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*शिक्षक-दिवस*

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 *कुण्डलिया*/ *शिक्षक-दिवस*


                           (१)


शिक्षक एक महान थे,उद्भट थे विद्वान।

राधा कृष्णन नाम था,सागर जैसा ज्ञान।।

सागर जैसा ज्ञान, परम वैज्ञानिक उनका।

करना शिक्षा-दान,कर्म सम्मानित जिनका।

भारत के थे रत्न,देश के उत्तम दीक्षक।

जन्मदिवस पर हर्ष,मनाते मिलकर शिक्षक।।


                         (२)


पाँच सितंबर तिथि हुआ,जन्मदिवस अनुमन्य।

शिक्षक दिवस स्वरूप में,राधाकृष्णन धन्य।

राधा कृष्णन धन्य,समर्पित शिक्षक नेता।

धर्म और विज्ञान,उभय के थे समवेता।।

धवल कीर्ति यशगान,सुशोभित धरती अम्बर।

शिक्षक दिवस 'दिनेश',आज है पाँच सितंबर।।


                           (३)


जाते शिक्षक बन मगर,शिक्षा से मुँह मोड़।

समय बिताते खेत में,विद्यालय को छोड़।।

विद्यालय को छोड़,बने नेता हैं फिरते।

करें न शिक्षा-कर्म,काम निज घर का करते।।

शिक्षक का जो धर्म,कभी वे नहीं निभाते।

ऐसे भी कुछ लोग,यहाँ शिक्षक बन जाते।।


                        (४)


शिक्षा अब बिकने लगी,शिक्षा के बाज़ार।

व्यापारी करने लगे,शिक्षा का व्यापार।।

शिक्षा का व्यापार,यहाँ करता है जो भी।

फलता है दिन-रात,बना व्यापारी लोभी।।

जो बालक धनहीन,नहीं पाते हैं दीक्षा।

कहता सत्य 'दिनेश', हुई अब महँगी शिक्षा।।


                           (५)


शिक्षक बन मत कीजिए, शिक्षा का व्यापार।

शिक्षा को मत बेचिए,सरेआम बाज़ार।।

सरेआम बाज़ार, बात है कड़वी सच्ची।

करिए यह स्वीकार,नहीं हो माथा-पच्ची।।

कहता सत्य 'दिनेश',परम पावन पद दीक्षक।

फैले जगत प्रकाश,बनो तुम ऐसा शिक्षक।।


                         (६)


शिक्षक बनकर राष्ट्र में,सदा निभाना धर्म।

प्राणवान भारत बने,करना ऐसा कर्म।।

करना ऐसा कर्म,छात्र के हित में होए।

शिक्षा के जो मूल्य,नहीं शिक्षार्थी खोए।।

सदा उठाकर शीश,खड़ा हो भारत तनकर।

अपना धर्म 'दिनेश', निभाओ शिक्षक बनकर।।


                        (७)


शिक्षक दिवस मनाइए,मचा हुआ है शोर।

शिक्षा के भी क्षेत्र में,दिखते हैं कुछ चोर।।

दिखते हैं कुछ चोर,काम चोरी जो करते।

बिना काम के दाम,सदा झोली में भरते।।

कहता सत्य दिनेश,इन्हें तुम समझो भिक्षक।

लगती मुझको शर्म,कहूँ जो इनको शिक्षक।।        

    

                        ( ८)


सरकारी शिक्षक बनो,शिक्षा से मुँह मोड़।

करिए कार्य तमाम हैं,केवल शिक्षा छोड़।।

केवल शिक्षा छोड़,पोलियो-ड्यूटी करिए।

कभी चुनावी बॉक्स,आप माथे पर धरिए।।

तरह-तरह के कर्म,कराते हैं अधिकारी।

शिक्षक होते त्रस्त, ख़ासकर जो सरकारी।।


                    दिनेश श्रीवास्तव             

                    @ दिनेश श्रीवास्तव

                      ग़ाज़ियाबाद


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