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व्यंग्य परिवर्तनकामी लेखन है / राम स्वरूप दीक्षित

 व्यंग्य हमारे चारों तरफ के निजी , सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक और धर्मिक ,सांस्कृतिक परिदृश्य में व्याप्त मानव निर्मित विसंगतियों की सूक्ष्म पड़ताल करते हुए उन पर इस तरह से वैचारिक प्रहार की रचनात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करना है , जिससे जनमानस  उन विसंगतियों और उनके लिए जिमेदार लोगों  के प्रति एक वितृष्णा से भर उठे और लोगों में उनमें परिवर्तन  की चेतना जागृत हो । 

व्यंग्य एक सोद्देश्य परिवर्तनकामी लेखन है । 

व्यंग्य लेखक की जनपक्षधरता  तय होनी चाहिए । उसे हर हाल में समाज के शोषित पीड़ित वर्ग के साथ खुद को खड़ा करना होगा । 

व्यंग्य किसी भी तरह की सत्ता चाहे वह ईश्वरीय ही क्यों न हो , अगर वह शोषण का औजर बनती है तो उससे टकराने और उससे मुठभेड़ करने का रचनात्मक उपक्रम है ।


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