प्रेमी को मुग़ल तख़्त पर बिठाने वाली पुर्तगाली महिला
नलिन चौहान, बीबीसी हिंदी के लिए
मुगल बादशाह औरंगजेब की मौत के बाद उसके बेटों में हिंदुस्तान के तख़्त पर काबिज होने के लिए जजाऊ में हुए उत्तराधिकार युद्ध (12 जून 1707) में एक बहादुर महिला और उसके तोपचियों ने निर्णायक भूमिका अदा की थी.
इस पुर्तगाली महिला का नाम था जूलियाना, जिसके तोपची सैनिकों की युद्ध में बहादुर शाह (प्रथम) की जीत तय करने में अहम भूमिका थी.
लेखक जोड़ी रघुराज सिंह चौहान और मधुकर तिवारी की 37 साल की कड़ी मेहनत और मूल पुर्तगाली पुरातात्विक स्त्रोतों के अनुसंधान करके "जूलियाना नामा: ए पुर्तगीज कैथोलिक लेडी एट द मुगल कोर्ट (1645-1734)"लिखी है.
यह किताब बताती है कि 20 जून 1707 को आगरा के दक्षिण जजाऊ में हुए खूनी संघर्ष में बहादुर शाह (प्रथम) की प्रेमिका जूलियाना ने उसके साथ हाथी पर बैठकर युद्ध में भाग लिया था, इतना ही नहीं, जूलियाना ने उसे भरोसा दिलाया था कि उसके सभी ईसाई साथियों ने उसकी जीत के लिए दुआएं कीं, जिनमें जूलियाना का बहनोई और पुर्तगाली तोपची प्रमुख डॉम वेल्हो डि कास्त्रो भी था.
इस उत्तराधिकार युद्ध में बहादुर शाह (प्रथम) के दूसरे भाई आज़म और कामबक्श पराजित हुए, औरंगजेब का दूसरा लड़का बहादुर शाह प्रथम (1707-12) सातवां मुगल बादशाह बना.
किताब बताती है कि बहादुर शाह (प्रथम) के पुर्तगाली तोपचियों वाले शाही तोपखाने ने जजाऊ की लड़ाई में भयंकर तबाही मचाई थी, तोपखाने की घातक कार्रवाई के कारण लड़ाई के मैदान में दुश्मन के हजारों सिपाहियों को मौत का मुंह देखना पड़ा था.
निस्संदेह यूरोपीय तोपची निशानेबाजों की सटीक गोलाबारी की इस युद्ध में निर्णायक भूमिका थी, ऐसे में महत्वपूर्ण बात यह है कि जूलियाना ने मुगल फौज में इन तोपचियों को भर्ती किया था.
इतिहास में पहली बार डाना जूलियाना डियास डा कोस्टा के रूप में जूलियाना के पूरे नाम को ढूंढ निकालने का श्रेय उमा डोना लिखने वाले प्रोफेसर जोस एंटोनियो इस्माइल ग्रेशिया को जाता है. ब्रावेट का "अलहवाल-ए-बीबी जूलियाना"एकमात्र स्रोत है जो जूलियाना की शुरुआती जिंदगी के बारे में बताता है.
जूलियाना का जन्म 1645 में आगरा में हुआ और उस समय उनकी मां शाहजहां के जनवासे में रह रही स्त्रियों में से एक थीं.
वह अपने पति (फ्रैंक) की मौत के बाद एक जवान विधवा के रूप में फादर एंटोनियो डी मैगलेंस के पास दिल्ली आ गई थी, पुर्तगाली वायसरॉय कंडे डी अल्वोर के दौर में औरंगजेब के मुगल दरबार में जुलियाना के पति या पिता के नाम के उल्लेख के बिना उसकी मौजूदगी की खबर एक रहस्यमय बात है.
मुगल दरबार में जूलियाना की नियुक्ति में फादर मैगलेंस ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसी का नतीजा था कि वह बहादुर शाह (प्रथम) की सबसे कम उम्र की शिक्षिका बनीं. औरंगजेब ने जूलियाना को बहादुर शाह प्रथम के उस्ताद मुल्ला सालेह को हटा कर उसकी शिक्षिका नियुक्त किया था.
