चीनी गुंजलक से निकलने का रास्ता
खबर है कि उद्योग मंडल एसोचैम ने 15 ऐसी आयातित वस्तुओं की सूची तैयार की है, जिनका आयात धीरे-धीरे कम कर भारत आत्मनिर्भर बन सकता है। उसने इसके लिए घरेलू उत्पादन पर जोर देने की अपील की है, ताकि हमें चीन का मुँह न ताकना पड़े और चीन मुँहकी खाए! गौरतलब है कि गलवान झड़प के बाद के घटनाक्रम से अब यह साफ हो गया है कि व्यापार-व्यवसाय के मोर्चे पर भारत-चीन संघर्ष लंबा चलेगा। हिला हुआ आपसी विश्वास वापस पहले जैसी सहयोगी मुद्रा में अब शायद न लौट पाए। एक तरह से यह अच्छा भी है। कहा जा सकता है कि इस बहाने देश के सामने एक ऐतिहासिक अवसर उपस्थित हुआ है, जब हम चीन पर निर्भरता के गुंजलक से खुद को आज़ाद कर सकते हैं। यह 'आत्मनिर्भर भारत'की दिशा में बड़ा कदम होगा। चीन के प्रति देशवासियों के गुस्से का रूपांतरण आर्थिक, व्यावसायिक और तकनीकी स्तर पर चीन पर निर्भरता से मुक्ति में हो सके, तो बिगड़ा हुआ व्यापार समीकरण भारत के पक्ष में हो सकता है। इस लिहाज से उद्योग मंडल एसोचैम की यह पहल उल्लेखनीय है।
सयाने बताते हैं कि भारत हर महीने अरबों डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स आयात करता है। सच तो यह है कि गैर-तेल आयात खंड में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान का हिस्सा सबसे अधिक है। याद रहे कि लॉकडाउन के बीच भी मई, 2020 में भारत ने 2.8 अरब डॉलर मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक्स सामान का आयात किया। एसोचैम के मुताबिक सामान्य दिनों में यह आयात हर महीने लगभग 5 अरब डॉलर का होता है। यानी, इस पर बड़ी विदेशी मुद्रा खर्च होती है। ध्यान रहे कि इलेक्ट्रॉनिक्स के इस आयात में चीन की हिस्सेदारी लगभग 43 प्रतिशत है। अगर इस क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बन जाए, तो चीन को कितना भारी धक्का लगेगा, इसका सहज अनुमान किया जा सकता है। बेशक मुश्किलें हैं, पर यह माना जा रहा है कि निशानदेही किए गए 15 उत्पादों का घरेलू उत्पादन बढ़ाकर हम दो-तीन साल में 'आत्मनिर्भर भारत'के लक्ष्य को पा सकते हैं। एसोचैम ने इन 15 उत्पादों में इलेक्ट्रॉनिक्स, कोयला, लौह-चादर, अलौह धातु, वनस्पति तेल आदि को शामिल किया है। एसोचैम का ख़याल है कि तेल और सोने से अलग ऐसी ढेर सारी चीजें हैं, जिनका आयात तुरंत बंद करके भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा बचाई जा सकती है और स्थानीय उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। इन चीजों में इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान, इलेक्ट्रिकल और गैर-इलेक्ट्रिकल मशीनरी, लौह एवं इस्पात, जैविक और अजैविक रसायन, कोयला-कोक और ब्रिकेट, अलौह धातु, परिवहन उपकरण और फार्मास्युटिकल्स शामिल हैं। इस सूची में वनस्पति तेल, उर्वरक, डाइंग, टैनिंग और कलरिंग का सामान, पेशेवर उपकरण और ऑप्टिकल्स, फल और सब्जियां भी शामिल हैं।
इसमें संदेह नहीं कि इन उत्पादों के लिए आयात पर निर्भरता से मुक्त होना और भारत को उत्पादन क्षेत्र (मैन्युफैक्चरिंग हब) के रूप में विकसित करना कह देने जितना आसान नहीं है। लेकिन एसोचैम के महासचिव का यह विश्वास भी निराधार नहीं कि उत्पादन से जुड़ी इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ताज़ा प्रोत्साहन योजना से और इस क्षेत्र के चैंपियनों को प्रोत्साहन देकर पासा पलटा जा सकता है। क्योंकि उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स से संबंधित है। इसके तहत 'मेक इन इंडिया'को बढ़ावा देना और मोबाइल फोन उत्पादन और विशेष इलेक्ट्रॉनिक कलपुर्जों में बड़ा निवेश आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन देना शामिल है। वे ध्यान दिलाते है कि इसके लिए घरेलू ओर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश दोनों को प्रोत्साहन देना होगा।
अंततः यही कि सरकार और उद्योग जगत के सामने फिलहाल भारत-चीन तनाव को अपनी इकोनॉमी को ड्रैगन के चंगुल से निकालने के अवसर में बदल कर दिखाने की चुनौती ने उपस्थित है। आगे आगे देखिए होता है क्या!
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