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पिता को याद करतें हुए / वीरेंद्र सेंगर






एक पाती पिता के नाम! 

   पितृ दिवस पर तमाम मित्रों की पोस्ट पढ़ी।मन भावुक हुआ।पिता श्री की स्मृतियों कौंध गयीं।दशकों  हो गये बिछुड़े थे। मैं 19का था  ।1975may में कानपुर के हैलट अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।करीब एक महीने की बीमारी के बाद।कभी घर से दूर ही नहीं था।सो उन्हें पाती लिखने का मौका ही नहीं मिला।आज लिख रहा ह्ं।ऐसी पाती जो कहीं नहीं पंहुचने वाली।                              बस,इतना बता दूं कि  पिताजी एक मध्य  वर्गीय किसान परिवार से थे।संयुक्त परिवार था।जमाने से  परिवार की धाक थी।क्योंकि बाबा जी ख्यात सरपंच थे।उनके बारे में कहा जाता था जिस पंचायत में वे हों ,वहां अनन्याय नहीं हो सकता  ।बचपन में उनके पंचपरमेश्वर वाले कुछ किस्से सुने थे।        समाज सेवा के लिए उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ज्वाइन की थी।इसका चुनाव चिन्ह झोपड़ी था।..इस मंच से वे किसानों से जुड़े मुद्दे उठाते थे। जमीन से जुड़े मामलों में कुछ मुकदमे बाजी भी चलती थी।..इनसे निपटने की जिम्मेदारी थी।जीवनशैली धुर गांधी वादी थी। बात बात में अहिंसा की दुहाई देते थे।उनके कुछ साथी कांग्रेस में चले गये थे।विधायक बन गये थे।यहां तक कि वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में जाने को तैयार नहीं हुए थे।जबकि उनकी झोपड़ी.वाली पार्टी की हालत खस्ता थी।कानपुर में गिनती के नेता ही बचे थे।उस दौर में इंदिरा गांधी का दबदबा था। कांग्रेस विरोध तो घूटी में ही मिला था।देश की लगभग हर बुराई की वजह कांग्रेस को बताया जाता था।                      .             .   
 बस,धुंधली यादें भर हैं।आपके समय की राजनीति की।कई तहसीलों में आपके भाषण सुने थे।अच्छे भाषण कर्ता थे।खूब वाहवाही मिलती थी।चुनाव इस लिए नहीं लड़ते थे।क्योंकि बेईमानी के हथकंडे अपनाने पड़ेगें।गांधीजी आपके आड़े आ जाते थे।
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 आप इसलिये बेचैन हो जाते थे कि विधायक सांसद पांच दस साल मे ं लखपति कैसे बन जाते हैं।अगर जनप्रतिनिधि ही बेईमान होंगे तो समाजवाद का और गांधीजी का सपना कैसे पूरा होगा? 
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बीमारी के दौर में काफी बातें हुंई थीं।आप ने कहा था बापू की लकीर पर चलकर चुनावी राजनीति नहीं हो सकती।अब महसूस कर रहा हूं।पूछा था,पछतावा है?आप बस,हल्के से मुस्कराए भर थे।आंखों में आंसू भर आए थे।इन्हें आप छुपा नहीं पाए थे। बहुत कुरेदने पर इतना ही बोले थे कि उनके आदर्श नेता भी फिसले हैं। इसका मलाल है। पूछा था आगे कैसा भविष्य लग रहा है?आपने कहा था देश प्रगति करेगा।लेकिन पूंजीवाद का बोलबाला होगा।गरीब के साथ ज्यादा छल बढ़ेगा।जनसंघ का जिक्र आया था।आपने मुंह बिचका दिया था।इतना भर ही तो कहा था ये दल कम से कम से कम गुंडों को टिकट तो नहीं देता।अभी शहरी इलाके मे ं आधार है, कल गांव तक प्रभाव बढ़ सकता है ।आप चिंहुक उठे थे।मुंह में हथेली लगा दी थी।      .     

