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सोमपाल शास्त्री और राजनीति की पड़ताल / वीरेंद्र सेंगर






आज फेसबुक ने एक पुरानी फोटो के जरिए तमाम स्मृतियां ताजा कर दीं।पूर्व केंद्रीय मंत्री सोमपाल शास्त्री     से गुप्तगूं   की फोटो है।उनसे मेरे दशकों पुराने रिश्ते हैं।आमतौर पर राजनेताओं के साथ फोटो का मुझे कोई शौक नहीं रहा है।ऐसा भी नहीं है सभी राजनेताओं से मेरी कोई वितृष्णा हो।दिल्ली में पत्रकारिता करते साढ़े तीन दशक हो गये।यहां शुरुआत ही राजनीतिक पत्रकारिता से हुई थी।यह सिलसिला जारी ही है। .1987मे ं चौथी दुनिया अखबार से जुड़ा था।कुछ महीनों में ही राष्ट्रीय स्तर पर यह अखबार बहुचर्चित हो गया था।धारदार राजनीतिक संवाददाता की पहचान जल्दी बन गयी थी।इसी दौर मे ं मुलाकात हुई थी सोमपाल जी से।जो कब धुर मित्रता में बदल गयी पता ही नहीं चला!                                        .पत्रकारिता के लंबे दौर में सभी प्रमुख दलों के चर्चित नेताओं से संसद में और संसद के बाहर मुलाकातें होती रहीं। इस दौर में तमाम नेता प्रभुओं के असली, नकली चेहरे अच्छी तरह देखने को मिले।बड़े बड़े नेताओं का बौनापन और खोखला पन देखा।निजी जीवन मे ं उनके दोहरे पन को देखा।आर्थिक, सामाजिक मुद्दों पर इनके अज्ञान की पराकाष्ठा भी देखी।कुछ सामाजिक न्याय के नायकों के निजी जीवन मे ं धुर सामंती आचरण का खेला देखा।इस तरह की विसंगतियों की वजह से बड़ों का इतना बौनापन देखा कि कभी निजी तौर पर उनसे नजदीकी  रास नहीं आयी।यह जरूर है कि इस सफर में कुछ ऐसे लोग भी मिले जिनके के लिए बहुत सम्मान और गर्व रहता है।                         सोमपाल जी ऐसों मे ं ही है।लंबे दौर में उनकी निष्कपटता और आत्मसम्मान के लिए डटे रहने के उनकेेे कुछ मौकों पर गवाह भी रहा  हूं।पूर्व पीएम वीपी सिंह के वे बहुत करीबी थे।अघोषित राजनीतिक सलाहकार की भूमिका में रहे।जनता दल की हालत डगमगाने लगी तो  वीपी सिंह से बाकायदा इजाजत लेकर भाजपा में गये थे।भाजपा में उनके सीधे रिश्ते अटलजी और आडवानी जी से थे।लोकसभा में वे दिग्गज नेता चौधरी अजित सिंह को हरा कर पहुंचे थे।उस दौर तक चौधरी साहब लगभग अपराजेय माने जाते थे।इसी के चलते उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली थी।कृषि मंत्रालय का स्वतत्रं प्रभार उनके पास था।किसानों से जुड़े कुछ मुद्दों पर उन्होंने सरकार पर निर्णायक दबाव बनाया था।इसमें वे सफल भी हुए थे।कृषि, जल प्रबंधन व वित्तीय मामलों में उनकी गहन जानकारी थी।वे अति विनम्र भी रहते हैं और जरूरत पड़ने पर अक्खड़पन में भी भारी पड़ते थे।जब वे मंत्री थे उनके सरकारी आवास में पीएम वाजपेयी की फोटो थी तो बगल में वीपी सिंह की फोटो भी टंगी रही।भाजपा के कई नेताओं को यह बात अखरती थी।यही कि कैसे भाजपा के धुर विरोधी नेता की तस्वीर भाजपा के मंत्री के घर बिराजमान है।ये बात पार्टी आलाकमान तक पंहुची थी।सोमपाल जी ने वाजपेयी को बताया और दोनों खूब हंसे थे।वाजपेयी जी ने कहा था निजी रिश्तों की वफादारी की इतनी दबंगई सोमपाल ही निभा सकता है।मैं इसकी कद्र करता हूं।                      इसी दौर में उनके एक दौरे में मैं साथ था।