कितनी नई हो जाएगी नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज गुरुवार को नए संसद भवन की आधारशिला रखेंगे। इस अवसर पर भूमि पूजन और सर्वधर्म प्रार्थना का भी आयोजन होगा। इसके साथ ही एडविन लुटियन तथा हरबर्ट बेकर के डिजाइन की संसद भवन की इमारत, जिसके निर्माण में हजारों भारतीय मजदूरों ने दिन-रात एक किया था, इतिहास के पन्नों में चली जाएगी।
इसकी 12 फरवरी 1921 को ब्रिटेन केड्यूक आफ कनॉट ने आधारशिला रखी थी। ये छह सालों में 83 लाख रुपए के कुल खर्च में बनी थी। इसका उदघाटन लॉर्ड इरविन ने 18जनवरी,1927 को किया था। देश को जो नई संसद मिलने जा रही है उसके निर्माण पर 971 करोड़ रुपये की लागत आएगी। नया संसद भवन पुराने संसद भवन से 17,000 वर्गमीटर बड़ा होगा। इसे 64,500 वर्गमीटर क्षेत्र में बनाया जाएगा।
तो इतिहास के पन्नों में दफन होंगे एडविन लुटियन
एक बात पर गौर करें कि सिर्फ देश को नया संसद भवन ही नहीं मिलने जा रहा है। अब सर एडविन लुटियन को और उनकी टीम की तरफ से डिजाइन की लुटियंस दिल्ली से आगे बढ़ने का वक्त आ गया है। अब देश को साऊथ और नार्थ ब्लॉक की भी जरूरत नहीं रही या कहें कि अब इन इमारतों से आगे सोचने का समय आ गया है। ये राष्ट्रपति भवन से लेकर इन्डिया गेट के बीच 1911 से 1931 के दौरान बनी थीं । नई दिल्ली के इस दिल को सेंट्रल विस्टा भी कहा जाता है। इन्हें देख-देखकर दिल्ली की कम से कम चार पीढ़ियां बढ़ी हुईं।
अभी तक स्पष्ट नहीं है कि मौजूदा संसद भवन का आगे किस तरह से यूज होगा।
पर नार्थ और साऊथ ब्लॉक संग्रहालय बनने जा रहे हैं। इनके स्थान पर एक सेंट्रल विस्टा, जिसे राजपथ भी कहते हैं, पर कम से कम चार बड़ी और आधुनिक इमारतें खड़ी की जा रही हैं, जहाँ केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को शिफ्ट कर दिया जाएगा। इनमें 45 हजार सरकारी बाबू काम कर सकेंगे।
अब बड़ा सवाल यह है कि इतना सब कुछ करने की ज़रूरत क्यों महसूस की गई? ये सवाल सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने भी पूछा है? क्या इन मौजूदा इमारतों में सुधार करके काम नहीं चलाया जा सकता था ?
इन सवालों के दो उत्तर है। पहला, इन तीनों महान इमारतों में जरूरी बदलाव संभव थे। आखिर अमेरिका और यूरोप में बहुत सी इमारतें 150 साल तक यूज में रहती है। दूसरा, हमें साउथ और नार्थ ब्लॉक के स्थान पर नये दफ्तरों की इमारतें इसलिए बनानी पड़ रही है क्योंकि इनकी स्थिति बेहद खराब हो रही है। इनमें एयर कंडीशन की व्यवस्था करने के कारण व्यापक स्तर पर टूट- फूट होती रही है। अब इनमें सीलिंग की समस्या गंभीर होती जा रही है। नार्थ ब्लॉक के भूतल में कुछ साल पहले प्रींटिंग प्रेस लगाने से इस इमारत का हाल बेहाल हो गया है।
फिर 1931 की और मौजूदा दौर की दिल्ली में जमीन आसमान का अंतर हो चुका है। इनमें इमारतों में कार पार्किंग के लिए स्पेस पर्याप्त नहीं है। जाहिर है कि जब ये इमारतें बन रही थीं तो किसने सोचा था कि इस शहर में आगे चलकर लाखों कारें हो जाएंगी। इसलिए अब इन तीनों महान इमारतों को अलविदा कहने का तो वक्त आ ही गया है। आखिर इन्हें कब तक मरम्मत करवा कर यूज में रखा जा सकता था ?
केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी कहते हैं कि फिलहाल सरकार के बहुत से दफ्तर प्राइवेट इमारतों से भी काम कर रहे हैं। जिसका सरकार को हर साल एक हजार करोड़ रुपये देना पड़ रहा है। जाहिर है, नई इमारतें बनने के बाद कोई भी सरकारी दफ्तर रेंट के स्पेस से नहीं चलेगा।
एक बात और समझ ली जानी चाहिए कि अब जो नई इमारतें बनेंगी वे सब गगनचुंबी होंगी। अब चार-पांच फ्लोर की इमारतों के बनने का दौर गुजर गया है। जब लुटियन और बेकर देश की नई राजधानी की सरकारी इमारतों के डिजाइन बना रहे थे, तब दिल्ली का आबादी 14-15 लाख के आसपास थी। अब ये ढाई करोड़ को पार कर रही है।
कैसा होगा नई इमारतें का स्थापत्य
अभी यह कहना जल्दी होगा कि संसद भवन,साउथ और नार्थ ब्लॉक के स्थान पर जो इमारतें बनेंगी वे स्थापत्य के लिहाज से उतनी ही भव्य और बेहतरीन होंगी जो लुटियंस और बेकर ने डिजाइन की थीं।
सरकार ने सेंट्रल विस्टा के विकास के लिये अहमदाबाद की मैसर्स एच सी पी डिज़ाईन, प्लानिंग एण्ड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड को अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी दी है। इसका अभी तक का ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है। इस फ़र्म ने मुंबई पोर्ट काम्प्लेक्स, गुजरात राज्य सचिवालय,आई आई एम, अहमदाबाद आदि के लाजवाब डिज़ाईन तैयार किये हैं। इसलिए इसकी क्षमताओं पर सवाल खड़े करना गलत होगा।
दरअसल इस बेहद खास प्रोजेक्ट को हासिल करने के लिये कुल 6 आर्किटेक्चर फर्मस ने दावे पेश किये थे। उन सभी के दावों और पहले के कामों का गहराई से अध्ययन करने के बाद बाजी एच सी पी डिज़ाईन,प्लानिंग एन्ड मैनेजमेंट प्राईवेट लिमिटेड ने मार ली। कुछ स्तरों पर कहा जा रहा है कि अहमदाबाद की फर्म को इतने खास प्रोजेक्ट का दायित्व सौंपने में निष्पक्षत्ता और पारदर्शिता नहीं दिखाई गई। पर दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन के प्रमुख और दिल्ली स्थित स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के डायरेकटर प्रो. पी.एस.एन राव की अध्यक्षता वाली कमेटी पर बिना पुख्ता प्रमाणों के सवाल खड़े करना सहीं नहीं लगता।
यहां यह बताना समीचिन होगा कि जब नई इमारतें बनेंगी तो शास्त्री भवन, उद्योग भवन, कृषि भवन, विज्ञान भवन और निर्माण भवन जैसी पचास और साठ के दशकों में बनी इमारतें भी जमींदोज होंगी।
इनमें भारतसरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के दफ्तर काम कर रहे हैं। समझ नहीं आ रहा कि विज्ञान भवन पर क्यों हथौड़ा चलाने का मन बनाया जा रहा है। ये 1956 में बना था। विज्ञान भवन का डिजाइन तैयार किया था प्रसिद्ध आर्किटेक्ट आर.ए.गहलोते ने। वे सीपीडब्ल्यूडी से जुड़े थे। उन्होंने विज्ञान भवन का डिजाइन तैयार करते हुए हिन्दू, मुगल तथा बौद्ध वास्तुकला का सम्मिश्रण किया। इसे बने हुए 64 साल हो रहे हैं, पर ये अब भी नई इमारत लगती है। गहलोते जी ने विज्ञान भवन को एक अलग मिजाज का प्रवेश द्वार दिया। ये काले मार्बल के पत्थर से बना है। आपको शायद ही किसी इमारत का इतना विशाल मुख्य द्वार मिले।
इसके साथ ही रोबर्ट टोर रसेल द्वारा लोक कल्याण मार्ग पर स्थित प्रधानमंत्री निवास भी इतिहास के पन्नों मे दर्ज होगा। नया प्रधानमंत्री आवास डलहौजी रोड में बनेगा। समझ नहीं आया कि 1984 से जिस स्थान को प्रधानमंत्री आवास बना दिया गया था उसके स्थान पर नया प्रधानमंत्री आवास खड़ा करने की क्या आवशयकता थी।
एक बात और।
सरकार को इतने बड़े पैमाने पर इमारतें तोड़ने और बनाने की जल्दी क्या है? नई दिल्ली की सारी प्रमुख इमारतों को बनने में करीब 20 वर्षों का समय लगा था । पर इधर तो काम मार्च 2024 तक समाप्त भी हो जाएगा। यानी 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तक हमें सेंट्रल विस्टा नए रूप में मिलेगा। क्या यह मुमकिन है ?
सरकार की चाहत है कि संसद की नई इमारत 2022 तक बन जाए जब देश अपनी आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा हो। सरकार की चाहत अपनी जगह सही हो सकती है, पर इतने मेगा प्रोजेक्ट को चरणबद्ध तरीके से भी किया जा सकता था। बहरहाल, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि लुटियन और बेकर की सरपरस्ती में दिल्ली में शानदार इमारतें बनीं थीं। इसलिए नई दिल्ली के शुरूआती दौर के स्थापत्य और लैंड स्केपिंग पर जब भी चर्चा होगी तो इन दोनों का नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता रहेगा। हालांकि ये मुमकिन है कि नई इमारतों के बनने से राजधानी और सुंदर बन जाए ।
लेख अमर उजाला में 10 दिसंबर 2020 को छपा है ।