अमेरिका में भारतीय छात्र
अमेरिका में पढ़ने गए भारतीय छात्रों को ट्रंप सरकार की इस घोषणा से फिलहाल कुछ राहत मिली होगी कि
उनके लिए एफ-1 वीजा के नियमों को सरल किया जाएगा। इसे भारतीय विदेश मंत्रालय के वार्ताकारों की सफलता भी माना जा सकता है। लेकिन इससे यह सच्चाई टल नहीं जाती कि किसी भी संकट काल में अमेरिका के लिए अमेरिकी पहले हैं। उनके लिए आप बाहरी और विदेशी हैं तथा किसी भी समय वे आपको दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक सकते हैं। यह भी कि यदि फिलहाल ढील दी जा रही है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि कल आपको फिर से अवांछित घोषित नहीं किया जा सकता। तैयार रहें कि आपको कभी भी रातोंरात अपने देश लौटने के लिए विवश किया जा सकता है। इसलिए अमेरिका गए हुए इन युवा पंछियों को यह न भूलना चाहिए कि परदेश परदेश ही होता है। जब तक आप अमेरिका के लिए लाभकारी हैं, तब तक वहाँ आपका स्वागत है। लेकिन जैसे ही लगा कि आप बोझ बन रहे हैं, या आपके कारण कोई असुविधा हो रही है, तो वे आपको निकाल बाहर करेंगे।
गौरतलब है कि अमेरिका ने पहले यह घोषणा की थी कि कोरोना आपदा के दौरान अमेरिका में रह रहे जो भारतीय छात्र अब वहाँ 'ऑनलाइन परीक्षा'दे रहे हैं, उन्हें अब नए नियम के अनुसार अमेरिका में रहने की अनुमति नहीं होगी। ऐसे छात्रों को वीजा जारी नहीं किया जाएगा। अतः विधिवत सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा कर देने पर ही उन्हें अमेरिका में प्रवेश करने की अनुमति मिल पाएगी। यानी उन्हें कह दिया गया कि अमेरिका छोड़ कर अपने घर लौट जाएँ। ऑनलाइन परीक्षा तो कहीं से भी दी जा सकती है- अपने घर में रह कर भी! उसके लिए अमेरिका में रहने की कोई ज़रूरत नहीं। इस बुरे वक़्त में अमेरिका से खुद अपने लोग नहीं सँभल रहे हैं। इसलिए आपकी कोई ज़िम्मेदारी वह क्यों उठाए? सयाने भले ही इसे इन छात्रों के प्रति ट्रंप सरकार की क्रूरता कहें, या इस नियम में ढिलाई देने के आश्वासन को उसकी सदाशयता बताएँ; यह तो स्पष्ट ही है कि अमेरिका आपत्ति काल में आपके काम आने वाला नहीं। और यह तो आप भी जानते होंगे कि जो आपत्ति काल में काम न आए, साथ छोड़ दे, वह दोस्त नहीं होता। यानी, अमेरिका ने यह नियम लाकर एक तरह से अपने व्यापारी चरित्र को ही उजागर किया है। सुना तो आपने भी होगा ही कि व्यापार में कोई सगा नहीं होता! हाँ, फिलहाल खुश हो लीजिए कि भारतीय छात्रों के भविष्य और उनके हित को ध्यान में रखते हुए अमेरिका एफ -1 वीज़ा के बारे में फिर से सोचेगा और इसके प्रभाव को कम करने की कोशिश करेगा।
ध्यान रहे कि पुनर्विचार करते हुए, भारत या अन्य देशों के छात्रों को देश में रहने की अनुमति देने से अमेरिका की कोई उदारता और सदाशयता प्रकट नहीं होती। वॉशिंगटन आधारित एजेंसी एसोसिएशन ऑफ इंटरनेशनल एजुकेटर्स के अनुसार अमेरिका के राजस्व में अंतरराष्ट्रीय छात्र 30,000 करोड़ से ज्यादा का योगदान करते हैं। अतः ढील के बदले में आपको बिछ बिछ जाने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि इस अनुमति का कारण ट्रंप प्रशासन को इस सच्चाई का बोध होने में निहित है कि अंतरराष्ट्रीय छात्र अमेरिका की अर्थव्यवस्था में राजस्व का एक बड़ा स्रोत हैं।
अंततः यही कि अमेरिका के इस झटके से भारत को सीख लेनी चाहिए और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा की खुद अपने यहाँ व्यवस्था करनी चाहिए। लेकिन, दुर्भाग्य है कि शिक्षा हमारे यहाँ किसी सरकार का सरोकार नहीं है! 000