डिजिटल स्ट्राइक और आत्मनिर्भर भारत
अब यह साफ हो चुका है कि गलवान झड़प के बाद भारत-चीन संबंधों का दृश्य पहले जैसा नहीं रह सकता। चीन इस भ्रम में था कि सीमाओं पर शत्रुता और व्यापार में मित्रता साथ साथ चलती रह सकती हैं। उसे लगता था कि वह भारत की मजबूरी है। लेकिन भारत ने एक ही झटके में उसे अहसास करा दिया है कि चीन के साम्राज्यवादी मनसूबों को सामरिक ही नहीं, व्यावसायिक और तकनीकी मोर्चों पर भी माकूल जवाब देने में भारत अब हिचकने वाला नहीं। पहले चीनी कंपनियों के ठेकों पर वार और फिर 59 ऐप प्रतिबंधित करके भारत ने जो चोट दी है, चीन उसे जल्दी न भूल सकेगा। कुछ लोगों को लगता था कि चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम राष्ट्रवादी जन समुदाय अपने स्तर पर चलाता रहेगा और सरकार अपने व्यापारिक करारों को बरकरार रखेगी। शायद यही सोचकर चीन भी संतुष्ट रहा होगा कि विरोध और प्रदर्शनों के बावजूद भारत के व्यावसायिक और तकनीकी बाज़ार पर उसकी पकड़ छूटने वाली नहीं। लेकिन अब ज़रूर उसे पाँवों तले की ज़मीन खिसकती लग रही होगी।
गौरतलब है कि गलवान झड़प के बाद देश में लगातार चीन के सामान के बहिष्कार की मुहिम तेज हो रही है। फिल्म स्टार से लेकर नेता तक चीन के सामान को इस्तेमाल न करने की अपील कर रहे है। सयाने तो यहाँ तक कह रहे हैं कि भारत ने चीन के खिलाफ 'आर्थिक युद्ध'छेड़ दिया है। अगर यह जज़्बा बना रहे, तो 'आत्मनिर्भर भारत'की पहल सार्थक हो जाएगी। भारत का पहले हज़ारों करोड़ के टेंडर रद्द करना और फिर टिक टॉक समेत ढेरों ऐप ढेर करना, चीन पर भारी पड़ेगा। सयानों की मानें तो चीन से आने वाले माल की बड़ी-बड़ी खेप बंदरगाहों पर आकर पड़ी है, पर कोई डिलीवरी को तैयार नहीं। ऊपर से यह 'डिजिटल स्ट्राइक'! अपना डेटा चोरी होने से बचाने के लिए ऐसा करना और भी ज़रूरी था। इस लिहाज से दूरसंचार मंत्री के इस कथन को हर भारतीय का समर्थन मिलना चाहिए कि 'भारत की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता के साथ ही भारत के लोगों के डेटा को सुरक्षित रखने और प्राइवेसी के लिए सरकार ने 59 मोबाइल एप को बैन किया है।'विदेश संबंधों की भी पहली कसौटी हो देश हित ही है न!
वैसे सयानों का यह अंदेशा भी निराधार नहीं कि अचानक चीन से आयात को रोकना खुद भारत को भी काफी महँगा पड़ सकता है। लेकिन चीन पर अतिशय निर्भरता कितनी महँगी पड़ सकती है, इसे सोचें तो यही कहना होगा कि जितनी जल्दी हो सके भारत को इससे मुक्त होना चाहिए। वरना हम चीन के विस्तारवादी व्यावसायिक और तकनीकी जाल में इस बुरी तरह फँसते जाएँगे कि उबरना संभव न रहेगा। चीन ने गलवान कांड करके भारत को खुद इस जाल को काटने का एक मौका दिया है। चीन पर निर्भरता के इस देशघाती शिकंजे से निकलने के लिए हमें :मेक इन इंडिया', 'लोकल के लिए वोकल'और 'आत्मनिर्भर भारत'के अभियान को सारा जोखिम उठाते हुए अपनाना ही होगा। स्वदेशी के बिना स्वतंत्रता अधूरी है!
इसे भारतीय विदेश व्यापार नीति की हास्यास्पद ट्रेजेडी न कहें तो क्या कहें कि पिछले दशकों में हम उन चीजों के लिए भी चीन पर निर्भर होते चले गए, जो बहुत आसानी से देश में बनती थीं। चीन अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करके भी अपना निर्यात बढ़ाता रहा और हम सस्ते के लोभ में उधर फिसलते चले गए। दीवाली के दीपों से लेकर होली के रंगों तक चीन पर निर्भर होने के लिए हमें शर्म तो आनी चाहिए न? इतिहास ने आज इस शर्म से निकलने का एक मौका दिया है, तो सरकार, कारोबार जगत और जनता तीनों को मिलकर आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिखने को आगे आना ही चाहिए!000