राजेश पायलट ने तो सुरक्षा हटाने का भी मुद्दा नहीं बनाया था।
2000 में राजेश पायलट की सड़क दुर्घटना में मौत हुई। लेकिन उसके कुछ समय पहले राजेश पायलट की सुरक्षा से एनएसजी यानि ब्लैक कैट कमांडो हटा दिए गए थे। कई और नेताओं की साथ ही सुरक्षा हटी। लेकिन बसपा नेता मायावती ने अपनी सुरक्षा बहाल करा ली और कई और लोगों ने दबाव बनाया। राजेश पायलट संसद में ताकतवर आवाज थे। अगर एक बार अटलजी या अडवाणीजी से मिले होते तो उनकी सुरक्षा बहाल हो सकती थी लेकिन राजेश पायलट ने ऐसा नहीं किया न ही इसे मुद्दा बनाया। उसी दौरान एक दिन मैने पूछा कि आपने तो चंद्रास्वामी से सीधा मोरचा लिया था और कश्मीर और पूर्वोत्तर से आतंकवादी और उग्रवादी संगठनों के निशाने पर हैं। आपको अटलजी और अडवाणीजी से मिल कर बात करनी चाहिए थी। राजेश पायलट ने कहा कि मैं एक फौजी हूं मांगना अपने स्वभाव में नहीं। किसका जीवन कब तक है, यह सुरक्षा व्यवस्थाओं से तय होता तो इतने लोग भारी भरकम सुरक्षा के बाद क्यों चले गए होते और तमाम बिना सुरक्षा के भी कैसे बच गए होते। लेकिन वे गलत साबित हुए। जिस समय उनकी दुर्घटना में राजस्थान में मौत हुई, एनएसजी होती तो शायद टाला जा सकता था। मैने उस दौरान एक रिपोर्ट लिखी थी जो आज शेयर कर रहा हूं। ..इस याद का मतलब उनके बेटे से तुलना करना नहीं। क्योंकि राजेश पायलट ने भारत की राजनीति मेें जो कद काठी हासिल की और कर ली थी, वह हासिल करने का मौका सचिन खो चुके हैं। उनमें वैसा दमखम ही नहीं जो राजेश पायलट में था और न वैसा साहस।