मेवात से आये कुछ मुस्लिम किसानों ने तंज कसा कि अब वे पहले की तरह उनके हितों की आवाज कैसे उठा पांएगे?सोमपाल जी बोले वे देश के मंत्री हैं।सब उनके लिए बराबर हैं।इस पर एक किसान ने भाजपा की नीति पर तंज किया।कहा अब भाजपा मे ं आकर आपके भी हाथ बंध गये होंगे?                   सोमपाल जी ने सफाई दी कि उनकी सरकार में मुसलमानों के साथ भी भेदभाव नहीं होगा।कम से कम वे ऐसे नेता नहीं हैं जो कुर्सी के लिए अपने जमीर को मार दें।वे सरकार के एजेण्डे पर चलते हैं।किसी सांप्रदायिक एजेण्डे पर नहीं।उनके इस तेवर से संघ परिवार के तमाम मतवाले तुनके रहते थे।मैंने  इस मामले में जब भी चर्चा की,उत्तर यही मिला ईमानदारी से काम करता हुं तो हिडेन ऐजेंडा पर चलने का क्या काम?सवाल किया इतनी सीधी लकीर पर चले तो कुर्सी तो जाएगी?ऐसी चिंताओं पर वे जोर का ठाहका लगा देते थे।                   वे करीब 75के हो चले हैं।लेकिन हैं एकदम चुस्त।चुनिंदा टीवी बहस में ही आते हैं।कृषि मामलों उनका एकेडमिक और ठेठ किसानी का ज्ञान अद्भुत है।वे सटीक और तथ्यात्मक बोलते हैं।हिंदी और अंग्रेजी के साथ वे धाराप्रवाह संस्कृत भी बोल लेते हैं।वे लंबे समय तक योजना आयोग में रहे।किसान आयोग के प्रमुख भी रहे।भाजपा से अलग होने बाद कुछ अफ्रीका के देशों मे  योजना सलाहकार भी रहे।इतने ओहदों मे ं रहने के बाद भी फिर से ठेठ किसानी के काम मे ं लौट आए हैं।पहले गुड़गांव में अपने फार्महाउस में ठेठ किसान की तरह जुट जाते थे।अब पंजाब में चंडीगढ़ के पास फार्म बना लिया है।उनकी बागवानी का हुनर कमाल का है।                                .          पिछले दिनों ही सवाल किया था कि आप जैसे का उपयोग राजनीति में और जरूरी हो गया है?जवाब प्रति प्रश्न के रूप मे ं मिला।यही कि आप जैसे संवेदनशील और जमीनी पत्रकारों की भी तो ज्यादा जरूरत है।लेकिन मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान ने सब को बाहर का दरवाजा दिखा दिया है न!कोरोनाकल है।हालात बदतर हैं।पूरा देश मौनी बाबा बन गया है।जो भी सरकार से सवाल करे उसकी देशभक्ति पर प्रश्न चिन्ह लगा दो।वाह रे लोकतंत्र!वे जोर से सांस लेते हैं।कहते हैं वीरेंद्र जी !सत्ता आती जाती रहेगी।लेकिन संविधान की मूलभावना से खिलवाड़ चलता रहा तो भारतीय लोकतंत्र और लुंजपुंज होगा।इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ सत्ता प्रभु!ही नहीं होंगे।हम और आप भी होंगे जो उम्मीद यही करते हैं कि भगतसिंह जैसे जांबाज देशभक्त तो पैदा हों,लेकिन हों पड़ोसी के यहां!बाबा हमारे यहां नहीं।राजनीति से लेकर सामान्य  जीवन में पाखंड का बोलबाला बढ़ा है ,सो सीधी सच्ची बात गले कम उतरती है।जुमलेबाजी हिट होती है और जुमले बाज ही महानायक बन बैठते हैं।मैंने एकदिन पूछा था  कुछ।वे बोले थे,हर सवाल का जवाब जरूरी नहीं है कि हो ही।कुछ जवाब सिर्फ समय के पास होते हैं।अच्छे की उम्मीद रखनी होगी।क्योंकि रात कितनी भी काली हो वो अनंतकाल के लिए ठहर तो नहीं सकती ? वैसे भी इतिहास गवाह है कि ऊपर से लोहालाट दिखने वाली सत्ता अंदर से बहुत खोखली होती हैं।सो उन्हें विरोध के तिनके से भी भय लगता है।यह सर्वकालिक सत्य है।वो आज भी कहां बदला है!

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