कोरोना काल में आतंकवाद
कोरोना संक्रमण यों तो स्वयं किसी विश्वस्तरीय आतंकवादी आक्रमण से कम नहीं। लेकिन अब इसकी आड़ में आतंकी समूहों के सक्रिय होने का एक और बड़ा खतरा विश्व बिरादरी के सामने है। इन आतंकी समूहों को दुनिया भर में कोरोना की वजह से पैदा हुई अस्त व्यस्तता का फायदा उठाने से रोकने की चुनौती का समय रहते तोड़ न खोजा गया, तो हालात बेकाबू भी हो सकते हैं। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने दुनिया को आगाह किया है कि कोरोना काल में बहुत से देश आतंकवादी ख़तरों और जोखिमों का सामना कर रहे हैं। यह तो किसी से छिपा नहीं है कि विश्व स्तर पर आतंकवाद के कई नए रूप उभर रहे हैं। डिजिटल टैक्नॉलॉजी के ग़लत इस्तेमाल और साइबर हमलों से लेकर जैविक आतंकवाद तक का खतरा सभ्य दुनिया के सिर पर मँड़रा रहा है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा है कि इस्लामिक स्टेट (दाएश), अल-क़ायदा, नवनात्ज़ी और श्वेत वर्चस्ववादी समूहों सहित अन्य आतंकवादी गुट, वैश्विक महामारी कोरोना से उपजे संकट का इस्तेमाल अपने फ़ायदे के लिए करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसे रोका जाना ज़रूरी है।
कोरोना और आतंकवाद की एक जैसी फितरत की तरफ इशारा करते हुए महासचिव गुटेरेश ने सही ही ध्यान दिलाया है कि, “वायरस की तरह आतंकवाद भी राष्ट्रीय सीमाओं का सम्मान नहीं करता। यह सभी राष्ट्रों को प्रभावित करता है और इसे सामूहिक रूप से ही हराया जा सकता है।” इसे मनुष्यता का दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिए कि विश्व के बड़े देश एकजुट होकर इस संकट का मुकाबला करने से ज़्यादा ध्यान एक दूसरे पर आरोप मढ़ने पर दे रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि इन महाबलियों की इस रार का फायदा कोरोना के साथ आतंकवादी भी उठा ले जाएँ!
वैश्विक महामारी के संदर्भ में रणनीतिक और व्यवहारिक चुनौतियों पर चर्चा करते हुए गुटेरेश स्वीकार करते हैं कि दुनिया जिस तरह के खतरे से आज वाबस्ता है, संयुक्त राष्ट्र के 75 साल के इतिहास में वह अभूतपूर्व है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि कोरोना संकट ने निर्ममता पूर्वक यह उजागर किया है कि दुनिया भर की स्वास्थ्य प्रणालियाँ ही नहीं, अर्थव्यवस्थाएँ भी कितनी नाकाफी और भंगुर हैं। सयाने बताते हैं कि अनेक आतंकवादी संगठन इस दौरान सामने आई सामाजिक दरारों, विफलताओं और स्थानीय समस्याओं का फायदा उठाने की फिराक में हैं। आतंकवाद का कारगर ढंग से मुक़ाबला बहुपक्षवाद की ताक़त के ज़रिये व्यावहारिक समाधान खोज कर ही किया जा सकता है। इसलिए यह ज़रूरी है कि केवल अपना भला सोचने की तुच्छ प्रवृत्ति से बचा जाए।
यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में हम इतने लीन न हो जाएँ कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कमज़ोर पड़ जाए। इसलिए ज़रूरी है कि ज़रूरतमंद देशों के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर आतंकवाद-निरोधक क्षमताओं में निवेश में बाधा न आने पाए। कोरोना के फैलाव के समांतर आतंकवाद के ख़तरों के बदलते रूपों पर निरंतर निगरानी रखनी होगी। साथ ही, जवाबी कार्रवाई के रूपों को भी अभिनव बनाना होगा।
स्मरण रहे कि अफवाह भी आतंकवादियों का बेहद खतरनाक हथियार है। इसलिए विश्व बिरादरी को आतंकवादी गुटों द्वारा फैलाई जाने वाली धारणाओं व कपोल-कथाओं के फैलाव को रोकने के लिए भी समग्र कार्रवाई करनी पड़ेगी। वरना विभिन्न समुदाय इन अफवाहों के चलते आपस में कट मरेंगे। ऐसा हुआ तो आतंकवादी बिना लड़े ही जंग जीत जाएँगे। यहीं यह कहना भी ज़रूरी है कि कोरोना से लड़ने के दौरान मिले अनुभवों से सबक़ लेने के लिए जानकारी साझा करने की प्रक्रिया को मज़बूत बनाना होगा। क्योंकि यह किसी एक देश की नहीं, समस्त मनुष्य जाति की साझी आपदा है। 000