित्रवान और सहृदय पुरूष नहीं था,जिसने सीता को छूने की धृष्टता नहीं की थी। वह श्राप से बन्धा हुआ था।

रामजी ने जब रावण की नाभि पर तीर चलाया तो रावण जमीन पर गिर पड़ा।राम जी ने अनुज लक्ष्मण से कहा कि रावण प्रकांड विद्वान है,उससे कुछ राजनीतिक शिक्षा सुनो,जो उसके अलावा कोई और नहीं दे सकता।

राम जी की आज्ञानुसार लक्ष्मण ने मरणासन्न रावण के सिर के पास जाकर खड़े होकर उससे उपदेश देने की प्रार्थना की तो रावण ने कोई उत्तर नहीं दिया।लक्ष्मण निराश होकर राम जी के पास आ गए।
तब राम जी ने लक्ष्मण जी को सलाह दी कि किसी से भी ज्ञान प्राप्ति के लिए उसके सिर के पास नहीं,पैरों के पास खड़े होते हैं।लक्ष्मण जी ने ऐसा ही किया।

तब रावण ने लक्ष्मण से कहा कि पराई स्त्री पर बुरी दृष्टि डालना तो मेरी भयंकर भूल थी,उसके अलावा भी मुझसे ये तीन गलतियाँ हुई हैं।
१.शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए और अशुभ कार्य को जितना अधिक टाल सको तो टालो।मुझे पता था कि रामचन्द्र जी दिव्य पुरूष हैं।मुझे उनकी शरण में आ जाना चाहिए था,उल्टे मैंने उनकी पत्नी का ही हरण कर लिया। इसी कारण मेरी यह दुर्दशा हुई।
२.मैंने वानरों और मानवों को हमेशा असुरों से तुच्छ समझा।मेरे पास एक से एक बड़ी शक्तियाँ थीं,मैंने कहा कि ये तुच्छ जीव मुझ जैसे विशाल साम्राज्य के स्वामी अकाट्य विद्वत्तायुक्त का क्या बिगाड़ लेंगे? इन को तो मैं वैसे ही चींटी की तरह मसल दूँगा।मगर,मेरा अहंकार ही मेरे पतन का कारण बन गया।चींटी कब विशालकाय हाथी की सूँड में घुसकर काल का ग्रास बना देती है, पता नहीं चलता।मैं मद में अन्धा हो गया था।
३. हे लक्ष्मण,जीवन में अपना सबसे बड़ा राज किसी को नहीं बताना चाहिए।यदि आज विभीषण रामचन्द्र जी को मेरी नाभि में अमृत होने की बात न बताता,तो रामजी मुझे कभी मार नहीं पाते।यह मेरी बहुत बड़ी ग़लती सिद्ध हुई।
तभी से कहावत चली:

"घर का भेदी लंका ढावे।"

परन्तु अब पछताय होत क्या……।
इक लख पूत, सवा लख नाती,ता रावण घर दिया न बाती।
बुराई का आचरण करना आसान होता है।यह एक दलदल की तरह होती है जिसमें एक बार पाँव पड़ जाए,इंसान डूबता ही चला जाता है। उसका विवेक जो मरता जाता है सही ग़लत का फ़र्क बताने वाला!

तीन लाख साल रावण जिया,क्या लेकर गया?अपयश, घृणा और तिरस्कार!!!
अगर उसने अपने अहंकार और दुर्गुणों को दूर हटाने का वरदान माँगने के लिए तपस्या की होती तो आज वह पूरे जगत का प्रेरणास्रोत होता।

दशहरे पर पुतले न जल रहे होते,बल्कि दशानन की मूर्तियाँ पूजी जातीं।
इंसान अपने कर्मों से ही तो राम या रावण बनता है!
जरूरी है अपने अंदर के राम को जिन्दा रखना

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