मेरी अंतिम इच्छा है भारत फिर से हॉकी के शिखर पर पहुंचे
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‘राकेश मेरी उम्र का मैच ‘गोल्डन गोल स्टेज’ में है। जैसे हॉकी में मैच निर्धारित समय और ‘टाईब्रेकर’ में बराबरी पर छूटने पर पहले ‘सडन डेथ’ होता था। उसकी जगह अब गोल्डन गोल होने लगा है। मेरी उम्र ‘गोल्डन गोल स्टेज’ पर है और मेरा जो विपक्षी है वह बहुत मजबूत है उसे मैं हरा नहीं सकता लेकिन अपनी तरफ से डटकर उसका सामना कर रहा हूं।’ - बलबीर सिंह सीनियर, पूर्व भारतीय ओलंपिक कप्तान
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राकेश थपलियाल
मेजर ध्यानचंद का ओलंपिक करियर समाप्त होने के बाद विश्व हॉकी में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले बलबीर सिंह सीनियर आज सोमवार 25 मई, 2020 को 95 वर्ष की उम्र में दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। 1948, 1952 और 1956 के तीन ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक पहनने वाले बलबीर सिंह के पार्थिव शरीर पर प्रेम और सम्मान की अंतिम माला पड़ गई।
आठ वर्ष पूर्व नई दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा था, ‘राकेश मेरी उम्र का मैच ‘गोल्डन गोल स्टेज’ में है। जैसे हॉकी में मैच निर्धारित समय और ‘टाईब्रेकर’ में बराबरी पर छूटने पर पहले ‘सडन डेथ’ होता था। उसकी जगह अब गोल्डन गोल होने लगा है। मेरी उम्र ‘गोल्डन गोल स्टेज’ पर है और मेरा जो विपक्षी है वह बहुत मजबूत है उसे मैं हरा नहीं सकता लेकिन अपनी तरफ से डटकर उसका सामना कर रहा हूं।’
वास्तव में बलबीर सिंह ने एकदम सही कहा था कि उनका विपक्षी बहुत मजबूत है और उसे वह हरा नहीं सकते। जो मां की कोख से जन्मा है एक दिन उसकी मृत्यु होनी तय है। यह जीवन का ऐसा सत्य है जिसे कोई नकार नहीं सकता पर ध्यान देने वाली बात यह है कि बलबीर सिंह ने यह भी कहा था कि वह अपनी तरफ से विपक्षी (मृत्यु) का डटकर सामना कर रहे हैं। भारत के इस बेहद मजबूत खिलाड़ी ने वास्तव में जिस तरह से डटकर मुकाबला किया उसकी मिसाल भारतीय खेल जगत में ज्यादा नहीं मिलेंगी। पिछले एक दशक के दौरान वह अनेक बार गंभीर रूप से बीमार पड़े। कई बार लंबे समय तक अस्पताल में रहकर मुस्कुराते हुए घर लौटे, लेकिन इस बार उनका मजबूत विपक्षी बाजी मार गया।
भारतीय हॉकी के बेहद सौम्य, मृदुभाषी और बेहद सम्मानित ‘गोल्ड बॉय’ पर, बावजूद इसके कि एक्सट्रा टाइम में गोल्डन गोल का नियम खत्म किया जा चुका है, मजबूत विपक्षी ‘गोल्डन गोल’ करने में सफल हो गया। पिछले सात -आठ वर्षों से बलबीर सिंह यह मान रहे थे कि उनकी जिंदगी का ‘एक्सट्रा टाइम’ चल रहा है और विपक्षी कभी भी गोल्डन गोल कर मुकाबला जीत सकता है। फिर भी वह हॉकी के मैच देखने मैदानों में जाते थे, खेल के समारोहों में शिरकत करते थे और मीडिया को इंटरव्यू भी देते थे। अनेक बार ऐसा हुआ कि मैंने कुछ सवाल उनके नाती कबीर को भेजे और वह तुरंत अपने नानाजी के साथ बात करके जवाब भेज देते थे।
भारतीय हॉकी के बेहद प्रतिष्ठित खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर मेजर ध्यान चंद नेशनल स्टेडियम या शिवाजी स्टेडियम में आते थे तो उनके बुजुर्ग शरीर की ताकत बढ़ जाती थी। एक बार उन्होंने कहा था, ‘राकेश उम्र के इस पड़ाव पर मेरी अंतिम इच्छा यही है कि भारत फिर से हॉकी के शिखर पर पहुंचे।’ ऐसा कब होगा? या कभी होगा भी या नहीं? कहना मुश्किल है लेकिन जिस दिन ऐसा हुआ बलबीर सिंह की आत्मा को असली शांति तभी मिलेगी। मेरे यह पूछने पर कि जब आप खेलते थे तो क्या आपने कभी सोचा था कि एक दिन भारत ओलंपिक के लिए क्वालिफाई भी नहीं कर पाएगा? इस पर भावुक होते हुए 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता टीम के कप्तान ने कहा था, ‘उस वक्त यह ख्याल तो किसी के जेहन में आ ही नहीं सकता था। हम तो विजेता हुआ करते थे। लेकिन दुख इस बात का है कि हम हालात के हिसाब से नहीं बदले। मैदान और नियम बदलते रहे और उसके अनुसार अपने को नहीं ढाल सके। यह सही नहीं था, हमें वक्त के साथ बदलना चाहिए था। अच्छी चीजें जहां से भी मिलें हमें सीखनी चाहिए।
भारतीय हॉकी में बलबीर सिंह नाम के खिलाड़ी तो बहुत हुए हैं लेकिन बलबीर सिंह सीनियर जैसा खिलाड़ी और व्यक्तित्व फिर मिलेगा इसकी संभावना बहुत कम है। रब से दुआ तो यही है कि केवल भारतीय हॉकी ही नहीं बल्कि हर खेल में बलबीर सिंह सीनियर जैसे सैकड़ों, हजारों, लाखों और करोड़ों खिलाड़ी उभर कर सामने आएं और देश का नाम रोशन करें। महान शख्सियत को अंतिम खेल सलाम!
(लेखक ‘खेल टुडे’ पत्रिका के संपादक हैं)
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