सरकार से बड़ा कोई नहींं
क्या कोई गुंडा या माफिया सरकार से बड़ा होता है। क्या कोई राज्यों के पुलिस संगठन से भी ताकतवर होता है। नहीं..अगर वास्तव में सरकारें चाह लें तो पूरे प्रांत में बदलाव दिख सकता है। बीते तीन दशकों में ऐसा मौका 1991 में कल्याण सिंह की पहली सरकार के दौरान आया था। कोशिश योगीजी ने भी लेकिन उसके लिए जैसी टीम चाहिए थी वह उनके पास नहीं है और न वैसी सक्षम नौकरशाही। कोशिश मायावती ने भी की लेकिन उनका लक्ष्य कुछ अपराधियों तक केंद्रित था। और उनके आसपास अपराधी खुद मौजूद थे जिनको वे टिकट तक देती थीं।
कल्याण सिंह के पहले मुख्यमंत्री काल में मैने और साथी अजीत अंजुम ने हमारे ब्यूरो चीफ आदरणीय प्रबाल मैत्रजी के निर्देश पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में जाकर जमीनी पड़ताल की थी। गाजियाबाद में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शैलजाकांत मिश्र ने इलाकाई गुंडों को राज्य छोड़ने को विवश कर दिया था। उनकी बड़ी शिकायतें मुख्यमंत्री तक पहुंच रही थीं लेकिन कोई दबाव काम नहीं आ रहा था। तब प्रकाश सिंह पुलिस प्रमुख थे उत्तर प्रदेश में। 1992 में जब केंद्रीय गृह मंत्री शंकर राव चव्हाण का अयोध्या दौरा होना था तो मुझे प्रकाश सिंहजी फैजाबाद हवाई पट्टी पर मिले। मैने पूछा कि क्या वास्तव में आप पर कोई दबाव नहीं है। मुस्कराने लगे और कहा कि मुख्यमंत्री के फ्री हैंड देने के बाद दवाब क्या होता है। उनसे बड़ा है क्या कोई। ..खैर ये कुछ संदर्भ है..अधिक दिन ये भी नहीं चला। लेकिन उसके बाद मैने कभी वैसी तस्वीर नहीं देखी। पूरी सीरीज हमने अमर उजाला में लिखी थी। उस दौरान हमारे अखबार पर भी बहुत दबाव पड़े थे लेकिन पड़़ताल जारी रही। सबकी हिस्ट्रीशीट तक हमारे पास थी। अधिकतर अपराधी दिल्ली या हरियाणा मे जान बचा कर भाग गए थे। ..उसमें बाद में विधायक बने लोग तक शामिल थे। ऐसा नहीं है कि कल्याण सिंह के शासन काल में उस दौरान सब कुछ बहुत सही ही हुआ था। तराई में उग्रवाद के नाम पर बहुत जुल्म ज्यादतियां भी हुईं और पीलीभीत कांड भी हुआ। लेकिन कुल मिला कर कानून व्यवस्था की स्थिति में जैसा सुधार उस दौरान हुआ था वैसा फिर देखने को नहीं मिला कभी। ..कल्याण सिंह की आगे की सरकार में भी। शायद उन्होने भी सरकार को चलाने के लिए तमाम मोरचों पर समझौता कर लिया था। उस दौर की एक रिपोर्ट साझा कर रहा हूं। मौका लगे तो पढ़िएगा। क्योंकि राजनीति के अपराधीकरण पर आजकल कई तरह की चर्चा जारी है।