यह कदम बहादुर शाह (प्रथम) और जूलियाना की जिंदगी के हिसाब से एक बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उस समय वे दोनों ही जवान थे, तब बहादुर शाह (प्रथम) की उम्र अठारह साल तो जूलियाना सत्रह साल की थी.
1714 में दिल्ली में जूलियाना से मिलने वाले फादर देसीदेरी के अनुसार, जूलियाना ने मुगल शहज़ादे-शहज़ादियों सहित शाही ख़ानदान के दूसरे बच्चों को पढ़ाया था. उल्लेखनीय है कि दिल्ली में दारा शिकोह की हवेली में बहादुर शाह (प्रथम) और जूलियाना की पहली मुलाकात हुई थी जो कि उस समय बहादुरशाह (प्रथम) का निवास स्थान था.
बहादुर शाह ज़फ़र की ओर से पुर्तगाली राजा को लिखा गया ख़त. ख़त पर 12 जुलाई 1710 की तारीख़ है. 19 जनवरी 1711 को गोवा में फ़ारसी से पुर्तगाली में इसका अनुवाद किया गया था.
1681-82 के आस-पास जूलियाना गोवा से मुगल दरबार में पहुंची थी और शीघ्र ही औरंगजेब की बेग़म और बहादुर शाह (प्रथम) की मां नवाब बाई की ख़िदमत में लग गई थी.
जब 1686 में बहादुर शाह (प्रथम) और उसकी मां के औरंगजेब के गुस्से का शिकार होकर कैद हुए तब जूलियाना ने उनके प्रति अपनी अटूट वफादारी निभाई, बहादुर शाह (प्रथम) के गोलकुंडा के शासक अब्दुल हसन के साथ मेलजोल बढ़ाने से नाराज़ होकर औरगंजेब ने उसे कैद में डाल दिया था.
1693 में हालात बहादुर शाह (प्रथम) के हक में हुए और यहाँ तक कि उसे कैद से निकालने में भी जूलियाना ने भूमिका निभाई, जूलियाना के बहादुर शाह (प्रथम) की शिक्षिका होने और फिर उसके जनाना में मुख्य परिचारिका होने के कारण इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि उसने कैद के दौरान बहादुर शाह प्रथम की बहुत मदद की थी, यह बात जूलियाना की भक्ति, निष्ठा और बहादुर शाह (प्रथम) के साथ उसके विशेष संबंध का प्रतीक है.
पुर्तगाली दस्तावेजों के अनुसार, जूलियाना डि कोस्टा और गोवा के वायसरॉय कॉन्डे विला वेर्डे के बीच 1694 में राजनयिक पत्राचार हुआ, तब जूलियाना दक्कन में मुगल दरबार के शिविर में थी. जूलियाना के इन पत्रों से यह साफ होता है कि बहादुर शाह (प्रथम) की रिहाई से जूलियाना की इज़्ज़त में काफी इज़ाफ़ा हुआ और उसने मुगल दरबार में ऊंचा स्थान बना लिया.
1693 में बहादुर शाह (प्रथम) को कैद से आजाद करके काबुल का सूबेदार बनाकर भेज दिया गया, उसने झंग, पेशवार, खैबर दर्रा, जलालाबाद और जगदलक के रास्ते से होते हुए 4 जून 1699 को काबुल की हुकूमत को उखाड़ फेंका. फिर आठ बरस औरंगजेब की मौत तक बहादुर शाह (प्रथम) ने काबुल में अफगानिस्तान में मुगल सूबेदार के नाते समय बिताया.
इस दौरान भी जूलियाना उसके साथ ही थी और अपनी मौत तक बहादुर शाह (प्रथम) के संग ही रही.
दिलचस्प बात यह है कि इसी समय जुलियाना ने गोवा से पुर्तगाली सैनिकों को काबुल बुलाकर बहादुर शाह (प्रथम) की सेना में भर्ती करवाया था, तब शायद उसे भी यह पता नहीं था कि ये पुर्तगाली तोपची उसे हिंदुस्तान का ताज दिलवाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे.