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नेताजी और केवल राजनीति / रत्न भूषण





सिर्फ राजनीति नेता जी? छी छी...

देश के नेता इन दिनों यही कहते नज़र आते हैं कि अभी देश बहुत मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। लेकिन सच यही है कि इस दौर में भी नेता लोगों की सेवा करने की बजाये राजनीति करने में जी जान से जुटे हैं। चाहे ट्रेन चलाने का मामला हो या बस चलाने का। मजबूर लोगों तक राशन पहुंचाने का मामला हो या खाना खिलाने का, सब में राजनीति होती दिखी या दिख रही है। और तो और, हद तब हो गयी जब पीपीई किट की खरीदारी में भी कमीशन का मामला ससबूत सामने आ गया। हिमाचल प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष ने इसी वजह से इस्तीफा दे दिया। वेंटिलेटर के मूल्य में गड़बड़ी का मामला गुजरात और मध्यप्रदेश से आ चुका है। मध्यप्रदेश से आटा के तोल में गड़बड़ी का वीडियो लोगों ने देखा ही है। दिल्ली में एसी वाले घरों में खूब राहत दी गयी। फोटो मेरे पास है, अन्य के पास भी होगी, तो कुछ ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है। पता नहीं, अभी तक कितना कमीशन खाया गया हो पीपीई किट, सेनेटाइजर और जरूरी चीजों की खरीद में ऐसे तमाम भारत के भाग्य विधाताओं द्वारा।
इसे हमें उस नजरिये से भी देखना होगा कि अभी हाल ही में मोदी जी ने कुछ बातों पर गौर करने को कहा था। आत्मनिर्भर और स्वदेसी होइए तथा आपदा को अवसर में बदलिए। इस बात को वे पहले से भी कहते आ रहे हैं। अब उनकी बात, खासकर स्वदेसी बनने की बात को अभी जनता, मजदूर, मजबूर और मध्यमवर्गीय लोग समझने में जुटे ही थे कि तमाम नेता, उपरोक्त बातों को गौर करें तो, या तमाम समझदार अफसर उनकी बात का मर्म फौरन समझ गए और लग गए आत्मनिर्भर होने तथा आपदा को अवसर बनाने में। ये उपरोक्त बातें इसी का नतीजा मुझे नज़र आ रही हैं। आपदा को अवसर बनाने की बात को दूसरे अर्थ में इस तरह भी देखा जा सकता है कि हम ऐसे दौर में कुछ ऐसा करें कि काम से साथ नाम भी हो। अपने कमाए हुए धन का कुछ ही हिस्सा गरीब, मजबूर, मजदूर और बीमार लोगों के बीच बांटें कि  नाम हो, लोग याद करें। अभी एक गर्भवती महिला सोनू सूद द्वारा चलाये बस से बिहार आयी और उसने गांव आकर एक लड़के को जन्म दिया। उसने अपने बेटे का नाम सोनू सूद रखा है। और भी लोग हैं जिन्होंने सोनू सूद से अधिक राशि राहत कोश में दिए हैं, क्या उनकी सोनू सूद की तरह जय जयकार हुई? नहीं न.., तो मेरी समझ से यहां उन महान दानकर्ताओं को भी कुछ ऐसा करना चाहिए था, जिससे सीधे तौर मजबूर मजदूर और जरूरतमंद लोगों को मदद मिलती। उनका नाम भी होता और दुआएं मिलतीं सो अलग से।
अब बात नेताओं की इस संकट के काल में भी राजनीति करने की, तो सभी लोग क्या कह रहे हैं, दुनिया देख सुन रही है। सरकार तो जो कर रही या नहीं कर रही है, लोगों को यह मालूम हो रहा है। फिर गड़बड़ी नहीं हो रही है, तो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने क्यों इस बारे में सरकार को हिदायत दी? देखें तो, यहां सरकार को सरकार होने की ऐंठ है और वह किसी को कुछ समझती नहीं। कहती कुछ है, करती कुछ है। ऐसे काल में भी उसकी कोशिश हमेशा यही दिखती है कि कैसे दूसरे को नीचा दिखाए। फिर वह कहीं न कहीं जनता से भी बदला लेती नज़र आती है, क्योंकि जनता ने 70 साल उन्हें यानी आज की विपक्षी पार्टी को अवसर क्यों दिया? मौजूदा सरकार यह बात भूले बैठी है कि यही आपदा उसके लिए अवसर भी है। जनता आज की मदद को हमेशा याद रखेगी जिससे सरकार की बुनियाद और मजबूत होगी और राशि भी देश के खजाने से जाएगी। उनकी जेब से कुछ नहीं जाना।
दूसरी ओर विपक्ष के लोग हैं। खासकर सोनिया जी, वे भी आपदा को अवसर बनाना भूल गई हैं। यही मौका था जब जनता उन्हें याद रखती, लेकिन वे भी मानवीय राजनीति न कर अपना सुनहरा अवसर खो रही हैं। अभी ही उन्होंने कहा है कि 75 सौ रुपये सभी लोगों को सरकार छह माह तक दे। मेरा उनसे भी कहना है कि क्या यह देश उनका नहीं है? क्या वे उस जनता के वोट से सत्ता में नहीं बनीं रहीं? जनता ने 70 सालों तक उनके परनाना ससुर, नाना ससुर, सास और पति के साथ ही उन्हें सत्ता में बनाये रखा, तो क्या उन्हें आज परेशान जनता के लिए कुछ करने का अवसर नहीं दिख रहा है? यह आपदा उनके लिए अवसर नहीं होना चाहिए था? चुनाव में जनता से वोट लेने के लिए सोनिया जी या उनकी पार्टी पैसा पानी की तरह बहा सकती हैं, लेकिन जनता के लिए सरकार से कह रही हैं कि वो 75 सौ दे? सरकार तो मगरूर है, इसीलिए तो आपको बोलने का अवसर मिल रहा है, वर्ना आप मुंह खोलने लायक नहीं होतीं। क्या आपके पास या आपकी पार्टी के पास इतनी भी राशि नहीं कि जरूरतमंद लोगों को 5 हज़ार भी दे सकें? पहले आप एक बार दे देतीं, फिर सरकार से कहतीं कि आप भी ऐसा करो। तब बात समझ में आती। सिर्फ राजनीति नहीं चलेगी नेता जी, कुछ करना होगा परेशान जनता के लिए।
आज की हालात से यह दिख रहा है कि नेता और अफसरों से भ्रष्ट देश में शायद ही कोई हो ( कुछ अपवाद हो सकते हैं), तो ऐसे में देश का भला क्या होगा! लेकिन आपको जनता याद रखेगी और देश भी याद रखेगा। नेता आते जाते रहेंगे, सरकारें भी आएंगी जाएंगी, देश फिर भी रहेगा। सच यही है...

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