चीन से हार पर टूटे मनोबल, निराशा को इस गीत ने किया था दूर...........
वर्ष 1962 में 20 अक्टूबर से 21 नवंबर तक एक माह तक पहाड़ी इलाकों में चले युद्ध में भारत पड़ोसी देश चीन से बुरी तरह हारा था। उस वक्त देश आजाद हुआ ही था। सैन्य तैयारियां न होने और हिंदू-चीनी भाई भाई जैसे नारे के बीच धोखे से युद्ध कर चीन ने एक बड़े भू-भाग को कब्जा लिया था। अनेक सैनिक मारे गए, उनके शव पहाड़ियों पर ही रह गए थे। नेहरू जी के रक्षा मंत्री मेनन को इस्तीफा देना पड़ा था। हार से देश में निराशा और हताशा फैल गयी। सारे राष्ट्र का मनोबल पूरी तरह टूट चुका था। कवि प्रदीप भी बेहद दुखी थे। एक शाम जब वे मुंबई के माहिम बीच पर टहल रहे थे तभी उनके मन में कुछ शब्द आए। तत्काल कागज के टुक़ड़े पर गीत-` ए मेरे वतन के लोगो`... लिख डाला। गीत को गाने से लता जी ने इंकार कर दिया लेकिन बाद में वह प्रदीप का आग्रह मान गयीं। इस गीत की पहली प्रस्तुति दिल्ली के 1963 के गणतंत्र दिवस समारोह में हुई। इस गीत को सुन नेहरू जी रो पड़े थे। राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णनन, नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी, दिलीप कुमार, राज कपूर, मेहबूब खान, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन सहित तमाम बड़ी शख्सियतें भी भावुक हो गयीं थीं। गीत के रचियता प्रदीप को जाने- अनजाने में उस समारोह में बुलाया नही गयां था। लता इस गाने को मंच पर गाते वक्त बेहद नर्वस थीं। गाने के बाद राष्टपति व नेहरू जी ने खड़े होकर लता जी का अभिवादन किया था।
आप यदि गीत पर गौर करें तो कवि ने गीत में अपनी बुरी तरह हुई हार की हकीकत तो बयां की है, साथ ही एक-एक शब्द से मनोबल भी बढ़ाया है। युद्ध के दौरान दीवाली का त्यौहार पड़ा था, उसका भी जिक्र--`जब देश में थी, दीवाली वो खेल रहे थे होली, ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आँख में भर लो पानी`...लिखा है। सेना में लडाकू कौम के हिसाब से ब्रिगेड व रेजीमेंट होते हैं। इसी नाते उन कौम में उत्साह का संचार ये शब्द लिख कर किया--- `कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई गोरखा कोई मदरासी...। गीत में लिखा है--`थी खून से लथ-पथ काया, फिर भी बन्दूक उठाके, दस-दस को एक ने मारा, फिर गिर गये होश गँवा के, जब अन्त-समय आया तो, कह गये के अब मरते हैं, खुश रहना देश के प्यारो, अब हम तो सफर करते है`...।
पहले शहीद सैनिक की लाश घर नहीं आती थी लेकिन भला हो तत्कालीन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव का, उन्होंने देवगौड़ा सरकार में हर सैनिक का शव घर लाने और हर रिटायर सैनिक की मृत्यु पर सलामी देने की व्यवस्था करायी।
चीन से 1967 में चोल घटना के रूप में एक तरह से मिनी युद्ध हुआ था जिसमें आठ चीनी और 4 भारतीय सैनिकों की जान गयी थी।
कवि प्रदीप मुबंई में गीतकार बनने से पहले मथुरा के जीआईसी में कुछ समय पढ़ाने आए थे। चीन से हार और पाक से दो युद्ध जीतने के बाद इंदिरा जी ने भारत को परमाणु संपन्न देश बनाया। उस वक्त से ही चीन व पाकिस्तान ने भारत के प्रति सामरिक नजरिया बदल लिया। देश में चार बड़ी सर्जीकल स्ट्राइक हुईं जो इंदिरा गांधी के पीडियड की हैं। इनमें सिक्कम को भारत में मिलाने के अलावा पूर्वोत्तर में कई उपलब्धियां हासिल हुईं.
अब चीन से तनाव है। ऐसे में नेपाल जैसे आसपास के छोटे-छोटे देश `दिल से` भारत के साथ हैं लेकिन इन देशों के दिल पर `धींगरा चीन` का दबाव ज्यादा दिख रहा है। यही वजह है कि चीन के कहने पर नेपाल जैसे `पिद्दी देश` ने अपना नक्शा अपनी संसद में पास करा कर भारत के आग्रह को ठुकरा दिया है। ऐसे में युद्ध के बजाए कूटिनीति से चीन को हराना, सबक सिखानाा ही श्रेयकर है...