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रवि अरोड़ा की नजर में.........

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दुश्मन और भी हैं

रवि अरोड़ा

चार किताबें पढ़ने का यह असर हुआ कि मैंने दशकों पहले भीख देनी बंद कर दी थी । सयाने लोग बताते भी हैं कि भिखारियों के गिरोह होते हैं । ये लोग हमसे ज़्यादा कमाते हैं । इनकी गोद में जो बच्चा होता है , वह चुराया हुआ होता है । इनका कोई ठेकेदार होता है जिसके लिए ये लोग कमीशन पर काम करते हैं । इनके इलाक़े बँटे हुए होते हैं इनके गिरोहों में चौराहों को लेकर बोलियाँ लगती हैं . ..वग़ैरह वग़ैरह । लॉकडाउन खुलने के बाद आज पहली बार घर से बाहर कई जगहों पर गया । घर से निकलते समय आज भी मेरे साथ भिखारियों से सम्बंधित वही ज्ञान था । यही वजह रही कि पहला भिखारी दिखते ही मैंने उपेक्षा का आज़माया हुआ अपना हथियार निकाल लिया ।  हर बार यही तो मैं करता हूँ । मुँह फेर कर भिखारी के गिड़गिड़ाने को इस तरह से अनदेखा करता हूँ जिससे उसे संदेश चला जाये कि तू प्रोफ़ेशनल भिखारी है तो मैं भी तुम जैसों से निपटने में सिद्धस्त हूँ । मगर यह क्या भिखारी तो गिड़गिड़ाया ही नहीं । वह तो चुपचाप आकर मेरे पास एसे खड़ा हो गया जैसे उसके अनकहे शब्दों को समझने की ज़िम्मेदारी भी मेरी ही है । चूँकि शहर के तमाम चौराहों के अधिकांश भिखारियों को पहचानता हूँ अतः उसका ख़ामोशी से पास आकर चुपचाप खड़ा होना मुझे हैरान कर गया । कौतुहल में मैंने उसकी ओर देखा तो वह कोई अनजाना सा भिखारी दिखा । बेशक भीख ही माँग रहा था मगर हुलिये से क़तई भिखारी नहीं लग रहा था । भीख माँगने के उसके तरीक़े और झेंप से साफ़ नज़र आ रहा था कि उसे भीख माँगने का अनुभव भी नहीं है । अपने अर्जित ज्ञान से संवेदनाओं का जो अभाव मैंने पाया है उसी का दबाव रहा कि मैंने उसे भीख में कुछ नहीं दिया और आगे बढ़ गया ।

दो महीने घर में बंद रहने की ऊब कहिये अथवा अरसे से रुके हुए छोटे मोटे कामों का प्रेशर , शहर में कई जगह आज घूम आया हूँ । कवि नगर सी ब्लाक मार्केट , राज नगर सेक्टर दस का बाज़ार , अम्बेडकर रोड या फिर बस अड्डा , जहाँ भी नज़र गई भीख माँगते नए चेहरे दिखाई दिये । अधिकांश के माँगने का तरीक़ा बता रहा है कि उन्हें भीख माँगनी नहीं आती और शायद पहली बार यह काम कर रहे हैं । कई महिलायें एसी भी दिखीं जो भले घर की लगीं । क़द काठी से मज़बूत कई पुरुष एसे भी भीख माँगते दिखे जो सम्भवतः पहले किसी मेहनत वाले काम से जुड़े रहे होंगे । छोटे बच्चे खाने-पीने के सामान की दुकान के बाहर झुंड बना कर खड़े मिले जो आते जाते से खाने की किसी चीज़ की फ़रमाइश कर रहे थे । यह सब देख कर भिखारियों से सम्बंधित वर्षों पुराना अर्जित ज्ञान धुँआ धुँआ सा होता नज़र आया । हे भगवान ये क्या हो गया । दो महीने में ही यह क्या हालत हो गई देश की , भले लोग भी अब भीख माँगने पर मजबूर हो रहे हैं ?

आख़िरी बार 2018 में संसद में सरकार ने बताया था कि देश में कुल भिखारी 4 लाख 13 हज़ार 760 हैं । न जाने क्यों आज लगा कि महामारी के बाद इतने तो अब एक एक शहर में हो गए होंगे । बेशक अभी सब ने माँगना शुरू नहीं किया होगा मगर आख़िर कब तक वे एसा नहीं करेंगे ? हो सकता है हर कोई भीख न भी माँगे मगर खाने को कुछ नहीं होगा तो भीख का विकल्प तो और भी घातक है । रोज़ाना अख़बार चुग़ली कर ही रहे हैं कि फ़लाँ ने आत्महत्या कर ली और फ़लाँ जगह लूटपाट हो गई । अब किस मुँह से सारा दोष इस महामारी को दूँ । यहाँ तो उसके तलवार निकालने से पहले ही शहादत शुरू हो गई थी । वही मरे जिनकी बलि हर बार सबसे पहले ली जाती है । पता नहीं ये बेचारे महामारी से मरते अथवा नहीं मगर सब कुछ बंद करके सरकार ने ज़रूर उनके जीने के रास्ते बंद कर दिए । हे कोरोना मैं जानता हूँ सारा क़सूर तेरा ही नहीं है । ग़रीब के दुश्मन तो और भी बहुत हैं ।




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