चलते चलते
... इस तरह "ऐ मेरे वतन के लोगों...'गीत को मिली लता की आवाज.....
लोगों के दिल को भावविभोर करने वाला गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों....'को लेकर गायक स्वर्गीय मोहम्मद रफी से जुड़ी बात को लेकर रफी साहब के एक भक्त या प्रेमी संजीव कुमार दीक्षित, जो लखनऊ में रहते हैं, ने इसी बारे में लिखे लेख के बारे में मुझसे पूछा, तो हमने सोचा, चलो आज कुछ लिखते हैं इस गीत के बारे में, जो रफी साहब से जुड़ा अंश भर है।
वैसे इस गीत की भी अपनी रोचक कहानी है। लेकिन आज बात बस रफी साहब से जुड़ी...।
यह सही है कि तब इस गीत के गायक के रूप में रफी साहब को चितलकर ने चुना था। उनकी इस गीत को लेकर रफी से बात हुई थी, कि उनकी ही आवाज इस गीत के लिए सही आवाज है, क्योंकि तब वही मेल सिंगर थे, जिन्हें देश तब अधिक पसंद करता था। इससे पहले कुछ लोकप्रिय हुए देशभक्ति फिल्मी गीत, कर चले हम फिदा..., सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं..., हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के... आदि गाकर वे लोगों के बीच खासी लोकप्रियता पा चुके थे और ये गीत तब लोगों की जुबान पर चढ़ गए थे, लेकिन जब राय कवि प्रदीप से ली गयी, जिन्होंने इस गीत को लिखा था, तो उनका कहना यह हुआ कि चूंकि इस गीत के माध्यम से भारत माता अपने सपूतों के बारे में बता रही हैं, तो किसी मेल सिंगर से इसे गवाना सही नहीं होगा। भारत माता की आवाज के लिए हम किसी मेल सिंगर की आवाज कैसे ले सकते हैं?
चितलकर यानी संगीतकार सी रामचंद्र के सामने समस्या अब यह आ गयी कि इस गीत को वे किस महिला सिंगर से गवाएं? उस दौरान कुछ निजी समस्या को लेकर चितलकर और तब की सबसे ख्यात और लोगों की पसंदीदा गायिका लता मंगेशकर के बीच अनबन थी। दोनों के बीच बात भी नहीं हो रहीं थी और राजनीति चल रही थी। कहते हैं, तब लता ने सिंगरों से कहा कि आप सब चितलकर के साथ गाना न गाएं और चितलकर ने संगीतकारों से कहा कि वे लता से गीत न गवाएं। ऐसी स्थिति में चितलकर ने तय किया कि इस गीत को आशा भोसले से गवाया जाए। यह तय हो गया और दोनों ने कई दिनों तक रिहर्सल भी किया।
लेकिन होना कुछ और था...। जब दिल्ली में होने वाले इस कार्यक्रम की समिति के अहम लोगों में से एक यूसुफ खान यानी दिलीप कुमार को यह खबर मिली कि इस गीत को दर्शकों के सामने आशा भोसले गाएंगी, उन्होंने ऐतराज जताया। उन्होंने चितलकर से बात की और कहा, आप दोनों के निजी रिश्ते के बिगड़ने का खामियाजा देश क्यों भुगते? अन्य लोगों की राय भी यही है कि इस गीत को देश की लोकप्रिय गायिका लता ही गाएं। क्या आप यह कह सकते हैं कि लता देश की सर्वप्रिय और श्रेष्ठ गायिका नहीं हैं? यह हमारी देश सेवा है और हम सब इस गीत के जरिये देश पर हुए हालिया घाव (चीन से हार और मारे गए तमाम सैनिकों को लेकर आहत और टूटे भरतीय) पर मरहम लगाने का काम करने जा रहे हैं...। प्लीज इस गीत को आप लता जी से ही गवाइये।
दिलीप कुमार की बात सुनने के बाद चितलकर भी अब दिल से मान गए कि वे जो करने जा रहे थे, वह सही नहीं था। फिर दोनों यानी चितलकर और लता ने गीत की तैयारी की और जो गाया। श्रोता तो रोये ही, साथ ही नेहरू भी...। बाकी आप सबको मालूम है। गीत हम आज भी सुनते हैं, आगे भी सुनते रहेंगे, जब तक यह दुनिया है...।