मित्रों, आज शाम को वेबिनार, आप सभी सादर आमंत्रित हैं, आपका मित्र सूची में बना रहना आपकी उपस्थिति पर निर्भर करेगा । पैनल में हैं -
- बेचैन जी
- बेलौस जी
- बेपरवाह जी
- उत्कर्ष जी
- व्यथित गुरु
- उद्वेलित जी
- पतित सर
- श्रद्धेय उरूज जी
- सुश्री उत्कंठा
आप सभी की लाइव जिज्ञासाओं को हमारा गुणी पैनल मृत करेगा । लाभान्वित हों ।
विषय है, "लाइव आने की लाईलाज बीमारी और बचाव के उपाय"
बढ़िया व्यंग्य!...हंसने को भी मजबूर करता है और सोचने को भी, जबकि न सोचना और अपने सिवाय सब पर हँसना हमारा राष्ट्रीय संस्कार बन चुका है। संस्कार भारती और माँ बनी सरस्वती ने हमें यही सिखाया है। भारत को भी हमने माता का दर्ज़ा देकर इसी तरह संस्कारित होने की उम्मीद पाली थी, लेकिन ट्रम्प ने नमस्ते पाकर नमस्ते कर ली और हम सोच रहे हैं कि अब हम कैसे संस्कृत होंगे!
रचना सोचने को मजबूर करती है, यही इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है।
सुरेश कांत जी ।आपकी लेखनी कमाल की है। शब्द और शैली
समुद्र के किनारे बिछी रेत सा आनंद देती है।
आपकी तारीफ के लिए मेरे पास कोई शब्द ही नहीं है।सिवाय इसके कि आप व्यंग्य शैली के जादूगर और कल्पना में।पुराने जमाने का बाइसकोप ।बधाई बधाई
रह तरह के इतर सन्देशों के आदान प्रदान के चलते भी , आज का सत्र इस मायने में सफल रहा कि प्रस्तुत रचना को पूरी गम्भीरता के साथ पढ़ा गया और बेहद सटीक प्रतिक्रियाएं दीं गईं।
सम्माननीय साथीआरिफा एविस ,दिवाकर पांडे , सुनील भाटिया , राजेन्द्र वर्मा , बुलाकी शर्मा ,विवेकरंजन श्रीवास्तव ,मृदुल कश्यप , वीणा सिंह ,एम एन चन्द्रा ,अशोक प्रकाश , आसिफ जमाल खान , प्रभाशंकर उपाध्याय , सुनीता शानू , स्नेहलता पाठक , आप सभी का हृदय से आभार ।
पटल को अपने निजी प्रचार का माध्यम समझने वाले मित्रों का भी धन्यवाद कि इसी बहाने सत्र में उपस्थित होकर एकरसता तो तोड़ी ।
उनका भी बहुत आभार जो पढ़ने के बाद भी प्रतिक्रिया देने में संकोच का अनुभव करते रहे ।
आगे के सत्रों में उनका यह संकोच अवश्य दूर होगा ।
पुनः सभी को प्रणाम
🙏🙏
'त्रिकाल'के संपादक महोदय जब बंगला 'आशीर्वाद'में छायाकार सहित दाखिल हुए तो हतप्रभ रह गए। बुद्धिजीवी-प्रमुख बंगले के लॉन की हरी घास पर लाल दरी बिछाए मुर्गा बने हुए थे। इशारे से बिना कुछ बोले उन्होंने छायाकार को छायाचित्र लेने को कहा। छायाकार बाकायदा वीडियो बनाने लगा।...