लघुकथा ----
मायका ....
रोज रोज की रोक टोक से रीमा बहुत ऊब चुकी थी ...उसे जाने क्यों अपनी सासू माँ की हर बात बुरी लगती ...कभी देवर कोई मजाक कर देता तो चिढ़ जातीं नंदों से अक्सर झगड़ा कर बैठती उसके पति राजीव बहुत समझदार थे सबके बीच सामंजस्य बिठाये हुए था l ज़ब भी कोई विपरीत परिस्थिति होती वो बहुत समझदारी से काम लेता और अंत में सबको अपने अनुकूल कर लेता l इस बीच पता चला की रीमा की माँ भी इसी शहर आ रही हैं ...जाने क्यों राजीव को ये बात थोड़ी नागवार लगी पर उसने किसी पर ज़ाहिर नहीं किया l उसे अपनी पत्नी की तुनक मिजाजी का खूब भान था उसे लगा की माँ का घर पास में होने से ऐसा न हो की बार बार मायका का विचार कर रीमा जो रिश्ते प्रेम से निभते आ रहे हैं , में कुछ दरार आ जाए ....इसलिए सबसे पहले उसने रीमा की माँ से ही बात करना उचित समझा और उनको कॉल लगा दिया , "माँ जी मैं राजीव बोल रहा हूँ , "
उधर से रीमा की माँ की आवाज़ आयी , "जी दामाद जी बोलिये , सब ठीक तो है न ?
इनका स्थानांतरण तुम्हारे शहर में ही हो गया है हम जल्द ही आ रहे हैं , शायद रीमा ने तुम्हें बताया हो ? "
राजीव , "जी माँ उसने बताया था ...इसी कारण फोन कर रहा हूँ ,"
माँ , "हाँ बोलो क्या बात हैं ,"
राजीव , "माँ रीमा को तो आप जानती ही हो ...कितनी तुनक मिजाज हैं , "
माँ , "मेरी बेटी है , मैं ही नहीं जानूँगी , बचपन से ही वो ऐसी है ...किसी बात पर रूठ जाती तो खाना पीना सब छोड़ बैठे जाती थी , "
राजीव , "बस यही कहना चाहता था ....उसने जबसे सुना है आप इसी शहर आ रही हैँ बहुत खुश है ...पर मुझे डर है की कहीं मेरी पिछले पांच साल की तपस्या में कोई विघ्न न पड़ जाये , "
माँ , "अरे राजीव ...तुम निश्चिन्त रहो ...हमें सब पता है मेरी नकचढ़ी लड़की को तुमने कैसे संभाला है ....हमको गर्व है की तुम जैसा समझदार इंसान मेरा दामाद है ....ईश्वर सबको ऐसा दामाद दें .....मैं तुम्हारे शहर आ जरूर रही हूँ ....पर रीमा के लिए मेरा घर मायका ही रहेगा ...ससुराल नहीं बनने दूंगी की ज़ब चाहे तब मुँह उठाये चली आये ,"कहते हुए रीमा की माँ ने फोन रख दिया l
राजीव के चेहरे पर एक अजीब सा संतोष झलकने लगा ....लगा जाने कितने बड़े बोझ तले दबा हुआ था वह अबतक lll
सीमा"मधुरिमा"
लखनऊ !!!