नेपथ्य से आगे करुणानिधि / आलोक तोमर
दुनिया में कम ही लोग ऐसे होते हैं जो नेपथ्य में रह कर भी पोस्टरों पर नजर आते है। इन्हीं लोगों के लिए शायद दुष्यंत ने लिखा था- इन दिनों अब मंच पर सुविधा नहीं है/आज कल नेपथ्य में संभावना है। बत्तीस साल पहले अचानक और परिवार वालों के विरोध के बावजूद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बन गए मुथुवेल करुणानिधि आज भी अगर प्रासंगिक हैं तो इसलिए कि उन्होंने नेपथ्य की राजनीति को मंच पर ला कर खड़ा कर दिया और मंच वैसा ही सजाया जैसा वे चाहते थे।
अन्ना दुराई तमिलनाडु के मसीहा नेताओं में से गिने गए है। हिंदी विरोध का आंदोलन राजनैतिक तौर पर इस्तेमाल करने का श्रेय भी सबसे पहले अन्ना दुराई को ही मिला। करुणानिधि चौदह साल की उम्र से अन्ना दुराई के भक्त थे और कुछ दिनों बाद जब फिल्मों में पटकथा और संवाद लिखने का काम शुरू किया तो हिंदी विरोध और जमींदारी मुक्ति से ले कर ब्राह्मणवाद विरोध और तमिल गौरव को अपनी कहानियों का विषय बनाया।
एक शुरूआती फिल्म का प्रसिद्व संवाद हैं कि मैं गलत करता हूं, मैं सही करता हूं, जिसमें तमिल जागे वहीं करता हूं। शुरू की दो फिल्में पराशक्ति और पानम सुपर हिट हुई लेकिन इन सुपर दंगे भी हुए। तमिल मेगास्टार शिवाजी गणेशम को इन्हीं फिल्मों से ब्रेक मिला था। इसमें विधवा विवाह की कहानी भी थी। जयललिता काफी बाद में बहुत लाजवंती नयिका की तरह तमिल सिनेमा में आई और उस समय के सुपर स्टार और करुणानिधि के दोस्त एम जी रामचंद्रन की सखी बन गई। यह सखी भाव इतना बढ़ा कि एम जी आर की अमेरिका में मौत के बाद तो जयललिता ने सती होने की घोषणा कर दी थी। करुणानिधि के साथ एम जी आर भी राजनीति में घुसे और चूंकि वे सुपर स्टार थे इसलिए उनके नाम से पार्टी चलने लगी। अन्ना दुराई की द्रविण मुनेत्र कषगम के स्टार एम जी आर ही थे और इस सितारे को ठीक से करुणानिधि वांच भी नहीं सके।
दरअसल पहली बार करुणानिधि को मुख्यमंत्री बनाने वाले भी एम जी आर थे मगर राजनैतिक और श्रृंगारिक कारणों से जयललिता अपने आपको एम जी रामचंद्रन की हर विषय में उत्तराधिकारी मानती थी। करुणानिधि की भक्ति एम जी आर की बाकायदा विवाहित धर्म पत्नी जानकी से थी। जानकी को एक बार मुख्यमंत्री बनाने में उन्होंने मदद की। जयललिता से करुणानिधि का झगड़ा उसी समय शुरू हो गया था जब फिल्मों में जयललिता करुणानिधि के लिखे संवाद बोलती थी और उन्हीं के गाने गाती थी।
करुणानिधि ने अपने आपको अस्तित्व और परिचय के तौर पर कभी किसी भ्रम के केंद्र में नहीं रखा। वे तब भी हिंदी विरोधी थे और अब भी हिंदी विरोधी है। बस कांग्रेस से दोस्ती का अभिनय कुछ ज्यादा लंबा हो गया है। कांग्रेस की केंद्रीय सरकारों ने करुणानिधि की राज्य सरकारें लगभग अकारण भंग की हैं, मुख्यमंत्री रहने के दौरान हुए किसी मामले के चक्कर में पुलिस ने इतने बड़े तमिल नेता को घर जा कर सुबह पांच बजे न सिर्फ गिरफ्तार किया था बल्कि बाकायदा धक्के भी मारे थे। यह सब टीवी कैमरों के सामने हुआ था। ऐसे में ए राजा तो निमित्त मात्र हैं, करुणानिधि राजनैतिक तौर पर कांग्रेस के साथ अपनी रिश्तेदारी काफी मजबूरी में ही निभा रहे हैं। तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव अगर इतने करीब नहीं होता तो कहानी कुछ और ही होती। करुणानिधि राजनीति में धोबी पाट मारने के लिए काफी प्रख्यात रहे हैं और सही बात तो यह है कि फिलहाल व्हील चेयर पर रहने वाले करुणानिधि जिन्हें कलंगार के नाम से भी जाना जाता है, 86 की उम्र में भी राजनीति के सूत्र अपने हाथों में लिए हुए है।
