चलते चलते...
मुमताज़ का ज़माना
पिछले दिनों अभिनेत्री मुमताज़ के बारे यह खबर उड़ गई कि उनका निधन हो गया। बाद में उनके रिश्तेदारों से पता चला कि खबर ग़लत थी। यह सुनकर अच्छा लगा। हमने राहत की सांस ली कि चलो, हीरोइन मुमताज़ हमारे बीच आज भी हैं।
मुमताज़ को याद करने पर बहुत सी ऐसी बातें याद आती हैं उनसे जुड़ी। उन पर किस्मत मेहरबान थी। बतौर बाल कलाकार फिल्मों में काम शुरू करने वाली मुमताज़ ने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया। सातवें आठवें दशक में तो हर रिलीज होने वाली तीसरी फ़िल्म मुमताज़ की ही होती थी। कमाल तो यह कि वे तब के हर अभिनेता, जिनका तब नाम था, जिन्हें दर्शक पसंद करते थे, जिनकी फिल्मों के लोग दीवाने थे, के साथ खूब काम कर रहीं थीं। तमाम हीरो तब उनके दीवाने थे, लेकिन उनकी चाहत कोई और थे।
मुमताज़ के दीवानों में देव आनंद, शम्मी कपूर, जीतेंद्र, धर्मेंद्र, फ़िरोज़ खान आदि का नाम आता है। मुमताज़ ने बातचीत में कहा भी है, मैं इतनी ख़ुशनसीब रही कि इतने कामयाब अभिनेता मुझे पसंद करते थे, लेकिन जरुरी नहीं कि हर साथी कलाकार के साथ प्रेम संबंध हो जाए! मुमताज़ ने शम्मी कपूर के बारे में कहा भी है, मेरे और शम्मी के बीच प्रेम संबंध थे। उस समय मेरी उम्र उन्नीस साल थी। शम्मी ने मुझसे शादी के लिए कहा था। यह भी कहा था, शादी के बाद फ़िल्मी करियर को छोड़ देना होगा, लेकिन उस समय मैं अपना करियर बनाना चाहती थी, परिवार मेरे साथ था, इसलिए मैंने शम्मी कपूर से विवाह करने से मना कर दिया। मुमताज़ ने यह भी कहा, मेरा राजेश खन्ना के साथ रोमांस खूब चला, लेकिन पर्दे पर। हक़ीक़त में उनके साथ ऐसा कुछ नहीं था। दर्शकों में हमारी जोड़ी सुपर हिट थी।
मुमताज़ ने राजेश खन्ना के साथ बड़ी सफलता फिल्म दो रास्ते (1969) से पाई। फिर 1971 में संजीव कुमार के साथ वाली फिल्म खिलौना के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट ऐक्ट्रेस का अवार्ड मिला, तो उनके पास फिल्मों की लाइन लग गयी। तभी देव आनंद ने उन्हें फिल्म हरे राम हरे कृष्णा में अपनी बहन का रोल दिया, जिसे मुमताज़ ने करने से मना कर दिया। चूंकि देव आनंद को मुमताज़ पसंद थीं और तेरे मेरे सपने में दोनों काम कर चुके थे, तो उन्हें अपने अपोजिट हीरोइन का रोल दिया। देव आनंद ने उसके बाद बहन की भूमिका के लिए जीनत अमान को चुना।
यही वह समय था, जब शोमैन राज कपूर ने भी अपनी फिल्म मेरा नाम जोकर के लिए मुमताज़ को चुना, लेकिन जब उन्हें पता चला कि जो रोल वे फिल्म में करेंगी, वह एक मॉड लड़की का है, जिसके लिए उन्हें अंग प्रदर्शन भी करना होगा। यह जानने का बाद मुमताज़ ने फिल्म करने से मना कर दिया। वही रोल फ़िल्म में सिमी ग्रेवाल ने किया।
मुमताज़ की आखिरी बड़ी फिल्म देखें तो राज कुमार कोहली की नागिन थी। इस फिल्म में उनकी मेहमान भूमिका थी, लेकिन उसके लिए भी उन्हें 8 लाख रुपये मिले थे, जो उस समय बहुत बड़ी राशि थी। फ़िल्म में रेखा की भूमिका उनसे ज्यादा बड़ी थी, लेकिन उन्हें इस रोल के लिए कुल चार लाख मिले थे। रेखा जितनी ही राशि सुनील दत्त को भी मिली थी। यह था तब मुमताज़ का जलवा। फ़िल्म आदमी और इंसान की मेकिंग के वक़्त फ़िल्म के निर्देशक यश चोपड़ा और मुमताज़ बहुत करीब आ गए थे। जब यशराज नए नए डायरेक्टर बने थे, अपनी इस फिल्म में उन्होंने मुमताज को लिया था। तब उनकी शादी पामेला से तय हो गयी थी। जब यह खबर पामेला को मिली, तो उन्होंने यश के दोस्त रमेश बहल से पूछा कि मुमताज़ और यश के बीच में क्या चल रहा है? रमेश ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है, दोनों साथ बी आर चोपड़ा की फ़िल्म में काम कर रहे हैं और सिर्फ अच्छे दोस्त हैं। हालांकि बाद में एक इंटरव्यू में पामेला ने कहा था कि रमेश ने ऐसा कहा जरूर था, लेकिन वह सच नहीं था।
