इश्क में शहर का खुमार
बारिश से बचने के लिए उसने अपना स्कूटर मूलचन्द्र फ्लाईओवर के नीचे पार्क कर दिया। दोनों एक दूसरे में इतना खोए रहे कि ध्यान ही न रहा कि अगल-बगल में पचासों स्कूटर वाले बारिश खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। वह बिना वजह उसके लिए छाता बनने की कोशिश करता रहा। उसे भी बिना जरूरत फ्लाईओवर के नीचे एक छाते का अहसास अच्छा लग रहा था। अगल-बगल खड़े सैकड़ों लोग किसी बादल के बचे टुकड़े की तरह उन्हें घूर रहे थे।
पुस्तक का नाम - इश्क में शहर होना
लेखक - रवीश कुमार
प्रकाशन - राजकमल प्रकाशन "सार्थक"
मूल्य - 125 रुपये
रवीश कुमार की पुस्तक "इश्क में शहर होना"उन सब पुस्तक प्रेमियों के दिल को छू जाएगी। जो प्रेम में है या जिन्होंने कभी अपने जीवन मे प्रेम किया है। खासकर उन पाठकों को ये पुस्तक बहुत रोमांचित करेंगी जिन्होंने अपने स्कूल या कॉलेज के दिनों में प्यार के समंदर में डुबकी लगाई है। ये पुस्तक को पढ़ते समय आप अपने प्रेम के उन पुराने दिनों में फिर से वापस चले जाएंगे और आपको ऐसा महसूस होगा कि ये सारी चीजें तो मेरे साथ भी तो हुई है। ये तो मेरी ही कहानी है। इस पुस्तक की सफलता ही यही है कि इसकी कहानी आपकी कहानी बन जाती है।
जब आप इसे पढ़ेंगे तो अपने प्रेम के पुराने दिनों को याद कर आपके बदन में अजीब सी गुदगुदी सी महसूस करेंगे। आपके चेहरे पर एक मुस्कान तैर जाएगी। वैसे भी प्रेम में पड़े स्त्री या पुरूष के चेहरे की आभा ही अलग होती है।
इश्क में सिर्फ देखना ही नही होता, अनदेखा भी करना होता है।
मुश्किल से एक कोना ढूंढा मगर निगाहों ने उसे चौराहा बना दिया।
पैदल चलने वाले जोड़े अक्सर कार में बैठे जोड़े से जला करते हैं।
ऐसे अनगनित बातें आपको याद रह जाएंगी। बांकी आप इस पुस्तक को पढ़िए और मुझे बताइये की ये पुस्तक आपको कैसी लगी?
हाँ, एक और महत्त्वपूर्ण बात विक्रम नायक जी के चित्रांकन ने इस पुस्तक को जीवंत बना दिया है।