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सफ़ेद झूठ बोलकर चितचोर हो गये बासु दा / रत्न भूषण




चलते चलते....
अब बासु चटर्जी निकल लिए...

प्रियतमा, किरायेदार, चक्रव्यूह, सारा आकाश, चितचोर, रजनीगंधा, छोटी सी बात, सफेद झूठ, बातों बातों में, शौक़ीन, स्वामी, पसंद अपनी अपनी, मनपसंद, एक रुका हुआ फैसला, खट्टा मीठा, पिया का घर, चमेली की शादी, मंज़िल, अपने पराये, तुम्हारे लिए, दिल्लगी आदि फिल्मों में हल्के फुल्के अंदाज़ में आम मुद्दों को पिरोने वाले फिल्मकार बासु चटर्जी भी आज दुनिया से कूच कर गए।
अपनी फिल्मों में अच्छी कहानी के साथ ही सुरीले गीतों को रखने वाले बासु दा अपने एक रिश्तेदार के जरिये बासु भट्टाचार्य से तब जुड़े जब वे कहानीकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी मारे गए गुलफाम पर तीसरी कसम नाम से फ़िल्म बनाने जा रहे थे, जिसके निर्माता थे गीतकार शैलेन्द्र।
अजमेर में 10 जनवरी 1930 को जनमे बासु दा तीसरी क़सम में बासु भट्टाचार्य के तीन सहायोगी में से एक थे, लेकिन उससे पहले वे ब्लिट्ज में कार्टूनिस्ट थे। जब साथ काम करने वालों ने बातचीत में उनसे कहा कि तुम्हारी सोच और समझ तो सिनेमा के लिए अच्छी है, तो उन्होंने यह काम छोड़ दिया। कुछ समय सहायक़ी करने के बाद बासु दा ने खुद कुछ करने का मन बनाया। उन्होंने इसके लिए राजेन्द्र यादव की कहानी सारा आकाश लिया। इसकी पटकथा उन्होंने कमलेश्वर के साथ लिखी। कलाकारों में चर्चित लोग नहीं थे। राकेश पांडे, जलाल आगा, नंदिता ठाकुर, ए के हंगल, दीना पाठक, तरला मेहता आदि को लेकर फ़िल्म सारा आकाश के साथ उन्होंने अपनी निर्देशक की पारी शुरू की। फ़िल्म को आम लोगों ने नहीं स्वीकारा, लेकिन बुद्धिजीवी वर्ग से सराहना मिली।
बासु दा ने सारा आकाश के बाद अमोल पालेकर, जरीना वहाब, विजयेंद्र घाटगे को लेकर चितचोर बनाई। इसे लोगों ने पसंद किया। इसे पसंद करने की दो वजहें थीं। एक तो इसके सभी गीत गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा..., तू जो मेरे सुर में सुर मिलाए..., आज से पहले आज से ज्यादा खुशी..., जब दीप जले आना जब शाम ढले... लोगों द्वारा खूब पसंद किए गए और दूसरी इसकी छोटी सी पारिवारिक प्रेम कहानी। उसके बाद तो उनकी लोगों में एक पहचान बन गयी। फिर रजनीगंधा, छोटी सी बात, बातों बातों में, शौक़ीन आदि बनाई। खासकर शौकीन तीन बूढ़े दोस्तों और एक युवा लड़की रति अग्निहोत्री पर आधारित एक हास्य से भरपूर फ़िल्म थी। इसमें अशोक कुमार, ए के हंगल और उत्पल दत्त का कमाल का अभिनय था। फिर स्वामी को भला कैसे भूला जा सकता है, जिसमें गिरीश कर्नाड और शबाना आज़मी ने बेहतरीन काम किया था। इसके गीत पल भर में ये क्या हो गया... और का करूँ सजनी आये न बालम... को लोग आज भी सुनते नहीं थकते। यह फ़िल्म भी खूब पसंद की गई।
बासु चटर्जी ने शुरू में भले ही नए कलाकारों को लेकर फिल्में बनायीं, लेकिन बाद में उन्हें लगा कि फ़िल्म के लिए चर्चित कलाकार चाहिए, तो उन्होंने धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, मौसमी चटर्जी, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, संजीव कुमार, जीतेंद्र, मिथुन चक्रवर्ती, राकेश रोशन आदि के साथ भी फ़िल्में बनाईं जिन्हें खूब सराहना मिली और  ज्यादातर ने ठीकठाक कमाई भी की।
जमाने के हिसाब से बासु दा ने भी खुद को बदला। उन्होंने समय के साथ छोटे पर्दे पर भी काम किया। धरावाहिक रजनी और व्योमकेश बख्शी को भला कौन भूल सकता है। व्योमकेश बख्शी को तो फ़िल्म के रूप में भी हाल में पेश किया गया, पर बात नहीं बनीं।
आमजन की बड़ी बात या समस्या को अपने हल्के अंदाज़ में कहने के लिए मशहूर बासु दा को हम उन्हें याद करते रहेंगे, जब उनकी फिल्में दिखेंगी, उनकी फिल्मों का जिक्र होगा तब तब, कि एक थे छोटी सी बात में सारा आकाश समाने वाले चितचोर बासु चटर्जी....

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