मुमताज़ का जन्म 31 जुलाई, 1947 को मुम्बई, तब बम्बई में एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल सलीम अस्करी था, जिनकी मेवे की दुकान थी। मां शदी हबीब थीं, लेकिन मुमताज़ के जन्म के दो साल बाद दोनों का तलाक हो गया। मां ऐसे वक्त में क्या करती? वह मुमताज़ की बहन मलिका और भाई शाहरुख को लेकर अपने मायके आ गईं। मां ने फिल्मों में नाज़ नाम से जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर काम करना शुरू किया। मुमताज़ की एक आंटी ने भी नाज़ के साथ हो लिया। कुछ समय बीतने के बाद मुमताज़ ने भी अभिनय करने का मन बनाया, लेकिन उनकी मदद कौन करता? ऐसे वक्त में मुमताज़ अपनी बहन मलिका के साथ रोज़ाना स्टुडियो में भटकती और छोटा-मोटा रोल मांगती थीं। उनकी मां नाज़ और चाची नीलोफ़र फ़िल्मों में मौजूद थीं, लेकिन दोनों जूनियर आर्टिस्ट होने के कारण अपनी बेटियों की सिफारिश करने की स्थिति में नहीं थीं, लेकिन मुमताज़ हर हाल में एक मौका पाना चाहती थीं। उनका मानना था कि जूनियर आर्टिस्ट के रूप में ही सही, एक बार कैमरे से सामना हो जाए, तो बाद में वे सब देख लेंगी। जब वे निर्माता-निर्देशक से काम मांगतीं, बदले में जवाब मिलता, आइने में अपनी सूरत देखी है। पकोड़े जैसी नाक है...। ऐसी बातें सुनकर मुमताज़ दुखी हो जाती थीं, लेकिन उन्होंने हौसला बनाये रखा।
तब मुमताज़ की उम्र ग्यारह साल थी। उन्हें बड़ी मुश्किल से बाल कलाकार के रूप में फ़िल्म सोने की चिड़िया (1958) मिली। फिर उन्होंने 1960 के दशक की शुरुआत में फ़िल्म वल्लाह क्या बात है, स्त्री और सेहरा में काम किया। उसके बाद फिल्म गहरा दाग में उन्हें थोड़ी बड़ी भूमिका मिली, जो नायक के बहन की थी। मुझे जीने दो जैसी सफल फिल्म में उन्हें बहुत छोटी भूमिका मिली। बाद में उन्होंने लगभग सोलह ऐक्शन फिल्मों में मुख्य नायिका की भूमिका निभाई, जिनमें उनके हीरो रहे दारा सिंह। तब की बड़ी हीरोइनें दारा सिंह के साथ काम नहीं करना चाहती थीं, लेकिन मुमताज़ को काम चाहिए था, सो उन्होंने किया। अधिकतर फिल्में खूब सफल हुईं। तब दोनों के रिश्ते को लेकर चर्चे भी हुए, लेकिन मुमताज़ की कामयाबी का सफर यहां से शुरू हो गया। इसी समय बहन मलिका की शादी उन्होंने भारतीय पहलवान और अभिनेता रंधावा से की, जो पहलवान और अभिनेता दारा सिंह के छोटे भाई थे।
जब फिल्में सफल हुईं, तब निर्माताओं ने मुमताज़ में रुचि दिखानी शुरू की। उनकी कई अन्य अभिनेताओं के साथ फिल्में आईं, लेकिन राजेश खन्ना के साथ वाली राज खोसला की फ़िल्म दो रास्ते ने उन्हें ए ग्रेड हीरोइनों के बीच खड़ा कर दिया। देश के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ अभिनेत्री मुमताज़ की जोड़ी लोगों की पहली पसंद बन गयी। तब इन दोनों का पर्दे पर साथ दिखना कामयाबी की गारंटी माना जाता था। इस जोड़ी ने दो रास्ते के बाद सच्चा-झूठा, आपकी कसम, अपना देश, प्रेम कहानी, दुश्मन, बंधन और रोटी फिल्मों में काम किया। सन 1974 में जब मुमताज़ ने मयूर मधवानी से शादी की, तब राजेश खन्ना का दिल टूट गया। वे नहीं चाहते थे कि मुमताज़ अभी शादी करें। यह सच भी है, अगर मुमताज़ कुछ और साल शादी नहीं करतीं, तो काका और उनकी जोड़ी वाली कुछ और फिल्में पर्दे पर धमाल जरूर मचातीं। बाद में उन्होंने आंधियां से दोबारा फिल्मों में जमने की कोशिश की, लेकिन वक़्त बदल चुका था और दर्शक भी, तो कुछ खास नहीं हुआ। फिलहाल मुमताज़ लंदन में हैं।