 पूछा क्या हुआ?आपने कहा था कांग्रेस ने बापूजी के साथ छल किया है।बेईमानी की संस्कृति बढ़ाई है। घोर नालायकी की है।हो सकता है पार्टी से वंश परंपरा का दौर खत्म हो जाए।और पार्टी में सुधार हो।सवाल किया था कि कांग्रेस की खतरनाक बातें क्या लगती हैं?आपने कहा था वोटबैंक के लिए मुस्लिम तुष्टीकरण बढ़ाना सबसे खतरनाक है ।इससे इस कौम का भी भला नहीं होना।और जनसंघ की हिंदुत्व की राजनीति को बढ़ावा मिल जाएगा।

एक बार राजनीति में धर्म की अफीम की लत लग गयी तो देश की एकता के लिए बड़ा खतरा खड़ा होगा।मैंने आपका प्रतिवाद किया था।यही की समाजवादी अड़ियल होते हैं।आपने कहा था कि अड़ियल होना सड़ियल होने से अच्छा है।आपने कहा था धर्म और जाति के नाम पर लोगों को बहकाना आसान होता है।आपने ये भी कहा था कि पच्चीस साल बाद जब देश नयी सदी की सुबह देखेगा ,तब तक  पढ़ी लिखी पीढ़ी होगी।तब नेता लोगों शायद इतना. मूर्ख न बना पांए?लोकतंत्र मजबूत होगा।जो अच्छे दिन हम नहीं देख     पाए तुम लोग देखोगे।दरअसल, तब आपको यह अहसास हो गया था कि आप बचने वाले नहीं हैं।आप ज्यादा जज्बाती हो चले थे।    ..

मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इन लोगों की तरह आपने अच्छे दिन आने की बात क्यों की थी?क्या आप भी  तंज कर रहे थे?या आप हसीन सपना बता रहे थे?मैं नहीं जानता आप कहा ं किस रूप में हैं?पाती आपके नाम है।बता देना चाहता हूं अच्छे दिन जुमला भर हैं।खुद सरकार के कारिंदों ने बता दिया है।आप को गये 45साल हो गये हैं।देश ने बहुत तरक्की की है।आपके बापू की मूर्तियां खूब बढ़ गयी हैं।धर्म और राजनीति के नाम पर खुलकर खेल चल रहा है।

जनसंघ नये अवतार में छा गयी है।    .लोकतंत्र का आज का हाल देखने के लिए आप नहीं हैं।आप समझो आप की यही सदगति है।आपने जरूर पुण्य कमाया होगा।आप हजारों रू के भ्रष्टाचार के लिए हाहाकार मचाते थे।अब लोग पलक झपकते अरबों झपट लेते हैं।कोई सांस नहीं लेता।लोग पढ़ लिख गये हैं।लेकिन जनतंत्र रोज कमजोर हो रहा है।आपके समाजवादी सपने का हाल चुनाव चिन्ह झोपडी जैसा हो चला है।जबकि मंत्री महलों में बिराजते हैं।

मानो ये हर रोज बापू को चिढाते हैं।जब आप कम उम्र में चले गये थे,तब बहुत दुख हुआ था।क्योंकि मुझे याद है आप भरी दोपहर बीस बीस मील साइकिल चलाकर सभाओं में पहुंचते थे।ताकि. लोग आपकी सादगी के.मुरीद बने.रहें।अब बहुत कुछ बदल गया है।सब बताने लगूं तो आपको बहुत कष्ट होगा   ।

Nआपके दौर में जिलास्तरीय नेता जितनी अभद्र भाषा का इस्तेमाल नहीं करते थे,वह अब देश के जन नायक करते हैं।सो अब के राजनीतिक विकास का अंदाजा लगा लीजिए बस,इतना जरूर है आप लोगों की हाय कांग्रेस को जरूर लग गयी है ।बाकी जहां तक देश का हाल है!वो राम भरोसे ही है।आखिर मे  एक निवेदन है।हो सके तो समाजवाद के लिए दुआ करना।क्योंकि पिताजी पीर पर्वत सी हो गयी है। प्रणाम! ।      .प्रणाम. 

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