आवरण कथा
मुंगेर, पटना, बक्सर, रोहतास और गया के साथ प्रदेश के कुल 534 प्रखंड मुख्यालय रेड ज़ोन में हैं, ऐसे में पढ़ने के शौकीन किताबों तक कैसे पहुंचें - ये बड़ा सवाल है।
हालांकि लॉकडाउन के दौरान अध्ययनशील लोगों ने पढ़ने-पढ़ाने के कई रास्ते तलाशे जरूर हैं। परिणाम भी सुखद रहे। किताबें न सिर्फ पढ़ी, बल्कि सुनी भी जा रही हैं...
*खिलीं, खुलीं, बोल उठीं किताबें*
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चण्डी दत्त
लॉकडाउन 4.O अब पूरा होने को है। कुछ हद तक घर की चारदीवारी से बाहर निकलने के मौके मिलने लगे हैं, दुकानें खुल रही हैं। एक-दूसरे से दूरी बरतते हुए लोग कुछ कदम आगे की तरफ बढ़ा रहे हैं। कोरोना का खतरा बरकरार है, लेकिन रुके रहने से ज़िंदगी भी रुक जाती है, ऐसे में सबको आगे आना ही है। लॉकडाउन के चार चरणों ने जहां ठहरने को मजबूर किया, वहीं इस मुश्किल दौर में हम सबने कई आदतों को नए रंग-रूप दिए हैं।
कहते हैं, किताबों से बेहतर दोस्त कोई नहीं होता और दोस्तों के बगैर खुश रहना मुमकिन नहीं। पुस्तकें घरों तक पहुंच नहीं पा रही थीं, इसलिए पढ़ने के शौकीनों ने खुद उन तक पहुंचने के रास्ते तलाशे। बंद पड़े पन्ने खुल गए, हर्फ खिल उठे। यहां तक कि किताबें बोलने भी लगीं। आखिरकार, हमारे देश में 65 करोड़ मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ता जो हैं।
सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं-संगठनों ने इसका खयाल रखा कि घरों में बंद लोग ऊब का शिकार न हो जाएं। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी) ने चुनिंदा पुस्तकों के दरवाज़े पाठकों के लिए खोल दिए। ‘स्टे होम इंडिया विद बुक्स'नाम से जारी अभियान के तहत मुफ्त पीडीएफ डाउनलोड की सुविधा मुहैया कराई गई।
पीडीएफ में आईं किताबें
अध्ययन प्रेमियों ने ह्वाट्सएप के ज़रिए एक-दूसरे को मुद्रित सामग्री के पीडीएफ मुहैया कराए। इनमें चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी, नागराज, ध्रुव के कॉमिक्स थे, वहीं कई नई बेस्टसेलर और अनुपलब्ध किताबों के पीडीएफ भी शामिल थे। पहले चरण में धार्मिक पुस्तकों का लेन-देन भी खूब हुआ।
वैसे, कुछ बेस्टसेलर राइटर्स और प्रकाशकों को पीडीएफ के इस अवैध प्रसार से कोफ्त हुई। एक प्रकाशक ने कहा कि मुफ्त में पढ़ने की प्रवृत्ति, चाहे लॉकडाउन में हो या सामान्य दिनों में - प्रकाशन उद्योग के लिए नुकसानदेह है। समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के ई-संस्करण डाउनलोड करके बिना सब्सक्रिप्शन के, गैरकानूनी तरीके से असंख्य लोगों तक पहुंचाने की आलोचना भी हुई।
इस बीच, दैनिक भास्कर समूह की चर्चित बाल पत्रिकाओं - बाल भास्कर और यंग भास्कर के डिजिटल संस्करण बाल एवं किशोर पाठकों के लिए मुफ्त में मुहैया कराए गए। इन दोनों पाक्षिक पत्रिकाओं के संयुक्त संस्करण को नन्हे-मुन्ने पाठकों ने खूब पसंद किया।