करुणानिधि ने फिल्मों के जरिए द्रविड़ आंदोलन को न सिर्फ खड़ा किया बल्कि उसे बहुत सरल अर्थो में लोगों तक पहुंचाया भी। जिस समय जयललिता हिंदी सिनेमा में धर्मेंद के साथ लागी बदन में ज्वाला, सैंया तुने क्या कर डाला, गाने की हिम्मत दिखा रही थी उस समय भी करुणानिधि छोटी छोटी फिल्में बना कर तमिलनाडु की जनता का दिल जीत रहे थे। जयललिता ने राजनैतिक मैदान में करुणानिधि को गजब की टक्कर दी है लेकिन करुणानिधि ने कभी एक पल को भी पराजय स्वीकार नहीं की।
करुणानिधि बसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास नहीं करते लेकिन अपना कुटुंब उन्होंने काफी बड़ा बना रखा है। एक नहीं, दो नहीं, तीन शादियां की हैं और लगभग सभी संतानों को राजनीति में स्थापित किया है। एम के स्टालिन तमिल राजनीति में उनके उत्तराधिकारी के तौर पर देखे जाते हैं तो अझागिरि केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल है। बेटी कनिमोझी न सिर्फ केंद्रीय मंत्री हैं बल्कि पिता की राजनीति भी कनिमोझी ही तय करती है। यह बात अब तक सामने आए नीरा राडिया के टेपों से जाहिर हो चुकी है।
करुणानिधि ने सबसे पहले अपने भतीजे मुरासोली मारन को केंद्र में मंत्री बनवाया था मगर तमिल राजनीति को समझने वाले यह भी याद कराते हैं कि मुरासोली मारन करुणानिधि के मुख्यमंत्री बनने से पहले राजनीति में थे और हिंदी विरोधी आंदोलन के चक्कर में कई बार जेल भी जा चुके थे। मुरासोली मारन केंद्र में मंत्री थे तो जिस शानदार बंगले में रहते थे उसी में आज कल भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी रहते है। मगर मुरासोली के बेटे दयानिधि मारन को एक बार तो करुणानिधि के आदेश पर मंत्रिमंडल ही नहीं बल्कि राजनीति से भी बाहर होना पड़ा और बड़ी मुश्किल में वे वापस आए। उधर यह भी जाहिर होता जा रहा है कि एम के स्टालिन को करुणानिधि ने अपना उत्तराधिकारी चुन लिया है और लाडली बेटी कनिमोझी इस बात से बहुत नाराज है और इस नाराजी में करुणानिधि के दूसरे राजनैतिक शिष्य भी शामिल है।
करुणानिधि की एक खासियत यह भी है कि वे राजनीति और कारोबार को मिलाते नहीं है। मुरासोली मारन से नाराज हुए थे और दयानिधि से वे भी बहुत खुश नहीं थे मगर उनके सन नेटवर्क को आगे बढ़ाने में करुण्ाानिधि ने पार्टी और सरकार का पूरा सहयोग दिया और आज इस नेटवर्क के मालिक और दयानिधि के भाई कलानिधि मारन तीन अरब डॉलर के मालिक हैं और भारत में बीसवें नंबर के सबसे अमीर आदमी माने जाते हैं।
सन नेटवर्क के सारे चैनलों का एक सूत्रीय कार्यक्रम यह है कि जयललिता के जया टीवी पर जो आ रहा है उसे गलत साबित करो। अपने कुल को आगे बढ़ाने का अभियोग झेलने वाले करुणानिधि एक बार अपने बेटे एम के मुथु और अझागिरि को पार्टी से निकाल भी चुके हैं और मुथु तो फिर पनप ही नहीं पाए। करुणानिधि के एक और बेटे का नाम भी कभी नहीं सुना जाता और वे हैं पहली शादी की संतान तमिलरासु। करुणानिधि अपने आपको तमिलनाडु के अगले जनादेश के लिए तैयार कर रहे हैं। राजा को ले कर कांग्रेस से पंजा भिड़ाने का फैसला भी उसी आधार पर होगा।