साहित्यिक पत्रिका हंस ने स्त्री-आधारित कथा संकलन का पीडीएफ उपलब्ध कराया। पायरेसी के ख़तरे और लेखक-प्रकाशक को होने वाले घाटे की आशंकाओं के मध्य ‘ई पुस्तकालय'जैसे डिजिटल ठिकाने पाठकों के लिए लाभ का सबब बने। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि हिंदी पट्टी में पुरानी किताबें अक्सर अनुपलब्ध रहती हैं। पूर्णिया के रामलाल कुशवाहा का कहना था कि साइबर मंचों की मदद से ही ऐसी पुस्तकें भी पढ़ने का मौका मिला, जिनके बारे में पहले उन्होंने सुना भर था।
किंडल ई-बुक संसार
मुद्रित किताबों से अलग, ई-अध्ययन का संसार पीडीएफ तक नहीं सिमटा। ई-बुक के कई रूप-स्वरूप उपलब्ध हैं, जैसे-ई-पब और मोबी। पटना की सुनीता वर्मा के मुताबिक, ;किंडल रीडर पर पढ़ना बेहद सुविधाजनक रहा, क्योंकि वहां अक्षर छोटे-बड़े करने और स्क्रीन की रोशनी बढ़ाने-घटाने की सुविधा उपलब्ध है।'यहीं के तनिष्क जायसवलाल का कहना था कि किंडल रीडर अलग से खरीदने की ज़रूरत भी नहीं होती। उसका मुफ्त संस्करण प्ले स्टोर में उपलब्ध है, वहीं कई किताबों के निःशुल्क संस्करण भी। इसी तरह गूगल बुक्स पर कुछ पन्ने बगैर शुल्क चुकाए पढ़े जा सकते हैं। इस सुविधा का लाभ लैपटॉप, टैब और सेलफोन पर उठाया जा सकता है।
देर तक लगे पढ़ने
फुर्सत के दिन इकट्ठा मिले तो लोग देर तक पढ़ने लगे, वो चाहे मुद्रित किताबें और अखबार वगैरह हों या फिर इंटरनेट पर पठन सामग्री। फोन कॉल के ज़रिए किए गए एक सर्वे के मुताबिक, लोगों ने एक अखबार पढ़ने के लिए एक घंटे का वक्त खर्च किया, जबकि पहले ये समय आधे घंटे के आसपास था।
जाहिर है, इस रुझान का लाभ ब्लॉग्स और वेबसाइट्स को भी मिला। हिंदी कविताओं के बड़े ई-ठिकाने ‘कविता कोश’ की ज्वायंट डायरेक्टर शारदा सुमन ने बताया कि सामान्य दिनों में आम तौर पर 61 लाख पेज व्यूज़ होते थे, जो लॉकडाउन के 54 दिनों में 82 लाख व्यूज़ तक पहुंच गए। इसी तरह पाठकों ने कविता कोश पर औसतन 17 फीसदी अधिक समय बिताया।
‘प्रतिलिपि’ की हिंदी संपादक वीणा वत्सल सिंह के मुताबिक, ‘पहले हर महीने 1.30 करोड़ लोग कहानियां आदि पढ़ते थे, जबकि लॉकडाउन के दिनों में यह संख्या 1.80 करोड़ तक पहुंच गई।’ कंटेंट प्लेटफॉर्म ‘मातृभारती’ की संपादक नीलिमा शर्मा की मानें तो पढ़ने के शौकीनों में इस बीच पैंतालीस फीसदी तक का इजाफा हुआ। शर्मा का कहना था कि घर में बंद रहकर बोरियत के अलावा, उदासी भी सबमें घर कर रही थी, जबकि मूड्स ऑफ लाकडाउन जैसी शृंखला ने पाठकों को काफी हद तक बांधे रखा।
सुनो कहानी और उपन्यास
वेबसाइट्स पर पाठकों का जमावड़ा खूब लगा, लेकिन वहां ज्यादातर सामग्री मुफ्त में उपलब्ध है, ऐसे में सवाल उभरता है कि क्या लॉकडाउन काल में ई बुक्स और ऑडियो बुक्स की खरीदारी भी बढ़ी? और किताबों के किस स्वरूप के प्रति रुचि में बदलाव आया?
‘राजपाल एंड संस’ के प्रणव जवाब देते हैं कि सोशल मीडिया पर जो लेखक और प्रकाशक सक्रिय रहे, उनकी ई-बुक्स और ऑडियो किताबों की मांग में इजाफा हुआ। ‘पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया’ के संजय गिरी का अनुमान था कि किताबें खरीदने के लिए डिजिटल एकमात्र माध्यम था, इसलिए हमारी ई-बुक और ऑडियो बुक्स की बिक्री अधिक हुई।
इस बातचीत से ये भी जाहिर हुआ कि मुद्रित किताबों की अनुपलब्धता की स्थिति में डिजिटल पुस्तकों ने पाठकों को आकर्षित किया है, वहीं ऑडियो बुक्स ने एक कदम आगे बढ़कर साहित्य प्रेमियों को दावत दे दी है।
‘स्टोरीटेल इंडिया’ के कंट्री मैनेजर योगेश दशरथ इस बात की पुष्टि करते हैं, ‘मार्च के आखिरी दो हफ्तों में कहानियां सुनने वालों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई। पिछले दिनों लोगों को अधिक वक्त मिला तो उन्होंने ऑडियो बुक्स सुनने को प्राथमिकता दी, क्योंकि इस तरह वे घर के काम करते हुए मनपसंद कहानी का लुत्फ़ उठा सकते थे।'यूं, ये अनुभव इस तरह दिलचस्प हो जाता है कि यहां मुद्रित शब्द पढ़ते हुए रुकने और विचार का अवसर नहीं मिलता, कथा वाचक अपनी शैली में अर्थ स्पष्ट करने का प्रयास करता है, जबकि श्रोता - पाठक अपने लिए बहुत-सी काल्पनिक अर्थानुभूति भी कर पाता है।
किताबों की दुनिया में बदलाव, पाठकों और श्रोताओं के जुड़ाव और बिक्री व ग्राहकी के आंकड़ों में इजाफे की चर्चा के बीच दो ज़रूरी बातें याद रखनी होंगी।
पहली – ‘हिंदयुग्म’ के संपादक शैलेश भारतवासी की, जो कहते हैं कि ई बुक्स के बाज़ार में 90 फीसदी का उछाल आया है, लेकिन ये पर्याप्त नहीं है। मुद्रित किताबों की तुलना में ई बुक्स की बिक्री का अनुपात यूं भी दस पर एक का है। और किसी भी स्थायी बदलाव की उम्मीद से पहले देखना पड़ेगा कि परिवर्तन कितने अरसे के लिए आया है।
‘वाणी प्रकाशन’ की अदिति माहेश्वरी गोयल अहम निष्कर्ष देती हैं– ‘हमारी साढ़े तीन हज़ार किताबें इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। इनमें पाठकों ने रुचि तो दिखाई है, लेकिन इसके सामने ऑडियो बुक की लोकप्रियता में अधिक उछाल आया है। ये तकनीक का स्वभाव है। एक नई चीज़ अपनी सुविधाओं के साथ अधिक ग्राह्य हो जाती है। ई-बुक पढ़ने के लिए जहां आपको रीडर चाहिए, वहीं ऑडियो बुक कुछ भी करते या चलते हुए सुनी जा सकती है और उसके लिए आपका पढ़ा-लिखा होना भी ज़रूरी नहीं है...।'रंगकर्मी कंचन कुछ इस तरह पुष्टि करती हैं, 'ऑडियो का कमाल ये है कि तब आंखें नहीं, बल्कि कान पढ़ते हैं।'सचमुच, ये अनुभव ऐसा है, जब कल्पना के कई नए वितान खुल जाते हैं और पाठकीय आस्वाद और बढ़ जाता है।